अभी तक आपने पढ़ा ,प्रतीक की एक पारिवारिक सोने -चाँदी के आभूषणों की दुकान है ,वहीं से गुजरती हुई एक लड़की से उसे प्यार हो जाता है जिसका न ही वो नाम जानता है ,न ही उसके रहने का ठिकाना ,बहुत अंतर्द्व्दंद के पश्चात वो उसे अपने जीवन का पहला प्रेम -पत्र लिखता है जिसके पश्चात उसे पहली बार पता चलता है, जिससे वह प्रेम करता है उसका नाम नंदिनी है और उसने उसके प्रेम को स्वीकार कर लिया है। अब इससे आगे --
प्रतीक नंदिनी के पैरों में पायल देखकर बहुत प्रसन्न होता है किन्तु ऐसे समय में ,वो उस स्थान पर खड़ा है ,जहाँ अपनी प्रसन्नता दिखला नहीं सकता ,बस मुस्कुराकर रह जाता है। बाहर भी नहीं जा सकता क्योंकि जिससे वो प्यार करता है , वो तो यहीं है। नंदिनी की मम्मी और उसकी बहन एक गले का हार पसंद कर ले जाती हैं ,चलते समय नंदिनी ने प्रतीक की तरफ देखा और आँखों के इशारे से उसे जतलाया कि एक काग़ज़ की छोटी सी पर्ची ,उसने एक स्थान में छुपा दी थी। वो तो बाहर निकल गयी किन्तु प्रतीक ने बड़ी ही फुर्ती से उस पर्ची को सबकी नजरों से छुपाकर निकाल लिया और बड़ी सफाई के साथ, जेब के हवाले कर दी। उसके अंदर बेचैनी बढ़ रही थी ,उस कागज को पढ़ने की ,किसी बहाने से बाहर आ गया और किसी एकांत स्थान पर चल दिया। नजदीक ही एक बगीचे में कुछ बच्चे खेल रहे थे ,वहीं पास में पड़ी किसी बेंच पर वो बैठ गया ,उसका दिल जोरों से धड़क रहा था ,उसने उसे खोला और पढ़ने लगा -
प्रिय प्रतीक !मैं तुम्हें ज्यादा तो नहीं जानती किंतु जब भी मैं इधर से गुजरी हूँ ,तुम्हें देखते पाया किन्तु मैं तो इससे पहले से ही, तुम्हें पसंद करती थी किन्तु हिम्मत नहीं हुई। करती भी क्या ?मैंने अपने को समाज के डर से भी संभाले रखा ,मेरे पापा तुम्हारे पापा को जानते हैं किन्तु हमारे प्यार को किसी की मंजूरी नहीं मिलेगी क्योंकि हम दोनों की जाति भिन्न -भिन्न हैं किंन्तु जबसे तुमने अपने प्रेम का इज़हार किया है ,तब से मैं अपने आप को रोक नहीं पाई। मैं ही नहीं ,तुम भी मुझे प्रेम करते हो ,जानकर मैंने अपने मन की सभी दुविधाओं को दूर कर दिया, जब तुम मेरे साथ हो ,तो सब ठीक ही होगा।एक बात और ,तुम्हारी दी पायल बहुत ही सुंदर हैं किन्तु मैंने इनके घुंघरू निकाल दिए हैं ताकि घरवालों के प्रश्नों से बच सकूं , मैं कल तुम्हें बारह बजे ,अपने कॉलिज के पास मिलूंगी , तुम्हारी नंदिनी। पत्र पढ़कर उसने उलट -पलटकर देखा ,वो गुलाबी रंग का कागज़ था और उसमें से अच्छी सी महक आ रही थी। ये बातें उसने पत्र पढ़ने के बाद देखीं उसने पत्र को चूमा और अपनी जेब के हवाले किया। अब प्रतीक को एहसास हो गया था कि वो ही नहीं नंदिनी भी उसे प्यार करती है। उसके चेहरे पर अज़ीब सा संतोष और आत्मविश्वास था।
अगले दिन अच्छे से तैयार होकर ,वो उससे मिलने चल दिया। उसकी मम्मी बोलीं -सवारी आज इतना बनठन कर कहाँ जा रही है ?तभी मुस्कुराती हुई ,छोटी भाभी आयी और बोली -भइया तो इस तरह तैयार हो रहे हैं, जैसे किसी लड़की से मिलने जा रहे हों। फिर स्वयं ही प्रश्न किया -क्यों ?मैंने ठीक कहा न ,कहकर हंस दीं। मम्मी बोलीं -बहु , तुम मेरे बेटे की हँसी मत उड़ाओ ,ऐसे ही कहीं दोस्तों में मिलने जा रहा होगा। वो नहीं पड़ने वाला ,किसी लड़की -वड़की के चक्कर में ,यहाँ आस -पास उसके लायक कोई लड़की नहीं। मुझे तो यही लग रहा है ,कहकर भाभी हँसती हुई बाहर आ गयीं। मम्मी पर जैसे भाभी की बातों की बातों का असर हुआ और मेरे नज़दीक आकर बोलीं -प्रतीक ! ऐसा तो कुछ नहीं है न ,वो मेरे मुँह से सुनकर अपने को विश्वास दिला देना चाहती थीं। प्रतीक बोला -नहीं ,मम्मी ऐसी कोई बात नहीं और यदि हुई भी ,तो सबसे पहले आपको पता चलेगी ,अच्छा अब चलता हूँ कहकर बाहर आ गया। उसकी मोटर साईकिल तेजी से सड़क पर दौड़ती जा रही थी। बारह बजने में अभी पांच मिनट बाक़ी थे और वो उसके कॉलिज के बाहर खड़ा होकर बेचैनी से उसकी प्रतीक्षा करने लगा। जब नंदिनी बाहर आई ,उसने बाहर निकलते ही प्रतीक को देख लिया और सबकी नजरों से बचकर उसकी मोटर साईकिल पर जा बैठी। वो दोनों तुरंत वहां से निकल गये। कहीं दूर एकांत में जाकर बैठ गए। आज वो दोनों एक -दूसरे के नजदीक थे किन्तु अब जैसे कहने को कुछ बाक़ी नहीं था। जैसे उनके शब्द मौन हो चुके थे। घर से तो ,ये सोचकर चला था कि उससे ये कहूँगा ,वो कहूँगा किन्तु पता नहीं ,सारी बातें कहाँ गयीं ?प्रतीक ने सोचा -शायद ये ही कुछ कहे ,वो भी बैठी उन पलों को महसूस कर रही थी। प्रतीक ने ही पहल की बोला -कुछ कहोगी नहीं ,क्या कहूँ ?तुम ही कुछ कहो न ,उसने जबाब दिया। तभी एक फेरी वाला उधर से निकला जो नीबूं की शिकंजी बेच रहा था। प्रतीक बोला -क्या शिकंजी पियोगी ?नंदिनी ने हां में गर्दन हिलाई और दोनों ने शिकंजी के साथ -साथ ही बातें आरंभ की।
बातचीत का सिलसिला एक बार आरम्भ हुआ तो फिर बंद होने का नाम ही नहीं ले रहा था। दोनों प्रतिदिन मिलते ,जैसे ये उनका नियम बन गया हो। जिस दिन नहीं मिल पाते उसी दिन उनकी बेचैनी बढ़ जाती। कहते हैं न - ''इश्क़ और मुश्क़ छिपाये नहीं छिपता '' इसी तरह इनका प्रेम भी ज्यादा दिनों तक छुप नहीं पाया। एक दिन नंदिनी का पत्र ,प्रतीक की मम्मी को उसके कपड़ों में मिल गया। ये विषय भी उसके घरवालों के लिए प्रश्न बन गया था, कि ये प्रतिदिन कहाँ और किससे मिलने जाता है ?उसकी मम्मी ने बड़े भाई से इस विषय में चुपचाप खोजबीन करने को कहा। इस ख़ोजबीन का परिणाम ये आया कि एक दिन मम्मी ने सीधे -सीधे उससे प्रश्न किया -ये नंदिनी कौन है ? जिससे मिलने तू रोज उस जगह जाता है। उनका प्रश्न सुनकर वो चौंक गया।मम्मी की बात सुनकर ,प्रतीक अचकचाकर बोला -कौन नंदिनी ?वो ही, जिससे तू रोज़ाना मिलने जाता है ,तेरे भाई ने उसे और तुझे दोनों को मिलते देखा है। क्या तू जानता है ?कि वो कौन है। किस बिरादरी की है ?और तूने अपना वचन भी तोडा -''तूने कहा था ''ऐसी कोई बात हुयी भी तो आपको पहले पता चलेगा कहकर वो रुआंसी हो गयीं। अपनी मम्मी को देखकर ,प्रतीक उनके नजदीक आकर बोला -मम्मी मैं अभी सोच ही रहा था कि आपको बता दूँ किन्तु साहस नहीं हुआ। अपनी मम्मी की गोद में सिर रखकर बोला - अब तो आपको पता चल ही गया ,अब आपने क्या सोचा है ?मंम्मी बोलीं -कौन है वो ?क्या हमारी ही बिरादरी की है ?अरे नहीं !उसके परिवार को आप नहीं, पापा जानते हैं ,हमारी दुकान से पहले उनका मकान है। अब बताएगा भी, या यूँ ही पहेलियाँ बुझाता रहेगा मम्मी झुंझलाकर बोलीं। हाँ -हाँ वो ही तो बता रहा हूँ ,थोड़ा धीरज तो रखो प्रतीक बोला और उसने अपनी मम्मी को जो बताया उनका चेहरा उतर गया और बोलीं -क्या तुझे वो ही लड़की मिली थी और लड़की नहीं थीं ?पता नहीं तेरे पापा क्या कहेंगे ?प्रतीक अपनी ही झोंक में कहता गया -प्रेम क्या ,सोच -समझकर होता है ?बस वो मुझे अच्छी लगी और मैं उसे प्रेम करने लगा। मम्मी को क्रोध मुझपर नहीं उस लड़की पर आया ,जिसने उनके लाड़ले बेटे को प्रेम जाल में फंसाया। शाम को जब प्रतीक के पापा को पता चला ,बहुत क्रोधित हुए ,बोले - क्या तुम्हारे दोनों भाइयों ने विवाह नहीं किया ,हमारे लाड -प्यार का अनुचित लाभ उठाया। लगे हैं ,इश्क़ -मोहब्ब्त फ़रमाने वो भी दूसरी जाति में ,करना ही था तो अपनी ही बिरादरी की किसी लड़की से कर लेता तो हम उससे विवाह भी करने की सोचते।पापा ये चीज भी क्या सोच -समझकर होती हैं ?प्रतीक ने कहना चाहा ,किन्तु पापा ने बीच में ही टोक दिया , अब तुम हमें बताओगे, प्यार -मोहब्बत के बारे में ,उनका क्रोध बढ़ गया और लगभग तेज स्वर में बोले -अब तुम उस लड़की को भूल जाओ ,उससे अब कभी न मिलना। इसी में तुम्हारी और हमारी भलाई है और मैं उस लड़की के बाप से भी बात कर लूंगा।
प्रतीक घबराकर बोला -उसके पापा से आप क्या बात करेंगे ?यही कि अपनी बेटियों को ,इस तरह खुला न छोड़े कि कहीं भी मुँह मारती फिरें। अपने घर में रखें। पापा के ये शब्द प्रतीक के दिल को चुभे ,बोला -पापा ऐसे शब्द ,आपको किसी की बेटी के लिए बोलना ,शोभा नहीं देते। अब तू हमें बताएगा ,कैसे बोलना है ?कैसे नहीं ?वो ज्यादा क्रोधित होकर बोले। दोनों बेटों से ज्यादा इसे लाड़ -प्यार दिया ,लगता था ,ये ही हमारे काम को और हमारे नाम को ऊँचाइयों पर ले जायेगा किन्तु ये तो महाशय ,इश्क़ में पड़कर ,ये गुल खिला रहे हैं। कल ही ,उसके बाप से भी बात करूंगा। पापा -पापा प्रतीक बोला -आप उनसे कोई बात मत करना ,पता नहीं वो उसके साथ कैसा व्यवहार करें ?क्यों ?उन्हें भी तो पता चलना चाहिए ,उनकी बेटी उनके पीछे क्या गुल खिला रही है ,वो झुंझलाकर बोले। प्रतीक ने आख़िरी उम्मीद से पूछा -वैसे इस रिश्ते में बुराई ही क्या है ?वो मुझसे ,मैं उससे प्रेम करते हैं। तभी मम्मी बोली -वो तो करेगी ही ,पैसेवालों का बेटा फँसाया है। मम्मी इसमें पैसा कहाँ से आ गया ?पहल तो मैंने ही की थी, प्रतीक ने अपनी तरफ से सफाई पेश की। और बोला -अब मैं उससे नहीं मिलूंगा किन्तु आप लोग ,उसके घरवालों से कुछ मत कहना। ये बात बढ़े उसकी बदनामी हो ये मुझे पसंद नहीं आएगा। ओहो !उसकी बड़ी चिंता हो रही है ,अपने घरवालों के जज्बातों का कोई ख्याल नहीं ,मम्मी तुनककर बोलीं।
क्या प्रतीक अपने मम्मी -पापा के समझाने पर ,नंदिनी को भूल गया ?फिर कभी नहीं मिला। उनके प्रेम का क्या अंत हुआ ?जानने के लिए पढ़िए -''धोखा ''भाग तीन।