Prem ke pag

प्रेम शब्द में ही' प्रेम' छिपा है ,ये बहुत ही आनंदमयी अनुभूति है , ये आनंद ,ह्रदय और मन की अनुभूति है। जब प्रेम का एहसास होता है ,तब हर चीज सुंदर और सुखद नज़र आती है। इस प्रेम से आज तक कोई भी अछूता नहीं रहा ,देर -सबेर किसी न किसी को प्रेमानुभूति हो ही जाती है लेकिन प्रेम की उस गहराई को स्पर्श नहीं कर पाते जो कभी राधा ने कृष्ण से किया था। जो प्रेम का एहसास आज  वो अनुभव करते हैं वो महज़ एक आकर्षण है किसी -किसी का तो डांट  -फटकार से ही प्रेम का ''भूत'' उतर  जाता है। प्रेम के कई कारण हो सकते हैं ,जैसे -किसी की सुंदरता से प्रेम हो जाता है ,किसी को प्रेमपूर्ण व्यवहार भा जाता है

,किसी -किसी का प्रेम तो नोंक -झोंक से आरम्भ होता है और मधुरता का रूप ले लेता है। सभी का प्रेम एक जैसा नहीं होता ,प्रेम शांत ,भावपूर्ण व्यवहार है ,जिसमें कई बार व्यक्ति का व्यवहार भी बदल जाता है ,बुराई से अच्छाई की ओर अग्रसर होने लगता है ,कभी -कभी  परिस्थितिवश अच्छाई से बुराई की तरफ़ भी क़दम बहक जाते हैं किन्तु सामाजिक दृष्टि से वो प्रेम ही श्रेष्ठ माना  जाता है जिसमें व्यक्ति बुराई से अच्छाई की ओर अग्रसर होता है। प्रेम द्वारा उस व्यक्ति की सोच सकारात्मक होने लगती है। प्रेम कोई बलपूर्वक करने की वस्तु नहीं वरन ये तो स्वतः ही हो जाता है ,ये एक सुखद अनुभूति है जिसका एहसास धीरे -धीरे होता है या कभी -कभी शीघ्र ही हो जाता है। कुछ लोग इसे समझ नहीं पाते किन्तु एक अलग ही अनुभूति का उन्हें एहसास होता है कई बार प्रेम एक तरफ़ा ही रह जाता है। 
                  प्रेम में प्रेमी अपने प्रेम के लिए त्याग और अपने प्रेमी की प्रसन्नता का ही ध्यान रखता है ,उसके प्रेम में स्वार्थ का कोई स्थान नहीं होता। कलियुग में तो प्रेम की परिभाषा ही बदली लगती है ,आज का प्रेम स्वार्थ से फ़लीभूत होता है और जब स्वार्थ सिद्ध हो जाता है तो प्रेम भी समाप्त हो जाता है। इस तरह का प्रेम ,प्रेम नहीं सौदेबाज़ी है । आजकल का प्रेम गिरगिट की तरह रंग बदलता हुआ रंगीन हो गया है। प्रेम किसी एक से नहीं कइयों से हो जाता है ,''तू नहीं तो और सही ,और नहीं तो और सही। ''की तर्ज़ पर प्रेम का ढ़कोसला करते हैं। प्रेम करने वाले आज के समय में न ही राधा रही न ही श्याम। आजकल तो प्रेम का दम भरने वाले का दो- तीन बरस पश्चात ही प्रेम का भूत उतर  जाता है। आजकल तो ''लड़के दोस्त ''अथवा लड़की दोस्त बनाने का चलन है जिनका कोई दोस्त नहीं होता ,उन्हें तो लगता है -''हम पिछड़ गए। ''किन्तु ये दोस्ती भी कब तक चलती है ?इस रिश्ते की उम्र भी ,स्वार्थ पूर्ति तक ही टिकी है वरना नये दोस्त की तलाश आरम्भ हो जाती है। ऐसा नहीं, कि पुराने समय में विवाह से पूर्व  कोई प्रेम नहीं करता था किन्तु उस प्रेम में पवित्रता थी ,युवावस्था के कारण यदि कोई त्रुटि भी हो जाती थी तो उसे स्वीकार कर जीवनभर निभाते थे वरना समाज के कोप का भाजन बनना पड़ता था। गाँवों में तो आज भी मर्यादित व्यवहार करना पड़ता है उस मर्यादा के चलते कोई अपनी सीमा नहीं लाँघ सकता। पहले समय में विवाह के पश्चात ही प्रेम होता था ,न भी हुआ, तो भी उस रिश्ते को सम्मानपूर्वक जीवनभर निभाते थे ,अपने से बड़ो के निर्णय का मान रखते थे। प्रेम मन की गहराइयों से होता है जैसा राधा ने किया। सामाजिक दृष्टि से देखा जाये तो राधा का प्रेम उनके विवाह के पश्चात सही नहीं था ,उनका कृष्ण से मिलना ,उनके ससुर को पसंद नहीं आया किन्तु कान्हा तो उनके बचपन का भी दोस्त था इसीलिए उनके ससुर ने राधा से कहा -यदि उसे कान्हा से मिलना भी है तो'' सात पगों ''की दूरी रखे। राधा ने इसका वचन भी दिया किन्तु कभी -कभी राधा भूल भी जाती तो उनका प्रेमी यानि कृष्ण उसे याद दिलाते। प्रेम में राधा के दिए वचन को अपना वचन समझ, कृष्ण ने भी उसे निभाने में मदद की। राधा को जब अपने गहन प्रेम [आत्मिक प्रेम ]का एहसास होता है ,तब वो अपने दिए वचन को तोड़कर एक -एक कदम अपने कृष्ण की ओर बढ़ाती है ,जैसे -जैसे वो क़दम बढ़ाती है उनका जो भी कारण बताती है ,उसकी तुलना मैंने आज के प्रेम से करने का प्रयास किया है -
प्रथम पग -प्रेम एक जन्म का नहीं वरन जन्मों -जन्मों का रिश्ता है ,हमारे यहां विवाह को भी जन्मों का रिश्ता माना जाता है जो अनन्त तक साथ रहते हैं।आजकल तो प्रेम एक जन्म तो क्या कुछ वर्षों तक ही टिक जाये तो ग़नीमत है ,प्रेम में दो शरीरों का ही नहीं दो आत्माओं का मिलन माना गया है किन्तु अब आत्मा और मन मिले न मिले किन्तु तन के मिलन को ही प्रेम समझ बैठते हैं। प्रेमी सुख हो या दुःख एक -दूसरे का साथ कभी नहीं छोड़ते किन्तु आज सुख और भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति तक ही साथी हैं ,इसके पश्चात जीवन में उनसे अकेला कोई नहीं। 

द्वितीय  पग - यदि प्रेमी कहीं खो जाये अथवा भटक जाये तो उसे सही मार्ग पर लाना भी उसके प्रेमी अथवा प्रेमिका का कर्त्तव्य है। उस प्रेम को जाग्रत कर उसकी सही दिशा दिखानी है किन्तु आजकल किसी को कहाँ इतना समय है ?कि प्रेमी को सही राह दिखा अपना समय व्यर्थ करे। अब तो तुम अपनी राह ,हम अपनी राह और राह में अन्य कोई मिल जाये तो उस प्रेम का स्मरण भी न रहे। अनन्त का किसने देखा ?इसी जन्म का प्रेम बना रहे वही बहुत है। 
तृतीय  पग -अपने प्रेमी को मन से प्रेम करना है ,उसके तन से नहीं। उसकी भावनाएँ अपने प्रेमी के लिए कोमल होनी चाहिए ,उसकी परेशानी में उसके साथ खड़ा रहे किन्तु आज के समय में ये उम्मीद कम ही की जा सकती है कि बुरे समय में वो तुम्हारे साथ खड़ा होगा। जहां हम अपेक्षा रखते हैं वहाँ से शीघ्र ही ना उम्मीद भी हो सकते हैं  और शीघ्र ही दिल टूटने का कारण भी बन सकता है। आज का प्रेमी अथवा प्रेमिका अपना स्वार्थ सिद्ध होते ही उसकी भावनाओं की परवाह किये बगैर कभी भी उसे छोड़कर जा सकता है। 
चतुर्थ पग - यदि प्रेम में प्रेमी राह भटकता है तो उसे छल या बल से सही राह पर लाना ही प्रेमी का उद्देश्य होना चाहिए। उसे सच्चाई और अच्छाई की राह पर खींचकर ले जाना ही उसका उद्देश्य होना चाहिए किन्तु आज का प्रेमी स्वयं तो गड्ढे में गिरता ही है दूसरे को भी ले गिरता है। प्रेमी ही कई बार प्रेम की राह ही बदल लेता है। कुछ माह अथवा कुछ  बरस पश्चात उसे पता चलता है कि जिसे वो प्रेम समझ रहा था वो तो प्रेम ही नहीं मात्र दोस्ती थी। ये भी प्रेम की राह से बचने का एक माध्यम है वरना प्रेम तो जितना भी पुराना होता जायेगा उतना ही गहरा होना चाहिए। आजकल कुछ धारावाहिक भी इसी तर्ज़ पर आ रहे हैं जिनमें प्रेमी ,प्रेम के मार्ग पर चलने से ही इंकार कर देता है तब उस भटके हुए को किस तरह सही मार्ग दिखाया जा सकता है ?आज के भौतिक युग में मनुष्य पर उसकी आवश्यकताएँ इतनी बलवती होती हैं कि स्वयं ही प्रेमी उनके आकर्षण में अपने को उसकी ओर खिंचा महसूस करता है और स्वयं ही गर्त में गिरता चला जाता है। 
पंचम पग - प्रेम में आपस में दो प्रेमी अपने -अपने वास्तविक पहचान के साथ ,एक -दूसरे को स्वीकार करें ,उसे अच्छे और बुरे गुण -अवगुण के साथ स्वीकार करें ,एक -दूसरे से कुछ न छुपाये। प्रेम में पारदर्शिता होनी चाहिए किन्तु आजकल बनावटीपन और दिखावे ने स्थान ले लिया है जिस कारण जब दो प्रेमियों का असली स्वरूप उनके समक्ष आता है तब उसे स्वीकार नहीं कर पाते जिसके परिणामस्वरूप झगड़े और अलगाव की स्थिति बन जाती है और प्रेम कहीं कोने में खड़ा सिसक रहा होता है ,एक -दूसरे के प्रति प्रेम तो क्या सम्मान भी नहीं रह पाता और खोखला प्रेम धाराशाही हो जाता है।
 षष्ट पग - प्रेम का छटा पग है ,किसी कारण प्रेमी अपनी प्रेमिका से दूर चला जाता है तब भी वो उसी तरह प्रेम करती रहेगी। उसके प्रेम में इतनी गहराई रहती है कि दूर हों या पास ,प्रेम पूर्ववत  बना रहता है। दूर हो जाने से प्रेम में कोई बदलाव नहीं आता किन्तु आज तो प्रेमिका दृष्टि से ओझल हुई नहीं कि प्रेम भी ओझल हो जाता है। ये नहीं कि, किसी कारण वश प्रेमी दूर है तो उस दूरी को मिटाने या कम करने का प्रयत्न करें ,ये भी सम्भव न हो तो तुम ही उसके पास जाकर उस दूरी को दूर कर सकते हो। तब भी यदि ये दूरी तय नहीं हो पाती  है तो एक -दूसरे को विश्वास दिला सकते हैं कि जिस भी परिस्थिति के कारण ये अलगाव  या वियोग की स्थिति उतपन्न हुयी है तब भी हमारा प्रेम उसी तरह बना रहेगा। जितना भी गहरा प्रेम होगा ,मिलने की तड़प भी उतनी ही अधिक होगी इसके लिए अत्यधिक धैर्य की आवश्यकता है कि वो अपने प्रेमी की प्रतीक्षा करे। 
सप्त पग - प्रेम का सातवां और आख़िरी पग है कि प्रेमी के लिए ,चाहे कुछ भी करना पड़े ,जहां तक सम्भव हो सके उसके सुख -दुःख में साथ निभाएं। जहां तक सम्भव हो उसके लिए कुछ भी कर गुजर जाओ किन्तु उसमें सही मार्ग और शुद्ध भावना होनी चाहिए। 

            ये हैं ,प्रेम के नजदीक जाने के ''सप्त पग ''हमारे सनातन धर्म में विवाह पश्चात के  ही प्रेम को मान्यता प्राप्त है इसी कारण सात फेरों द्वारा उस प्रेम को मान्यता मिलती है जो कि एक पावन -पवित्र रिश्ते की डोर से बंध जाते हैं और ये रिश्ता जन्मजन्मांतर का माना जाता है। इससे ये साबित होता है कि प्रेम विवाह से पहले हो या उसके पश्चात ,प्रेम सही मार्ग की ओर ले जाता है ,प्रेम में एक -दूसरे का सम्मान होना चाहिए। प्रेम के लिए कुछ भी कर जाओ किन्तु उसका उद्देश्य सही मार्ग की और ले जाना होना चाहिए। प्रेम में नटखट बनें ,प्रेमालाप करें ,सताएं ,हँसी -ठिठौली करें और प्रेम में डूब जाएँ किन्तु किसी का दिल न दुखे। प्रेमी को अपने प्रेम पर विश्वास होना चाहिए। छल -कपट ,धोखे की भावना न हो। प्रेम में इतनी गहराई हो ,उसकी गर्माहट दूर से भी महसूस कर सकें । 


















laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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