अब तक आपने पढ़ा ,प्रतीक और नंदिनी एक दूसरे से प्रेम करते हैं किन्तु प्रतीक के माता -पिता को ये रिश्ता मंजूर नहीं क्योंकि नंदिनी किसी दूसरी जाति की है ,अब तक नंदिनी के घरवालों को उनके रिश्ते के विषय में नहीं मालूम था किन्तु परिस्थितियों को देखते हुए ,नंदिनी ने अपनी मम्मी से बता दिया जिसका परिणाम उसके गालों पर उनकी अंगुलियों के निशान थे। अब आगे -
घर में एकदम शांत वातावरण था ,जैसे कोई दुर्घटना हो गयी हो। नंदिनी अपने कमरे में बैठी रो रही थी और उसकी दादी बाहर तख़्त पर बैठी बड़बड़ाये जा रही थी ,आजकल की पीढ़ी को तो न ही शर्म है ,न लिहाज़। घर की बेटी बाहर किसी लड़के के साथ घूम रही है और घर में किसी को कानों कान खबर नहीं और आज कहती है, कि मैं सुनार के लौंडे से प्रेम करती हूँ । बताओ ,कोई इससे पूछे- बड़ों की इज्ज़त और शर्म लिहाज़ कहाँ बेच खाई ? मैं न कहती थी, कि लड़की को ज्यादा छूट देना ठीक नहीं ,एक न एक दिन तुम्हारी इज्ज़त मिटटी में मिलाकर छोड़ेगी , पर मेरी तुम लोग सुनते ही कहाँ हो ?सोचते होंगे ,बुढ़िया है ,ऐसे ही कह रही है ,अरे ,ये बाल ,मैंने ऐसे ही धूप में सफेद नहीं किये ,दुनिया देखी है मैंने ,आदमी के हाव -भाव से बता सकती हूँ कि कहाँ बोल रहा है ?अभी इसका बाप आएगा तो क्या कहेगा ?जब मैं टोकती थी ,तो कहता था ,ये मेरी बेटी नहीं ,बेटा है और सर चढ़ाओ।नंदिनी की मंम्मी , इतनी देर से अपनी सास की बड़बड़ाहट सुन रही थीं ,कमरे से बाहर आकर बोलीं -बस भी कीजिये ,क्यों जले पर नमक छिड़क रही हैं ?आने दीजिये इसके पापा को ,जब उन्होंने सिर पर चढ़ाया है तो समझायेंगे भी वही। हाँ -हाँ मुझे क्या कहने की जरूरत है ?मैं इनकी लगती ही कौन हूँ ?कहकर वो कपड़ा ओढ़कर लेट गयीं। अस्थाना जी ने घर में जैसे ही कदम रखा ,मन में कुछ खटका ,अपनी पत्नी के नजदीक जाकर बोले -क्या बात है ?सब कुछ ठीक तो है। कुछ भी ठीक नहीं कहकर वो रोने लगीं ,बोलीं -वो जो आप कहते थे कि सुनार के लड़के का किसी लड़की के साथ चक्कर है। हाँ ,अस्थाना जी बोले- मैंने लोगों को कहते सुना था। वो और कोई नहीं ,आप ही की बेटी नंदिनी है ,ये ही उसके साथ घूमती -फिरती थी और हमसे कहकर जाती है , पढ़ने जा रही हूँ।
नंदिनी की मम्मी को रोते देखकर ,अस्थाना जी ने धैर्य से काम लिया ,बोले -तुम्हें कोई गलतफ़हमी हुई होगी ,कोई और होगी , हमारी बेटी के विरुद्ध किसी ने तुम्हारे कान भरे हैं।कोई गलतफ़हमी नहीं हुई ,आपकी बेटी ने स्वयं ही मुझे बताया, कहकर फिर से रोने लगीं। वो थोड़े शांत रहे ,जैसे अपने को हर तरह की परिस्थिति के लिए तैयार कर रहे हो।बोले -क्या बताया ?यही कि वो और वो लड़का दोनों एक -दूसरे से प्रेम करते हैं ,इसने तो भरी बिरादरी में नाक कटा दी और वो लोग अपने को पैसे वाले मानते हैं ,उनमें तो दुनिया भर का अहंकार भरा पड़ा है। क्या कहूंगी मैं ,किसी से ?वो मधु की मम्मी तो देखकर हँसेगी कि दूसरे की बेटियों को कहती थीं ,अपनी ही बेटी गुल खिलाती फिर रही है ,मौहल्ले में निकलना भी मुश्किल हो जायेगा। अस्थाना जी ने देखा -श्रीमतीजी को बेटी की नहीं ,मौहल्ले की और रिश्तेदारों की चिंता सता रही है। बोले -तुम्हें किस बात से परेशानी है ?मौहल्ले वालों से या बेटी के प्यार करने से। वो झल्लाकर बोलीं - आपके ही लाड़ -प्यार के कारण ही आज ये दिन देखने को मिला ,सुबह से तुम्हारी मम्मी भी शोर मचा रहीं हैं। किस -किसको ज़बाब दूँ और क्या कहूँ ?अस्थाना जी उठे और बेटी के पास चल दिए जो बहुत देर से बैठी रो रही है ,अपने पापा को देखकर उसकी हिड़की बंध गयी और सुबकते हुए, पापा के गले से लिपट गयी। इस समय उसे अपने पापा ही ऐसे लगे ,जो उसे समझ सकते हैं। पापा ने उसे बैठाया ,बोले -क्या तुम्हें वो प्यार करता है ?रोते हुए उसने हाँ में गर्दन हिलाई। उसके घरवालों को भी पता है ,उन्होंने फिर से प्रश्न किया। उसने फिर से हाँ में गर्दन हिलाई। क्या उन लोगों को ये रिश्ता मंजूर है ?नहीं ,अबकि बार उसने जबाब दिया। तो फिर अब तुम क्या चाहती हो ?पापा ने फिर से पूछा। पापा हम दोनों प्रेम करते हैं और विवाह भी करना चाहते हैं। इस तरह अपने पापा की बदनामी कराके ,जबकि उन लोगों को ये रिश्ता मंजूर नहीं है। वो क्या काम करता है ?उनकी तो वो ही सोने -चाँदी की दुकान है ,अब तक नंदिनी शांत हो गयी थी। इसका मतलब, उसका अपना कोई काम भी नहीं ,पूर्णतः माता -पिता के अधिकार में है और वो लोग इस रिश्ते के लिए तैयार नहीं ,तब कैसे ये विवाह सम्भव है ? पापा ने प्रश्न किया। ''पर पापा हम दोनों तो प्यार करते हैं ''नंदिनी ने गिड़गिड़ाते हुए कहा। आप लोगों को तो मंजूर है न ,नंदिनी बोली। बेटा ,हम कैसे किसी बेरोज़गार लड़के के हाथों में अपनी बेटी का हाथ दे सकते हैं ?तुम्हें तो वहीं जाकर रहना होगा। क्या वो लोग तुम्हें स्वीकारेंगे ?स्वीकार भी लिया तो चैन से नहीं रहने देंगे और जब तुम दुखी या परेशान होगी तो क्या तेरे पापा खुश रह पायेंगे ?बेटा, इस रिश्ते की नींव ही कमज़ोर है ,ये ज्यादा दिन नहीं चल पायेगा। अब जो भी गलती तुमसे हुई है ,उसमें सुधार करो और अपने परिवार के विषय में भी सोचो ,उधर तुम्हारी दादी और मम्मी परेशान हैं ,तुम ऐसा करोगी तो उन पर क्या बीतेगी ? पापा की बातों को सुनकर वो निरुत्तर हो गयी।अपना ध्यान रखो ! कहकर पापा बाहर आ गए ,दादी और मम्मी तो जैसे इसी समय की प्रतीक्षा कर रहीं थीं। उनके बाहर निकलते ही दोनों ने उनकी तरफ देखा। उन्होंने इशारे से उन्हें आश्वस्त किया कि सब ठीक है।
नंदिनी समझ गयी कि पापा ने मक्ख़न में लपेटकर उसे मीठी गोली दी है ,उन्होंने प्यार से इस रिश्ते को नामंजूर कर दिया है। तभी उसके मष्तिष्क में एक सुझाव आया और वही तरीक़ा उसे श्रेष्ठ लगा। अब तो वो अगले दिन का इंतजार करने लगी। अगले दिन मम्मी से बोली -मम्मी मैं कॉलिज जा रही हूँ। मम्मी संदिग्ध नज़रों से उसे घूरती हुई बोलीं -कोई आवश्यकता नहीं है ,कहीं भी जाने की ,जितना पढ़ना था, पढ़ ली। पीछे से दादी की समर्थन भरी हुंकार सुनाई दी। क्या अब मेरी पढ़ाई भी बंद करा देंगे ?तो मैं दिनभर क्या करूंगी ? मुँह बनाते हुए बोली। दादी बोली -अपनी माँ के संग घर -गृहस्थी के काम सीखो ,प्रेम करना और विवाह करना सीख लिया तो गृहस्थी के काम भी सीख ले। किसी के संग घर बसायेगी तो उसे रोटी भी तो बनाकर ख़िलायेगी कि नहीं ,दादी ने व्यंग के साथ -साथ उसे हकीक़त से भी परिचित कराया। नंदिनी अब दादी की ख़ुशामद करने लगी ,बोली -आप तो मेरी दादी हो अपनी पोती की बात नहीं समझोगी ,काम तो मैं कॉलिज से आकर भी सीख़ सकती हूँ।दादी उसकी बातों को सुनकर कठोर स्वर में बोली -अभी तक पढ़कर कौन से तीर मार लिए ?अपने बाप की बदनामी के सिवा। तुम लोगों के लिए सारा दिन कमाने में खटता रहता है और उसका ये परिणाम। दो वक़्त की रोटी भी चैन से न मिले।दादी ,मुझे एक लड़की से अपनी कॉपी लेनी है ,नंदिनी ने ज़िद की ,क्योंकि वो अपना सुझाव, प्रतीक को बताने वाली थी। अस्थाना जी अंदर बैठे ,दादी -पोती की बातें सुन रहे थे ,अब वो भी सतर्क हो गए थे ,बाहर आकर बोले -बहुत ही आवश्यक कार्य है तो मैं अपने काम पर जाने से पहले तुम्हें छोड़ता हुआ जाऊँगा। पापा की बात सुनकर नंदिनी निराश हो गयी और चुपचाप पापा के स्कूटर पर बैठ गयी।
कॉलिज आकर वो परेशान हो रही थी, कि किस तरह प्रतीक से मुलाकात हो ?कॉलिज बंद होने के समय भी पापा बाहर ही खड़े मिले। उन्होने बता दिया कि प्रतिदिन मैं ही तुम्हें छोड़ने और लेने आया करूंगा। नंदिनी बोली -क्या मैं पहले नहीं आती -जाती थी ?अब भी ऐसे ही आ जाया करूंगी किन्तु पापा का जबाब था -तुम्हारी दादी और मम्मी क्रोध करेंगी।चार दिन तक ऐसे ही चलता रहा अब नंदिनी की बेचैनी बढ़ने लगी। जब वो अपने पापा के संग दुपहिया पर जा रही थी तभी उसे प्रतीक दिखा ,नंदिनी ने उसकी तरफ से मुँह फेर लिया ताकि पापा का शक यकीन में न बदले किन्तु उसने प्रतीक को अपनी तरफ देखते देख लिया था। अब नंदिनी ने कमर की पीछे हाथ करके ,प्रतीक को एक अंगुली दिखाई और तब तक इशारा किया ,जब तक कि वो आँखों से ओझल नहीं हो गयी। प्रतीक उस एक अँगुली का रहस्य समझने का प्रयत्न कर रहा था। कुछ देर पश्चात वो तैयार होकर निकल गया और सीधा नंदिनी के कॉलिज के बाहर आकर खड़ा हो गया ,तभी नंदिनी भी बाहर निकली ,उसे देखते ही बोली -मैं सोच रही थी कि तुम समझोगे कि नहीं ,फिर उसकी बुद्धिमानी पर इठलाकर बोली -वैसे मैंने एक समझदार व्यक्ति से प्रेम किया है कहकर उसकी दुपहिया पर बैठ गयी और उसी सुनसान जगह पर दोनों जा बैठे। प्रतीक बोला -अब तुम्हें पापा कैसे छोडने लगे ?नंदिनी ने अपने घर में हुई सारी घटनाएं उसे विस्तार से बतायीं ,जिनको सुनकर दोनों ही गंभीर हो गए किन्तु नंदिनी ने जो उपाय सोचा था जिसके लिए उसे यहां बुलाया था ,बोली -अब एक ही रास्ता है ,हम दोनों कहीं दूर भाग जाते हैं ?प्रतीक सुनकर चौंक गया ,बोला -ये तुमने सोचा भी कैसे ?इससे तो ज्यादा बदनामी होगी और दोनों परिवारों में दुश्मनी भी हो जाएगी। और फिर भाग भी गए तो जायेंगे कहाँ ?किसी ने थाने में ,हमारे भागने की सूचना दे दी तो ,कब तक और कहाँ तक भागते फिरेंगे ?और फिर अपना खर्चा भी कैसे करेंगे ?तुम्हारी भी पढ़ाई पूरी नहीं हुई जो तुम कुछ काम कर लोगी और मैं ,मैं तो पापा के साथ ही रहता हूँ। नंदिनी ने बहुत दिमाग दौड़ाया ,फिर बोली -घर से ही कुछ कीमती गहने और पैसे चुराकर ले जायेंगे ?प्रतीक को उसका सुझाव पसंद नहीं आया और बोला -हम अपने प्रेम के कारण घरवालों को पहले ही परेशान कर रहे हैं ,अब चोरी की कमी और रह गयी ,वो भी कर लेते हैं। हम प्रेम करते हैं कोई चोर नहीं हैं। तो फिर तुम्हीं बताओ ,क्या करें ?नंदिनी झंझलाकर बोली। घरवाले विवाह नहीं करेंगे ,भाग सकते नहीं ,चोरी भी नहीं कर सकते ,घरवालों का दिल भी दुखाना नहीं चाहते ,तो फिर क्या करें ?तुम अपने घर बैठो ,मैं अपने घर ,ये ही ठीक रहेगा। उसकी झुंझलाहट देखकर प्रतीक शांत रहा। और सोचने लगा कि ''सांप भी मर जाये ,और लाठी भी न टूटे। ''कुछ सोचकर बोला -क्यों न हम जहर खा लेते हैं ,उसकी बात पूरी होने से पहले ही ,उसके सुझाव पर नंदिनी ताली बजाने लगी और बोली -जहर खाकर मर जाते हैं ,और फिर अगले जन्म में मिलते हैं। प्रतीक बोला -पहले पूरी बात तो सुन लो ,उससे पहले ही निष्कर्ष पर पहुंच गयीं। हाँ ,सुनाओ ,नंदिनी अविश्वास से बोली। हम सचमुच में जहर नहीं खायेंगे, सिर्फ़ घरवालों को डराना है।फिर वे हमारी बात भी मान लेंगे और हमारा विवाह भी करा देंगे और हमें कहीं भागने की भी आवश्यकता नहीं। घरवाले तो जैसे मूर्ख हैं ,वो हमारी चाल झट से पकड़ लेंगे नंदिनी बोली। कुछ देर बाद इसी तरह सोचते रहे फिर नंदिनी बोली -जहर खाएंगे ,किन्तु कम मात्रा में ,ताकि थोड़ी तबियत खराब हो फिर वो अस्पताल ले जायेंगे और हम ठीक होकर घर आ जायेंगे। हम अपने प्यार के लिए इतना खतरा तो उठा ही सकते हैं ,दोनों ने ही इस बात का समर्थन किया ,तब नंदिनी बोली -अब तुम मुझे जल्दी से कॉलिज छोड़ आओ ,पापा मुझे लेने आने वाले होंगे जब कभी भी मिलना हो या बात करनी हो तो इसी समय आ जाना क्योंकि अब पापा मुझे छोड़ने आते हैं।
नंदिनी ने अपनी बात प्रतीक को बताई और मिली भी, किसी को पता भी नहीं चला ,तभी तो कहते हैं -''जल और प्रेम अपना रास्ता ढूँढ ही लेते हैं। '' प्रतीक और नंदिनी ने भी अपना रास्ता ढूँढ ही लिया एक दिन प्रतीक ने एक पुड़िया नंदिनी को दी ,बोला -जब इसकी आवश्यकता पड़े ,तभी प्रयोग करना और कम मात्रा में ही लेना ,पहले घरवालों से बात करके ही देखते हैं। प्रतीक प्रतिदिन अपनी डायरी में लिखता था ,आज भी उसने अपना मंतव्य और आगे क्या सोचा है ?सभी अपनी डायरी में लिखा -ये इश्क नहीं आसान, एक आग का दरिया है और डूबके जाना है। '' ,कल हम भी अपने प्रेम के लिए ,ताकि हम सदा साथ रहें ,उसके लिए जोख़िम उठाने वाले हैं ,परिवार वाले हमारे प्रेम को नहीं समझेंगे। प्रेम तो सभी करते हैं किन्तु हम जैसे लड़के- लड़कियों के साथ ही ये पाबंदियां क्यों ?क्या हमारा प्रेम ,प्रेम नहीं। कहते हैं- प्रेम तो रोते को हंसा दे ,उजाड़ में गुलशन खिला दे ,प्रेम क्या किसी सीमा में बंधा है ?प्रेम तो कहीं भी किसी से भी हो सकता है ,सोच-समझकर तो नहीं किया जाता फिर ये लोग प्रेम को क्यों नहीं समझ रहे ? ये लोग क्या प्रेम नहीं करते ?
या इन्होने प्रेम को महसूस ही नहीं किया ,भाभी -भइया भी तो प्रेम करते हैं किन्तु कभी हमारे प्रेम का समर्थन नहीं किया। मैं आज बात करके देखता हूँ ,यदि नहीं माने तो आज मैं चुप नहीं बैठूंगा। प्रतीक डायरी बंद करके मम्मी -पापा के पास आता है।सीधे प्रश्न किया -अब आप लोगों ने क्या सोचा ?किस विषय में ?पापा ने प्रश्न किया ?यही कि नंदिनी और मेरे विषय में। प्रतीक की बात सुनकर पापा -मम्मी की मनोदशा बदल हो गयी। मम्मी बोलीं -तेरे सिर से अभी भी ,उस अस्थाना की लड़की का भूत नहीं उतरा। इसमें भूत क्या करेगा ?जब मैं उससे प्रेम करता हूँ और वो मुझसे ,उसने अपने घरवालों को भी बता दिया ,अब आप लोग भी मान जाइये। क्यों उसके घरवाले मान गये ?पापा ने प्रश्न किया। नहीं ,प्रतीक बोला। लो! वो तो बेटी वाला होकर नहीं झुक रहा और हमारा बेटा हमें झुकाने और नीचा दिखाने पर लगा है मम्मी ने अपनी बात रखी। प्रतीक बोला -मैं झुकने के लिए नहीं कह रहा किन्तु आप लोग तो तैयार हो जाइये। पापा ने फिर चाल चली और बोले -यदि वो अस्थाना यहां आये और रिश्ता माँगे ,तब हम कुछ सोचेंगे।
या इन्होने प्रेम को महसूस ही नहीं किया ,भाभी -भइया भी तो प्रेम करते हैं किन्तु कभी हमारे प्रेम का समर्थन नहीं किया। मैं आज बात करके देखता हूँ ,यदि नहीं माने तो आज मैं चुप नहीं बैठूंगा। प्रतीक डायरी बंद करके मम्मी -पापा के पास आता है।सीधे प्रश्न किया -अब आप लोगों ने क्या सोचा ?किस विषय में ?पापा ने प्रश्न किया ?यही कि नंदिनी और मेरे विषय में। प्रतीक की बात सुनकर पापा -मम्मी की मनोदशा बदल हो गयी। मम्मी बोलीं -तेरे सिर से अभी भी ,उस अस्थाना की लड़की का भूत नहीं उतरा। इसमें भूत क्या करेगा ?जब मैं उससे प्रेम करता हूँ और वो मुझसे ,उसने अपने घरवालों को भी बता दिया ,अब आप लोग भी मान जाइये। क्यों उसके घरवाले मान गये ?पापा ने प्रश्न किया। नहीं ,प्रतीक बोला। लो! वो तो बेटी वाला होकर नहीं झुक रहा और हमारा बेटा हमें झुकाने और नीचा दिखाने पर लगा है मम्मी ने अपनी बात रखी। प्रतीक बोला -मैं झुकने के लिए नहीं कह रहा किन्तु आप लोग तो तैयार हो जाइये। पापा ने फिर चाल चली और बोले -यदि वो अस्थाना यहां आये और रिश्ता माँगे ,तब हम कुछ सोचेंगे।
अगले दिन नंदिनी को प्रतीक ने बताया कि पापा की क्या शर्त है ?क्या नंदिनी के पापा प्रतीक के घर उनके विवाह की बात करने गए ?या नहीं। प्रतीक ने किस चीज की पुड़िया नंदिनी को दी थी ,क्या वो उसका उपयोग कर पाई ?आगे इस'' प्रेम कथा' 'में क्या हुआ जानने के लिए पढ़िए -धोखा भाग ६