Dhokha [part 10]

अभी तक आपने पढ़ा -नंदिनी अपनी नानी के यहां रहने चली जाती है ,नानी उसे जीवन की ऊँच -नीच समझाती है ,नंदिनी पर दो बार हमला होता है ,शायद कोई है ,जो नहीं चाहता कि नंदिनी प्रतीक के बच्चे को जन्म दे। एक दिन रोहन ,जो प्रतीक का बड़ा भाई है ,उससे मिलने आता है और नंदिनी से उसके बेटे नितिन को मांगता है ,सुनकर नंदिनी परेशान हो जाती है और कहती है -इसके बिना मेरा कौन है ?उसे रोहन पर शक होता है ,कहीं मेरे साथ हुए हादसों का जिम्मेदार रोहन ही  तो नहीं। अब आगे -
                  नंदिनी  कहती है ,भइया अब इसके सिवा मेरा कौन है ?रोहन कहता है -क्या तुम नहीं चाहतीं ?कि इस बच्चे को घर -परिवार मिले, अच्छे अंग्रेजी स्कूल में इसकी शिक्षा होगी ,इसके सब अपने होंगे। तुम किस से क्या -क्या कहोगी ?जब ये अपने पिता का नाम पूछेगा ,तुम इसकी परवरिश में व्यस्त रहोगी या इसके लिए साधन जुटाने में व्यस्त रहोगी। तुम अकेले क्या -क्या करोगी ?वहां इसकी देखभाल अच्छे से होगी। चाहती  तो ,नंदिनी भी यही थी किन्तु वो कैसे ,अपने बच्चे को किसी  को भी सौंप दे ?तब उसने कहा -भइया! ये तो मैं नहीं जानती कि कौन है ?किन्तु कोई है जो नहीं चाहता था कि नितिन का जन्म  हो। क्या मतलब ?रोहन ने चौंककर पूछा -यहां तो तुम्हें कोई जानता भी नहीं होगा। तब नंदिनी ने अपने साथ हुए हादसों के विषय में रोहन को बताया। तब रोहन बोला -तब तो इसकी सुरक्षा अति आवश्यक है ,कौन है ?जो इस बच्चे को नहीं चाहता।पैदा होने से पहले ही ,दुश्मन पैदा हो गया।  अब तक नानी बैठी उनकी बातें सुन रही थीं ,बोलीं -जो कोई भी होगा ,वो इस पर भी, कभी भी प्रहार कर सकता है ,शायद किसी इंतजार में हो। तुम इस बच्चे की सुरक्षा चाहती हो तो इसे ले जाने दो। अभी तुम स्वयं ही बच्ची हो ,अपने -आपको संभालो।

अपनी शिक्षा पूर्ण करो ,ये तो अच्छा है कि ये लोग इसकी जिम्मेदारी लेने के लिए तैयार हैं वरना हर कोई ऐसा नहीं करता। नानी, आप कुछ नहीं समझतीं ,वहां ले जाकर ,मेरे बच्चे को कुछ कर दिया या हो गया तो इसका ज़िम्मेदार कौन होगा ?रोहन बोला -क्या तुम्हें मुझ पर यकीन नहीं ?नहीं ,नंदिनी झट से बोली- मेरा प्रतीक भी तो उसी घर में रहता था ,क्या तुम लोग उसे बचा पाए? कहकर नंदिनी रोने लगी। 
                रोहन निराशा से बोला -प्रयत्न तो बहुत किया किन्तु सफल नहीं हो पाए। तुम इसे मेरे साथ भेज दोगी तो उस घर में फिर से खुशियां आ जाएँगी।' और मेरा जीवन सूना हो जायेगा 'नंदिनी बोली। नानी ने कहा -ये बच्चा तो तुम्हारा ही रहेगा ,तुम कभी भी उससे मिल सकती हो। रोहन ने नानी की बात का समर्थन किया। नंदिनी चाह रही थी कि रोहन उठकर चला जाये किन्तु वो तो जाने का नाम ही नहीं ले रहा था। निराश हो ,नंदिनी ने उस बच्चे को उसके साथ जाने दिया। दो -तीन दिन तक तो नंदिनी रोती  कलपती रही तीसरे दिन पता नहीं कहां चली गयी ?नानी के पास एक चिट्ठी छोड़कर गयी -आदरणीय नानीजी ,मेरे तो जीने का सहारा ही नितिन था और आपके यहां रहने का उद्देश्य भी वो ही था ,जब वो ही नहीं रहा तो मैं यहाँ रहकर क्या करूंगी ?कहाँ  जाऊँगी ?पता नहीं। नंदिनी नानी के घर से निकलकर बड़ी देर तक पास के बगीचे में बैठी रही ,तभी दीपक उधर से निकला नंदिनी को इस तरह बैठे देखकर उसके पास गया और बोला -सब ठीक है !नंदिनी ने एक पल उसकी तरफ देखा और उसकी आँखों में आँसू  आ गए ,बोली -मेरे बेटे को उसके चाचा ले गए। तब आप क्या कर रहीं हैं ?आपको भी जाना चाहिए दीपक ने उसका उत्साह बढ़ाया। नंदिनी मन ही मन सोचने लगी ,उस घर में ,मेरे लिए न ही पहले जगह थी ,न ही अब। किन्तु उसे एक रास्ता अवश्य मिल गया ,नितिन के होते हुए वो अपने घर नहीं जा सकती थी अब तो नितिन मेरे साथ नहीं है ,तब मैं अपने घर तो जा ही सकती हूँ और अपने बेटे को भी देख सकती हूँ। 
                 नंदिनी को अचानक घर में देख ,अस्थाना जी चौंक गए ,उसे अपनी मम्मी दिखीं ,उन्हें देखकर वो उनसे गले लिपटकर रोने लगी और उसने  सारी  बातें उन्हें बता दीं। उसकी बातें सुनकर दोनों को जैसे मन ही मन ख़ुशी हुई हो किन्तु प्रत्यक्ष में दोनों शांत रहे। उसकी मम्मी ने अपनी मम्मी को उसके यहां आने की सूचना अवश्य दे दी। नितिन को घर में आये ,अभी एक सप्ताह ही हुआ और उसकी देखभाल के लिए ,एक 
महिला आ गयी। एक दिन नंदिनी को पता चला -रोहन ने उस बच्चे को गोद ले लिया है क्योंकि उसके विवाह को कई बरस बीत  गए किन्तु उनके आंगन में कोई फूल नहीं  खिला।वो तो भला हो, डॉक्टर दीक्षित का, उसने थोड़े से  धन के लालच में, नंदिनी के गर्भवती होने और उसके बेटे के होने की जानकारी दी और ''हींग लगे न फिटकरी  ,रंग चौखा। ''घर का ख़ून ,अपने प्रतीक का अंश अपने घर में।  अब कल्पेशजी और उनकी पत्नी भी प्रसन्न थे कि अपने ही घर का अंश  है ,प्रतीक की निशानी। उन्हें किसी को कोई जबाब भी देना नहीं पड़ा। अब नंदिनी को सारी बात समझ आयी और उसे दुःख भी हुआ कि रोहन ने उस बच्चे के लिए उससे चालबाज़ी की। उसने अपनी मम्मी से पूछा कि वो डॉक्टर दीक्षित कहाँ हैं ?मैं उसे नहीं छोडूंगी,

उसने मेरा बच्चा मुझसे छिनवा दिया। तब अस्थाना जी ने बताया -उनसे मैंने ही कहा था ,दीक्षित  को पता चल गया था कि प्रतीक उसका बाप है ,वो हमें परेशान कर रहा था। एक दिन उसने बताया कि उनके मंझले बेटे के कोई बच्चा नहीं हो रहा ,वो लोग परेशान हैं। तब मैंने उससे कहा -कि नंदिनी के बेटे को उस घर में स्थान दिलवा दो ,उस घर का बच्चा उसी घर में पलेगा ,इसमें क्या बुरा है ?नंदिनी सारी बातें सुनकर बोली -आप मेरे माता -पिता हैं या दुश्मन ,मेरा बच्चा मुझसे दूर करवा दिया। पता नहीं ,कैसे रह रहा होगा ?तब उसकी मम्मी ने डाँटा -तुम बहुत गलतियां कर चुकी हो ,हम ठीक करने का प्रयत्न कर रहे हैं। जिनका बच्चा था ,उनके घर सही -सलामत है ,उसकी परवरिश अच्छे से होगी। तुम्हारी नज़रों के सामने ही रहेगा ,अपने बच्चे की भलाई चाहती हो तो उसे वहीं रहने दो। 
              नंदिनी सारा दिन रोती  रही ,मम्मी ने आकर उसे समझाया ,तेरा बेटा ,तेरी आँखों के सामने रहेगा। उसे लेकर किस -किसको जबाब देती रहती ?वो अब अपने परिवार में सुरक्षित है ,क्या तू उसकी इस तरह देखभाल कर पायेगी ?अब तुझे मौका मिला है ,अपनी आगे की ज़िंदगी संवारने का ,अपनी शिक्षा पूर्ण करके जो भी करना है करो। नंदिनी को बात सही लगी और वो भी नौकरी के साथ -साथ ,अपनी शिक्षा पूर्ण करने लगी।अपने बेटे नितिन को भी देख लेती  और उसके साथ खेलती भी क्योंकि शाम को चम्पा उसे घुमाने बगीचे में लाती।एक दिन चम्पा नहीं आई तो नंदिनी को चिंता सताने लगी वो प्रतिदिन उसके इंतजार में आती ,एक दिन उसे चम्पा दिख ही गयी। नंदिनी ने उससे पूछा -अब नितिन को घुमाने नहीं लाती तब वो बोली -एक दिन बाबा सीढ़ियों से लुढ़क गये इसीलिए उन्हें चोट आई है। नंदिनी घबरा गयी ,बोली -कैसे गिरा ?क्या तुम उसका ख़्याल नहीं रखतीं ?इसीलिए मैंने तुम्हें उस बच्चे की देखभाल के लिए भेजा था। वो बोली -मैं तो पूरा ध्यान रखती हूँ किन्तु पता नहीं ,ऐसा लगा ,जैसे उन्हें किसी ने जान बूझकर गिराया हो। तब तो उसकी जान को खतरा है ,मैंने पहले ही रोहन से कहा था कि कुछ न कुछ गड़बड़ अवश्य है ,अब केेसा है वो ?चम्पा बोली -अब तो स्वस्थ है ,मैं पूरा ध्यान रखूंगी। नंदिनी कुछ सोचते हुए ,घर आ गयी और उसने कुछ किताबें ढूँढीं। और कुछ जानकारी भी लिखी। फिर वो डॉक्टर के पास गयी और बोली -डॉक्टर साहब !क्या कोई ज़हर ऐसा भी है जो ज्यादा घातक नहीं होता और उसमें कुछ और कैमिकल मिला दिए जाएँ तो व्यक्ति सेकेंडों में मर जाता है। डाक्टर ने उसे बताया कि सायनाइड ऐसा ज़हर है जिसे कम मात्रा में लिया जाये तो  व्यक्ति बेहोश ,चक्कर  आना इत्यादि लक्षण होते हैं किन्तु अधिक मात्रा में लिया जाये तो आदमी का दम घुटने लगता है और सेकेंडों में मर जाता है किन्तु ये सब तुम क्यों जानना चाहती हो ?डॉक्टर ने संदिग्ध नजरों से उसे देखा। डॉक्टर ,मैं ज़हर नहीं खा रही ,  जानकारी लेना चाहती थी। अब एक बात और बताइये ,यदि मैं आपको कुछ दिखाऊं तो क्या आप उसकी जानकारी मेरे लिए ला देंगे ?

                 डॉक्टर ने पूछा -यदि तुम मुझको ठीक -ठीक जानकारी दोगी तो मैं भी तुम्हारी मदद करने के लिए तैयार हूँ। डॉक्टर साहब !हर चीज पैसे के लिए नहीं की जाती ,कुछ दूसरों की भलाई के लिए भी करके देखो, सुकून मिलेगा। आपको तो पता ही है ,नितिन मेरा बेटा है किन्तु जब वो था तब भी मुझे धमकाया गया कि इसे गिरा दो और अब एक सप्ताह पहले किसी ने उसे गिरा दिया ,जहां तक मैं  समझी हूँ कोई ,नहीं चाहता कि वो रहे। और मुझे ये भी लगता है कि प्रतीक को किसी ने मारने का प्रयत्न किया ,यदि ऐसा है ,तो वो आत्महत्या नहीं हत्या है जिसे आत्महत्या में बदल दिया गया या समझा गया। डॉक्टर के दिमाग के घोड़े दौड़ने लगे ,बोला -वो कौन हो सकता है ?किसकी उस बच्चे से दुश्मनी हो सकती है ?वो ही तो, मैं भी जानना चाहती हूँ नंदिनी बोली। उसके लिए मुझे आपकी सहायता की आवश्यकता है किन्तु मेरे पास ,आपकी मदद के बदले कोई पैसा नहीं ,यदि आप बिन पैसे मेरी सहायता कर सकते हैं ,तो शायद मैं इस रहस्य की गुत्थी को सुलझा सकूं। डॉक्टर सोचने लगा ,मैं इसकी मदद क्यों करूं ?अपना समय क्यों बर्बाद करूं ?प्रत्यक्ष बोला -क्या मदद  करनी है ?मेरे पास भी वो ज़हर है जिसे प्रतीक ने खाया , डॉक्टर चौंक गया। बोला -ये तुम क्या कह रही हो ?नंदिनी बोली -हाँ ,डॉक्टर साहब ,हम दोनों ही ज़हर  खाने वाले थे किन्तु मुझे अपने गर्भवती होने का एहसास हुआ और वो ज़हर उस दिन मैंने नहीं खाया और मैं आपके सामने जिन्दा खड़ी हूँ। उसकी बातें सुनकर डॉक्टर हतप्रभ रह गया।       

 क्या डॉक्टर दीक्षित ने नंदिनी की सहायता की ?क्या नंदिनी प्रतीक की मौत का रहस्य सुलझा सकी। प्रतीक की मौत हत्या थी या आत्महत्या अथवा ये नंदिनी का वहम था। अब अपने बच्चे के लिए नंदिनी ने क्या -क्या कदम उठाये ?जानने के लिए पढ़िए - ''धोखा ''भाग ११ 














laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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