Dhokha [part 3]

प्रतीक और नंदिनी के प्रेम के विषय में , प्रतीक के घरवालों को पता चल जाता है ,उसके मम्मी -पापा अपने प्यार का वास्ता देकर उसे समझाते हैं और ग़ैर बिरादरी में विवाह के लिए भी मना कर देते हैं ,इसके लिए उनका रवैया कठोर भी हो जाता है। उसके पापा नंदिनी के घरवालों से भी बात करने को कहते हैं किन्तु बात बिगड़ती देखकर, प्रतीक मना कर देता है कि नंदिनी के  परिवार या बाहर किसी को पता न चले इसके लिए वो अपने मम्मी -पापा से वायदा करता है कि अब वो नंदिनी से नहीं मिलेगा और उसे भूल जायेगा। अब आगे - 

              प्रतीक ने अपने मम्मी -पापा को विश्वास दिलाया कि अब वो नंदिनी से कभी नहीं मिलेगा ,अपने रिश्ते को यहीं पर विराम दे देगा ,कहकर वो अपने  कमरे में आ गया लेकिन वो उससे क्या कहेगा ?कैसे उसे अपने दिल से निकालेगा ?अपने -आप से ही प्रश्न पूछ रहा था। एकाएक उसे अपने मम्मी -पापा का ख़्याल आया ,सोचने लगा -ये माता -पिता भी न अपने बच्चे के लिए, कितना कुछ कर जाते हैं ? किन्तु उसकी ख़ुशी नहीं देखते ,पता नहीं , उस समय इनका प्यार कहाँ छिप जाता है ?जो अपने बच्चे की प्रसन्नता  नहीं देखी  जाती ,इन्हें तो अपनी बिरादरी की चिंता है।पता नहीं क्यों ,ये ही माता -पिता अपने बच्चे के ही प्यार के दुश्मन बन जाते हैं।  वो अपने बटुयें में रखी नंदिनी की तस्वीर को  बड़े ध्यान से देखने लगा। उसका मुस्कुराता चेहरा कितना मासूम लग रहा है ?हमने कितने सपने संजोये हैं ?अभी तो ठीक से एक -दूसरे को समझा ही नहीं और..........   उसकी आँखों के कोरों से अश्रु की बूंदें बह निकलीं। प्रतीक शून्य में काफी देर तक यूँ ही देखता और सोचता रहा ,पता नहीं ,कब उसे नींद आयी ? सुबह मम्मी की आवाज़ से उसकी आँख खुली। प्रतीक उठो बेटा !क्या आज सोते ही रहने का इरादा है ?सब नहा-धोकर अपने -अपने काम पर चले गए ,तुझे नहीं जाना। जब प्रतीक की आँख खुली तो सिर में भारीपन सा लग रहा था और उसकी आँखें भी लाल थीं।उसकी ऐसी हालत देखकर मम्मी बोलीं -तेरी तबियत तो ठीक है ,क्या तू रातभर सोया नहीं ? तभी उसे रात की सारी बातें स्मरण हो आयीं और उसका मन पहले की तरह दुःख से भर गया। वो बोला -मेरा मन आज कुछ ठीक नहीं ,थोड़ा आराम करूंगा। माँ समझती थी, कि उसके बच्चे का  दिल दुखा है। प्रत्यक्ष बोलीं -चल तू आज आराम कर ले ,काम तो जीवनभर का है ,मैं तेरे लिए चाय भिजवाती हूँ। 
                मम्मी के जाने के बाद प्रतीक फिर से लेट गया ,सोचने लगा -आज मुझे दुकान पर न देखकर वो पता नहीं क्या सोचेगी ?वो देर तक आँखें बंद किये ,इसी तरह लेटा  रहा ,भाभी की आवाज सुनकर उसने आँखें खोलीं। वो बोलीं -देवर जी चाय पी लीजिये ,उसने नज़र भर, भाभी को देखा ,कुछ कहना चाहता था किन्तु क्या ?वो नहीं जानता ,चुपचाप उठा और चाय पीने लगा। भाभी इधर -उधर फैले सामान को समेटते हुए बोली -प्यार ,मोहब्बत से तो इस जमाने की पहले से ही दुश्मनी है और वो भी दूसरी बिरादरी में ,सब अपनी बिरादरी को बड़ा मानते हैं किन्तु ये नहीं जानते, कि प्रेम इन सबसे ऊपर है।क्या  प्रेम करने वाले आज तक मिले हैं कभी ?उनके हिस्से या तो विरह आता है या फिर मौत। फिर वो उसके नजदीक आकर बोलीं -वैसे कैसी दिखती है, वो ?प्रतीक ने निराशा से कहा , एक बार अपना दर्द भूलकर वो बोला -सुबह के ताजे गुलाब की तरह कोमल ,मासूम इतनी किसी गाय के बच्चे की तरह ,उसकी मुस्कान ऐसी, किसी छोटे बच्चे की तरह ,प्रतीक की बातें सुनकर उसकी भाभी हँसने लगी ,बोली -आप कैसे प्यार में पड़ गए ?आपको तो अपने प्यार की व्याख्या भी करनी नहीं आती। प्रतीक निराशा भाव से बोला -अब क्या लाभ ?अब सब खत्म हो गया। कुछ नहीं ,सब ठीक होगा, कहकर भाभी चली गयी। वो सोच रहा था ,अब क्या ठीक होगा ?उसने घड़ी की तरफ देखा ,साढ़े ग्यारह बज रहे हैं ,आधा घंटे बाद उसकी छुट्टी होगी ,मुझे इधर -उधर ढूँढेगी और मैं यहाँ ,अपनी जिंदगी को कोस रहा हूँ। कुछ सोचकर वो उठा और स्नानागार में घुस गया। 

                प्रतीक नहाकर घर से बाहर निकला और एक स्थान पर आकर रुक गया। नजदीक ही किसी चाय की दुकान के अंदर बैठ गया जहां से कॉलिज की छात्राएं आती -जाती दिखें ,वह वहां से बैठा आते -जाते लोगों को देखता रहा ,उसकी निगाहें बाहर की ओर जाती सड़क पर  ही टिकी हुई थीं , चाय वाला भी देख और सोच रहा था कि ये लड़का किसे ढूँढ रहा है ?तभी प्रतीक को  नंदिनी जाती दिखी ,हाँ वो ही तो है ,उसे तो वो हजारों में पहचान सकता है। उसे जाते देख रहा  था ,उसके जाने के बाद, चाय के पैसे देकर उस दुकान से निकल गया। पहले तो सोचा -उसके पीछे -पीछे चलूँ ,फिर सोचा ,वो तो मोटरसाइकिल पहचान लेगी और दूसरे रास्ते से घर आ गया।नंदिनी को देखकर , उसे थोड़ी तसल्ली थी  ,ये तरीक़ा उसे अच्छा लगा ,मैं उससे मिल नहीं सकता तो क्या? उसे देख तो सकता ही हूँ। उधर नंदिनी जब दुकान के नजदीक पहुँची तो उसकी नज़रें प्रतीक को ढूंढ़ रही थीं किन्तु उसे न देखकर सोचने लगी -क्या वो कहीं गया है ?जाता तो मुझे बताकर भी जा सकता था ,मैं क्या रोक रही थी ? दूसरे ही पल सोचा -अचानक ही कोई काम आन पड़ा होगा वरना मुझे अवश्य बताता। इसी पशोपेश में घर आ गयी ,कल आयेगा तो पूछूँगी। सारा दिन इसी उधेड़ -बुन में निकल गया।अगले दिन भी प्रतीक उसे दुकान पर नहीं दिखा ,न ही उससे मिलने कॉलिज ही आया। ऐसे कहाँ चला गया ?चार दिन तक नहीं दिखा तो उसके धैर्य की सीमा समाप्त होने लगी। सोचने लगी कहीं  उसने मुझे धोखा तो नहीं दे दिया ,मेरे साथ प्यार का नाटक तो नहीं किया। मेरे जज्बात और विश्वास के साथ तो नहीं खेल गया। क्या करूं, किससे उसका पता लगाऊं ? इधर प्रतीक ने भी घरवालों को ऐसे ही दिखाया कि वो उसे भूल चुका है और जब भी नंदिनी के आने का समय होता तो किसी भी बहाने से वो वहां से चला जाता। अब तो  नंदिनी  मन ही मन घबरा रही थी फिर  अपने को सांत्वना दे देती ,कहीं किसी रिश्तेदारी में गया होगा दूसरे ही पल एहसास होता -क्या उसे इतना भी समय नहीं मिला ?कि आकर मुझे बता कर चला जाता। 
             इसी उधेड़ -बुन में एक सप्ताह बीत गया ,नंदिनी का दिल वीरान सा  हो गया। अगले दिन वो सीधे उसकी दुकान पर जा चढ़ी ,वहां जो और लोग थे ,बोले -कहिये !हम आपकी क्या मदद कर सकते हैं ?अब वो क्या कहे ?कुछ सूझा नहीं ,बोली -हम लोग उस दिन जो हार ले गए थे ,उसका नमूना किसने बनाया था ?वो मेरी सहेली को अच्छा लगा ऐसा ही हार एक और बनवाना है ,इसीलिए उनसे बात करने के लिए आयी थी। वहाँ मौजूद एक व्यक्ति बोला -दिखाइए कौन सा हार है ?जी वो तो नहीं है नंदिनी हड़बड़ी में बोली। फिर बिना देखे, कैसे अंदाजे से हम डिजाइन बना सकते हैं ?पता नहीं कब ले गयीं थीं ?कितने दिनों की बात है ?उस व्यक्ति ने लापरवाही से कहा। नंदिनी ने कहा -आप उन्हें तो बुलाइये ,जिन्होंने वो हार बनाया ,वो पहचान जायेंगे। वो व्यक्ति सोचने का प्रयत्न करने लगा, फिर सोचा -नये नमूने तो ,प्रतीक भैया ही तैयार करते हैं ,शायद उन्होंने ही बनाया हो। अभी वो ये बात कहने ही वाला था कि तभी प्रतीक के पिता ने दुकान में प्रवेश किया ,उनके आते ही नंदिनी को हिचकिचाहट सी हुयी और वो दुकान से बाहर आ गयी। वे बोले -क्या बात थी ?जी एक लड़की हार के नमूने के लिए पूछने आई थी कि हार बनवाना है किन्तु किस तरह का ,पूछने पर बता नहीं पाई ,शायद वो प्रतीक भैया की बात कर रही हो। प्रतीक का नाम सुनते ही उसके पिता सतर्क हो गए ,सोचने लगे ,हो न हो ,ये लड़की कहीं वो ही तो नहीं ,सोचकर उन्होंने दीवार में लगे ,कांच से बाहर देखने का प्रयत्न  किया किन्तु बाहर कोई नहीं था। अब तो नंदिनी को विश्वास हो चला था ,हो न हो प्रतीक यहीं है और मुझसे मिलना नहीं चाहता। क्यों वो ऐसा क्यों कर रहा है ?मैं उससे अपने प्रश्नों के उत्तर लेकर रहूंगी। प्रतीक प्रतिदिन की तरह ,आज भी नंदिनी के आने से पहले ही निकल गया और सड़क पर टहलता हुआ एक गली की तरफ मुडा  ही था कि तभी किसी ने कसकर उसका हाथ पकड़ लिया और उसे खेंचते हुए एक छोटी सुनसान गली में ले गया। वहां उसने अपना ढका मुँह खोला -तो वो देखता ही रह गया और चौंककर बोला -तुम ?

                नंदिनी ने आव देखा ,न ताव और प्रतीक के थप्पड़ लगाने लगी ,वो बोली -तुम मुझसे क्यों छिपते फिर रहे हो ?क्या मेरे प्रति प्रेम समाप्त हो गया ?जो अपने प्रेम की कसमें खा रहे थे ,क्या वो सब झूठी थीं। मैं पागलों की तरह दस दिनों  से तुम्हारा इंतजार कर रही हूँ ,न जाने कितने बुरे -बुरे ख्याल ,मेरे मन में घुमड़ रहे थे ?कहीं तुम्हारे साथ कोई दुर्घटना तो  नहीं हो गयी ,कहकर वो तेज -तेज़ स्वर में रोने लगी और उसे और  पीटने लगी।मैं इतने दिनों से तुम्हारे लिए परेशान हो रही थी, फिर सोचा -कहीं तुम्हें किसी और से तो प्यार नहीं हो गया और मुझे धोखा दे रहे हो ,फिर तेज स्वर में बोली -मेरे प्रश्नो का जबाब दो ,तुमने मेरे साथ ऐसा क्यों किया ? प्रतीक ने उसे चुप कराते हुए सीने से लगा लिया और उसे समझाने लगा ,चुप हो जाओ !किसी ने देख लिया तो लोग क्या समझेंगे ?वो रोते हुए बोली -तुम्हें अब भी लोगों की चिंता है ,मेरी नहीं। प्रतीक उसे शांत करने का प्रयत्न करता रहा। फिर बोला -जब तुम शांत हो जाओगी तभी तो बताऊंगा। जब वो थोड़ा शांत हो गयी तो उसने अपने मम्मी -पापा के बीच उनके रिश्ते को लेकर  घर में  जो बवाल मचा ,उसे सारी बातें विस्तार से बता दीं।


सारी सच्चाई सुनकर नंदिनी ने प्रतीक को क्या जबाब दिया ?क्या दोनों ने अपना रिश्ता वहीं समाप्त कर दिया या आगे भी आपस में मिलते रहे या उसका कोई दूसरा हल निकाला क्या उनका विवाह हुआ ?इस प्रेम कथा का क्या अंत हुआ ?पढ़िए भाग ४ धोखा।  



















laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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