Naari sshktikarn kitna safal ?

 हमारे इतिहास से पता चलता है कि हमारे देश में नारियों का कितना सम्मान था ?प्राचीन समय से ही नारियों को आदर -सम्मान दिया जाता रहा है। इसका उदाहरण ये पंक्तियाँ भी हैं -
                                                     ''यत्र नारी पूजयन्ते ,तत्र देवता निवसन्ते। ''
अर्थात -जहां नारी का सम्मान होता है , उसे पूजनीय माना जाता है ,वहाँ देवता भी निवास करते हैं। ये कहावत तो बहुत ही प्राचीन समय से चली आ रही है। इसका एक और उदाहरण -हमारे देवी -देवता भी हैं

,हमेशा देवियों को , देवताओं की शक्ति मान उन्हें सम्मान दिया जाता रहा है ,सम्मानस्वरूप उन्हें पति  के साथ बैठने के लिए बराबर का स्थान दिया जाता रहा है। पति के वामभाग में सम्मानस्वरूप स्थान दिया जाता रहा है। राजा -महाराजाओं के साथ भी ,महलों में ,राजदबारों में रानियों को ,सम्मान और  समृद्धि सूचक के रूप में रानियाँ सिंहासन पर विराजमान होती थीं। हमारे यहां की नारियों को शिक्षा का भी अधिकार था। उस समय का एक उदाहरण तो' विद्योत्तमा 'ही रही ,जो ज्ञानीजनों से शास्त्रार्थ के लिए तत्पर  रहती थी। अपाला और लोपामुद्रा जैसी विदुषी महिलायें थीं जो शिक्षित थीं ,उन्हें वेदों की, मत्रोच्चारण की जानकारी थी। उस समय में स्त्रियों को पुरुषों के समान  ही अधिकार प्राप्त थे। शिक्षा ही नहीं वरन युद्ध कला ,पाक कला ,चित्रकला ,संगीत और नृत्य  कला जैसी इत्यादि कलाओं की भी जानकारी होती थी। महलों में रहने के बावजूद भी ,उन्हें हर तरह के अधिकार प्राप्त थे। यहां तक की ,उन्हें अपने वर स्वयं चुनने का भी अधिकार प्राप्त था ,इसका एक उदाहरण -'स्वयंवर प्रथा  'भी है। ''गंधर्व विवाह ''भी इसी बात का उदाहरण है। राजाओं में ही नहीं ,आम महिलायें भी इससे अछूती नहीं थीं। शिकार से लेकर घर के कामों और खेतों में भी वो कंधे से कंधा मिलाकर कार्य करती थीं। 
                     हमारे देश में'' पर्दा प्रथा ''[घूंघट ]भी नहीं थी किंतु जबसे'' इस्लाम धर्म ''ने हिंदुस्तान में प्रवेश किया ,लगभग ' बाहरवीं सदी 'से यह प्रथा आई। हिन्दू महिलाओं को उनकी गंदी नज़रों से बचने के लिए ''पर्दा प्रथा'' को अपनाना पड़ा। जब मुग़लिया सल्तनत ने हिंदुस्तान में अपनी जड़ें जमा लीं तब उनके आक्रमणकारियों से बचाव के लिए घूंघट को अपनाना पड़ा। समय के साथ -साथ ,जैसे -जैसे विदेशी शासक आते गए ,हमारे देश की महिलायें घूंघट की आदि होती गयीं और कुछ समय बाद इस घूंघट ने परम्परा का स्थान ले लिया। गैर पुरुषों की नज़रों से बचने के लिए ही ये'' पर्दा प्रथा ''उद्भ्व हुआ। महिलाओं को शिक्षा से भी वंचित होना पड़ा। बेटियों और महिलाओं के इज्जत -सम्मान के लिए ,उन्हें बाहर भेजने से भी डरने लगे ,इस तरह महिलाएं घर में  ही कैद होकर रह गयीं। उनकी कार्यक्षमता भी घर की चाहरदीवारी में ही सिमटकर रह गयी। समय के साथ -साथ ''पुरुष बाहुल्य 'समाज का उद्गम आरम्भ हो गया और महिलाओं का सम्मान घटा ,इस तरह हमारे देश की सशक्त  नारी ,सृजनकर्ता अबला बनकर रह गयी।'' पुरुष प्रधान ''समाज हो गया। पुरुषों में अपने पौरुष का अहंकार बढ़ा और वो महिलाओं को दीन -हीन समझने लगा। महिलाएं तो जैसे अपनी क्षमता खो चुकी थीं ,उनमें विरोध करने का साहस भी नहीं रहा। इस तरह अन्य कुरीतियों ने भी जन्म लिया। जैसे -बाल विवाह,सती प्रथा ,दहेज़ प्रथा इत्यादि कुप्रथाओं ने भी अपनी जड़ें जमा लीं ,धीरे -धीरे ये परम्पराओं में शामिल हो गयीं और नारी अबला ,बेचारी, निःशक्त बनकर रह गयी। वो तो जैसे अपने अस्तित्व को ही भुला चुकी। नारी की इस दशा को देखकर ,मैथिलीशरण गुप्त ने भी लिखा -                              ''अबला जीवन हाय ,तुम्हारी यही कहानी ,
                                                आँचल में है दूध ,आँखों में पानी। ''
महादेवी वर्मा द्वारा रचित  -मैं नीर भरी ,दुःख की बदली। 

इन पंक्तियों द्वारा नारी की दशा का वर्णन होता है।'' दहेज प्रथा ''के कारण बहुत से स्थानों पर तो बेटियों को या तो कोख़ में ही मार दिया जाता या फिर पैदा होते ही दूध में डुबोकर मार दिया जाता। आज भी मशीनों द्वारा कुछ लोग लिंग की जाँच करा लेते हैं ,जिस कारण गर्भस्थ शिशु को गर्भ में ही मार दिया जाता ,इसका एक कारण ''दहेज़ प्रथा ''को भी बताया जाता। जिसका परिणाम ये हुआ कि संतुलन बिगड़ने लगा लड़कों की अपेक्षा लड़कियों की संख्या सीमित होती गयी और महिलाओं की दशा बद से बद्त्तर होती चली गयी। इन परिस्थितियों को देखते हुए ,महिलाओं को फिर से सशक्त करने का बीड़ा उठाया गया उनकी शिक्षा पर भी जोर दिया जाने लगा। अब महिलाओं अथवा लड़कियों के सामने अपने को साबित करने की चुनौती थी और उन्हें मौक़े भी दिए गए और उन्होंने कर भी दिखाया- पुलिस अफसर से लेकर ,राजनीति ,शिक्षा  ,खेल जगत से लेकर ,पायलट ,मिल्ट्री इत्यादि क्षेत्रों में अपना परचम लहराने लगी। शहरों में ही नहीं गाँवों में भी महिलाओं में अपने को साबित करने की होड़ लग गयी। ग्रामीण क्षेत्रों की महिलायें भी पीछे न रहीं ,उन्होने भी अपने को सही साबित कर दिखाया और अपनों का विश्वास जीता। जिस कारण उनसे प्रेरित होकर अन्य लोगों को भी बढ़ावा मिला। धीरे- धीरे महिलाओं के लिए  रास्ते खुलते चले गए। इन सबके लिए उन महिलाओं के कार्य सराहनीय हैं जो औरों के लिए मिसाल बनी। 
                ''बेटी बचाओ ,बेटी पढ़ाओ ''के नारे के साथ आगे बढ़ीं ,इतना ही नहीं ,जो महिलायें पढ़ भी नहीं पाईं अथवा कम पढ़ी -लिखी थीं वे भी पीछे न रहीं और अपने हुनर के दम पर पापड़ ,अचार बनाना ,मेंहदी लगाना ,सिलाई करना ,क्रोशिया से बुनना इत्यादि कुटीर उद्योगों द्वारा अपनी आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ किया। अपने को साबित कर दिखाया कि नारी चाहे तो क्या नहीं कर सकती ?कहने को तो ये चार पन्नों का लेख है किन्तु न जाने कितनी कुप्रथाओं को तोड़ते हुए ?यहां तक आना कोई आसान कार्य नहीं था। उसके लिए कदम -कदम पर दुविधाएँ रहीं किन्तु उनका आत्मविश्वास नहीं डगमगाया। भारत  में ही नहीं ,विदेशों में भी अपनी कार्यकुशलता का डंका बजवा दिया किन्तु आज भी वो मुक़ाम हासिल नहीं कर पाईं जो उन्हें मिलना चाहिए था ,कारण -
उनसे व्यवहार में आज भी असमानता की  जाती है ,बराबर की मेहनत और कार्य के पश्चात भी उन्हें पुरुषों के मुकाबले कम वेतन दिया जाता है। 
पुरुषों का अहम भी उनके आगे बढ़ने में बाधक है। 
पुरुष वर्ग आज भी स्त्री को मात्र ,'भोग्या 'की दृष्टि से देखते हैं ,कुछ क्षेत्रों में महिलायें ''शारीरिक शोषण ''
का शिकार भी होती हैं। 
पुत्रों का सम्पत्ति पर अधिकार होता है ,बेटियों को इससे वंचित रखा जाता है। 
शिक्षा दर अभी भी कम है। 
महिलाओं को घर से दूर भेजने पर ,घरवाले चिंतित होते हैं क्योंकि उनकी सुरक्षा का सवाल है। 
ऐसी ही कुछ समस्याएँ अपनों के साथ देखकर शिक्षा से विश्वास उठ जाना ,अधूरी शिक्षा का भी एक कारण है। शहरी क्षेत्रों की  महिलायें आपराधिक हमलों की शिकार होती हैं जिसे देखकर ग्रामीण क्षेत्रों की लड़कियों को जल्दी घर बैठा लिया जाता है। 
देर रात तक कार्य करने में भी अपने को असहज पाती  हैं।  
आज के समय में लड़कियों को अपने को साबित करने के लिए अधिक संघर्ष नहीं करने पड़ते सभी सुख -सुविधाएँ उपलब्ध हो जाती हैं ,जिस कारण शिक्षा पर अधिक ध्यान न देकर आधुनिक उपकरणों में अधिक समय व्यय करती हैं। आज के बच्चे कम समय और कम मेहनत में अधिक धनोपार्जन के साधन ढूंढते हैं। 
सरकार द्वारा अनेक योजनाएं लागू होने पर भी उनका लाभ नहीं उठा पाते हैं। 
अब महिलाएं अपने अधिकारों का दुरूपयोग भी कर रही हैं। 
गृहकार्य से बचना ,बड़ों का मान -सम्मान न करना ,शिक्षित होने पर भी अधिकारों का दुरूपयोग करना ,जिम्मेदारियों से बचना ,पैसे के पीछे दौड़ना जैसी ख़ामियाँ भी पल्ल्वित हो रही हैं।

 
                आज महिलाओं को सशक्त होने के लिए शिक्षा पर ध्यान देने के साथ -साथ अपने आपको आर्थिक ,सामाजिक और राजनैतिक रूप से अपने को मजबूत बनाने पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है ,उसे सोच बदलने की आवश्यकता है। आगे बढ़ने के लिए उसे प्रयासरत रहना होगा वरना रूढ़िवादी परम्पराओं से निकलकर ,अपने ही बने जाल में फंसकर रह जायेगी जो उसके लिए घातक सिद्ध  होगा। 



















laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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