Pahalvan [part 1]

अमरपाल जी का इतना बड़ा परिवार है ,पीढ़ी दर  पीढ़ी कम से कम सौ आदमियों का परिवार है ,इतना बड़ा परिवार तो तब बन गया ,जब कि उनके बड़े बेटे ने विवाह ही नहीं किया। अमरपाल जी तो अब नहीं रहे ,उनका स्थान अब रामपाल ने ले लिया।रामपाल उनका बड़ा बेटा है ,उससे छोटे दो और हैं -धर्मपाल ,और ओमपाल तीनों भाइयों में बड़ा प्रेम है। पिता के जाने के पश्चात रामपाल ने  घर की सारी ज़िम्मेदारी संभाली। दोनों भाइयों का विवाह करा दिया ,एक बहन है ,उसे भी उसकी ससुराल भेज दिया। सब अपनी -अपनी घर -गृहस्थी में लीन हैं ,रामपाल खेती -बाड़ी के बाद जो समय बचता ,अखाड़े में चले जाते ,वहाँ आने वाली गांव की नई पीढ़ी को कुश्ती के दाँव -पेंच सिखाते। बस उनकी यही दिनचर्या है ,शुरू -शुरू में तो उनसे बड़े पूछ ही लेते थे - तू अपने भाइयों का विवाह करा रहा है , रामपाल तू विवाह नहीं करेगा ?

रामपाल कहता- देखो ताऊ ,हम ठहरे हनुमान जी के भक्त ,ये सब हमसे नहीं होगा फिर हंसकर कह देते हनुमानजी की भक्ति सरल है किन्तु पत्नी के पीछे घूमना ,हमसे न होगा ,उसकी भक्ति कठिन है ,वो कभी प्रसन्न ही नहीं होती। अब तुम ही अपने को देख लो, अभी चालीस के हुए हो और ताई की सेवा करते -करते पचास के लग रहे हो , सुनकर सब हँ सने लगे। ताऊ बोले -ये हँसी की बात नहीं रामपाल ,मैं अपने अनुभव से कह रहा हूँ ,तुम भी समय रहते विवाह कर  लेते ,तुम्हारे सुख -दुःख में भी तो कोई  साथ खड़ा होना चाहिए। रामपाल कहता -हैं न ,मेरे भाई ,वे मेरे साथ ही खड़े हैं। अभी तू सारा घर संभाल रहा है और वे अपनी गृहस्थी ,जब सब अपने में सम्भल जायेंगे और तुझे उनकी आवश्यकता होगी ,तब साथ खड़े होंगे तो कहना, ताऊ बोले। रामपाल झुंझलाकर बोला -क्या ताऊ! तुम हम भाइयों को एक साथ नहीं देख सकते ,तुम हमारे परिवार में ''फूट डालना'' चाहते हो। दूसरे के  घर में आग लगाए बगैर तुम्हें खाना हज़म नहीं होता। आजकल कोई नहीं चाहता किसी के घर में प्यार बना रहे ,मैं बस  इतना जानता हूँ-- कि हम भाइयों में प्रेम है ,हमारे घर को कोई तोड़ नही  सकता।' हाँ -हाँ धोबी पछाड़ मारो,' अपने शाग़िर्द को दॉँव सिखाते हुए बोले।
                  ताऊ को अपना अपमान लगा ,बोले -बेटा गाँव के सब लोग अपने ही होते हैं ,तुम भाइयों में प्रेम है, ये तो अच्छी बात है किन्तु घर में जो महिलाएं आती हैं ,वे दूसरे परिवार से आती हैं और जब घर बिगड़ने पर आता है तो इनका हाथ ही होता है। रामपाल बोला -ताऊ  !मेरे भाई जब उनकी सुनेंगे तभी घर बिगड़ेगा और अभी तो दोनों बहुत अच्छी हैं ,मेरा यानि अपने जेठ का मान रखती हैं और जब जैसा होगा देखा जायेगा। कल के चक्कर में ,मैं अपना आज बर्बाद कर लूँ। तभी एक लड़का वहाँ आकर बैठा ,जिसने ताऊ और रामपाल की आधी -अधूरी बातें सुनी और बोला -गुरूजी !एक बात पूछूं ,आपको कोई भी लड़की पसंद ही नहीं आयी ,रिश्ते तो आयें होंगे या फिर किसी  ने दिल तोड़ दिया। उसकी उम्र को देखते हुए रामपाल बोले -बेटा ,अपनी उम्र के हिसाब से बात करो ,अभी तुम्हारी उम्र नहीं हुई कि हमसे इस तरह के प्रश्न पूछो। ताऊ बोले -उम्र में छोटा है किन्तु प्रश्न सही पूछ रहा है। रामपाल झुंझलाकर बोले -ये क्या लगा रखा है ?यदि मैंने विवाह नहीं किया तो दुनिया चलनी बंद हो जायेगी ,इतने प्रश्न तो मेरे घर में भी किसी ने नहीं पूछे। किसी की ज़िंदगी में ज्यादा झाँकने का प्रयत्न न करो। मेरा अच्छा  खासा परिवार है और मैं खेती के साथ -साथ अपना अखाडा भी चलाता हूँ ,बस यही मेरी ज़िंदगी है। मल्लू ओ मल्लू अब जरा तू देख लेना मैं अभी जाता हूँ कहकर रामपाल उनके प्रश्नों से बचने के लिए बाहर आ गए। 
                  बाहर आकर भी वो बेचैन रहे ,जिन बातों से वो बचना चाहते थे वो ही रह -रहकर उनके सामने आ रहीं हैं ,रामपाल को उसके दस वर्ष पुरानी बातें स्मरण होने लगीं ,रह -रहकर एक -एक पन्ना खुलने लगा ,उसमें भी जवानी का जोश था ,कुश्ती में अपने गाँव का और देश का नाम चमकाना चाहते थे। पिता ने पढ़ाई के लिए कहा तो पढ़ाई में मन ही नहीं लगता था और अपने विद्यालय से भागकर अखाड़े में आ जाते थे। अखाड़े के गुरु ने अमरपाल को समझाया जब बेटे का मन यहाँ है तो उसे मेरे सुपुर्द कर दो ,कुछ न करने से तो कुछ कर ही ले वही ठीक है ,अब तो पिता की तरफ से भी इजाज़त मिल गयी और ज्यादातर समय अखाड़े में बीतता। देखने में तो पहले से ही जंचीला था अब तो उसकी कद -काठी और निखरकर आ गए ,स्वभाव का तो पूछो मत ,हमेशा दूसरों की मदद के लिए तैयार रहते। गांव की  या बाहर कहीं भी कुश्ती के लिए जाते लड़कियाँ देखते ही अपना दिल दे बैठतीं। किन्तु रामपाल तो ठहरा हनुमान भक्त ,किसी भी लड़की की तरफ नज़र उठाकर नहीं देखा। एक बार गांव में किसी लड़की की शादी थी ,उसमें उनकी बहुत रिश्तेदार आयीं थीं। मदद करने की प्रवृति के कारण रामपाल को भी मदद करने बुला लिया गया फिर गांव की लड़की है कोई मना नहीं करता। रामपाल बड़े बर्तन ड्रम इत्यादि सामान लेने के लिए घर में घुसे ,अभी वो पूछना ही चाह रहे थे कि सामान कहाँ से लेना है तभी उसकी दृष्टि  एक खिड़की की तरफ़ गयी तो वहीं देखते रह गए। ये ही भूल गया कि वो आया किसलिए था ?वो लड़की फोटो वाले से अपने फ़ोटो खिंचवा रही थी उसकी सुंदरता देखते ही बनती थी।

                     हल्के गुलाबी सूट  में खिलखिलाती सी वो बहुत ही खिल रही थी ,उसने रामपाल की तरफ देख कर  भी  नजरअंदाज कर अपने फोटो बनवाने की स्थिति में बैठ गयी। अचानक ही रामपाल के मुख  निकला -''ख़ुदा जब हुस्न देता है ,नज़ाकत आ ही जाती है।  ''तभी उनके रिश्ते की भाभी बोली -देवरजी! ,यहां कैसे खड़े हो ,क्या कुछ काम था ?रामपाल अपनी पूर्ववत स्थिति में आया और बोला -हाँ भाभीजी ,कुछ सामान लेने आया था ,कहता हुआ ,उसके पीछे चल दिया। किन्तु उस लड़की की एक झलक के लिए तरस गया और सामान लेकर उसी ओर चल दिया। देखा ,वो अब जा चुकी थी ,मन में विचार आया ये कौन थी ?इस गांव की तो है नहीं ,कहाँ से आयी है ?अनेक प्रश्नो ने उसे घेर लिया। सामान उस स्थान पर पहुंचाकर ,अब वो कोई भी कार्य नहीं करना चाह रहा था। अब तो उस लड़की के विषय में जानना चाह रहा था। आज पहली बार ऐसा हुआ था कि उसे देखकर किसी लड़की ने उस पर ध्यान नहीं दिया या पुनः पलटकर नहीं देखा। उसे देख मैं भी शायर बन गया ,फिर सोचा ,ये लाइनें मैंने कहीं तो सुनी होंगी जो अनायास ही याद हो आयीं। रामपाल ने उस घर के नजदीक ही एक छोटे बच्चे को पकड़कर उससे पूछा -क्या तुम इस घर में जो गुलाबी सूट में लड़की है ,उसे जानते हो ?किन्तु उस बच्चे से उसे निराशा ही हाथ लगी। कौन सी लड़की कहकर वो भाग गया ?रामपाल के सामने उस लड़की का चेहरा बार -बार घूम रहा था और वो बेचैन हो रहा था, किससे  पूछे -कौन है वो ?इसी बेचैनी में सड़क पर आ गया तभी कुछ लड़कियों का झुण्ड उसे दिखा ,उस झुण्ड में रामपाल ने उस लड़की को  ढूंढ़ ही लिया तभी उसे अपने गांव की लड़की भी दिखी। रामपाल ने हिम्मत की ,सोचा अब नहीं पूछ पाया तो फिर नहीं पूछ पाउँगा। बोला -अरे नंदिनी !कहाँ जा रही है ?वो उसकी रिश्ते में बहन लगती थी ,बोली -भाई ये जो दूसरे गाँव की लडकियाँ हैं ,उन्हें अपना गाँव दिखाने लाई हूँ कि हमारा गांव भी किसी से कम नहीं और ये देखो हमारे गाँव के ''पहलवान ''रामपाल भइया ,इनकी कुश्ती का आस -पास के गांवों में भी चर्चा है। तभी वो लड़की बोली -हमने तो नहीं सुना। रामपाल बोला -हम कोई बड़े आदमी नहीं जो कोई हमें जाने ,और ये क्या नंदिनी ?तू इन्हें गांव दिखा रही है या मुझे। वैसे किस गांव की हैं ये ?रामपाल ने उसकी तरफ इशारा  किया जो हमारे चर्चे इनके गांव में नहीं पहुंचे। नंदिनी बोली -भइया ,ये तो जिनकी शादी हो रही है ,उन दीदी की मौसी की लड़की हैं ,मधु दीदी।बाद में बात करेंगे ,अभी मुझे इनको गांव दिखाना है , कहकर वो चल दी। 
                   रामपाल की 'ख़ुशी का ठिकाना नहीं ''जैसे उसे खजाना हाथ लग गया हो। आज तो अखाड़े में भी दूने जोश से प्रदर्शन किया। क्या बात है ,पहलवानजी !आज तो गज़ब की फुर्ती दिखाई ,आज तो खून में जवानी उबल पड़ रही है। नहीं जी, ऐसी तो कोई बात नहीं ,रामपाल ने झेंपते हुए कहा। और शीघ्र ही वो एकांत की तलाश में चल दिया ,ताकि मधु के लिए सोच सके। उसे तो लग रहा था, जैसे-' सारी दुनिया उसकी मुट्ठी में है ',अब वो किसी ऐसे व्यक्ति या महिला के लिए सोच रहा था जो  विश्वनीय हो और मधु के  विषय में विस्तार से बता सके। सोचना बंद कर, अचानक वो उठा और उस तरफ चल दिया जहाँ विवाह की तैयारियां चल रही थीं । कहीं से कुछ तो जानकारी मिले। वहाँ बैठे कुछ मेहमान बातें कर रहे थे ,वो जाकर उसी झुण्ड में बैठ  गया। अब देख लो जी ,इतने बारात नहीं आती है ,इतने सारे घर में सजावट करनी है और थोड़े मेहमान दूसरे पंडाल में भी टिका देंगे ,वो बहुत छोटा है। रामपाल तो इसी तलाश में था ,कि किसी बहाने घर जाकर उसे देखे और बात करने का प्रयत्न करे ,वो बोला -सजावट का काम कौन संभाल रहा है ?और कौन संभालेगा लाईट और सजावट का काम तो टिंक्कू ही देखता है वो ही करेगा एक व्यक्ति ने उत्तर दिया।  अच्छा ,मैं देखकर आता हूँ, उसने काम ठीक से किया या नहीं ,रामपाल बोला।  अरे पहलवान जी !तुम क्या जानो ,साज -सज्जा ?तुम यहीं हमारे पास बैठो। न चाहते हुए भी ,पहलवान वहीं बैठ गया किन्तु मन तो कहीं और था. कुछ देर बाद बहाना बना घर की तरफ चल दिया, फिर सोचा ,''मैं वहां क्यों जा रहा हूँ ?''मैं क्यों उसकी एक झलक पाने के लिए उत्सुक हूँ ? ,उसने अपने मन को समझाया और वापस अखाड़े में चला गया। तभी कुछ लड़कियों का झुण्ड उधर से निकला और वहीं रुक गयीं ,उनमें मधु भी थी। तभी उसके उस्ताद ने कहा -तुम लोग यहां क्या कर रही हो ?जाओ! यहाँ पर लड़कियों का कोई काम नहीं। उनमें से एक बोली -ताऊजी ,ये दूसरे गांव की हैं ,ये कुश्ती देखने आयी हैं ,उन्होंने सख्त रवैया अपनाते हुए कहा -यहां कोई कुश्ती नहीं हो रही ,जाओ अपने घर में काम देखो। उनके जाते ही  पहलवान खम्बे की ओट से बाहर आ गया ,पता नहीं  मधु को यहाँ देख उसे  झिझक हो  रही थी। किन्तु उस्ताद की नजरें कुछ समझ रहीं थीं ,बोले -पहलवान कबसे खम्बे की ओट में छिपने लगे ?

                    शाम को बारात आयी ,सभी गाँव के लोग बारातियों के आव -भगत में लग गए। खाने के समय पर पहलवान ने मिठाई की दुकान संभाली ,उसने हलवाई से कह, मधु के लिए रसमलाई का दोना लगवाया,वो तो दोना लेकर चली गयी ,रेशम से कढ़ी जड़ाऊ साड़ी में कमाल की लग रही थी और ऊपर से उसके चेहरे को छूती लट ,उसे देखने को मन बार -बार ललचा रहा था  किन्तु अन्य  लड़कियों से वो घिर गया ,उन्होंने भी उसी से  अपने दोने बनवाने के लिए कहा। रामपाल अधिक से अधिक समय मधु को  देखना और उसके पास रहना चाह रहा था। विवाह के पश्चात ,लड़की के विदा होते ही ,सब शांत हो गया न कोई आ रहा था ,न ही जा रहा था। आज घर के बाहर कोई नहीं आया, पता चला -जो मेहमान जाने वाले थे चले गए। जो हैं ,वो थके होने के कारण ,आराम कर रहे हैं। अब रामपाल को फिर से बेचैनी होने लगी कि मधु यहीं है कि गयी। अभी तो उसे ठीक से देखा भी नहीं ,उससे बात भी नहीं की। फिर पता नहीं मुलाकात हो भी या नहीं। वो यहां होती तो उसके मन का हाल तो जान लेता उसे अपने दिल की हालत बता देता। 


क्या रामपाल मधु को अपने दिल की हालत बता सका या नहीं ,क्या मधु अपने घर चली गयी थी या नहीं ,पहलवान का प्रेम कैसे आगे बढ़ा ?उसके भाइयों का उसका साथ बना रहा कि दूर हो गए। सौ आदमियों के परिवार में उसकी क्या जगह रही। जानने के लिए पढ़िए -पहलवान भाग २। कहानी यदि अच्छी लगे तो अपनी टिप्पणी और लाइक अवश्य दें ,मुझे फॉलो भी कर सकते हैं , धन्यवाद। 





















laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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