Rashtriy ekta divas

 कक्षा में अध्यापिका पढ़ा रही थी ,तभी एक चपरासी आकर बताता है- कि उन्हें ,प्रधानाचार्य जी ने बुलाया है।अध्यापिका पढ़ाना रोककर ,बच्चों से कहती हैं -मैं अभी आती हूँ ,इतने आप लोग इस पाठ को पढ़िए और समझिये !कोई भी शोर -शराबा नहीं करेगा। सभी बच्चों ने हाँ में गर्दन हिलाई ,संतुष्ट होकर अध्यापिका चली  गयी, किन्तु जाने से पहले कीर्ति को पूरी कक्षा का ध्यान रखने के लिए कह कर गयी। कीर्ति अपनी जिम्मेदारी पूर्ण करने लिए एक स्थान पर खड़ी हो गयी। बच्चे तो शैतान होते ही हैं ,अध्यापिका के जाते ही ,उठ खड़े  हुए और लगे शोर मचाने, कीर्ति की कौन सुने ?वो एक को डांटे दूसरा खड़ा हो जाये ,बच्चों का तो इसमें ही खेल बन गया।एक  को चुप करती तभी उसे दूसरा बताता -देखो !मोहित भी खड़ा है और शोर मचा रहा है। वो उसे कुछ कहती ,दूसरी तरफ ललित ने एक कागज़ का जहाज़ बनाकर उड़ाया ,उसकी देखा देखी ,कई जहाज़ उड़ने लगे। जिन्हें वो कलाकारी नहीं आती थी वो सीखने का उपक्रम करने लगे। कोई श्यामपट्ट पर आड़ी -तिरछी लाइनें खींचकर ,अपनी कला का नमूना पेश करने लगा। कीर्ति उनको समझा नहीं पा  रही थी। तभी वो तेजी से चीख़ी -''चुप हो जाओ सब !''बच्चे तो अपनी जगह पर बैठ गए तभी अध्यापिका ने प्रवेश किया और बोलीं -ये विद्यालय है ,इतने ज़ोर से क्यों चिल्ला रही हो ?कीर्ति बोली -मैडम !ये लोग सुन ही नहीं रहे और उसने बच्चों की तरफ देखा सभी अपनी जगह पर बैठकर मुस्कुरा रहे थे। अध्यापिका बोलीं -अच्छा ,अब तुम भी बैठ जाओ !और सभी बच्चे ध्यान से सुनिए -''सभी बच्चों को ''राष्ट्रीय एकता दिवस ''पर निबंध लिखकर लाना है। सभी ने अपनी कॉपी पर अपना गृहकार्य लिखना आरम्भ कर दिया। तभी अध्यापिका ने पुनः सम्बोधित किया -क्या आप लोग जानते हैं ?''राष्ट्रीय एकता दिवस ''क्या है ,इसे हम क्यों मनाते हैं ?

                 सभी बच्चे एक -दूसरे की तरफ देखने लगे ,दिपांशा थोड़ा अंदाज़ा लगाते हुए ,अपने ''मानस पटल ''की योग्यता का प्रदर्शन करते हुए बोली -एक दिन राष्ट्र के लिए एकता में रहना ही ''राष्ट्रीय एकता दिवस ''कहलाता है। तभी शशांक उठकर बोला -राष्ट्र का एक होना ही ''राष्ट्रीय एकता दिवस ''कहलाता है। उसे लग रहा था कि उसने दिपांशा से बेहतर जबाब दिया है। अध्यापिका मुस्कुराकर बोलीं -दोनों  ने ही कुछ हद तक सही अनुमान लगाया है। तब अध्यापिका बोली -राजनीतिक एकीकरण के लिए ,हमारे देश के ''लौह पुरुष ''सरदार वल्ल्भ भाई पटेल ''ने देश के एकीकरण में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया था। उनके इस योगदान को चिरस्थाई बनाने के लिए ,उनकी जयंती  वाले दिन ''३१ अक्टूबर ''को ''राष्ट्रीय एकता दिवस ''के रूप में मनाया जाता है ,इसका उद्देश्य ,समाज में भिन्नता होने के बावजूद ,लोगों के बीच सद्भावना को बढ़ाना है।इसी उपलक्ष्य में हमारे देश के प्रधानमंत्री ''श्रीमान नरेंद्र मोदी ''जी ने ''सरदार वल्ल्भ भाई पटेल''जी  की सबसे ऊँची मूर्ति बनवाई। इतना बताकर अध्यापिका शांत हो गयीं। नंदू हंसा -जैसे उसकी कोई मनोकामना पूर्ण हो गयी हो ,बोला -आधा तो मैडम ने ही बतला दिया ,बाक़ी मैं दादाजी से पूछ लूँगा। उसे अपने पर विश्वास था  कि वो सबसे अच्छा निबंध लिखकर लाएगा। अपने विद्यालय से लौटते समय नंदू मोहसिन से बोला -ये ''राष्ट्रीय एकता दिवस ''क्या है ?मोहसिन बोला -जब मैडम बता रही थीं ,तब तुमने ध्यान से नहीं सुना ,मोहसिन ने भी दिपांशा की तरह ही विश्लेषण कर दिया ,नंदू बोला -ये बात तो सबको मालूम है ,इसमें अलग क्या लिखना है ?सभी एक जैसा लिखकर लायेंगे ,इसमें  विशिष्ट क्या होगा ?फिर इनाम किसको मिलेगा ?मोहसिन बोला -किसी को भी मिले ,प्रयत्न तो यही होगा कि सभी अपना -अपना निबंध अच्छे से लिखकर लायेंगे। 
               नंदू घर पहुंचते ही ,अपना थैला रखकर मम्मी को देखकर उनकी तरफ दौड़ता है। आज उसकी मम्मी घर पर ही हैं वरना किसी न किसी कार्य से बाहर होती हैं। आज भी दीप्ती अपने घर में दावत के लिए सहेलियों को बुला रही है ,उसी की तैयारी के लिए घर में थी किन्तु उसे किसी बात पर क्रोध था। वो नंदू को खाना देती है ,उसके क्रोध से अनजान नंदू अपनी मम्मी से पूछता है -मम्मी !ये ''राष्ट्रीय एकता दिवस ''क्या होता है ?पहले तो उसने ,उस ओर ध्यान ही नहीं दिया फिर नंदू के बार -बार पूछने पर ,चिढ़कर बोली -ये सब राजनैतिक चोंचले हैं ,बस साल में एक बार मनाएंगे ,न ही कोई मानता  है ,न ही कोई समझता है ,सिर्फ दिखावा करते हैं। कुछ समूह के लोग मानते हैं ,कुछ के  नहीं। मम्मी के इस तरह से उत्तर देने के कारण नंदू समझ गया कि मम्मी किसी बात को लेकर असंतुष्ट हैं और वो ही नाराज़गी उनके शब्दों में झलक रही है।नंदू खाना खाकर अपनी मम्मी से बोला -दादाजी कहाँ हैं ?दीप्ती अपने काम में लगी थी ,उसने उसकी बातों को सुना या नहीं अथवा अनसुना कर दिया। नंदू स्वयं ही अंदाजे से ,उन्हें ढूंढता हुआ ,उनके पास चला गया। दादाजी !वो दौड़ता हुआ उनके गले से लिपट  गया। दादाजी ,के साथ रहकर वो प्रसन्न रहता है। जब मम्मी नहीं मिलती तब दादाजी ही उसका ध्यान रखते हैं ,उसका गृहकार्य कराते हैं। तभी उसे अपने निबंध लिखने का स्मरण हो आया और दादाजी से भी वो ही प्रश्न किया जो उसने मोहसिन और अपनी मम्मी से किया।

अब उसने अपना प्रश्न थोड़ा बदला ,बोला दादाजी ,''राष्ट्रीय एकता'' क्या है ?दादाजी बोले -क्यों ,तुम क्यों जानना चाहते हो ?क्योंकि मेरी अध्यापिका ने ,इस प्रसंग पर मुझे निबंध लिखने को दिया  है, नंदू ने दादाजी को बताया। दादाजी बोले -ये हमारा घर है ,हम सब इसमें मिलजुलकर रहते हैं ,तुम्हारी मम्मी ,दादी ,पापा,चाचा -चाची  तुम और मैं। हम सबकी विचारधारा भिन्न हो सकती हैं ,हमारा व्यक्तित्व भी भिन्न -भिन्न है फिर भी हम लोग एक साथ रहते हैं ,एक दूसरे के सुख -दुःख में साथ रहते हैं ,एक -दूसरे का सहयोग करते हैं ,इसे कहते हैं - ''एकता '', इसी तरह हमारा देश है ,हमारा घर इस देश में है जो इस देश की एक छोटी सी इकाई है। इस देश में न जाने ऐसे कितने घर होंगे ?इसमें अलग -अलग धर्म -मज़हब ,रीति -रिवाज़ यहां तक की बोली और भाषा भी अलग -अलग है। खान -पान में भी भिन्नता होती है ,समय -मौसम ,जलवायु भी बदलती रहती है। पहनावा भी बदल जाता है। फिर भी हम लोग साथ -साथ रहते है ,हम इस देश के नागरिक हैं ,अनेक होकर भी एक हैं। ये हो गयी ''राष्ट्रीय एकता''। हमारे देश में ,हिन्दू भी है ,मुस्लिम -सिख और ईसाई भी हैं। पहनावे  से तुम जान सकते हो कि कौन सिख है ,कौन मुस्लिम अथवा कौन हिन्दू है ?बोली और भाषा भी विभिन्न हैं ,कहीं ,हिंदी बोली जाती है कहीं पंजाबी ,कहीं उर्दू ,अरबी -फ़ारसी भी ,महाराष्ट्र में चले जाओ तो मराठी ,हैदराबाद जाओ तो तेलगु ,दक्षिण में तमिल बोली जाती है ,रहन -सहन हमसे बिल्कुल भिन्न होता  है।
           हमारे देश में ही इतनी प्रजातियां हैं ,कभी मन न भरे। कभी घूमने का मन करे तो किसी दूसरे प्रान्त में चले जाओ। कुछ न कुछ नया देखने को मिलेगा। हम लोग उनके रहन -सहन ,बोली ,खान -पान को अपना भी लेते हैं। काम के सिलसिले में अथवा व्यापार में भी एक -दूसरे का सहयोग करते हैं ,एक -दूसरे से कुछ नया सीखते भी हैं। तुम्हें पता है ,जब हमारा देश स्वतंत्र हुआ था ,तब ये देश ५६५  रियासतों में बँटा हुआ था ,तब सरदार वल्ल्भ भाई पटेल ''ने इन रियासतों को विलय कर ,एक राष्ट्र की स्थापना की। तभी नंदू बोला -हाँ ,मैं जानता हूँ ,उनके जन्मदिवस पर ही ''राष्ट्रीय एकता दिवस ''मनाया जाता है और वो दिन है ३१ अक्टूबर। दादाजी उसकी बात सुनकर बोले -अरे वाह !तुम तो बहुत ही समझदार और होशियार हो। नंदू खुश होकर बोला -ये सब तो आज ही हमारी अध्यापिका ने बताया था। बिल्कुल सही ,दादाजी बोले। फिर कुछ सोचकर बोले -किन्तु हमारे देश की एकता ,अखंडता को कुछ लोग छिन्न -भिन्न कर देना चाहते हैं। कभी हिन्दू -मुस्लिम के नाम पर ,लड़वा देते  हैं ,कभी जाति -पाँति के नाम पर कमज़ोर करना चाहते हैं। ताकि हमारे देश की एकता ,अखंडता टूटकर बिख़र जाये। विरोधी दुश्मन चाहता है ,कि हमारा देश टुकड़ों में बंट जाये ,लोग अपने -अपने धर्म के नाम पर ,अपनी संस्कृति के नाम पर ,अपने अहंकार में अपने को बड़ा समझकर ,कोई भी विरोधी इस सुंदर माला के मोतियों को तोड़कर कमज़ोर कर देना चाहते हैं। दादाजी हमारा देश माला की तरह कैसे हुआ ?नंदू ने पूछा। दादाजी बोले -जिस तरह माला में रंग -बिरंगे मोती डालकर ,हम अपनी माला को सुंदर और आकर्षक बनाते हैं, इसी तरह हमारे देश में  रहने वाले लोग भी ,सुंदर रंगीन मोती ही हैं ,जिनको एक भारत रूपी धागे में पिरोकर सुंदर माला का निर्माण होता है। हर मोती का अपना अलग अस्तित्व और महत्व है और जब ये मोती एक जगह होंगे तो हमारा देश किसी आभूषण की तरह चमकेगा ,यदि ये माला टूटी तो मोती भी अपना अस्तित्व खो देंगे और माला भी कमज़ोर हो जाएगी। इसी कारण ऐसे लोगों से ,अपने देश को बचाना है जो इसे कमज़ोर कर देना चाहते हैं। 
              भगवान  ,ख़ुदा ,वाहे गुरु या फिर यीशु हम किसी को भी माने ,किन्तु उन्होंने हम इंसानों को एक जैसा ही बनाया है ,उसने हम लोगो में कोई भेदभाव नहीं किया। सभी के एक जैसे शरीर के अंग हैं ,आत्मा है ,सही -ग़लत सोचने के लिए मानस -पटल '' दिया  है और सबसे प्यारी चीज़ ,सबसे प्रेम करने के लिए एक धड़कता हुआ' दिल 'भी दिया है। हम तन से ही एक जैसे नहीं वरन भूख -प्यास सभी को दी है उसके लिए कमाने के साधन भी मिलते -जुलते हैं। किसी का भी भगवान ,किसी को भी बैठे -बिठाये खाने को नहीं देता। सभी को अपना -अपना कर्म करना होता है। बिना मेहनत और परिश्रम के, किसी का भी काम नहीं चलता। फिर भी हम कुछ स्वार्थी लोगो के बहकावे में आ जाते हैं और अपनी ही हानि करते हैं। अपनी संकीर्ण सोच से बाहर निकलकर देखें और दिल -दिमाग़ से सोचे तो ''सारा जहां हमारा है। ''बस थोड़ा समझना है कि हम सब एक हैं ,एक मुट्ठी हैं , वो ही हमारी शक्ति है। दादाजी की बातों से नंदू को जोश आ गया और उसे अच्छा भी लगा और बोला -अब मैं समझ गया ''राष्ट्रीय एकता दिवस ''क्या है ?अभी लिखकर लाता हूँ। अगले दिन नंदू ने अपना निबंध सभी को पढ़कर सुनाया। 

                जिस प्रकार बगीचे में भांति -भांति के पुष्प होते हैं ,सभी की अपनी -अपनी पहचान ,अलग सुगंध होती है। कोई पुष्प लाल ,पीला ,नारंगी ,नीला और सबकी महक भी भिन्न -भिन्न होती है किन्तु सभी मिलकर एक बगीचे का निर्माण करते हैं ,जिसे माली अपनी मेहनत और परिश्रम से सींचता है और सभी को समान रूप से खाद -पानी देता है और परिणामतः एक हरा -भरा  सुंदर फूलों से सुसज्जित  बगीचे  का निर्माण हो जाता है। इसी तरह हमारा देश भारत भी है ,हमारे देश में विभिन्न जाति और धर्म के लोग रहते है ,जो अपने में अतुल्नीय है ,सबका अपना -अपना महत्व है अपना अस्तित्व है फिर भी भिन्नता में एकता ही हमारे देश की पहचान है और उसी सदभावना के लिए हमारे देश के पूर्व  उप प्रधानमंत्री ,गृहमंत्री के रूप में ''सरदार वल्ल्भ भाई पटेल ''जी ने अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। और उनके जन्मदिवस को ही ''राष्ट्रीय एकता दिवस ''के रूप में मनाया जाता है। नंदू का निबंध सुनकर सभी ने तालियां बजाई।छुट्टी के बाद  नंदू अपना इनाम लेकर घर पहुंचा तो मम्मी बोलीं- आज तुम्हारी अध्यापिका ने पढ़ने के लिए शीघ्र बुलाया है ,इसीलिए जल्दी से अपना भोजन ग्रहण करो और जाओ! नंदू को बहुत दुःख हुआ ,मम्मी ने तो कुछ पूछा ही नहीं ,न ही मेरा इनाम देखा और वो उदास हो गया। उसने मम्मी से दादाजी के लिए  पूछा तो उन्होंने बताया कि दादाजी बाहर कुछ सामान लेने गए हैं। नंदू ने अपने कपड़े बदले और तैयार होकर पढ़ने चल दिया। 
               उसकी अध्यापिका उसे देखकर प्रसन्न हुईं ,बोलीं -नंदू तुमने तो अच्छा निबंध लिखा और इनाम भी पाया। नंदू ने अध्यापिका की तरफ देखा और उदास स्वर में बोला -आपको कैसे पता चला ?तुम्हारे दादाजी ने बताया था -कि नंदू ने अच्छा निबंध लिखा है ,फिर प्रश्न किया -क्या तुम्हें इनाम नहीं मिला ? मिला तो है ,नंदू बोला किन्तु घर में  किसी ने भी ,नहीं देखा और उदास हो गया। अध्यापिका बोली -किसी काम में व्यस्त होंगे ,जब जाओगे तो तब देख लेंगे ,कहकर वो उसे पढ़ाने लगीं। आज नंदू का पढ़ाई में मन नहीं लग रहा था फिर भी बैठा था और अपने घर जाने के इंतजार में था। जब अध्यापिका पढ़ा चुकी तो बोलीं -नंदू तुम रुको ,मैं भी तुम्हारे संग चलती हूँ और तैयार होने के लिए ,चली गयीं। जब वो तैयार होकर आईं तो नंदू देखता रह गया। अध्यापिका ने घाघरा -चोली पहना था ,नंदू को इस तरह देख ,बोलीं -क्या देख रहे हो ?ये ही हमारे पारम्परिक वस्त्र हैं। नंदू अपनी अध्यापिका के साथ चल दिया वो भी उसके साथ थीं। उसने पूछा -आप कहाँ जाएँगी ?तुम चलो तो सही ,उन्होंने मुस्कुरा कर कहा। नंदू रास्ते भर यही सोचता रहा कि अध्यापिका कब और कहाँ रास्ता बदलेंगी ?अब तो उसका घर भी नज़दीक आ गया फिर भी वो उसके साथ ही थीं। दोनों अंदर गए तो वहां का वातावरण देखकर ,अचम्भित रह गया। वहाँ बड़ी तेज स्वर में गाना चल रहा था -''ऐसा देश है ,मेरा ''उसकी मम्मी ने ,सिल्क की साड़ी पहनी थी ,बालों में गजरा ,आज तो मम्मी बहुत सुंदर लग रही थीं। सलमा आंटी भी मोहसिन के साथ आयी थीं ,मोहसिन भी पठानी सूट  पहने था।रमौला आंटी अपनी बंगाली साड़ी में थीं। ऐसा लग रहा था सारा देश ही उसके छोटे से घर में समा गया हो ,जिनको नहीं जानता था ,उनका परिचय मम्मी ने कराया ,ये मेरा बेटा ,निबंध प्रतियोगिता में प्रथम स्थान लेकर आया है। दादा -दादी तो बड़े ही कमाल के लग रहे थे दोनों ने शादी के कपड़े पहने थे। दादी सफेद गाउन में और दादाजी काले सूट में जंच रहे थे और मैं भी पादरी के कपड़ों में आ गया। उसके कानों में बार -बार ये ही शब्द गूँज रहे थे -''ऐसा देश है ,मेरा ''  





















 
laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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