Jhulti maut

 बहुत दिनों पश्चात घर में ख़ुशी का वातावरण बन गया है ,क्योंकि आज हमारे घर में दो वर्षों पश्चात ,मन की इच्छानुसार कार्य हुआ है और प्रसन्नता के कारण आज किसी के भी पैर जमीं पर नहीं पड़ रहे हैं। कारण है ,हमारी नई गाड़ी। पिछले दो वर्ष पहले मन में इच्छा जाग्रत हुई कि घर में गाड़ी हो ,ये इच्छा मैंने और बच्चों ने घर के मालिक या यूँ कहें ,बच्चों के पिता से ज़ाहिर की। वो बोले -ये भी क्या बात हुई ?हम किराये के मकान में गाड़ी लेकर रख लें। हमारा मकान तो दूसरे शहर में था किन्तु वीरेंद्र के काम के सिलसिले में हम दूसरे शहर में किराये पर रहने लगे। कभी -कभी इच्छा होती कि पूरा परिवार एक साथ अपनी गाड़ी में बैठकर घूमने जाएँ और जब यही इच्छा बढ़ गयी तो गाड़ी की माँग की। मध्यवर्गीय परिवार की सोचते और कहते ही इच्छाएँ पूर्ण नहीं होतीं ,एक इच्छा के बदले दूसरी इच्छा को दबाना पड़ता है ,तब जाकर दो वर्ष पश्चात आज हमारी गाड़ी आ ही गयी। देर से ही सही किन्तु इच्छा तो पूर्ण हुई। अगले ही दिन छुट्टी में हमने बाहर घूमने का कार्यक्रम बना लिया। सुबह जल्दी उठकर हम नाश्ता कर तैयार हो गए ,कुछ खाने -पीने का सामान भी साथ ले लिया। 

                प्रसन्नता के कारण  मन से बोल फूट पड़े ''-सारे के सारे ,गा मा को लेकर गाते चलें। ''हमारी प्रसन्नता तो जैसे आसमान छू रही थी। हमारी गाड़ी काली नागिन सी सड़क पर लहराती चल रही थी। सड़क के दोनों ओर हरे -भरे पेड़ , हम प्रकृति का नज़ारा लेते हुए  ,अलसाई सुबह की ठंडक का मज़ा ले रहे थे, इतनी भीड़ भी नहीं थी। हम मस्ती में मस्त होकर दीवानों की तरह उस गाड़ी की तेज़ गति के साथ चले जा रहे थे। तभी एकाएक गाड़ी को झटका लगा और हम इससे पहले की कुछ समझ पाते हमारी गाड़ी तेज आवाज के साथ लुढ़कती चली गयी। बच्चे रो रहे थे ,पता नहीं क्या हो रहा था ?मेरी आँखों के सामने ''मौत झूलती ''नज़र आ रही थी और जब गाड़ी रुकी ,मैं साहस करके बाहर आ तो गयी किन्तु वहीं गिर पड़ी। जब आँख खुली तो किसी हस्पताल में थी। मैंने उठने का प्रयत्न किया किन्तु असफल रही ,मैंने बोलने का प्रयत्न किया तो बोल नहीं सकी ,हाथ उठाने का प्रयत्न किया तो एक हाथ तो उठा ही नहीं दूसरे में तेज दर्द था। मैं इसी तरह अपने शरीर का निरीक्षण कर ही रही थी तभी एक नर्स ने प्रवेश किया और बोली -अरे !आप होश में आ गयीं ,अब आप कैसा महसूस कर रहीं हैं ?मैंने बहुत जोर लगाकर प्रश्न किया- मे .... रा परिवा..... र ? वो बोली -वो लोग भी ठीक हैं। मैंने  अपने मुँह में ही जीभ फिराई ,तो मालूम हुआ ,आगे के दो दाँत नहीं रहे। समय का पता नहीं चल पा  रहा था और अपने को बहुत ही कमजोर महसूस कर रही थी। नर्स ने सिरिंज लगाई और चली गयी ,उसके जाते ही मुझे भी नींद ने अपने आगोश में ले लिया। 
                अगले दिन जब आँखें खुली तो थोड़ा बेहतर महसूस कर रही थी। मैं उठ बैठी किन्तु हाथ नहीं उठ रहा था। बाद में डॉक्टर ने बताया -कि हाथ की हड्डी टूट चुकी है ,मुँह की सूजन भी थोड़ी कम हुई और मैं अपने पति और बच्चों से मिलने को आतुर थी। नर्स के बताने पर मैं बराबर वाले कमरे की ओर मुड़ी उन्हें देख ,मेरी आँखों में आँसू आ गए। पति की टाँग में प्लास्टर बंधा था और बेटे के हाथ -पैर दोनों में। बेटी मुझे ठीक लगी , ज्यादा चोट तो नहीं आयी ,मैंने पूछा ?उसके घुटने में दर्द था माथे पर थोड़ी चोट थी ,नर्स पट्टी बांधकर जा चुकी थी। उसने बताया था कि उसी जगह के कुछ लोग हमें लेकर आये थे। मैंने अपने भाई को फ़ोन करके बुलाया और वो हम सबको वहां से ले गया। गाड़ी की हालत देखकर लग रहा था ,हम बच गए ,ये ही बड़ी बात है। काम करने के लिए हमारी रिश्तेदार ही आ गयीं। लगभग तीन माह पश्चात हम ठीक हो पाए और आर्थिक दृष्टि से सम्भलने में दो बरस लगे ।  इस बात को लगभग छह बरस बीत गए किन्तु जब भी याद आती है ''सामने वो'' झूलती मौत ''आज भी शरीर काँप उठता है जिसे मैं जीवन भर कभी भुला नहीं पाऊँगी। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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