शब्दों को सोचती हूँ ,
शब्दों से खेलती हूँ।
शब्दों का ताना -बाना है ,
भावनाओं से बुनती हूँ।
क्रोध में निकले ,तो तीर ,
प्यार में रसभरी फुहार हैं।
म्यान से निकली तलवार हैं।
शब्दों का मायाजाल है।
प्रेम भरी पुकार हैं ,
अपनों का प्यार -दुलार हैं।
हार की जीत हैं ,
तपती रेगिस्तान में ठंडी फुहार हैं।
मधुर मुस्कान हैं,
टूटे दिल का उपचार हैं।
नाव की पतवार हैं ,
डूबते का किनारा हैं ,
दिल तक पहुंचने का सहारा हैं।
तलवार ही नहीं ,ढ़ाल भी हैं शब्द।
माखन की चिकनाई ही नहीं ,
मीठी चाशनी भी हैं ,शब्द।
अपने -पराये ,पराये अपने बना दे ,
कैसा 'मायाजाल 'हैं ये शब्द।
यारों के यार हैं ,
बूझो तो दुधारी तलवार हैं।
सपनों से रंगीन हैं ,
अंधकार से काले भी ,
शब्दों का' मायाजाल 'है।