धोखे के तीसरे भाग में आपने पढ़ा -प्रतीक नंदिनी को उससे दूर रहने का कारण बताता है ,जिसको नंदिनी चुपचाप सुनती रहती है फिर उससे पूछती है -जब तुमने प्रेम किया था ,तब भी क्या मम्मी -पापा से पूछा था ?इस तरह तो उनसे प्रेम करने से पहले भी, तुम्हे पूछ लेना चाहिए था कि पापा मुझे प्रेम हो गया है ,करूं या नहीं। प्रेम करने चला था या कोई खेल ?आज तक कभी सुना है, कि जो प्रेम में पड़े हैं उन्हें घर -परिवार या समाज का विरोध न सहन करना पड़ा हो। एक तेज हवा क्या चली ?तुम तो सूखे पत्ते की तरह उड़ गए। प्यार करना हिम्मत का काम है ,तुम जैसे बुझ दिलों का नहीं। परिवार और समाज की इतनी ही चिंता थी तो प्यार करने की आवश्यकता ही क्या थी ?प्रतीक ने अपनी तरफ से सफाई प्रस्तुत करने का प्रयत्न किया ,बोला -मैं डरता नहीं, तुम्हारे लिए ही चुप रहा ,कहीं तुम्हारी बदनामी न हो ?तुम्हारी बहन का विवाह है ,हमारे कारण कहीं उसके रिश्ते पर आंच न आ जाये। किन्तु नंदिनी इतनी गुस्से में थी कि उसने प्रतीक की बातों पर कोई ध्यान नहीं दिया और वहां से उठकर चली गयी। वो बेहद निराश थी ,वो उस दिन को कोस रही थी ,जब उसने प्रतीक का प्रेम -पत्र उसके हाथ से लिया और उसके प्रेम को स्वीकार किया। इतना दुःख तो उसे जब भी नहीं होता जितना दुःख उसने अब दिया है ,ये तो मामूली बात थी ,एक न एक दिन तो उन्हें पता चलना ही था ,तो घबराना कैसा ?अपनी ही धुन में चले जा रही थी ,घर में घुसकर ,सीधी अपने कमरे में गयी और देर तक रोती रही। इतना तो उसे अनुमान हो गया कि प्रतीक के घरवाले इतनी आसानी से उसे स्वीकार नहीं करेंगे।
अब वो भी प्रतीक से नहीं मिलेगी ,जब वो मेरे बिना रह सकता है तो मैं भी, उसके बिना रह सकती हूँ ,अब मैं उसे दिखला दूंगी कि मेरा प्यार कोई लाचार या बेबस नहीं ,जो मैं उससे प्यार की भीख मांगूंगी। वो ही आया था ,मैंने तो अपने प्यार को छिपा रखा था और अब वो स्वयं ही पीछे हट गया किन्तु मैं तो उसे चाहती हूँ, सोचकर फिर से रोने लगी। कई दिनों तक कॉलिज ही नहीं गई ,घरवालों ने पूछा ,तो बोली -अभी पढ़ाई नहीं चल रही और दीदी के विवाह की तैयारी भी तो करनी है। उधर प्रतीक को अब छुपने की आवश्यकता नहीं थी ,वो प्रतिदिन उसके लिए परेशान रहता प्रतिदिन उसकी नज़रें नंदिनी को खोजतीं फिर उसे लगा, शायद उसकी बहन का विवाह है इसीलिए व्यस्त होगी किन्तु मुझसे नाराज़ भी तो है। सोचा ठीक ही हुआ, समय रहते उसे सच्चाई का पता चल गया ,अब उसे ज्यादा दुःख नहीं होगा। दस दिन बाद वो फिर से कॉलिज जाने लगी ,यदि प्रतीक दिख भी जाता तो नजरअंदाज कर जाती उसके बराबर से ऐसे निकल जाती , जैसे कभी मिले ही न हों। ये बात प्रतीक को खलती ,उसकी बहन के विवाह का कार्ड ,प्रतीक के घर भी आया किन्तु उसके घर से कोई भी नहीं गया। अब तो नंदिनी कुछ दिनों से किसी लड़के के साथ घूमती दिख रही थी। प्रतीक को देखकर ,जोर से ठहाके मारकर हंसती ,जैसे वो उसे चिढ़ा रही हो। वास्तव में ही नंदिनी प्रतीक को दिखाना चाह रही थी कि मैं तुम्हारे बिना भी खुश हूँ। प्रतीक सोच रहा था कि ये लड़का कौन है ?ये इससे क्यों इतना घुल -मिल रही है ?कौन है ये ?एक दिन प्रतीक को नंदिनी अकेली दिखी ,प्रतीक ने उसका हाथ पकड़ा और उसे एकांत में ले गया और बोला - ये तुम क्या कर रही हो ?किसके साथ घूमती रहती हो ?कौन है वो ?तुम्हें इससे क्या ?मैं किसी के भी साथ घूमूं -फिरूं ,तुमसे तो मेरा ,अब कोई मतलब नहीं ,तुमने तो अपने माता -पिता के कारण छोड़ ही दिया ,बस देख लिया तुम्हारा प्रेम ,जो थोड़ी सी ठसक से टूट गया ,निकल गयी हवा ! अच्छा हुआ जो समय रहते ही तुम्हारी औकात पता चल गयी कहकर वो आगे बढ़ने लगी तभी प्रतीक ने उसका हाथ पकड़ लिया। उसके शब्द प्रतीक को तीर की तरह चुभ रहे थे ,बोला -तुम क्या चाहती हो ?मैं अपने प्यार और स्वार्थ के लिए अपने माता -पिता का दिल दुखाऊँ ,उन्होंने मुझे पाल -पोसकर इतना बड़ा किया तो क्या में उनके लिए इतना त्याग भी नहीं कर सकता ?मैं तुमसे भी प्रेम करता हूँ और उनसे भी।
उनके लिए मुझे छोड़ सकते हो, तो फिर प्रेम का दम क्यों भरते थे ?तुम ही बताओ, अब मैं क्या करूं? नंदिनी झल्लाकर बोली। प्रतीक शांत स्वर में बोला -मैं समझता हूँ, कि मैं उन्हें अपने प्यार का विश्वास दिलाकर ,उन्हें तुम्हारे लिए मना लूंगा ,थोड़ा समय तो दो।कितना समय ?नंदिनी शांत होकर बोली किन्तु तब तक हम पहले की तरह मिलते रहेंगे ,वायदा करो। वादा करता हूँ , किन्तु पहले ये बताओ ,वो कौन है ? ,जिसके साथ तुम इतने दिनों से घूम रही हो ! अब तो नंदिनी मुस्कुराई ,बोली -लगी मिर्ची ,मैं ये ही देखना चाहती थी कि तुम कितने दिनों तक मुझसे दूर रह सकते हो ?और किसी और के साथ मुझे देखकर तुम क्या करते हो ?प्रतीक बोला -वो मेरे हाथों से मर जाता ,वो तो मेरी समझदारी देखो कि मैंने पहले तुमसे पूछना बेहतर समझा। ओ ,समझदारी के पुतले ,वो मेरी बुआ का लड़का है ,उसे तनिक भी खरोंच आ जाती तो तुम्हें छोड़ती नहीं। ये हिम्मत अपने घरवालों को दिखाओ ,मुझे और मेरे घरवालों को नहीं। नंदिनी तैश में बोली। प्रतीक बोला -मैं भी तुम्हारी हिम्मत देखूँगा ,जिस दिन तुम्हारे घरवालों को पता चलेगा ,तब तुम क्या करती हो ?नंदिनी बोली -या तो वो मानते हैं ,नहीं तो उसी दिन घर छोड़ दूंगी ,बस तुम धोखा मत देना ,वो पूरे आत्मविश्वास से बोली। उसका आत्मविश्वास देखकर ,प्रतीक का भी मनोबल बढ़ा ,बोला -मैं भी अपने प्यार के लिए कुछ भी कर जाऊँगा। इस तरह दोनों में फिर मुलाकातें होने लगीं और उनका प्रेम बढ़ता गया। धीरे -धीरे घरवालों का डर भी समाप्त होने लगा। उन्हें दुनिया अपने क़दमों में नजर आ रही थी ,उन्हें ऐसा लगता कि वो अपने प्यार के लिए कुछ भी कर गुजरेंगे। विवाह करने में ,उन्हें कोई बुराई नजर नहीं आई ,जब दो व्यक्तियों में प्रेम है तो फिर किसी को क्या फ़र्क पड़ सकता है ?ज़िंदगी उन्हें जीनी हैं ,फैसला भी उनका ही होगा। सब कुछ बड़ा ही सरल लगता।
उन्हें इसी तरह मिलते छः माह बीत गए ,एक दिन दोनों को फ़िल्म देखने जाते हुए ,मौहल्ले के एक लड़के ने देख लिया। और एक बार जो बात फैली तो एक कान से होती हुई दूसरे कान तक पहुंचती हुई ,उसके घर भी जा पहुंची। घर में पहले की तरह कोहराम मचा। माता -पिता ने उसके दिए वायदे का, उसे वास्ता दिया। नंदिनी को बहुत ही भला -बुरा भी कहा। ये लड़की तो मेरे बेटे के ,चुड़ैल की तरह चिपट ही गयी ,मैं न कहती थी ,उसकी बेटियाँ बड़ी चालाक हैं। प्रतीक बोला -मम्मी, इसमें उसकी बहन या घरवालों का क्या दोष ?बात को ज्यादा न बढ़ाकर ,इतना समझ लीजिये कि मैं और नंदू एक -दूसरे से प्रेम करते हैं और विवाह करना चाहते हैं। ये तुझे इतनी सी बात लग रही है ,उसके पापा झल्लाकर बोले। सब रिश्तेदारों और बिरादरी को क्या मुँह दिखायेंगे ?उनसे क्या कहेंगे कि लड़के ने हमसे ऊपर होकर ग़ैर बिरादरी में विवाह कर लिया ,हमारे यहां क्या, लड़कियों का अकाल पड़ गया ?जो दूसरी बिरादरी में जाकर मुँह मारा। प्रतीक बोला -आप लोगों को बिरादरी और समाज की पड़ी है ,मेरे प्रेम की नहीं ,जब मैं उससे प्रेम करता हूँ तो इसमें बुराई ही क्या है ?ये देखो ,उसकी सोहबत में रहकर तो ,अब इसकी जबान भी चलने लगी ,मम्मी बोली। वो लड़की इस घर में कतई कदम नहीं रखेगी ,जब उसने बाहर रहकर ही हमारे बेटे को ,हमसे दूर कर दिया ,घर में आ गयी तो न जाने क्या -क्या ग़ुल ख़िलायेगी ?प्रतीक भी हिम्मत कर बोला -मैं जान दे दूंगा किन्तु विवाह उसी से करूंगा। तो दे दो ,इस रोज -रोज की किल्ल्त से तो अच्छा है ,एक बार ही जान छूटे पापा बोले। तभी मम्मी बोली -ये क्यों देगा जान ?जान तो उसे देनी चाहिए जो अपने घरवालों के साथ मिलकर हमारे बेटे को फंसा रही है। मम्मी ,ये आप उन लोगों पर कैसा इल्ज़ाम लगा रही हो ?उन बेचारों को तो कुछ भी नहीं पता प्रतीक ने बताया। देखा !वो लोग इसके अपने हो गए और हम ग़ैर ,हम तो जैसे इसके दुश्मन हैं पापा गुस्से से बोले। नहीं ,मैं कह रहा हूँ कि उन लोगों को भी अभी कुछ नहीं मालूम ,जब उन्हें पता चलेगा तो वो लोग भी तो अपनी प्रतिक्रिया देंगे ,इस तरह लड़ने से तो बेहतर है ,इस रिश्ते को और दोनों घरों को एक साथ जोड़ दिया जाये, जब सब अपनी इच्छा से होगा तो कोई भी कुछ कह ही नहीं पायेगा। वाह बेटे !अब हम उसके घर रिश्ता लेकर जाएँ ,जी हमारे बेटे का हमारी बिरादरी में विवाह नहीं हो रहा ,तुम्हारी जो 'रूप की रानी' बिटिया है ,उससे हम अपने बेटे का विवाह करना चाहते हैं ,बस बेटा ,ये ही कमी रह गयी थी ,हमारी बेइज्जती के और क्या -क्या साधन तूने सोच रखे हैं ?पापा खीझते हुए बोले।
पापा मैं ये नहीं कह रहा कि आप वहाँ रिश्ता लेकर जायें ,मैं तो ये कहना चाह रहा था कि दोनों परिवार शांति पूर्वक बातों को समझकर ,मेरा और उसका विवाह करा दें। क्या तू ही हम पर जोर डालता रहेगा ?जब उसके माता -पिता को पता ही नहीं है तो उन्हें भी तो पता चलना चाहिए कि उनकी बेटी क्या ग़ुल खिला रही है ? पहले उसे अपने माता -पिता से बात करने दे ,उसके बाद हम देखते हैं कि हमें क्या करना है ? मम्मी ने सुझाव दिया। बात आई -गई हो गयी और घर में शांति भी। जब प्रतीक नंदिनी से मिलता तो कहता -तुम्हारे माता -पिता को कैसे पता चलेगा ?पता चल भी गया तो क्या वो लोग इस रिश्ते के लिए मान जायेंगे ?नंदिनी बोली -मुझे अपने पर विश्वास है ,मैं उन्हें समझा लूँगी। एक दिन नंदिनी ने अपनी मम्मी से कहा -मम्मी ,वो जो जिनके यहाँ से आप हार लाई थीं ,उनका लड़का है ,न ..... उसकी बात पूर्ण होने से पहले मम्मी ने संदिग्ध नज़रों से उसे घूरा और बोलीं -क्या हुआ उसे ?मैंने तो सुना है ,किसी लड़की के चक्कर में पड़ा है। घबरा कर नंदिनी बोली -क्या आप उस लड़की को जानती हैं ?आपको किसने बताया ,ये सब ?मंम्मी बोलीं -अरे !वो तो बहुत ही वाहियात लड़का है ,मधु की मम्मी बता रहीं थीं ,उन्होंने भी किसी से सुना कि किसी लड़की के चक्कर में तो वो अपने घरवालों से भी झगड़ा कर बैठा ,बेचारे उसके माँ -बाप बड़े ही परेशान हैं। वो लड़की भी ऐसी ही होगी ,जो उसके साथ घूमती फिरती है। पता नहीं कैसे माता -पिता हैं ? ,उसके जो अपनी लड़की को इतनी छूट दे रखी है ,ऐसी मेरी बेटी हो तो ,अभी वो अपना वाक्य पूर्ण भी नहीं कर पाई नंदिनी बोली -ऐसी आपकी बेटी हो तो आप क्या करेंगी ?मैं तो उसे मार ही डालूंगी वो जोश में बोल गयीं। तो फिर मार डालिये ,कहकर नंदिनी बोली -मैं ही वो लड़की हूँ। उसकी मम्मी की आँखें फटी की फटी रह गयीं और जब उन्हें होश आया तो नंदिनी के गाल पर उनकी अंगुलियों के निशान थे। नंदिनी की आँखों से टप -टप मोती टपक रहे थे जिनकी उसकी मम्मी की नज़रों में कोई कीमत नहीं थी।
अब तो नंदिनी के घरवालों को भी पता चल गया कि सुनार के लड़के के साथ घूमने वाली लड़की और कोई नहीं उनकी अपनी बेटी है। क्या दोनों परिवार उनके प्रेम को स्वीकार कर उनका विवाह करा देंगे या फिर उन्हें अलग कर देंगे। उनका प्रेम किस मोड़ पर पहुंचा ?धोखा भाग ५