Pahalvan [part 2]

रामपाल पहलवान ,अपने गांव की लड़की के विवाह  में आई लड़की ,मधु की ओर आकर्षित होता है ,वो उससे मिलने का प्रयत्न करता भी है किन्तु मौका नहीं मिलता। विवाह के पश्चात सभी मेहमान चले जाते हैं किन्तु रामपाल को नहीं मालूम कि मधु भी गयी या यहीं है।अब आगे --
 पहलवान बार -बार उस घर की तरफ देखता, शायद  वो कहीं भी, किसी भी तरह दिख जाये। किसी से कहे या पूछे भी तो क्या ?दिल की हालत दिल में ही दबाये घूम रहा था। किसी काम में मन नहीं लग रहा था ,सारी ताकत जैसे किसी ने निचोड़ ली हो। तीसरे दिन वही गांव की लड़की'' पग़ फेरे ''[गौने ]की रस्म के लिए आयी। गाँव में जब मेहमान आते हैं ,तो सारे गांव को ही पता चल जाता है। रामपाल भी चला गया, गाड़ी आकर खड़ी हुयी तो उसे लिवाने के लिए कुछ लड़कियाँ घर से बाहर निकलीं ,उनमें मधु भी थी ,उसे देखकर रामपाल के जैसे शरीर में जान आ गयी हो। अपने मन को समझाया- मैं व्यर्थ ही परेशान हो रहा था ,ये तो यहीं थी। तभी उसे नंदिनी भी दिखी ,रामपाल उससे बोला -नंदिनी, कुछ मेहमान ,अभी गए नहीं क्या ?नंदिनी ने न  समझते हुए पूछा -कौन से मेहमान ?अरे ये ही, तेरी मधु दीदी, उसने झिझकते हुए कहा। ओह !मधु दीदी ,ये अभी नहीं जाएँगी ,ये तो एक माह के लिए यहीं हैं ,अपनी ख़ुशी छिपाते हुए बोला -क्यों भला ?मुझे बस इतना ही पता है ,कहकर नंदिनी चली गयी। अब तो रामपाल को लग रहा था कि जीवन की शुरुआत इससे ही होगी। शाम को भोजन करते हुए अपनी ताई से पूछा -क्या दूसरे गांव में रिश्तेदारी होने पर भी  विवाह हो सकता है ?ताई ने तीख़ी नज़र रामपाल पर डाली और बोलीं --कौन सा गाँव, कौनसी रिश्तेदारी ?और तू ये सब क्यों पूछ रहा है ?कुछ नहीं ऐसे ही कोई पूछ रहा था ,कोई बात चल रही थी। कौन है वो लड़की ?ताई ने सीधे प्रश्न किया। रामपाल झेंप गया ,कौन सी लड़की ?कहकर अपने हाथ धोने लगा और बाहर आ गया। ताई के प्रश्नों से भाग आया था ,पूछे भी तो क्या ?पता तो चले कि वो भी मुझे पसंद करती है या नहीं। 

                     अब तो एक दो चक्कर उस गली के लग ही जाते , एक दिन  मधु बाहर  खड़ी चूड़ी वाले से चूड़ी ले रही थी ,रामपाल भी पहुंच गया और बोला -चूड़ी कैसे दीं ?वो तो कोई बहाना ढूंढ़  रहा था कि किसी तरह बातचीत का सिलसिला शुरू हो सके। मधु हंसकर  बोली -दिखाओ भइया ,इन्हें भी दिखाओ !आजकल पहलवान भी चूड़ी पहनेंगे। रामपाल बोला -पहलवान चूड़ी पहनते नहीं पहनाते हैं ,हमारे नाप की चूड़ी नहीं बनी। चलो चूड़ी वाले ,पहले इनकी पत्नी के लिए ही चूड़ियाँ दिखा दो ,इनकी पत्नी ही खुश हो जायेगी कि कितना ध्यान रखते हैं ?आजकल ऐसे पति मिलना भी मुश्किल है ,मधु ने व्यंग्य किया। रामपाल बोला -अजी , ऐसे नसीब  कहाँ ?पत्नी हो तो ले भी जायें ,अभी तो हम अकेले ही हैं ,ब्रह्मचारी हैं ,चूड़ी तो अपनी ताई के लिए लेने आया था। चूड़ीवाला बोला -किस नाप की दूँ ?रामपाल बोला -ये मुझे नहीं पता ,अच्छा तुम ऐसा करो, वो जो कोने में दुमंजिला मकान है ,वहां चूड़ी दे आना कह देना-''पहलवानजी ने भेजा है।मधु से बोला - ''कभी आप भी आइये,' हमारे ग़रीबख़ाने पर ''कहकर वो चला गया। गांव में किसी ने बातें  करते देख लिया तो बात का बतंगड़ बनते देर नहीं लगेगी। मधु मुस्कुराती मन ही मन बुदबुदाई -''लेना एक न देना दो ''वैसे ही समय बर्बाद किया और चूड़ी वाले से  बोली -वे फ़िरोज़ी रंग की चूड़ी दिखाओ।रामपाल उसकी गली से गुजरते हुए ,यही उम्मीद लगाता ,शायद कहीं वो दिख जाये। मधु को वहाँ रहते पंद्रह दिन हो गए किन्तु उससे मिलना या बातचीत का कोई बहाना नहीं मिल पा  रहा था। 
                  एक दिन वो शाम  को घर से निकली हाथ में कोई थैला था ,बड़ी तेजी से चली जा रही थी। रामपाल उसके पीछे हो लिया। मधु एक घर में घुस गयी ,ये इस घर में क्यों आयी है ?उसने दिमाग पर बहुत जोर लगाया किन्तु मधु के इंतजार में वो वहीं आस -पास चक्कर लगाता रहा। लगभग एक घंटा बीत जाने पर वो बाहर आयी ,तभी अनजान सा बनता हुआ ,रामपाल उसके आगे आ गया और बोला -अरे !आप यहॉँ ,क्या किसी काम से इधर आयी हैं ? मधु बोली --हाँ ,मैं यहां सिलाई सीखने आयी हूँ ,तभी तो तुम्हारे गांव में रुकी हूँ और भी कई  चीजें सीख रही हूँ ,मौसी ने कहा  था- कि उनकी बेटी चली जाएगी ,तो वो अकेली रह जाएँगी , मधु यहां रहकर कुछ सीख़ भी लेगी और मेरा मन भी लगा रहेगा ।रामपाल बोला - आप प्रतिदिन यहां आती हैं। हाँ ,क्यों ?मधु ने पूछा। रामपाल ने मन ही मन अपनी क़िस्मत को कोसा ,अब तक नहीं पता चल पाया था। मधु  ने चलते -चलते उससे पूछा - वैसे तुम्हारी  कुश्ती की तैयारी , कैसी चल रही है ?उस पर ध्यान दो ,लड़कियों का पीछा करना तुम्हारा काम  नहीं। रामपाल की जैसे चोरी पकड़ी गयी हो ,बोला -मैं क्यों किसी का पीछा करने लगा ,मुझे क्या आवश्यकता ?मधु उसका चेहरा देखकर बोली -पहलवान जी ! ,''ये बाल मैंने धूप में ही काले  नहीं किये ''तुम जैसों को मैं अच्छे से जानती हूँ ,जब तुम मेरे पीछे थे, मैंने तभी देख लिया था। तुम क्या मुझे ऐसे ही' उठाई गिरा' समझ रही हो ,?अच्छे परिवार से हूँ ,चार लोग जानते हैं ,मैं तो अपने गांव की मेहमान से दोस्ती करना चाह रहा था ताकि अकेलापन न लगे। अपने सम्मान को ध्यान में रखते हुए बोला। मधु भी कहाँ मानने वाली थी ,बोली -अब मेरे इतने बुरे दिन भी नहीं आये कि पहलवानों से दोस्ती करनी पड़े और हमारे यहाँ दोस्ती लड़के से नहीं लड़की से ही होती है। मधु का जबाब सुनकर रामपाल थोड़ा निराश हुआ और वो अपने घर के नज़दीक आकर रुक गया ,बोला -आप ग़लत न समझना हम ग़लत आदमी नहीं , कहकर वो अंदर चला गया। 
                    रामपाल प्रतिदिन ,अपने मकान की खिड़की में से मधु को जाते देखता किन्तु फिर उसके सामने न गया। मधु को अपनी कही बातों पर अफ़सोस हुआ किन्तु अब तो तीर कमान से निकल चुका था। मैंने तो यूँ ही व्यंग किया था ,पता नहीं ,कौन सी बात बुरी लगी होगी ?लगभग दस दिन बाद नंदिनी रामपाल के पास आयी और बोली -भइया ,मधु दीदी कह रही हैं कि'' वो परसों चली जाएँगी ''उनका काम पूरा हो गया। पंद्रह दिन बाद उनका विवाह है न। कह रहीं थीं -मेरी किसी बात का बुरा लगा हो तो क्षमा करना। रामपाल उसके विवाह की बात सुनकर दहल  गया ,बोला -क्या !उसका विवाह है ?मुझे पहले क्यों नहीं बताया? ये सब मुझे नहीं पता, कहकर नंदिनी भाग गयी। शाम को ,अपने नियत समय पर वो निकली ,रामपाल भी साथ हो लिया ,बोला -विवाह कब तय हुआ ?इससे पहले क्यों नहीं बताया ?मधु बोली -मेरा रिश्ता तो यहाँ आने से पहले ही तय हो गया था किन्तु नज़रों को मैं भी पहचानती हूँ इसीलिए उस दोस्ती से इंकार किया। काश !मेरा विवाह पहले तय न हुआ होता। रामपाल को एक उम्मीद जगी ,बोला -क्या तुम्हें मैं पसंद हूँ ?मधु बोली -अब इससे कोई लाभ नहीं ,तुम कोई अच्छी से लड़की देखकर विवाह कर लेना। लड़कियाँ तो बहुत मिली पर किसी पर दिल नहीं आया और अब आएगा भी नहीं ,कहकर रामपाल किसी गली में चला गया। देर तक अपने आँसुओ को रोके रखा किन्तु दिल एकदम ख़ाली हो गया उसमें गहन दर्द जो समा  गया। बगिया में कलियाँ  खिली  भी न थी  कि मुरझा गयी। पहले प्यार का पौधा ,अभी नवीन अंकुर फूटा और तेज धूप से झुलस  गया, इसमें किसी को क्या दोष दें ?ग़लती इस दिल की है जो गलती से ग़लत जगह दिल लगा बैठा ,स्वयं ही भुगत रहा है। पेड़ के नीचे वो घंटों बैठा रहा ,उससे उठा भी नहीं जा रहा था ,लग रहा था -बरसों का बिमार हो। अपने टूटे हुए दिल को लिए ,ऐसे ही अंधकार में निहारता रहा ,उसे पता ही नहीं चला कि  कब अँधेरा हो गया ? अपने दर्द को अकेला ही झेल रहा था, किसी से बाँटना भी नहीं चाहता था। तभी एक साया उसके नजदीक आया ,उसे ध्यान से देखते हुए उसके मुँह पर टॉर्च की रौशनी मारी और बोला -रामपाल अभी तक घर नहीं गया. यहाँ क्या कर रहा है ?तेरी ताई तुझे ढूंढ़ती फिर रही है। 

                 तब से आज तक किसी को उसके प्यार के विषय में पता भी नहीं चला और टूटे दिल के टुकड़े भी उसने समय के साथ स्वयं ही जोड़ लिए ,इसके पश्चात बहुत रिश्ते आये किन्तु रामपाल ने विवाह के लिए मना कर दिया। उसके छोटे भाई, कब तक उसकी  राह देखते ?और उन्होंने  विवाह कर लिया और आज ये बातें  छेड़कर ताऊ ने उसके जख़्मों को कुरेद दिया। मधु के सिवा उसकी ज़िंदगी में अब कोई नहीं आ  सकती। अब तो दोनों भाइयों के भी बच्चे हो गए ,उन बच्चों को कुश्ती के ग़ुर सिखाते उन्हें देखकर ही वो प्रसन्न हो लेता। जैसा सोचते है ,ऐसा कब होता है ? हम नहीं चलते ,ज़िंदगी अपने हिसाब से चलाती है और हम सोचते हैं कि हम कर रहे हैं किन्तु कराता तो वो है। ज़िंदगी यूँ आसान होती ,तो हर कोई जीते जी रोता नहीं ,सब कुछ उसके अपने हाथों में होता। इसी भरम को रामपाल पाले था कि उसके भाई के बच्चे और मेरे बच्चे  होते, इससे क्या फ़र्क पड़ता है ?जब तक रामपाल घर -बाहर और खेती के काम देखता रहा तो सबको अच्छा लगता किन्तु अब वो भी उम्र के साथ थकने लगा था उम्र उसे एहसास करा रही थी कि अब आराम भी कर ले। बच्चों से कुछ काम बता देता ,वे सुनते नहीं। भाई कहते-- पूरी ज़िंदगी कमाया अब भी आराम न करें।उसका कोई भी कार्य करते उन्हें जोर पड़ता। ऐसा लगता ,वो उन पर बोझ होता जा रहा है हालाँकि अपने कार्य स्वयं करता किन्तु उनके कार्य में कमी हो जाती तो उसे सुना देते। तब उसे ताऊ के वो वचन याद आये -''जब तक कर रहा है वे तेरे हैं।'' उसे  उन पर बोझ बनना ,मंजूर नहीं था और एक दिन वो घर  से कहीं दूर, जाने के लिए निकल गया ,जहाँ अपने साथ, अपने आपको जी सके।   
                    गंगा नदी के शीतल जल में नहाकर उसने भोजन किया उसके बाद विश्राम कर, कहीं जगह की तलाश में निकल पड़ा जहां वो बाकि का समय बिता सके। उसे हम उम्र भी मिले ,वो कोई ''वृद्ध आश्रम ''था। उसमें वो रहने लगा ,कुछ न कुछ करता रहता, कभी स्मृतियों में अपनी सम्पूर्ण ज़िंदगी से मिल आता ,सोचता -बच्चे तो आजकल अपने माता -पिता के नहीं होते, तो मैं कौन हूँ ?किसी से कोई शिकायत नहीं ,मधु यहां होती तो बाक़ी का जीवन भी आराम से कट जाता किन्तु वो तो अपने पति के साथ आराम से रह रही होगी। काश !वो मेरी ज़िंदगी का सुंदर सपना बनकर न आती तो शायद मैं भी विवाह कर लेता किन्तु उस सपने को देखने के पश्चात ,अन्य सपने की इच्छा ही नहीं हुयी। एक दिन वो गंगा की शीतल लहरों में खोया था तभी किसी ने पीछे से हाथ रखा। कोई अधेड़ उम्र चश्मा लगाए महिला, खड़ी मुस्कुरा रही थी ,बोली -पहचाना मुझे ,पहचानने का प्रयत्न करते हुए रामपाल बोला -मधु !वो मुस्कुराकर उसके नज़दीक बैठ गयी। बोली -आख़िर तुमने मुझे पहचान ही लिया। रामपाल के आश्चर्य का ठिकाना ही नहीं था कि उम्र के इस पड़ाव में अचानक मधु से इस तरह भेंट हो जाएगी। बोला -तुम यहाँ कैसे ?मुझे कैसे ढूँढा ?मैंने नहीं ,तुमने मुझे ढूँढा, मधु बोली। जहाँ तुम रह रहे हो ,वहां मुझे रहते एक वर्ष हो गया मधु ने बताया। क्या मतलब ?तुम अपनी ससुराल नहीं रह रहीं थीं रामपाल आश्चर्य से बोला। मधु बोली -मेरे पति तो मुझे छोड़कर छः -सात वर्ष पहले ही चले गए। बच्चों  को पाला, उनका विवाह किया ,बेटी अपनी ससुराल में और बेटा अपनी नौकरी पर ,बूढ़े माँ -बाप अब किसे सुहाते हैं ?सभी अपनी ज़िंदगी जीना पसंद करते  हैं ,अब मैं उन पर बोझ नहीं बनना चाहती थी जो मेरी ज़िम्मेदारियाँ थीं मैंने पूर्ण कीं। मैंने सोचा --इस मोह को छोड़कर, मैं भी कुछ  दिन अपने लिए जी लूँ ,जब मैं इस संसार में ही न होंगी, तब भी तो ये लोग जीवन यापन करेंगे इसीलिए मैंने जीते जी मृत्यु का आवरण ओढ़ लिया। मनुष्य जब तक संसार से जुड़ा रहेगा ,स्वयं तो परेशान ही होगा और उसके कारण दूसरे भी परेशान होंगे। सभी अपना -अपना जीवन जियें ,यही सोच कर कुछ दिन के लिए कहकर आई थी और यहीं गंगातट पर मन रम गया। बच्चों ने एक -दो बार पूछा भी ,उसके बाद वो लोग भी निश्चिन्त हो गए, मैं भी निश्चिन्त हूँ। जब सब छोड़कर जाना ही है तो फिर मोह कैसा ?यहाँ छोटा -मोटा काम कर लेती हूँ और गंगा की लहरों से बातें करती हूँ। हम कितना भी सोच लें ,कितना भी आगे बढ़ लें ?किन्तु अपने घर -परिवार के मोह से नहीं निकल पाते ,जब तक कोई  विवश न कर दें। मधु की इतनी ज्ञानभरी बातें सुनकर ,रामपाल सोचने लगा -मेरा तो घर -परिवार ही नहीं ,तब भी मैं न जाने क्यों ,इस मोह को  नहीं त्याग पाया ?बोला -तुम यहां पहले से ही थीं तो अब तक क्यों नहीं मिलीं ?मधु बोली -मैं तुम्हें अपने आपको समझने का मौका दे रही थी ,मिलकर भी क्या हो जाता ?तुम्हारा प्रेम जाग्रत होता जो आज भी तुम मुझसे करते हो। तुम्हें कैसे मालूम? रामपाल बोला। तुम शायद भूल रहे हो कि उस गांव में मेरी मौसी भी रहती हैं जिनसे मुझे यहां की जानकारी मिलती रही थी, मधु ने बताया।

                   यदि तुम छः -सात वर्ष पहले भी बता देतीं ,तो मैं तब भी, तुमसे विवाह कर लेता रामपाल बोला। नहीं ,मैं अपनी जिम्मेदारियों से भागना नहीं चाहती थी। तुम्हारे प्रेम को जीवन के इस पड़ाव पर ही मिलना था सो हम मिल गए। प्रेम का अर्थ विवाह करना ही नहीं ,ये उसकी पराकाष्ठा नहीं। प्रेम वो है जो तुमने निःस्वार्थ भाव से किया ,उसके मध्य तो मैं अपने को भी गौण समझती हूँ। विवाह तो मात्र एक रस्म है जिसके कारण तुम्हारा प्रेम छोटा हो जाता और यही प्रेम अब हम लोगों में बाँटेंगे। अब मैं या तुम नहीं होंगे अब हम होंगे जो ''आत्मिक प्रेम '' की धारा में बहेंगे ,कहकर मधु ने अपने पॉँव गंगा के शीतल जल में डाल दिए ,पीछे -पीछे रामपाल भी आ गया। 























 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

Post a Comment (0)
Previous Post Next Post