अब तक आपने पढ़ा -नंदिनी के पापा ने उसे समझाया, किन्तु नंदिनी समझ रही थी- कि पापा ने अप्रत्यक्ष रूप से प्रतीक से विवाह के लिए मना कर दिया है।वो प्रतीक से मिलती है और उसे भागने का सुझाव देती है किन्तु प्रतीक इंकार कर देता है और अपने घर पर नंदिनी से विवाह की बात करता है किन्तु उसके पापा कहते हैं- ,यदि अस्थाना यहां आकर रिश्ता माँगे ,तो हम सोच सकते हैं ,तब प्रतीक यही बात आकर नंदिनी को बताता है। अब आगे -
प्रतीक की बात सुनकर नंदिनी कहती है -वो नहीं मानेंगे। प्रतीक बोला -क्यों नहीं मानेंगे ?क्या उन्हें तुम्हारा विवाह नहीं करना ,और जहाँ भी करना चाहेंगे ,वहां भी तो जायेंगे ,जब प्यार से सब निपट रहा है, तो क्या परेशानी है ?बात नंदिनी को जँच गयी और बोली -मैं घर में बात करके देखती हूँ। नंदिनी ने घर जाकर सबसे इस विषय में बताया। सुनते ही मम्मी बोलीं -वो लोग इतनी जल्दी कैसे मान गए ?तेरे पापा को ही क्यों बुलाया ?स्वयं भी तो आ सकते थे ,अब मम्मी आप ,बनती बात को कैसे बिगाड़ रहीं है ?उन्होंने बुलाया है तो आप लोग ही चले जाइये। लड़की वाले ही तो जाते हैं। पापा ने कुछ सोचा ,और बोले -ठीक है ,हम सोचते हैं। नंदिनी के जाने के पश्चात बोले -वे लोग कैसे मान गए ?कहीं कोई बात तो नहीं। उधर नंदिनी बहुत प्रसन्न थी और वो तो अपनी आने वाली ज़िंदगी के सपने सजाने लगी। दो दिन तक सब शांत रहा ,नंदिनी ने पूछा -आप लोग क्यों नहीं गए ?पापा बोले -जैसे वो लोग हैं ,कुछ सही नहीं लग रहा। नंदिनी मुँह बनाते हुए बोली -आप लोग जाना ही नहीं चाहते ,जब वो लोग स्वयं अपने मुँह से कह रहे हैं तो फिर किस बात का इंतजार है ?बेटी के बार -बार कहने पर दोनों पति -पत्नी फ़ल और मिठाई लेकर जाते हैं। बड़ा सा दरवाजा ,जिस पर चौकीदार खड़ा था। वो हिचकिचाते हुए आगे बढ़े तो उस चौकीदार ने रोक दिया फिर अंदर पूछने गया। बहुत देर तक वो बाहर नहीं आया ,अस्थानाजी अपनी पत्नी के साथ काफी देर तक खड़े रहे फिर पास पड़ी बेंच पर बैठ गए।चौकीदार ने आकर बताया- आप लोग मेहमान खाने में बैठिये ,वे लोग अभी आते हैं। लगभग आधा घंटे बाद वो आये और बोले -कहिये ,किस लिए आये हैं ?अस्थाना जी बोले -आप मुझे नहीं जानते ,हम तो पहले भी कई बार मिल चुके हैं। कल्पेश जी बोले -मुझे दिन में न जाने कितने लोग मिलते हैं ?सभी याद तो नहीं रहते। उनका जबाब सुनकर अस्थाना जी थोड़ा आहत हुए। वो कुछ कहते उससे पहले ही ,प्रतीक आ गया और उन्हें देखते ही उसने उनका अभिवादन किया और अपने पापा से परिचय कराया -आप लोग नंदिनी के मम्मी -पापा हैं ,नंदिनी के पापा का इस तरह परिचय कराने से कल्पेश को क्रोध तो बहुत आया किन्तु बेटे के सामने शांत रहे और बेटे से बोले -जाओ !अपनी मम्मी को भी बुला लाओ। प्रतीक के जाने के पश्चात ,कल्पेश जी बोले -आजकल के बच्चे भी न ,उन्हें सामाजिक दुनियादारी तो पता नहीं है ,बस सपना देखेंगे ,और उसे ही सच मान बैठते हैं। आपकी बेटी क्या करती है ?लड़कों को पटाने के अलावा। जी आप ये क्या कह रहे हैं ?अस्थाना जी हकलाते हुए बोले। ठीक ही तो कह रहा हूँ, संस्कारी तो होगी ही नहीं और आप जैसे माता -पिता जो यहां आ गए ,उसे क्या संस्कार दिए होंगे ?कल्पेश जी बेटे के आने से पहले अपने मन की सारी भड़ास निकाल लेना चाहते थे।
अस्थाना जी बोले -ये आप कैसी बातें कर रहे हैं ,आप ने ही तो हमें बुलवाया था।कल्पेश जी बोले - क्या मैंने कोई निमंत्रण भेजा था ,मैंने अपने बेटे का मन रखने के लिए कह भी दिया तो आप स्वयं ही समझदार हैं।तो क्या, अब बच्चों के कहे से काम होंगे ?ये क्या उठा लाये ,केले और मिठाई ,ये सब हमारे यहां कोई नहीं खाता ,सब व्यर्थ जायेगा। अरे !बच्चा किसी खिलौने की जिद करता है ,यदि हमें लगेगा कि वो ठीक है तो दिलवाएंगे, यदि नहीं तो कोई तो बहाना बनाकर उसे टालेंगे ही न ।तभी उन्होंने किसी के आने की आहट सुनी ,बोले अब देखिये जी ,बच्चे तो खेल -खिलौनों से खेलते ही रहते हैं और एक समय पर खेलना बंद भी कर देते हैं ,वो जिद तब तक ही रहती है ,जब तक कि उसे वो खिलौना मिल नहीं जाता। उसके बाद घर के इधर -उधर कोने में ही पड़ा रहता है। तभी प्रतीक ने अपनी मम्मी के साथ कमरे में प्रवेश किया और अपनी मम्मी से भी उनका परिचय कराया। प्रत्यक्ष में तो उन्होंने मुस्कुराकर जबाब दिया तभी प्रतीक से बोलीं -जाओ बेटा !भाभी से इनके लिए चाय -पानी का प्रबंध करने के लिए कहो ,हम बड़े आपस में बात करते हैं ,इसमें बच्चों का क्या काम ?प्रतीक के जाने के बाद कल्पेश जी बोले -ये लोग तो बच्चे हैं किन्तु आप लोग तो नहीं ,तभी उनकी पत्नी बोली -इन्हें तो अच्छा रिश्ता हाथ लगा ,बैठे -बिठाये अमीर घर का बेटा हाथ लग गया तो ये क्यों मना करेंगे ?अस्थाना जी ने कुछ कहना चाहा किन्तु उनकी पत्नी ने उनका हाथ पकड़ लिया और बोलीं -जी ऐसा है ,आप अमीर होंगे अपने घर में ,मेरे घर का खर्च तो इनकी मेहनत के पैसे से ही चलता है ,अमीर हैं, किन्तु आप लोगों में तो जैसे संस्कार कूट -कूटकर भरे हैं। आप लोगों को तो इतनी भी तहज़ीब नहीं कि घर पर आये व्यक्ति से ,कैसा व्यवहार करते हैं ?हम भी इस रिश्ते के इच्छुक नहीं है किन्तु हमने अपने बच्चे की ख़ुशी देखी ,उसकी प्रसन्नता के लिए ,हम झुक गए। हमें कोई शौक नहीं ,ऐसे अभिमानी लोगों से रिश्ता जोड़ने में ,चलिए जी ,आपका बहुत -बहुत शुक्रिया अपने घर बुलाकर बेइज्जत करने के लिए, कहकर उन्होंने हाथ जोड़ दिए तभी चाय -नाश्ते के साथ प्रतीक ने प्रवेश किया। नंदिनी की मम्मी को खड़े देखकर बोला -बैठिये ,आंटीजी !आप कैसे खड़ी हो गयी ?चाय पीजिये। प्रतीक के चेहरे की प्रसन्नता देखकर ,थोड़ा शांत हुईं ,और बोलीं -नहीं बेटे, हम बहुत देर से आये हुए हैं ,देरी हो गई ,तुम्हारे अंकल को जाना भी है, कहकर बाहर आ गयीं। तभी दोबारा अंदर आयीं और अपने लाये फ़ल और मिठाई भी उठा ली ,बोलीं -ये हमारे लिए कीमती हैं ,आपके लिए तो व्यर्थ ही होंगे ,इन्हें मैं ले जा रही हूँ।बेटी के माता -पिता हैं कोई गुनाह नहीं किया कि तुम्हारी बकवास सुनने के लिए बैठे रहें ,अपने लड़के को भी नियंत्रण में रखिये ,हमारी बेटी के इर्द -गिर्द न मंडराए। हम अमीर नहीं किन्तु अपने घर में प्रसन्न हैं।
मम्मी ने तिलमिलाते हुए ,घर में प्रवेश किया ,नंदिनी तो जैसे इसी इंतजार में थी कि क्या हुआ ?उत्सुकतावश वो बाहर आई किन्तु मम्मी का चेहरा देखकर वहीं रुक गयी। दादी ने पूछा -क्या हुआ ,क्या कहा उन लोगों ने ?मम्मी तेज स्वर में बोलीं -बेइज्जती करा कर आ गए ,मैं न कहती थी कि ये बुलावा एक ''धोखा'' है। उसके बाप ने हमें क्या -क्या नहीं सुनाया ?हमारे बच्चों में संस्कार नहीं ,हमारी बेटी अमीर लड़कों को पटाती है। उनका मन कर रहा था कि नंदिनी के दो तमाचे लगा दें ,उसी के कारण ,ये बेइज्जती और बदनामी झेलनी पड़ रही है किन्तु बस इतना ही कहकर रह गयीं -'' जब अपना ही सोना खोटा हो तो परखने वाले का क्या दोष ?इन्हें चढ़ा है ,इश्क़ का भूत। माँ -बाप की इज्ज़त का कोई ख़्याल नहीं। उनकी बातें सुनकर नंदिनी को अपनी गलती का एहसास हो रहा था कि क्यों मैंने मम्मी -पापा को वहाँ जाने दिया ? वो शांत रही और बाहर आकर बोली -मंम्मी मुझे क्षमा कर दीजिये जो मैंने आपको उनके यहां भेजा किन्तु बात तो बताइये ,वहां क्या हुआ ?उसकी मम्मी ने क्रोध में सारी बातें ,विस्तार से उसे बताईं ,सुनकर उसे अत्यंत क्रोध आया किन्तु इन बातों से उसे पता चला कि प्रतीक से छुपाकर उन्होंने ऐसा व्यवहार किया। उधर प्रतीक के माता -पिता बोले -क्या तू ऐसी लड़की से विवाह करना चाहता है जिन्हें बड़े लोगों के साथ उठने -बैठने का तरीक़ा ही नहीं आता। छिः ,कितनी ओछी हरकत की है उन्होंने ?चलते समय फ़ल भी उठाकर ले गये। अरे !लड़की का रिश्ता करने आये हैं तो थोड़ा खर्चा तो होगा ही और इंतजार भी करना पड़ सकता है ,उनमें तो तनिक भी धैर्य नहीं। कल्पेशजी बोले -उसकी मम्मी के तेवर देखे ,ऐसे ही बेटी के हुए तो ,बस गया घर हमारा। नहीं पापा ,नंदिनी का स्वभाव तो बहुत ही सरल है, प्रतीक ने बताया। उधर नंदिनी को क्रोध आ रहा था कि क्या प्रतीक ने मेरे मम्मी -पापा की बेइज्जती कराने के लिए अपने घर बुलाया था।
अगले दिन दोनों उसी जगह मिले,नंदिनी बेहद गुस्से में थी ,बोली -क्या मैंने अपने माता -पिता की बेइज्जती कराने के लिए ,तुम्हारे घर भेजा था ?प्रतीक बोला -तुम्हारे मम्मी -पापा चाहते ही नहीं कि रिश्ता हो ,माना कि कुछ बातें उन्हें ठीक नहीं लगीं किन्तु उन्होंने तो मेरे घर आकर मेरे ही पापा की बेइज्जती कर डाली ,मैं मानता हूँ, कि हमारे और तुम लोगों के रहन -सहन में काफी फ़र्क है किन्तु एक -दूसरे को समझने का प्रयत्न भी करना चाहिए कि नहीं। नंदिनी बोली -कोई अंतर् नहीं है ,तुम लोग अपने को बड़ा मानते होंगे ,जैसी रोटी तुम लोग खाते हो, वैसी ही हम भी खाते हैं ,तुम्हारे यहां क्या सोने -चाँदी की रोटियाँ बनती हैं। हमारे यहां मम्मी बनाती है तुम्हारे यहां नौकर, और दोनों ने ही अपनी -अपनी बात रखी।थोड़ी देर तक दोनों शांत रहे फिर प्रतीक बोला -हम क्यों लड़ रहे हैं ?तुम्हारी मम्मी ने क्या बताया ?पहले ये बताओ !तब नंदिनी ने विस्तार से अपनी मम्मी के द्वारा बताई बात को दोहरा दिया। प्रतीक ने भी जो देखा बताया। तब प्रतीक को एहसास हुआ कि ये उसके मम्मी -पापा की योजना थी ,उसे अपने मम्मी -पापा के व्यवहार को लेकर बहुत दुःख हुआ ,और बोला -क्या ज़िंदगी है ?अपने ही ''धोखा ''दे रहे हैं ,उनके व्यवहार में और उनकी सोच भी एक ''धोखा ''है। अपने प्यार को पाने के लिए ऐसे ''धोखे ''के रिश्तों से निपटना ही होगा। हम भी उन्हें एक ''धोखा ''देकर सही राह पर लायेंगे। नंदिनी से बोला -अब उस पुड़िया का प्रयोग करने समय आ गया। दोनों ने योजना बनाई अपने -अपने घर चले गए।
घर जाकर प्रतीक ने सीधे -सीधे अपने मम्मी -पापा से बात की और बोला -नंदिनी के घरवालों के साथ गलत व्यवहार करके ,ये आप लोगों ने सही नहीं किया। कल्पेश जी बोले -क्यों तुमने नहीं देखा ,वो लोग क्या कर रहे थे ?प्रतीक बोला -पापा ,मैं उतना ही देख पाया ,जितना आप लोगों ने दिखाया ,उसके पीछे की मंशा समझ नहीं पाया जबकि असलियत तो कुछ और थी। उसकी मम्मी ने उसे समझाने का प्रयत्न किया ,बोलीं -तू तो वहीं था ,उस नंदिनी ने तेरे कान भरे और तू अपने माता -पिता से सवाल -जबाब करने आ गया ,तुझे हम पर विश्वास नहीं और उस दो कौड़ी की लड़की पर है। मम्मी ये दो कौड़ी क्या होता है ?वो लोग मेहनत करते हैं ,हम जैसे पैसे वाले नहीं किन्तु बेईमानी का नहीं खाते प्रतीक उनके प्रति सम्मान से बोला। उसकी मम्मी चिढ़ गयीं और बोलीं -हमने तुझे पाला -पोसा ,हम तेरे अपने नहीं और उनकी बातें भी सभी ठीक और वे भी ठीक ,बस हम ही ग़लत हैं ,तुझे तो न हमारी चिंता और न ही हमारे मान -सम्मान की ,हम उस अस्थाना की लड़की से तेरा विवाह करा दें ,बाद में लोगों को जबाब हम देते रहेंगे। उस लड़की में ऐसा क्या है ?कि तू उसी के लिए पागल हो रहा है। आप लोगों ने मुझे ''धोखा ''दिया आपने कहा था कि उस लड़की से तेरा विवाह करा देंगे और अपनी ही बात से मुक़र गए। आप भी ''धोखा ''खा सकते हैं फिर मत कहना कि पहले चेताया नहीं ,कहकर वो अपने कमरे में आ गया। वो क्रोधित था अपने परिवार के लोगों से ,कर भी क्या सकता था ?और डायरी लिखने बैठ गया। ये रिश्ते सब झूठे हैं ,प्यार दिखलाते हैं किन्तु मेरे प्यार की कोई परवाह नहीं। ये ज़िंदगी ही एक ''धोखा ''है जिसे हम भ्रम में जीते रहते हैं और जब भ्रम टूटता है तो कोई साथ नहीं होता। इन लोगों ने मुझे पाला-पोसा ,इसका कर्ज़ तो चुकाना ही होगा ,लिखता रहा फिर एकाएक डायरी बंद कर उसने उस पुड़िया को देखा ,जो उसने ऐसे ही समय के लिए अपने पास रखी थी। पानी में घोलकर पी गया ,फिर लिखने लगा -मम्मी -पापा मुझे माफ़ करना ,मैं आपके विचारों पर खरा नहीं उतरा। मैं नंदिनी से बेहद प्रेम करता हूँ ,मैंने भरकस प्रयास किया कि शांति पूर्वक रिश्ते बने रहें किन्तु आप लोगों को तो मुझसे ज्यादा अपना मान -सम्मान प्यारा है। मैं भी चाहता था कि मैं नंदिनी के साथ अपना घर बसाकर सुख पूर्वक रहूँ ,मेरा एक परिवार हो जिसमें नंदिनी के साथ आप लोग भी हों किन्तु आप लोगों के अहंकार के सामने ,मेरा सपना छोटा पड़ गया। अब उसका दम घुटने लगा था उसने अपने को संभालने का प्रयत्न किया ,और लिखा -शायद अब मैं आप लोगों के बीच न रहूं ,आ.... प लोग खुश रहना और मु...... झे क्षमा क...... र........ और वो बेहोश हो गया।
भाभी दूध रखने के लिए उसके कमरे में आयी और उसकी हालत देखकर उनकी चीख़ निकल गयी। बहु की चीख़ पूरे घर को जगा गयी ,सभी उस ओर दौड़े। वहाँ के हालात देखकर ,कल्पेश जी तो बैठ ही गए उनकी पत्नी वहीं पास पड़े ,पलंग पर गिर गयी। भाई ने साहस से काम लिया और गाड़ी निकालकर उसमें प्रतीक को लिटाया और गाड़ी तेज गति से सड़क पर दौड़ चली। अस्पताल में काफी भीड़ थी प्रतीक को तुरंत दाख़िल कराया। इन कार्यवाही में रात के लगभग दो बज गए ,जब पूरा शहर नींद की आगोश में था ,तब कल्पेशजी के पूरे परिवार की आँखों से नींद कोसों दूर थी। उधर उनकी पत्नी की तबियत भी बिगड़ रही थी और उन्हें भी अस्पताल लाया गया। रात भर की जद्दोजहद के बाद ,''आपात कालीन ''वाहन में सुबह प्रतीक का शव आ गया और ये समाचार ,पूरे शहर में ,आग की तरह फैल गया कि कल्पेश जी के बेटे ने ज़हर खा लिया और नहीं रहा। जिसने भी सुना ,बहुत दुःख हुआ। जवान लड़के की मौत पर ,उनके घर भीड़ इकट्ठा हो गयी। जिनको उसके प्रेम के विषय में पता था -बोला ,ये लड़की का चक्कर भी अच्छे -खासे व्यक्ति को अँधा बना देता है। कल्पेश जी तो जैसे टूट ही गए ,उधर पत्नी भी अस्पताल में ही थी ,उन पर तो जैसे दुखों का पहाड़ आ गया। किस -किसको क्या जबाब दें कि बेटे ने ज़हर क्यों खाया ?पुलिस भी अपनी कार्यवाही करने आ गयी। प्रतीक के कमरे की जाँच हो रही थी ,तभी उसके भाई की निग़ाह उस डायरी पर गयी और उसने वो डायरी धीरे से अपने कपड़ों में छुपा ली। पुलिस के जाने के बाद और अपने भाई का क्रियाकर्म करने के पश्चात ,उसके भाई ने उस डायरी को पढ़ना आरम्भ किया।
क्या प्रतीक के भाई को ,उस डायरी से कोई विशेष बात पता चली ?क्या उसकी मम्मी सही -सलामत अपने घर वापस आ गयीं ?नंदिनी ने भी क्या उस पुड़िया का उपयोग किया या नहीं ?जब नंदिनी को प्रतीक की मौत का पता चलेगा तब वो क्या करेगी ? किसने किसको धोखा दिया ?इन सभी प्रश्नो के जबाब जानने के लिए पढ़िए ''-धोखा ''भाग ७।