bevafa sanam [ part 1]

मनु ने आज बहुत ही सुंदर झालरदार फ्रॉक पहनी है ,आज वो अपने पापा के साथ किसी कार्यक्रम में जा रही है ,अपने बाल अच्छे से बनाये और उनमें उसने तितली वाली पिन लगाई और अपने पापा के साथ चली दी। मनु कहने को तो सिर्फ पाँच साल की बच्ची है किन्तु रहती बड़ी समझदारी से है। कभी भी अन्य बच्चों की तरह शरारतें नहीं करती ,उसे साफ़ -सुथरे कपड़े पहनने का शौक, होने के साथ -साथ सफ़ाई से रहने की भी आदत है। अपने को वो विशिष्ट समझती है। वो अपने पापा का हाथ पकड़कर उस स्थान में प्रवेश करती है ,जहाँ कुछ लोग पहले से ही इकट्ठे हैं। मिठाई और सब्जियों की खुशबु चहुँ ओर फैली है। कुछ लोग झुण्ड बनाकर आपस में बातचीत कर रहे हैं। उसके पापा भी किसी जानने वाले से ''राम -राम ''करके उस ओर चल दिए।वो भी पापा का हाथ थामें चली जा रही थी ,उसके पापा उन लोगों के बीच बैठ गये। तभी उसने हाथ जोड़कर सबका अभिवादन किया और पास में ही पड़े मूढ़े पर बैठ गयी। अपने मित्रों और

रिश्तेदारों से मिलकर पुष्करनाथ जी अपनी वार्तालाप में तल्लीन हो गए ,उन्होंने ध्यान ही नहीं दिया कि साथ में छोटी बच्ची है। मनु कुछ देर तक ऐसे ही बैठी रही, फिर वहाँ खेल रहे ,बच्चों को देखकर अपना समय व्यतीत करने लगी। तभी उसके पापा की आवाज़ आई -मनु लो ,नाश्ता कर लो और फिर वो चुपचाप पकौड़ी ,मिठाई और फ़ल खाने लगी। एक बुजुर्ग बहुत देर से बैठे उसकी हरकतें देख रहे थे। उन्होंने देखा ,ये बच्ची अपने पिता के पास इतनी देर से बैठी है ,न ही हम उम्र बच्चों में खेलने गयी और न ही पिता को परेशान किया। अपनी उम्र से कहीं ज्यादा समझदार है। 
                  पुष्करनाथ ! तुझे पता है ,सगाई में रामदास जी भी आयें हैं। पुष्करनाथ जी   अनभिग्यता जताते हुए बोले -कौन  ? अरे वही जो सकरपुर के नामी -गिरामी रईस हैं, त्रिभुवन ने बताया। उन्हें कौन नहीं जानता ,क्या किसी रिश्तेदारी में हैं? पुष्करनाथजी ने पूछा ?हाँ ,उनके यहाँ हमारी बुआ की बेटी ब्याही है त्रिभुवन ने गर्व से कहा। उनका तो बहुत ही नाम सुना है ,वैसे भी सुना है ,बहुत  सज्जन व्यक्ति हैं।  पुष्करनाथजी ने  उनसे मिलने इच्छा जाहिर की। त्रिभुवन ने दूर से ही इशारा करके बताया ,आप उनसे मिल लीजिये, वो वहां बैठे है ,अभी मुझे काम है। पुष्करनाथ जी की ,उनसे मिलने की इच्छा इतनी तीव्र थी कि मनु का हाथ पकड़ा और उस और चल दिए। पुष्करनाथजी को पहले से ही लोगों से मिलना उनसे बातचीत करना अच्छा लगता है ,वो किसी भी अनजान व्यक्ति से  घंटों बात कर  लेते थे,ये उनमें अद्भुत प्रतिभा भी कह सकते हैं। ये वो ही व्यक्ति थे, जो मनु को बहुत देर से देख रहे थे। मनु  भी अभिवादन करके खड़ी हो गयी ,पुष्करनाथजी ने पहले तो अपना परिचय दिया और उनसे बातें करने लगे। रामदास जी  मनु को खड़े देखकर बोले -बेटा ,क्या आप खेलते नहीं ?मनु ने हाँ में गर्दन हिलाते हुए कहा -खेलती हूँ। तब जाओ !आप भी उन बच्चों के साथ खेलो। मनु ने अपने पापा की तरफ देखा -उन्होंने भी कह दिया ,मैं यहीं हूँ, तुम खेल लो। मनु आश्वस्त होकर चली गयी। उसके जाने के बाद रामदासजी बोले -आपकी बेटी बड़ी समझदार है ,मैं इतनी देर से उसे ही देख रहा था ,वरना  बच्चे तो एक -पल भी चैन से न बैठें,पुष्करनाथ जी ने कभी इस ओर ध्यान ही नहीं दिया किन्तु उनके  प्रशंसा करने पर प्रसन्न हुए और बोले -ये शुरू  से ही समझदार और होशियार है ,पढ़ाई में भी बहुत अच्छी है।पुष्करनाथजी ने  आज तक अपनी बेटी की  इतनी प्रशंसा कभी न की होगी ,उन्हें मन ही मन अपनी बेटी पर गर्व हो रहा था कि इतने नामी -गिरामी अमीर व्यक्ति मेरी बेटी की प्रशंसा कर रहे हैं। 
                  हाँ जी, वो तो है ,वो उस तरफ मेरा पोता खेल रहा है ,देखो कितना मस्त है ?उसे किसी बात की कोई फ़िक्र नहीं ,दो बार बुला चुका हूँ ,खेलने में भी इतना मस्त है कि कुछ खाया  भी नहीं है ,उसकी माँ भी सारा दिन उसके पीछे ऐसे ही दौड़ती रहती है, सुनता ही नहीं। आपकी बिटिया को देखकर लगा कि देखो कितनी समझदार बच्ची है ?रामदास जी के मुँह से अपनी बेटी की इतनी प्रशंसा सुनकर पुष्करनाथ जी गदगद हो उठे, उन्होंने नज़रभर कर आज अपनी बेटी की तरफ देखा जो उनके पोते के साथ ही खेल रही थी।तभी त्रिभुवन आया ,बोला -चलिए ,सगाई का समय हो गया ,आप लोगों को भी बुलाया है। सब शांत बैठ  गए , सिर्फ़ पंडितजी की ही आवाज़ आ रही थी। सगाई के पश्चात सब खाना खाने लगे। रामदास जी जबरदस्ती अपने पोते को रोककर, खाना खिलाने लगे किन्तु वो खेलना चाहता था। तभी मनु उसके पास गयी बोली -दादाजी परेशान हो रहे हैं ,पहले तुम खाना खा लो ,फिर दोनों खेलेंगे। मनु उसके पास बैठ कर वहीं खाने लगी। श्याम ने उसकी बातों का अनुसरण किया ,इसे देख रामप्रसादजी मनु से और प्रभावित हुए , पास बैठे, पुष्करनाथजी से बोले - भई !आपकी बिटिया ने मन मोह लिया ,ये बच्चे बड़े होते तो मैं इनका रिश्ता कर देता। पुष्करनाथ जी हँसते हुए बोले - आपके परिवार से कौन रिश्ता जोड़ना नहीं चाहेगा? किन्तु अभी तो ये सिर्फ़ पॉँच वर्ष की है। रामनाथजी भी हँस दिए ,बोले मेरा पोता भी ज्यादा बड़ा नहीं सात वर्ष का ही है और आपका देखा -भाला है। 

                   तभी पास खड़ा त्रिभुवन जो उनकी बातें सुन रहा था , बोला -जब दोनों तरफ से हाँ है तो बात पक्की करो। रखो रुपया !पुष्करनाथ जी बोले -अभी दोनों बच्चे छोटे हैं ,पढ़ने दो ,जब बड़े हो जायेंगे ,तब बात कर लेंगे। अभी घर में भी बात करनी होगी। त्रिभुवन बोला -मैं क्या अभी विवाह करने को कह रहा हूँ ?विवाह  तो तभी करना जब दोनों पढ़ -लिख जाएँ ,बड़े हो जाएँ। बस ज़बान देने की बात कर रहा हूँ ,इसमें कोई बुराई नहीं। उनकी बातें सुनकर दो -चार लोग और इकट्ठे हो गए ,ये सुनने के लिए कि क्या माज़रा है। त्रिभुवन बोला -क्यों भाइयों ,रामदास जी को पुष्करनाथ जी की बेटी पसंद आयी है ,अपने पोते के लिए ,मैंने कहा -ऐसी बात है तो रखो रुपया ,बात पक्की। पुष्करनाथ जी पढ़े -लिखे थे ,वे इतने समय पहले किसी भी बात का वचन नहीं देना चाहते थे। पता नहीं बाद में कब, क्या परिस्थिति हो ?किन्तु त्रिभुवन पूरे उत्साह में था ,बोला -पुष्करनाथजी ,कैसे पीछे हट रहे हो ?बेटी का नसीब है , जो ऐसे बड़े ख़ानदान से रिश्ता ,मांगकर ले रहे हैं ,या सोच रहे हो ,कहीं रामदासजी का पोता ,बड़ा होकर क़ामयाब न हो पाया तो क्या होगा ?अरे! तब भी नुकसान नहीं है ,''मरा  हुआ हाथी भी सवा लाख का होता है ''आपकी बिटिया को फिर भी किसी चीज की कमी न होगी। बात तो त्रिभुवन की अपनी जगह ठीक थी। पुष्करनाथजी बोले -  रामदास जी ने अपनी सोच बताई थी ,प्रस्ताव नहीं रखा था। उसी सोच को अंजाम दे  दीजिये ,क्यों रामदास जी ,आपको कोई आपत्ति तो नहीं ?जो ये प्रस्ताव रिश्तेदारी में जुड़ जाये त्रिभुवन बोला। रामदास जी  बोले -मुझे कोई आपत्ति नहीं, किन्तु हमने ज़बान दे दी कि बड़े होने पर यदि इनकी इच्छा हो तो हम अपने पोते का विवाह इनकी बिटिया से कर देंगे। क्या एक रुपया भी नहीं है? पुष्करनाथजी ,उनकी तरफ से हाँ हो गयी ,अब  तो निकालो, शगुन का  एक रुपया। यहां ये बातें हो रहीं थीं ,उधर दोनों बच्चे इन बातों से अनजान अपने खेल में मस्त थे।तभी किसी व्यक्ति ने श्याम का हाथ पकड़ा और उसे लगभग खींचते हुए ले गया।   

               पुष्करनाथ जी ने उसके तिलक लगाया और हाथ में एक रुपया दे दिया ,सबने ताली बजाई ,ताली की आवाज सुनकर  मनु भी आ गयी , वो भी ताली बजाने लगी। त्रिभुवन बोला -भई यहाँ तो बात पक्की हो गयी अब जिस सगाई में आये हैं ,वहां भी थोड़ा ध्यान दे लें। पुष्करनाथ जी पहले तो थोड़े चिंतित थे ,पता नहीं इसकी माँ क्या कहेगी ?किन्तु इतने बड़े ख़ानदान से रिश्ता जुड़ने की सोचकर सिहर उठे। घर पहुंचकर सारी बातें अपनी पत्नी को बताईं ,सुनकर बोली -वैसे तो सब ठीक है किन्तु जब बड़े हो जाते ,पढ़ -लिख जाते, तब बात पक्की होती तो बेहतर था, पूरी ज़िंदगी का सवाल है।पुष्करनाथ जी बोले -क्या करता ?तुम्हारा वो जो देवर है ,न त्रिभुवन ,उसने ही इस बात को तूल दिया और बात पक्की करवाकर ही माना। दोनों सोच रहे थे कि हमें इस बात से प्रसन्नता होनी चाहिए किन्तु पता नहीं क्यों मन शून्य हो गया ? 

                   क्या दोनों बच्चे फिर मिले ?बड़े होकर उनका विवाह हुआ या नहीं उन्होंने अपने बड़ों की बात का मान रखा या नहीं। फिर.' बेवफ़ा सनम'' कौन  है ?जानने के लिए पढ़िए[ भाग दो ]
                 




















 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

Post a Comment (0)
Previous Post Next Post