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पवित्रा सुबह जल्दी  ही उठ गयी और बच्चों को जगाकर ,रसोईघर में सुबह के नाश्ते और बच्चों के टिफ़िन के लिए तैयारी में जुट गयी। तभी उसकी देवरानी ने रसोईघर में प्रवेश किया और पवित्रा को देखकर चौंक गयी। देखते ही बोली -दीदी आप ?आप तो दस दिन के लिए ,भाईसाहब के साथ घूमने गयी थीं। इतनी जल्दी कैसे वापस आ गयीं ?अभी तो दो दिन ही बीते हैं। क्या हुआ ?क्या भाईसाहब से झगड़ा हो गया? ,उसने व्यंग्य किया। नहीं ऐसी कोई बात नहीं ,वे तो किसी काम से कहीं और चले गए और मुझे अपने बच्चों की याद सता रही थी। कहते हुए उसने उबलते दूध का पतीला ,अपने हाथों से उतार दिया। उबलते दूध को देखकर ,दिव्या पकड़ लेने दौड़ी इतने में पवित्रा  ने तो उसे उतारकर  रख भी दिया। वो एकदम चीख़ी- दीदी !कहीं आपका हाथ जल तो नहीं गया। पवित्रा बोली -अरे नहीं ,इतने वर्षों से रसोई में काम कर रही हूँ ,अब तो  आदत पड़ गयी। दिव्या हैरत से उसे देख रही थी। बोली -दीदी पानी की टंकी के नीचे हाथ रख लो ,थोड़ा आराम मिलेगा किन्तु पवित्रा  उसकी बात को अनसुना कर, पराँठे बनाने लगी। दिव्या से बोली -तुम जाकर जरा बच्चों को देख लेना ,तैयार हुए कि नहीं। दिव्या चली गयी और बच्चों को तैयार करने में उनकी मदद करने लगी। अभी बच्चे तैयार ही हुए थे ,उनका टिफ़िनऔर सुबह का नाश्ता तैयार था। सासूमाँ भी सुबह की चाय के साथ ,अपना नाश्ता कर रही थी। दिव्या रसोई में गयी ,देखा सारा काम हो चुका था। 

                      पवित्रा प्रतिदिन अपना काम निबटाकर ,कमरा बंद कर लेती और शाम को ही दरवाजा खोलती। दिव्या को उत्सुकता हुयी ,बोली - दीदी आप , दरवाज़ा बंद करके क्या करती रहती हैं ?पवित्रा बोली -कुछ नहीं ,थोड़ी सुस्ती रहती है ,तो सो जाती हूँ। आप ठीक तो हैं ,किसी डॉक्टर को दिखा लीजिये दिव्या बोली।  नहीं ,आराम करने से अच्छा लगता है पवित्रा  बोली। अच्छा दीदी, आप कहाँ तक घूम आईं ?कहाँ से वापिस लौटीं ?हम तो ,महाबलेश्वर चले गए थे और पंचगनी जा रहे थे ,तभी........  कहकर पवित्रा  चुप हो गयी। तभी क्या ?दिव्या बोली। तभी इनका काम आ गया और मैं यहां आ गयी। एक बात बोलूँ। कहिये दीदी दिव्या बोली। मेरे न रहने पर बच्चों का ,अपने बच्चे समझ ख़्याल रखना पवित्रा बोली। ऐसा क्यों कह रही हैं ?ये भी मेरे ही बच्चे हैं। क्या आप भाईसाहब के आने पर  फिर से जायेंगी दिव्या ने पूछा ?हाँ जब वो आयेंगे ,तो जाना ही पड़ेगा पवित्रा बोली। यात्रा अधूरी रह गयी ,पूरी तो करनी ही है और हाँ ,जैसे कुछ याद आया हो ,बोली -कल मैं अपनी माँ से मिलने जाऊँगी ,बहुत दिन हो गए ,शीघ्र ही आ जाउंगी पवित्रा ने कहा। जी ,आप बेफ़िक्र होकर जाइये ,वो पवित्रा  का हाथ पकड़ना चाह रही थी किन्तु वो उठकर चली गयी। दिव्या बोली -दीदी ,आप कुछ बदली -बदली सी नज़र आ रही हैं। तुम्हारे जेठजी के कारण कहकर वो हँस पड़ी ,बोली -कल मैं ,माँ से मिल आऊँगी ,उसके बाद तरुण के लिए जो लड़की देख रहे थे ,उसे देख आऊँगी। दिव्या बोली -दीदी इतनी जल्दी भी क्या है ?भाईसाहब को तो आने दीजिये। जब वो आयेंगे तब देख लेंगे ,मैं तो देख ही लूँ पवित्रा बोली। 
                    माँ ,सविताजी ने मुड़कर  देखा  ,अरे तू कब आयी ?घर में तो कोई नहीं है और दरवाज़ा भी बंद था, किसने खोला?माँ जब मैं आई तो दरवाज़ा खुला था आप ध्यान रखा करो। ऐसे तो कोई भी घर में घुस सकता है पवित्रा  बोली। सविताजी बोलीं -बंद तो किया था ,शायद भृमित हो गयी सोचा होगा ,और बंद नहीं किया होगा। ख़ैर अब तुम तो बंद कर आयीं उन्होंने पवित्रा से पूछा। हाँ -हाँ ,घर के अन्य लोग कहाँ गए ?कोई दिख नहीं रहा। सविताजी बोलीं -तुम्हारे भाभी -भइया उसके मायके गए हैं ,तेरी भाभी के भइया का विवाह है और तेरे पिताजी बाज़ार गये हैं ,मेरी दवाई लेने। कब तक आ जायेंगे ?पवित्रा बोली। एक -डेढ़ घंटे में आ जायेंगे ,और तू बता आज कैसे आ गयी ?सविताजी बोलीं। बस आपकी बहुत याद आ रही थी ,बच्चे अपने स्कूल गये हैं सोचा आपसे मिल आऊँ ,कल तरुण के लिए जो लड़की पसंद की  थी  ,उसे देखने जायेंगे। सविताजी बोलीं -मैंने तो सुना था तुम दोनों बाहर घूमने गए थे इतनी जल्दी कैसे आ गए ?वो माँ उन्हें अचानक काम आ गया तब मैंने सोचा -आपसे ही मिल आऊं और वो जो चुनरी और चेन मैंने तरुण की पत्नी के लिए बनवाई थी ,वो भी दे देना। सविताजी बोलीं -अभी तो तुम लड़की देखने ही जा रही हो ,जब पसंद आ जाये ,विवाह तय होगा तभी तो दोगी। हाँ ,वो तो है किन्तु उन्हें अभी  ले जाती हूँ ,पता नहीं फिर आना हो पायेगा या नहीं क्योंकि विवाह वाले घर में कितना काम हो जाता है फिर समय मिले या न मिले पवित्रा  बोली। हाँ ,वो तो है ,और उन्होंने चुनरी और चेन निकालकर ,उसे दे दी। अच्छा माँ अब चलती हूँ ,पता नहीं पिताजी कितनी देर में आयें ?अभी मुझे कई काम निपटाने हैं और हाँ ,विवाह तय हो जाने पर जरूर आना। आप कहीं जाती नहीं हो ,भाभी -भइया को ही भेज देती हो। तुम भी आना ,कहकर वो उठकर चल दी। सविताजी बोलीं -थोड़ी देर और रुक जाती तो तेरे पिताजी आ जाते उनसे भी मिल लेती। नहीं अब नहीं रुक पाऊँगी बहुत समय हो गया।चलो मैं दरवाज़े तक छोड़कर आती हूँ सविताजी बोलीं। नहीं माँ ,तुम आराम करो मैं चली जाऊँगी कहकर वो बाहर आ गयी।  तभी सविताजी के पति आ गए  और दरवाज़ा खोलने के लिए घंटी बजायी। वो उठकर बाहर आयीं ,देखा उनके पति बाहर खड़े हैं ,वो बोलीं -अभी थोड़ी देर पहले ही तो पवित्रा गयी है, शायद आपको रास्ते में मिली हो ,मैंने तो दरवाज़ा बंद ही नही  किया ,सोचा था -आप आओगे तब बंद कर दूंगी। वे बोले -मुझे तो गली में कोई भी नहीं दिखा ख़ैर जल्दी दरवाज़ा खोलो बहुत तेज़ धूप है। सविताजी सोच रहीं थीं -मैंने दरवाज़ा तो बंद ही नहीं किया फिर कैसे बंद हो गया ?और उन्होंने पवित्रा के आने का कारण भी बताया।   
                    अगले दिन पवित्रा अपनी देवरानी  दिव्या को साथ लेकर तरुण के लिए लड़की देखने चल दी ,दिव्या बोली -मैं सोचती हूँ ,दीदी! भाईसाहब भी साथ आ जाते तो अच्छा रहता। पवित्रा बोली -वे भी आ जायेंगे और देख लेंगे ,इतने हम अपनी जिम्मेदारी पूर्ण  करते हैं। दोनों ने लड़की देखी और वो पसंद भी आ गयी। पवित्रा ने सोने की चेन उसे दे दी। घर आकर उसने दिव्या को चुनरी दिखाई और बोली -इसे ही लहँगे के साथ देना। लगभग एक सप्ताह पश्चात पवित्रा दिव्या से बोली -दिव्या तुम्हारे भाईसाहब का फ़ोन आया है ,मैं जा रही हूँ।दिव्या बोली - आप कहाँ जा रही हैं ?मैं उन्हें लेने जा रही हूँ ,वो तभी आयेंगे। ठीक है ,कहकर दिव्या अपने काम में लग गयी। तभी उसे पवित्रा की आवाज पुनः सुनाई दी -एक बात तो कहना मैं भूल ही गयी ,जब तक मैं नहीं आ जाती बच्चों का अच्छे से ख़्याल रखना पवित्रा बोली। ठीक है ,दीदी। दिव्या ने बिना पीछे देखे ही कहा।पवित्रा शाम तक भी नहीं आयी तब दिव्या अपनी सास से बोली -मम्मीजी दीदी तो भाईसाहब को लेने गयीं थीं ,अभी तक नहीं आयीं। उसकी सास बोली -ये तू क्या कह रही है ?वो दोनों तो घूमने गए हैं ,पवित्रा कब आयी ?मैंने तो उसे नहीं देखा। अपनी सास की बातें सुनकर दिव्या बोली -वो तो एक सप्ताह से आयी हुईं थीं ,भाईसाहब को कोई काम आ गया इसीलिए वो आ गयीं थीं। क्या आपने उन्हें नहीं देखा ?आपने तो कई बार उनके हाथ से बना  नाश्ता और चाय पी  है ,ये तू क्या कह रही है ,मैंने तो उसे न आते देखा न जाते। दिव्या ने सोचा -उम्र के साथ इनकी याददाश्त भी कमज़ोर हो गयी है ,जब कल दीदी आ जाएँगी तो अपने आप ही सब याद दिला देंगी।  

                अगले दिन भाईसाहब एक गाड़ी से उतरे ,उनकी हालत देख ,किसी अनिष्ट की आशंका से  सब घबरा गए। उनके हाथ और पैर में प्लास्टर चढ़ा था ,उनकी हालत देख सब उन्हें संभालने के लिए दौड़े ,उन्हें सहारा देकर अंदर लाये। जब गाड़ी चली गयी उन्हें पानी दिया और पूछा -ये सब कैसे हुआ ?और पवित्रा कहाँ है ?पवित्रा का नाम लेते ही वो रोने लगे और बोले -अब वो हमारे बीच नहीं रही। दिव्या बोली -दीदी को आप कहाँ मिले ?वो तो आपको लेने गयीं थीं। पुष्कर हैरत से उसे देखने लगा ,बोला -वो मुझे लेने कब गयी ?वो तो मेरे साथ ही गयी थी। दिव्या बोली -ये कहानी क्या है ?दीदी तो कह रहीं थीं कि आपको कुछ काम आ गया इसीलिए वो यहाँ आ गयीं और कल ही तो मुझे बताकर गयीं थीं कि मैं उन्हें लेने जा रही हूँ। पुष्कर बोला -ये सब तुम क्या कहे जा रही हो ?उसका गला सूखने लगा। पुष्कर की मम्मी बोली -ये कल भी मुझसे ऐसे ही कह रही थी ,पता नहीं इसका ध्यान कहाँ है ?दिव्या उनकी बातें सुनकर झुंझला गयी और बोली -यदि मैं ग़लत कह रही हूँ तो बच्चों से पूछ लीजिये कि उनकी मम्मी उनके साथ थीं कि नहीं। बच्चे अपनी चाची का मुँह तकने लगे ,बोले -चाची मम्मी कब आयीं ?हमें तो पता ही नहीं चला ,हमने तो उन्हें नहीं देखा। दिव्या बोली -मम्मीजी आपको उन्होंने नाश्ता बनाकर दिया और बच्चों के काम भी वही करतीं थीं। ऐसा कैसे हो सकता है ?पानी पीकर पुष्कर  बोला -जिस दिन हम लोग गए उसके अगले दिन हम पंचगनी के लिए  निकले और रास्ते में हमारी गाड़ी दुर्घटनाग्रस्त हो गयी। मुझे तो होश ही नहीं था दो दिन पहले ही होश आया तब पता चला कि पवित्रा उस दुर्घटना में चल बसी। सुनकर दिव्या सिहर उठी और पास ही पड़ी कुर्सी पर बैठ गयी। 
                    उसकी आँखों के सामने सभी दृश्य घूमने लगे ,कैसे गर्म पतीला उन्होंने उठाया ?दोपहर में कहाँ चली जाती थीं ?इसका मतलब वो मुझे ही दिख रहीं थीं या फिर मेरा वहम। तभी उसे ध्यान आया कि वो अपनी मम्मी के पास भी गयीं थीं और चुनरी -चेन भी लाई थीं और वो दौड़ती हुयी सी अपने कमरे में गयी और वहाँ से चुनरी निकालकर ले आयी और दिखाते हुए बोली -ये चुनरी मुझे दीदी ने ही दी है कि तरुण की बहु को लंहगे पर यही चुनरी भेजना ,और ये चुनरी वो अपनी मम्मी से लायीं थीं। दिव्या फोन लगाती है -हैलो मौसीजी ,मैं दिव्या बोल रही हूँ ,क्या दीदी तीन -चार दिन पहले वहां आयीं थीं न ?चेन और चुनरी लेने ,उधर से आवाज़ आयी -हाँ आई तो थी किन्तु शीघ्र ही चली गयी ,क्यों क्या हुआ ?दिव्या बताते हुए ,जोर -जोर से रोने लगी और बोली -भाईसाहब ,कह रहे हैं कि अब वो हमारे बीच नहीं रहीं ,उनका तो ..... कहकर रोते हुए ,दिव्या ने फ़ोन कट कर दिया। पवित्रा की मम्मी घबरा कर अपने पति के साथ अपनी बेटी की ससुराल के लिए चल पड़ीं। तभी दिव्या को याद आया कि दीदी ने तरुण की होने वाली बहु को चेन भी दी थी। उसने सच्चाई परखने के लिए ,तरुण की होने वाली ससुराल में भी फोन किया ,उस लड़की से बोली -मेरे साथ जो आयीं थीं ,उन्हें तो तुमने देखा ही होगा। वो बोली -आपके साथ कौन था ?आप तो अकेली हीं थीं किन्तु आप बातें ऐसे कर रहीं थीं जैसे कोई साथ में हो ,हमने सोचा -शायद ये आपकी आदत हो बल्कि अज़ीब लगा था कि अकेली ही सब तय करने आ गयीं किन्तु आपने बताया था कि भाईसाहब के आने पर सब लोग आयेंगे। दिव्या को रह- रहकर यकीन नहीं हो रहा था कि किसी ने उन्हें देखा नहीं। थोड़ी देर पश्चात ही उनका पार्थिव शरीर आ गया। सब रो रहे थे ,तभी उनकी मम्मी पहुंच गयीं और बेटी के शव को देख दहाड़े मार -मारकर रोने लगीं और बोलती जा रहीं थीं -तीन -चार दिन पहले ही तो तुझे देखा था ,ये तो मुझसे मिलने आई थी ,इतनी जल्दी इसे क्या हो गया ?मेरी बेटी को  किसने मार दिया ?जब वो रोकर थककर शांत हुईं ,तब उन्हें बताया ,तो उन्हें जैसे यक़ीन ही नहीं हुआ। वो सोचने लगीं -तभी वो बंद दरवाज़े से भी अंदर आ गयी और अपने पिता को भी नहीं दिखी। 

                    तभी दिव्या की सास बोली -पुष्कर के यहां न रहने पर अपनी ज़िम्मेदारी निभाने आयी थी ,दिव्या से अपने बच्चों की ज़िम्मेदारी का वायदा लेने आयी थी। तरुण की बहु को देखने का अरमान था उसे देख गयी ,अपनी माँ से भी मिली , जो भी उसकी इच्छाएँ थीं वो पूरी कर गयी।मान लो ,दिव्या को भ्र्म हुआ उसकी माँ को भी हो गया क्या ?ये चुनरी तो झूठ नहीं ,इसका मतलब'' वो आई थी ''अपने बच्चों की ख़ातिर अपनी माँ से मिलने ,अपनी ज़िम्मेदारी पूरी करने ''वो आई थी ''तभी पुष्कर को ध्यान आया ,बोला - एक नर्स ने बताया  था कि जब मैं बेहोश था तो किसी  महिला को उसने  मेरे कमरे में बैठे देखा था ,जब वो पूछने जाती तो कोई नहीं दिखता था। उसकी सास बोली - हमसे कोई काम नहीं था तो हमें नहीं दिखी। भगवान इसकी आत्मा को शांति दे। 



 



















laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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