वो अक्सर मेरी गली से होती हुई ,मेरी दुकान के सामने से ही निकलती थी। पहले तो मेरा ध्यान ,उस ओर नहीं गया किन्तु उसका प्रतिदिन उधर से गुज़रना ,अधिक दिनों तक नजरअंदाज न कर सका। खाली बैठे, एकाएक उसको जाते देख ,मैं हकबका रह गया ,वो इतनी सुंदर और मासूम लग रही थी। मैं सोच रहा था- कि मेरा ध्यान ,आज तक उस ओर क्यों नहीं गया ?अब तो, अक़्सर मैं उसकी प्रतीक्षा करता ,उसकी हर अदा मुझे अच्छी लगने लगी ,उसके कपड़े पहनने का तरीक़ा, उसकी मदमस्त चाल ,उसकी मुस्कुराहट शायद उसे मेरे इस तरह देखने का एहसास हो गया था और तिरछी नज़रों से उसका ,मुझे देख मुस्कुराना तो जैसे मेरी जान ही ले लेगा। मैं उसकी तरफ खींचता जा रहा था और समझ नहीं आ रहा था कि किस तरह ,उससे अपने मन के भाव प्रकट करूं ?दिन ब दिन मेरी बेचैनी बढ़ती जा रही थी ,उससे मिलने की तड़प ,मेरा बुरा हाल कर रही थी। एक दिन पूरे साहस के साथ मैंने उसे एक पत्र लिखा -
ए परम् सुंदरी ! तुम कौन हो ?जिसने मेरे दिल -दिमाग़ पर ही नहीं ,मेरे सम्पूर्ण अस्तित्व को हिलाकर रख दिया है। मैं सोता हूँ तो तुम्हारी सूरत निग़ाहों में रहती है ,उठता हूँ तो तुम्हारी याद आती है। तुम्हारी प्रतीक्षा में ,मैं घंटों बैठा रहता हूँ ,मैं ज़्यादा तो कुछ नहीं जानता किन्तु मुझे लगता है ,मैं तुमसे प्यार करने लगा हूँ। मेरे इस पत्र को अन्यथा मत लेना ,मैं अपनी प्रतिदिन की जगह पर ही बैठा रहता हूँ ,यदि तुम भी मुझे पसंद करती हो तो इस पत्र का शीघ्र ही उत्तर देना। यदि तुम इंकार भी कर दोगी ,तो मुझे दुःख तो होगा किन्तु बुरा नहीं मानूँगा। ये तुम्हारी अपनी ज़िंदगी है ,ये भी अधिकार तुम्हारा ही होगा। न ही मैंने किसी से कुछ कहा है ,न ही किसी को कुछ बताया है इसीलिए सीधे पत्र द्वारा, तुम्हारी इच्छा जानने का अभिलाषी हूँ , तुम्हारे प्रेम में व्याकुल एक प्रेमी। साथ में पायल भेज रहा हूँ यदि तुम्हें मेरा प्रेम स्वीकार है तो ये पायल पहनकर ,इधर से निकलना ,मैं समझ जाऊँगा।
अब प्रतीक को इंतजार था कि वो कब इधर से जायेगी ?और कैसे उसे इस पत्र को पहुंचाना है ?उसने अनेक उपाय सोचे किन्तु किसी भी तरह समझ नहीं आया, साथ ही घबराहट भी कि कहीं कोई देख न ले। जब वो आई, मुझे अपनी ओर देखते , देखकर मुस्कुराई किन्तु साथ ही ,अपनी दृष्टि बदल ली। शायद उसे भी डर था, कहीं कोई देख न ले। तीन दिनों से, मैं अपनी जेब में पत्र लिए घूम रहा था किन्तु उसे देने का साहस नहीं जुटा पा रहा था। प्रतिदिन अपने को आईने में देखकर उसे पत्र देने के नए -नए उपाय सोचता ,एक दिन दिल हुआ कि इस पत्र को ही फाड़ दूँ। मुझमें इतना भी साहस नहीं कि मैं एक पत्र भी उस तक पहुँचा सकूँ ,क्या ख़ाक प्रेम का दम भर रहा था ?आज पूरे साहस से मैं बैठा रहा किन्तु वो नहीं आयी। पूरे दिन मन में बेचैनी और परेशानी बढ़ती गयी और जब बर्दाश्त नहीं हुआ तो उस ओर निकल दिया, जिधर से वो आती है। आज मुझे अपने आप पर, क्रोध आ रहा है ,मैंने ये भी जानने का प्रयत्न नहीं किया कि वो कहाँ रहती है ?कहाँ से आती है ?कहाँ किस गली या रास्ते में जाऊँ? ताकि उसे एक पल देख सकूँ। सारा दिन इसी तरह व्यर्थ गया। अगले दिन इसी उम्मीद से, कि आज तो वो आयेगी ही ,सोचकर नियत समय पर आकर बैठ गया। वो दूर से आती दिखी, मेरे मन को चैन ,सुकून मिला। मैं अपनी प्रसन्नता रोक नहीं पा रहा था, तभी मेरे पापाजी का ध्यान मेरी तरफ गया ,बोले -किसे देखकर इतना खुश हो रहा है ?मैंने बहाना बनाया, किसी को भी नहीं ,बस ऐसे ही मुझे कोई बात याद आ गयी ,कहकर मैं उठकर बाहर आ गया। मैं जानता हूँ -कि मेरे पिता मुझे सभी बहन -भाइयों से अधिक प्रेम करते हैं। सभी से मेरी प्रशंसा करते हैं ,उनकी प्रशंसा का और ख़ुशी का कारण, मेरी कलाकारी है, जिसमें मैं पूरी तरह पारंगत हूँ। मैं अपनी कल्पनाशक्ति से कैसे भी महीन से महीन डिज़ाइन [नमूने ]बना देता हूँ। सोने या चाँदी का कैसा भी काम हो ?मैं अपने दोनों बड़े भाइयों से बेहतर और नए नमूने तैयार कर देता हूँ इसीलिए भी पापा मुझसे प्रसन्न रहते हैं।
मैं दुकान से बाहर आकर चले जा रहा था ,चले जा रहा था ,मुझे नहीं लगता कि मैं किसी का भी पीछा कर रहा हूँ किन्तु मैं पीछे था ,अपने प्यार के। वो कॉलिज में प्रवेश कर चुकी, तो मैं लौट आया। मैं समझ नहीं पाया, कि मैं ऐसा क्यों कर रहा हूँ ?जब वो लौटकर आयी ,तो मैं फिर से उसके पीछे था किन्तु अब मैं जानता था, कि मुझे क्या करना है ?मैं गलियों से होता हुआ ,उसके पीछे चला जा रहा था ,जब देखा कि वो अपने घर की तरफ जा रही है ,तब मैं समझ गया कि ये इसका घर है ,क्योंकि उसे एक दिन भी न देख पाने के कारण, जो मुझ पर बीती, मैं ही जानता हूँ। तभी मैंने पीछे से पुकारा -सुनो !शायद ये तुम्हारा कुछ सामान है ,उसने पलटकर देखा और बोली -क्या है ?मेरा दिल तेजी से धड़कने लगा किन्तु साहस करके मैंने अपना पत्र उसके हाथ में रख दिया ,इससे पहले कि वो कुछ समझ पाती ,मैं उसकी आँखों से ओझल हो चुका था। मेरा दिल इतनी तेज़ी से धड़क रहा था ,लगता था ,जैसे सीने से बाहर आकर गिर जायेगा। मैं बहुत देर तक, अपने को शांत करने का प्रयत्न करता रहा ,जब थोड़ा संयत हुआ तो अपनी दुकान पर आ गया, किन्तु पापा की नज़रें मुझे घूर रही थीं ,शायद अपने बेटे की हरकतों को समझने का प्रयत्न कर रहे थे या समझ गए ,बोले -तुम एक ज़िम्मेदार लड़के हो ,इस तरह कहीं भी भटकना तुम्हें शोभा नहीं देता। जी ,कहकर मैं अपने कार्य में व्यस्त होने का प्रयत्न करने लगा।
दो दिनों तक मैं ,उसकी प्रतीक्षा करता रहा। उसके साथ ही, अपने पत्र के उत्तर का भी । न ही वो आयी ,न ही उसका कोई जबाब। मैं दीवानों की तरह उसकी गलियों के चक्कर लगा कर आ जाता किन्तु वो कहीं नहीं दिखी। अब तक मैं निराशा और अवसाद से परिपूर्ण होकर घर आकर लेट गया। लगता था जैसे शरीर में ताकत ही नहीं रही। मम्मी ने अपने बेटे की ऐसी हालत देख बोलीं -क्या तुम्हारी तबियत ठीक है ?मैंने हाँ में गर्दन हिलायी किन्तु उन्हें विश्वास नहीं हुआ बोलीं -इधर आओ ,मैं उनके पास गया ,उन्होंने मेरा माथा छूकर देखा ,बोलीं -बुखार तो नहीं है ,फिर ऐसे बुझे -बुझे से क्यों लग रहे हो ?मैंने तो पहले ही कहा था -मैं ठीक हूँ ,किन्तु आपने माना ही नहीं ,थोड़ा आराम करूंगा तो थकावट दूर हो जाएगी। पक्का ,मम्मी ने अपने को विश्वास दिलाते हुए ,मुझसे ही प्रश्न किया। मैं अपने कमरे में आकर सोचने लगा -आखिर उसने कोई जबाब क्यों नहीं दिया ?मना ही कर देती ,इस तरह अधर में लटकाने की क्या आवश्यकता थी ?मैंने तो पहले ही लिख दिया था कि मुझे बुरा नहीं लगेगा। कहीं उसने मेरा पत्र किसी को दे तो नहीं दिया या किसी ने उससे छीन लिया हो। यदि किसी को पता चल गया तो सोचकर वो सिहर उठा। नहीं ऐसा तो नहीं करेगी वो ,मैंने उसकी आँखों में अपने लिए कुछ तो देखा है। आश्वस्त होकर वो बिस्तर पर लेट गया ,अभी लेटा ही था ,तभी उसे लगा ,''मैं यहाँ आकर लेट गया और वो वहां आयेगी तो मुझे कैसे पता चलेगा ?यही सोचकर वो फुर्ती से उठा और बाहर की तरफ निकल गया। पीछे से उसे अपनी मम्मी के पुकारने की आवाज आ रही थी किन्तु वो रुका नहीं।
तीसरे दिन शाम को वो किन्हीं दो महिलाओं के साथ आती दिखी ,मैं समझ नहीं पा रहा था कि मैं क्या करूँ ?तभी वो मेरी दुकान के अंदर आ गयीं ,उसके साथ जो महिला थी वो बोली -भैया ,हमारी बेटी की शादी है , कुछ अच्छे से गले के सेट दिखाइए। मैं सुनकर सिहर उठा ,जी, कहकर मैंने कई डिजाइनदार गले के हार दिखाने आरम्भ किये ,मैं मन ही मन सोच रहा था - कि कैसे पता लगाया जाये ?किसका विवाह है और चोर नज़रों से उसे भी देख रहा था किन्तु वो मुझे नजरअंदाज कर रही थी। तभी मैं बोला -देखिये आंटीजी इनके गले में कितना प्यारा लगेगा ?कहकर उसकी तरफ उस हार को बढ़ा दिया। वो बोलीं - नहीं, इसका नहीं , मेरी बड़ी बेटी का विवाह है ,सुनकर मैंने एक गहरी साँस ली किन्तु वो मुस्कुराई। तभी उसकी मम्मी बोली -नंदिनी तुम्हें भी जो लेना है ,ले लो। नहीं ,कहकर उसने गर्दन हिलाई और पास पड़ी कुर्सी पर बैठ गयी ,मैं बार -बार उसे देख रहा था ,उनके लिए ठंडा मंगवाया। मैंअपना काम अपने भाई को सौंपकर ,उस काउंटर पर बैठा जहां से उसे आराम से देख सकता था। अब तो मेरे कानों में उसका नाम गूंज रहा था नंदिनी। उसने भी मुझे सामने खड़े देखा तब थोड़ा उसने अपनी सलवार एड़ी से ऊपर की जिसे देख मेरी प्रसन्नता का कोई ठिकाना नहीं था क्योंकि वो मेरी दी पायल पहनकर आयी थी ,शायद उसके घुंघरू निकाल लिए थे ताकि बजे न ,दुनिया की नज़रों से बचे रहें। आज मुझे मेरे पहले प्यार का जबाब मिला था।
क्या प्रतीक का पहला प्यार परवान चढ़ पाया ?क्या प्रतीक और नंदिनी दोनों की ज़िंदगी में प्रेम के फूल खिले ? फिर किसने किसको धोखा दिया ?उनका प्रेम आगे बढ़ा हाँ या नहीं जानने के लिए पढ़िए ''धोखा'' भाग २।