ये चाँद भी न ...
कितनी रस्में निभाता है ?
अकेला चाँद ,सबको प्रसन्न कर जाता है।
'ईद' पर' ईद' का हो जाता है ,
''करवा चौथ ''पर ,
ये चाँद भी न.....
रिश्तों में बच्चों का मामा बन जाता है।
बहन का भाई बन ,फर्ज़ निभाता है।
'करवा चौथ 'पर नखरे दिखलाता है।
दाग़ होने पर भी ,खूबसूरत कहलाता है।
ये चाँद भी न....
धरती के चाँद का ,उपमान बन जाता है।
न घूँघट है ,न परदा ,सभी को भाता है।
बादलों की आड़ में अठखेलियां करता है।
तारों संग ,आँख -मिचौली !
ये चाँद भी न....
नवविवाहितों के लिए 'हनी का मून ''बन जाता है
अपनी चांदनी की शीतल छाँव में ,
अनन्त सपने दिखलाता है।
ये चाँद भी न कितनी रस्में निभाता है ?
दूर से ही सारे रिश्ते निभाता है।
नीचे आ जाता तो ,टुकड़ों में बंट जाता।
कभी हिन्दू ,कभी मुस्लिम बन जाता।
कविताओं में ,कवियों का हो जाता है।
ग़जलों में शायरी की रस्में निभाता है।
ये चाँद भी न ,कितने रिश्ते निभाता है ?
किसी का भी ,संदेशवाहक बन जाता है।
बहनों के ,पत्नियों के संदेश पहुंचाता है।
कष्टों में रहकर भी , निखरता जाता है।
ये चाँद भी न ,अनेक रंग दिखलाता है।
शीतल जल में ,शांत हो जाता है।
बिन बालों की,' चाँद' पर भी नजर आता है।
अपने कष्ट न देख ,सभी रस्में निभाता है।
दूज पर ''दूज का चाँद ''हो जाता है।
ये चाँद भी न..... कितनी रस्में निभाता है ?
ये चाँद भी न....
Very beautiful and nice 👌👌👏👏👍👍
ReplyDeletethank you so much
DeleteVery proud of you... Keep it up!!
ReplyDelete