हाथ पकड़, लिखना सिखलाती है ,
एक -एक अक्षर सही कराती है।
दिनभर के खाने -पीने से लेकर,
न जाने कितनी बातें सिखलाती है ?
विद्यालय भेज़ बच्चों को ,याद से ,
सारा कार्य कराती -समझाती है।
बच्चे के उज्ज्वल भविष्य के लिए ,
सारा दिन घर में ही ,दौड़ लगाती है।
ग्रहमंडल की तरह घूमती जाती है।
अपनी ''पाक विधा ''को अपना ,
नवीन व्यंजन बना ,उसे खिलाती है।
उसकी छोटी सी चोट पर स्वयं,
हाल - बेहाल हो जाती है।
न जाने कितनी विपत्तियां झेल ?
उसके लिए किस -किससे लड़ जातीहै।
जो मुझे न मिल सका ,उसे मिले ,
मंदिर में जा ,ऐसी विनती कर आती है।
तब बच्चे उसे एहसास कराते हैं ,
अपने बड़े होने का ,ज़माने संग चलने का।
आपको क्या आता है ?
ज़माना बदल गया ,ये क्या सिखलाती हो ?
लोग बदले ,ज़माना बदला ,
आप ऐसी ही नज़र आती हो।
दोस्तों में हमारी ,बेइज्जती कराती हो।
अंग्रेज़ी नहीं आती ,
तो स्कूल क्यों आती हो ?
क्या किया ?जीवनभर ,
कुछ करती नज़र नहीं आती हो।
अपने ये बेकार के ,
तौर -तरीक़े हम पर क्यों आजमाती हो ?
मेरी बीवी तो नादाँ है ,
उससे क्यों ज़बान लड़ाती हो ?
जिस माँ की अँगुली पकड़, चलना सीखा
जिस बाप के साये में बढ़ना सीखा।
आज वो'' टाट का पैबंद '' नज़र आते हैं।
जो माँ -बाप अपने थे ,ग़ैर नज़र आते हैं।
सब रिश्ते -नाते बदले नज़र आते हैं।