Who rajani thi ![part 3]

आज कीर्ति थोड़ी परेशान है। उसकी परेशानी ,उसके साथ ,उसके दफ़्तर में भी चली आई। कीर्ति को परेशान देखकर ,उसके साथ काम करने वाली दिव्या बोली -क्या कारण है ,?तुम कुछ परेशान दिख रही हो। कीर्ति बोली -कुछ नहीं। दिव्या बोली -क्या आज जीजाजी से झगड़ा हो गया ?कीर्ति बोली -नहीं ऐसी कोई बात नहीं। कीर्ति ने प्रत्यक्ष में कह तो दिया,ऐसी  कोई परेशानी नहीं किन्तु वास्तव में परेशान है। उसे समझ नहीं आ रहा -क्या सही है ,क्या गलत ?कभी उसे लगता है -कि रजनी ज़िंदा है। जिन्दा है ,तो उससे मिलती क्यों नहीं ?मर गयी है, तो उसे क्यों दिखती है ?क्या उसका कोई अपूर्ण कार्य है ?जिसे वो मेरे द्वारा पूर्ण करवाना चाहती है। कुछ समझ नहीं आ रहा। वो अपने ही प्रश्नों में उलझती जा रही थी। दोपहर के खाने पर दिव्या बोली -यदि तुम अपनी परेशानी किसी से कहोगी नहीं, तो इस बोझ को ,कब तक लिए घूमती रहोगी ?हमसे बाँट लोगी तो शायद उसका कोई हल निकले। कीर्ति बोली -तुम्हें मैंने अपनी सहेली रजनी की बात बताई थी न !उन्हें स्मरण कराते हुए बोली। कृति बोली -वो क़िस्सा तो मैंने भी सुना है ,किन्तु वो तो मर गयी। शायद उसकी ससुराल वाले उसे परेशान करते थे। यही तो बताया था, तुमने दिव्या बोली। हाँ वही ,कीर्ति बोली। तो अब क्या बात हो गयी ?वो बात तो अब वहीं समाप्त हो गयी थी, रत्ना बोली।कीर्ति बोली -वहीं समाप्त हो जाती तो कोई बात ही नहीं थी। दिव्या बोली -अब क्या हुआ ?कीर्ति बोली -कुछ महीनों पहले ,मैं सामान लेने मॉल गयी थी ,वहां मुझे रजनी दिखी। क्या !सबके मुँह से एक साथ आश्चर्य मिश्रित स्वर निकला।ऐसे कैसे हो सकता है ?रत्ना बोली। हाँ ,ऐसा ही हुआ है ,मैंने उसका पीछा भी किया ,किन्तु पता नहीं वो कहाँ ग़ायब हो जाती है ?अभी कुछ दिन पहले जो मैंने छुट्टियाँ ली थीं। सबने  एक साथ गर्दन हिलाई ,मैं उसी के गांव गयी थी किन्तु वहां भी कुछ नहीं मिला। जिससे भी पूछा ,उसी ने बताया कि वो अब इस दुनिया में ही नहीं है। 

                 दिव्या बोली -अब इसमें परेशानी की क्या बात है ?कीर्ति बोली -परेशानी यही है कि वो मुझे दिखती है ,मुझे लगता है कि वो जिन्दा है। रत्ना बोली -उसकी हमशक़्ल होगी ,ऐसे तो हमशक़्ल मिल जाते हैं। कीर्ति बोली -इतना मेल नहीं होता ,मैंने उसका दो -तीन बार पीछा भी किया किन्तु वो पता नहीं, कैसे ग़ायब हो जाती है ?यदि वो अनजान लड़की ही मिल जाती, तो मैं उससे बात करके अपनी समस्याओं का निदान पा  जाती और  मैं सब्र भी कर लेती किन्तु जब मैं उसके गाँव गयी वो मुझे तब भी दिखी। ये तो भ्र्म नहीं हो सकता। दिव्या बोली -तुम तब भी तो उससे बात कर सकती थीं। कीर्ति बोली -कैसे बात करती ?उस घर के दरबान ने मुझे एकदम से डरा दिया और मैं भी हड़बड़ाहट में भाग आई। एक बात और उस घर का मालिक अब चंदन है ,स्मरण  नहीं हो  रहा ,कि ये नाम मैंने कहाँ सुना है ?वो भी मुझे नहीं मिला। अज़ीब रहस्य है ,कृति बोली। वो ही तो ,मैं जब से यूँ ही परेशान हूँ,निखिल को पता लगेगा तो वो और ज्यादा नाराज़ होंगे।  कीर्ति बोली। कुछ देर सब शांत बैठकर अपना भोजन समाप्त करने लगीं। तभी रत्ना बोली -मैंने किसी तांत्रिक के विषय में पढ़ा है ,कि भूत -प्रेत किसी भी तरह की समस्याओं का समाधान है ,उनके पास। दिव्या बोली -न बाबा न ,मुझे तो उनकी शक़्ल देखकर ही ड़र  लगता है। उनकी वो वेशभूषा उसे देखकर इंसान तो क्या ,भूत भी ड़र कर भाग जाएँ। कृति हँसी ,बोली -हमें भी तो भूत को ही भगाना है। कीर्ति संदेहात्मक स्वर में बोली -वो भूत है भी कि नहीं ,ये भी तो पता नहीं। रत्ना बोली -मैं कल उसकी सम्पूर्ण जानकारी लेकर आऊँगी ,हमारी गली में ही एक आंटीजी हैं ,उनके यहां भी किसी के साथ ऐसा ही कुछ चक्कर था। उस समय तो मैंने ध्यान नहीं दिया किन्तु आज शाम को मालूम करूंगी, कि क्या हुआ था और कैसे इसका बचाव किया ?चारों ने अपना -अपना भोजन समाप्त किया। 
               कीर्ति आज थोड़ा शांत है क्योंकि रत्ना कल उसकी समस्याओं का  हल निकालकर लाएगी। शाम का खाना खाकर वो आराम करने लगी ,तभी  रत्ना का फोन आया और बोली -तू अभी मेरे घर चली आ !कीर्ति इस अप्रत्याशित बुलावे के लिए तैयार नहीं थी फिर वो इतनी दूर भी रहती है। घर में भी किसी से क्या कहेगी ,कि इतनी रात गए वो रत्ना के घर क्यों जा रही है ?तभी उसने घड़ी देखी ,अब रात के आठ बज रहे हैं, निखिल पूछेगा- तब क्या कहूंगी ?उसने रत्ना से कहा -कल आऊँगी ,ऑफिस से सीधे तुम्हारे घर तुम्हारे साथ चलूँगी। रत्ना बोली -ऐसा होना होता तो मैं तुम्हे आज और अभी फ़ोन क्यों करती ?उन आंटीजी ने बताया है कि ये क्रियाएँ रात में ही होती हैं वो भी अमावस्या की रात्रि में ,और आज वो ही रात है। कीर्ति का दिल दहल  उठा ,उसने मन ही मन सोचा -कहीं वो किसी ,कांड में फंस तो नहीं जाएगी। उसके बस में नहीं है कि वो इस तरह रातों में जागकर किसी  क्रिया में जाये। उसने मना करना चाहा ,तभी रत्ना बोली -तू आ रही है या नहीं ,मैंने तेरे लिए उन आंटी से बात की ,फिर आज ही की तो बात है। उसकी बातें सुनकर कीर्ति ने सोचा -ठीक ही तो कह रही है ,मेरे  लिए ही तो सब कर रही है, वरना उसे क्या आवश्यकता पड़ी है? किसी तांत्रिक या ज्योतिषी से मिले। उसने हिम्मत की और निखिल से बोली -मैं रत्ना के घर जा रही हूँ ,क्यों ? निखिल ने छोटा सा प्रश्न किया। मुझे वो छोटा सा प्रश्न ही बड़ा भारी लग रहा था ,शायद उसके घर में कोई परेशानी है ,जब झूठ बोलते नहीं बना तो झुंझलाकर बोली -मुझे कैसे पता होगा ?बस उसने बुलाया है कि थोड़ी देर के लिए आ जा। निखिल बोला -तुम अकेली इतनी रात गए, क्या कर लोगी ?मैं भी तुम्हारे संग चलता हूँ। ये तो कीर्ति ने सोचा ही नहीं था , फिर भी बोली -क्या पता ,वो तुम्हारे सामने खुलकर बात न कर सके ,जब तुम्हारी आवश्यकता महसूस होगी तो तुम्हें बुला लूँगी। मैं गाड़ी लेकर जा रही हूँ कहकर वो तैयार होने लगी। 
 
               रत्ना के घर पहुँचने में कीर्ति को नौ बज गए। रत्ना उसी का इंतज़ार कर रही थी क्योंकि उसके परिवार में तो कोई नहीं था। परिवार के नाम पर वो स्वयं ही थी। कीर्ति को लेकर वो उन आंटीजी के घर गयी फिर तीनों गाड़ी में बैठकर तांत्रिक से मिलने चल दीं। वहाँ काफ़ी अँधेरा था ,बस एक दिया टिमटिमा रहा था और उस कोठरी के बीच में एक अग्नि जल रही थी। कीर्ति ने एक ही नजर में पूरी कोठरी को निहारा और सोचने लगी --आज के युग में भी लोग, ऐसे रहते हैं फिर रत्ना से बोली -क्या इस कोठरी में लाईट नहीं है ?रत्ना बोली -मज़ाक मत करो ,क्या मालूम , ये सब क्रियाएँ इसी तरह होती होंगी। कीर्ति और वे तीनों उस अग्नि के पास जो आसन था उस पर जा बैठीं। उस अग्नि में ,वो तांत्रिक लाल आँखों वाला बड़ा ही डरावना लग रहा था।कीर्ति सोच रही थी -शायद इस बाबा ने खूब पी है ,मन ही मन मुस्कुराई। बाबा ने उसे घूरा ,उसकी आँखों से , उसे डर लग रहा था ,अपने फैसले पर अफ़सोस भी हो रहा था। उसने अपना फोन कसकर हाथों में ले लिया ताकि उसे किसी बात पर कुछ गलत लगा तो तुरंत पुलिस को फोन कर देगी या फिर निखिल को। तभी उस तांत्रिक का एक चेला वहां आया और बोला -ये फ़ोन मुझे दे दीजिये या फिर बंद कर दीजिये ,ऐसी क्रियाओं में किसी भी प्रकार का व्यवधान ठीक नहीं। तीनों ने अपने फोन बंद कर दिए। तब सामने बैठा तांत्रिक बोला -तो तुम्हारी सहेली है ,जो तुम्हें बार -बार दिखती है।रत्ना बोली -मैं नहीं ,वो ये है। उसने कीर्ति की तरफ इशारा किया। अपनी भूल सुधारते हुए बोला -मैं इन्हें ही कह रहा हूँ ,क्या नाम है, तुम्हारा ?बताने का , कीर्ति का मन तो नहीं किया ,सोच रही थी इतने बड़े बाबा हैं ,जो भूत का पता बता सकता है ,मैं  तो जिन्दा इंसान हूँ ,मेरा नाम भी पता लगा ले किन्तु प्रत्यक्ष बोली -कीर्ति। तुम्हारी सहेली का?उसने फिर से पूछा।  रजनी ,कीर्ति बोली। कब मौत हुई ? उसने अपनी आँखें छत की ओर घुमा रखी थीं ,जैसे कोई छत पर से उसके प्रश्नों के जबाब देगा। लगभग पंद्रह -बीस बरस पहले ,कीर्ति ने अंदाज़ा लगाकर जबाब दिया। कब से दिख रही है ?उसने हाथ में एक लकड़ी लेकर उसमें फूंक मारी। एक बरस से ,कीर्ति का जबाब था।उसने अपने मंत्र पढ़कर ,उस अग्नि में थोड़ी भस्म डाली और बोला -उसकी आत्मा तड़प रही है ,वो तुमसे कुछ कहना चाहती है या कोई मदद चाहती है। कीर्ति बोली -वो तो मुझे जीती -जागती इंसान नज़र आती है ,कोई भूत नहीं। बाबा बोला -मूर्ख !तू उसकी सहेली है और मदद चाहती है तो क्या वो तुझे डरायेगी? कीर्ति को उस बाबा का उसे' मूर्ख ' कहना अच्छा नहीं लगा। वो तनिक हिली ही थी कि रत्ना ने उसका हाथ पकड़ लिया। कीर्ति बाबा की बातों से संतुष्ट नहीं थी ,बोली -बाबा जी !मैंने तो सुना है- कि भूत रात में दीखते हैं वो तो दिन में ही......... उसकी बात पूर्ण ही नहीं हो पाई थी कि वो आंटी अचानक सर हिलाकर जोर -जोर से चिल्लाने लगी -नहीं छोडूंगी ,नहीं छोडूंगी।तभी वो बाबा बोले  -कौन हो तुम ?यहॉँ किसलिए आई हो ?उसने अपनी गर्दन स्थिर की और बोलीं  - मैं रजनी ही  हूँ ,अब मैं  मुक्ति चाहती हूँ। कीर्ति बोली -ये किसे कह रही थी? कि नहीं छोडूँगी। बाबा बोले -वो तुम्हें ही कह रही है कि यदि मुझे मुक्ति न दिलाई तो नहीं छोडूँगी। अपने साथ आई ,आंटीजी की ये हालत देखकर ,कीर्ति को विश्वास होने लगा ,शायद ये रजनी की आत्मा ही हो। उसने सीधे उन्हीं से बात की -मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है ?परेशान तो तुम्हारे ससुराल वालों ने किया और तुम्हें मरने पर मजबूर कर दिया। वो एकदम लगभग चीखकर बोली -क्या तुम मेरी सखी नहीं थीं ,तुमने भी तो मेरी कोई ख़ोज -खबर नहीं ली। उसके चीखने से कीर्ति काँप गयी। अब वो धीमे स्वर में बोली -अब मुझे क्या करना होगा ?तभी बाबा बोले -इसकी मुक्ति का समाधान करना होगा। एक पूजा होगी और ये मुक्त हो जाएगी। तो कर दीजिये पूजा !कीर्ति झट से बोली। बाबा ने एक मंत्र फूंका और थोड़ी भस्म उन आंटी की तरफ उड़ाई और वो पूर्ववत हो गयीं। जैसे कुछ हुआ ही न हो। अब तो कीर्ति को विश्वास होने लगा था। बोली -आप जो भी पूजा करनी है ,कर दीजिये। बाबा बोले -इसमें बहुत व्यय होगा। कीर्ति ने सोचा -हज़ार -दो हज़ार होगा ,बोली -आप पैसे की चिंता मत कीजिये ,जितने लगेंगे, मैं दूँगी। बाबा बोले -पचास हज़ार....... कीर्ति के तो जैसे पैरों तले से ज़मीन ही खिसक गयी। 

























  
laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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