Sakhi

मैं कविता ,
कवि की कल्पना  में। ,
समाई ,अविरल ,स्वतंत्र ,
स्वर लहरी ,संग ,
ह्रदय से होती हुई ,
आई अठखेलियों संग ,
चुलबुली सी ,कभी भावनाओं 
से निकली ,प्रकाश की मद्धिम ,
रौशनी में नहाई ,दूधिया लहर सी। 
मैं ग़ज़ल ,
शायर की शायरी। 

उसकी तमन्नाओं की ,
ख़्वाहिशों की मंजिल सी ,
मुझे लफ़्जों में पिरो ,
पहनाया ,अरमानों का झीना पर्दा। 
न मुक्तक न क़ाफिया ,
लफ़्जों में बसी ,उसकी बनाई ,
ख़ूबसूरत इबारत हूँ। 
न अलंकार ,न छंद ,
मात्राओं में बंधी ,कविता नहीं ,
मैं स्वतंत्र ,उन्मुक्त ,
अठखेलियां करती कविता हूँ।
मैं तो नाज़ -नख़रों में पली ,
लफ़्जों की चाशनी में ,
डुबोई ग़ज़ल हूँ। 
लफ़्जों से बुना ,मोेहब्बत का ,
लबादा ओढ़े ,शायर की जान हूँ। 
उसके लफ़्जों का शान हूँ। 
दोनों ही दिल से निकली ,
इबादत हैं ,मिलकर चलो ,
 दोनों सखी बन जाते हैं। 
शायर हो या कवि ,
प्रेम -मुहब्बत की इबारत बनाते हैं। 
दिल से निकली ,माशूका ,
न सही ,उसका ख़्वाब तो हैं।   

 
laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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