अभी तक आपने पढ़ा ,मनु -श्याम दोनों बच्चे किसी कार्यक्रम में जाते हैं ,वहां पर बातों ही बातों में बड़ों में बात ठन जाती है और दोनों का ,बचपन में ही रिश्ता तय कर देते हैं। दोनों की अपने -अपने घर में परवरिश होती है और दोनों को ही अपने रिश्ते के विषय में मालूम नहीं है। मनु पढ़ -लिखकर डॉक्टर बन जाती है और श्याम एक कवि और लेखक होने के साथ -साथ अपना व्यापार संभालता है। इस बीच मनु को अपने साथ पढ़ रहे मोहित से प्यार हो जाता है। एक दिन ,पहली बार मनु के घर में ही खाने पर दोनों की मुलाक़ात होती है। मनु को श्याम पसंद तो आता है किन्तु वो तो मोहित को अपना दिल दे चुकी होती है किन्तु श्याम से बात करते हुए मनु को लगता है कि ये पति नहीं तो दोस्त जरूर बन सकता है। अब आगे ---
मनु बोली -आपने तो मेरे मन की बात कह दी ,जीवन हमारा है ,हमें तय करना है ,कैसे व्यतीत करना है ?और बताओ !अपने विषय में ,पढ़ -लिखकर बाहर शहर में भी तो नौकरी कर सकते थे, फिर गांव में ही क्यों रह गए ?श्याम ने पूछा -हम शहर में नौकरी करने क्यों करने आते हैं ?फिर स्वयं ही ज़बाब देते हुए बोला -काम के लिए ,दो पैसे कमाने के लिए और हम तो काम देते हैं। जब हमारा वहीं से काम चल रहा है तो शहर में आकर क्या करना है ?गांव का खुला शांत ,वातावरण ,सब एक -दूसरे की मदद के लिए तत्पर ,प्यार है ,अपनापन और सम्मान है। शहर में भीड़ -भाड़ हर कोई एक -दूसरे के कंधे पर चढ़कर आगे बढ़ना चाहता है। कोई किसी को पूछता भी नहीं। मकान इतने छोटे कि शुरू होने से पहले ही ख़त्म हो जायें और नौ से छः बजे तक की कठिन तपस्या, उसके बाद तब महीने में आकर मिलते हैं ,दस -पंद्रह ,या बीस -पच्चीस हज़ार। मनु मुस्कुराकर बोली -कवि महाशय ,आपको बड़ा पता है ,शहरों के विषय में ,आप तो गांव में रहते हैं, अपनी बड़ी सी हवेली में। श्याम बोला -मैं ही तो जानता हूँ, शहर के विषय में। मनु बोली -वो कैसे ?अरे !बड़ी लम्बी कहानी है ,अभी समय नहीं है फिर बताऊँगा। मनु को उसके साथ बातें करने में अच्छा लग रहा था ,बोली -बताओ न ,हम आपकी कहानी सुनना चाहते हैं ,मनु ने इठलाकर कहा। श्याम ने उसकी तरफ मुस्कुराकर देखा -बोला -आप क्यों मेरे विषय में जानने में इच्छुक हैं ?मनु को एहसास हुआ और मन ही मन सोचने लगी -मैं क्यों किसी की कहानी में इतनी दिलचस्पी ले रही हूँ? फिर बोली -दोस्ती के नाते ,अभी हम दोस्त तो बन ही सकते हैं। तुम्हें पता है ,मैं यहाँ क्यों आया हूँ ?श्याम ने पूछा। हाँ, किन्तु मैं अभी तुमसे दोस्ती ही करना चाहूँगी ,अभी किसी और रिश्ते में बंधना नहीं चाहती और अभी मेरी पढ़ाई भी पूरी नहीं हुई , मनु ने अपना मंतव्य बयान किया।
श्याम बोला -मैं भी यही चाहता हूँ कि हम पहले एक -दूसरे को समझ लें ,तब बात आगे बढ़े। यही बात तो मुझे तुम्हारी अच्छी लगी ,चलो आज से हम पहले दोस्त हुए ,मनु ने एकदम अपना हाथ आगे बढ़ा दिया। श्याम ने मुस्कुराकर उसका हाथ थामा। वो मन ही मन सोच रहा था ,''ये हाथ तो बचपन में ही हमारे बड़ों ने मिला दिए, किन्तु अब जैसा तुम चाहो। मनु सोच रही थी ,-मैंने सोचा था कि कोई गांव का गंवार होगा उसे अपनी पढ़ाई का रौब दिखा चलता कर दूँगी। तभी उसकी मम्मी की आवाज़ आती है ,मनु ...... ,चलिए चलते हैं ,आपने तो हमें अपनी कोई कविता भी नहीं सुनाई। श्याम बोला -'' चाँद मुझसे पूछता है कि चाँद की कीमत क्या है ?कहकर बोला -अब तो मिलते ही रहेंगे , ये मेरा फ़ोन नंबर है ,नंबर लेते हुए मनु बोली -अभी आपकी कहानी भी सुननी है। श्याम बोला -कभी आओ ,हमारे गरीबखाने में ,तब आराम से कहानी भी सुनने को मिलेगी। मनु के चेहरे की मुस्कुराहट देखकर ,रत्नाजी और पुष्करनाथ जी को मन ही मन बड़ी तसल्ली हुई। बहुत सारे उपहार देकर उन्होने श्याम को विदा किया।उन लोगों के जाने के पश्चात रत्नाजी ने अपनी बेटी से पूछा -श्याम कैसा लगा ?अच्छा है ,मनु ने छोटा सा ज़बाब दिया। उनके चेहरे पर संतोष आया ,तभी बोली -मैं शादी के लिए मोहित को ही पसंद करती हूँ। रत्नाजी के चेहरे पर पुनः चिंता के बादल छा गए। वो बोलीं -तुम्हारी श्याम से क्या बातें हुईं ?मनु बोली -कुछ नहीं। तुम तो बड़ी मुस्कुरा रही थीं रत्नाजी ने पूछा। मुस्कुराने का ये मतलब नहीं कि मैंने उसे पति के रूप में मान लिया या मैं उससे विवाह कर लूँगी ,बस हम अच्छे दोस्त बन गए। घर में कोई आता है तो उसके साथ बुरा व्यवहार तो नहीं कर सकते, मनु ने अपनी बात उन्हें समझा दी।पुष्करनाथजी ,दोनों माँ -बेटी की बात सुन रहे थे उन्होंने अपनी पत्नी को बुलाया।
रत्नाजी के आने पर पुष्करनाथ जी बोले -तुम परेशान मत होना ,अब ये पढ़ी -लिखी समझदार है ,इनके रिश्ते को समय दो ,समय के साथ वो स्वयं ही समझ जाएगी कि किसके साथ उसे जीवन व्यतीत करना है ?या उसके लिए क्या सही है ?मनु अपनी पढ़ाई में व्यस्त हो गयी। एक सप्ताह पश्चात अचानक उसके पास फ़ोन आया। हैलो !कौन ?मनु ने पूछा। हैलो !उधर से आवाज़ आयी, क्या आप हमें इतनी जल्दी भूल गयीं ?मैडम ,अभी हमें मिले एक सप्ताह ही हुआ है ,और आप हैं कि हमें भुला दिया। उस आवाज़ को पहचानते हुए मनु मुस्कुराकर बोली -ओह !कविराज आपको कौन भूल सकता है ?और कहो ,हमें कैसे याद किया ?क्या हम अपनी दोस्त को याद नहीं कर सकते या कोई बहाना ढूँढना पड़ेगा ?उधर से आवाज़ आती है। नहीं -नहीं ऐसी कोई बात नहीं और बताओ ,क्या कर रहे हो ?मनु ने पूछा। अपने ऑफिस में बैठकर अपनी प्रेरणा अपनी दोस्त को याद कर रहे हैं ,और तुम हो कि अब भी अपने काम में उलझी हो श्याम की आवाज़ ने उसे ये सोचने पर मजबूर कर दिया कि इसको कैसे मालूम? मैं बात करते -करते अपना काम कर रही हूँ। मनु ने अपने हाथ रोके और बोली -क्या तुम्हें फ़ोन पर दिख रहा है कि मैं क्या कर रही हूँ ?मन की आँखों से देखा ,जो तुम्हारे पास नहीं। तभी मोहित की आवाज़ आती है ,मनु क्या तुमने सारे नोट्स तैयार कर लिए ?हाँ अभी और वो श्याम से क्षमा याचना करके फोन रखकर फिर से अपने काम में व्यस्त होने का प्रयास करती है किन्तु अब उसे लगता है, जैसे श्याम की नजरें ,नहीं, मन की आँखे अब भी उसके पीछे लगी हैं। मनु अपने कॉलिज की केंटीन में अकेली बैठी ,सोच रही थी -''मोहित ने कभी उससे इस तरह की बातें नहीं कीं ,उसके साथ रहकर भी कभी इतना अच्छा नहीं लगा ,वो तो हमेशा पढ़ाई और ज्यादा पैसे कमाने की ही सोचता है। फिर अपने आप ही जबाब भी ढूंढ़ लिया -हो भी क्यों न ?उसके माता -पिता ने न जाने कितनी मेहनत से कमाकर ,उसकी पढ़ाई पर पैसा लगाया है ?अब उससे ही उम्मीद है कि वो अपने माता -पिता का अरमान पूरा करे। इसी तरह के सपने मुझे भी दिखाए, कि दोनों बड़ा सा अस्पताल खोलकर पैसा कमाएंगे और यही हम दोनों का जीवन होगा। श्याम का क्या है ?उसके पास तो बाप -दादा का कमाया पैसा है , अपनी ही कम्पनी ,उसे तो इश्क़ ही सूझेगा। इस तरह दोनों की तुलना कर वो अपने मन को समझा रही थी। तभी उसे याद आया कि श्याम कह रहा था कि उसकी कोई लम्बी कहानी है, वो क्या है ?वो चाहे तो शहर में घर लेकर भी रह सकता है।
एक दिन मनु ने स्वयं ही श्याम को फ़ोन किया -हैलो !उधर से काँपती से आवाज आयी। मनु तुम अभी फ़ोन रखो ,मैं तुम्हें बाद में कॉल करता हूँ। पहले तो मनु को बुरा लगा, किन्तु सोचा, शायद कोई परेशानी होगी और फ़ोन रख दिया। कुछ समय पश्चात श्याम का फ़ोन आता है ,बोला -आज कैसे याद किया ?क्यों ? मैं अपने दोस्त को याद नहीं कर सकती ? आज कैसे परेशान थे ?मनु ने पूछा ?अरे ,कुछ खास नहीं ,वो हमारे यहां जो काम करते हैं ,उसका बेटा बिमार था उसे दिखाने के लिए डॉक्टर के पास ले गया था, श्याम ने बताया। तुम क्यों ले गये ?क्या और कोई नहीं था ?मनु ने पूछा।यहां कोई अच्छा डॉक्टर नहीं है , अच्छा डॉक्टर पास ही के क़स्बे में रहता है ,तब मैं गाड़ी से ले गया था। श्याम ने महसूस किया कि मनु आप से तुम पर आ गयी है। भई ,हमारे यहाँ काम करता है तो हमारी ही ज़िम्मेदारी बनती है कि उनके परिवार में कोई परेशानी है तो उनका सहयोग करें। वैसे बताओ ,आज हमारी याद कैसे आ गयी ?बस बैठे -बैठे याद आया कि तुम्हारी कहानी सुन लें मनु ने अपना मंतव्य बयान किया। ओह !तो आ जाओ ,एक दिन मिल भी लेंगे और तुम्हारा काम भी हो जायेगा श्याम बोला। ठीक है ,देखती हूँ ,क्या मैं अपने और दोस्तों को लेकर भी आ सकती हूँ मनु ने पूछा। हाँ -हाँ क्यों नहीं ,घूमना भी हो जायेगा ,तो फिर कब आ रही हो ?श्याम ने उतावलेपन से पूछा। अभी इतनी जल्दी कैसे ?अभी मैं अपने और दोस्तों से बात कर लूँ ,जब तय होगा, तब तुम्हें पता चल ही जायेगा मनु बोली। श्याम ने कहा -तब जल्दी ही कार्यक्रम बनाओ ताकि मेरा इंतजार पूर्ण हो। सुनकर मनु हँस दी और बोली -शीघ्र ही हम आते हैं तब तक तुम तपस्या करो। अगले दिन मनु मोहित को खोजती हुई उसके पास पहुंची ,बोली -तुम यहां हो ,और मैं तुम्हें कहाँ -कहाँ ढूँढ आई ?कहो ,कुछ काम है क्या ?मोहित किताबों के पन्ने उलटते हुए बोला। मनु बोली -कभी इन पुस्तकों से भी निकलकर बाहर भी देख लिया करो। मोहित ने अपनी पुस्तक से नज़र हटाकर मनु की तरफ देखा -उसके चेहरे पर ख़ुशी साफ झलक रही थी ,वो बोला -आजकल मैं देख रहा हूँ ,तुम कुछ बदली -बदली सी नज़र आ रही हो ,अब तुममें वो पढ़ाई का जोश नहीं रहा ,न ही फ़िक्र। मनु बोली -अब तुम ध्यान भी देते हो ,मैंने तो तुम्हें सिर्फ़ पढ़ाई के अलावा और कोई बात करते नहीं देखा। तुम क्या चाहती हो ?मैं अपनी पढ़ाई छोड़ ,तुम्हारे पीछे -पीछे रोमांस करता घूमूँ ,न ही स्वयं पढ़ाई में मन लगाती हो और मुझे भी 'डिस्टर्ब 'कर रही हो। मोहित की बातें सुनकर मनु के मन में जो प्रसन्नता थी, वो गायब हो गयी। उसकी बातों से आहत होकर वो बाहर आ गयी। उसे जो ख़ुशी श्याम से बातें करके मिलती थी वो ख़ुशी मोहित के साथ कभी नहीं मिली। मोहित को अपनी गलती का एहसास हुआ ,कुछ ज्यादा ही कह दिया और पता नहीं वो क्यों मुझे ढूंढ़ रही थी ?ये भी नहीं पूछा। यही सोचकर वो बाहर आ गया।
मोहित से नाराज़ हो मनु दूर एकांत में ,जहाँ कोई नहीं जाता ,एक बेंच पर बैठी थी ,मोहित उसे ढूँढता हुआ ,उसके पास आ बैठा। सॉरी ,कहकर बोला ,मैं चाहता हूँ कि अबकि बार अच्छे से तैयारी करूं और तुम भी ,ये हमारा आख़िरी वर्ष है , ज़िंदगी संवर जाएगी। मनु बोली -पढ़ना और नौकरी करना या काम करते रहने के सिवा ,क्या हमारी यही ज़िंदगी है ?कुछ ऐसे पल जो हमारे अपने हों ,हमारे लिए हों ,ये काम तो जीवनभर का है। हम इंसान हैं मशीन नहीं ,हमारी भावनायें भी होती हैं। उसकी बातों को सुन मोहित उसकी बदलती सोच को देख समझ रहा था ,बोला -तुम किसलिए मुझे ढूंढ़ रहीं थीं ?अब कुछ नहीं मनु को फिर वो बात याद आयी और उसकी इच्छा नहीं हुई कि मोहित को कुछ बताये।अगले दिन छुट्टी थी ,मनु ने अपनी दो सहेलियों को साथ लिया और मोहित के घर आ गयी और बोली -जल्दी तैयार हो जाओ ,हम कहीं जा रहे हैं। मोहित ने पूछने का प्रयास भी किया किन्तु वो कहती रही ,सरप्राइज़ 'है। उसकी गाड़ी तेज़ गति से काली ,धुली साफ, सड़क पर दौड़ रही थी। रात को थोड़ी बरसात हुयी थी ,इसी कारण मौसम थोड़ा सुहावना भी था। रास्ते में एक नदी थी ,तीनों उतरकर ,वहीं नदी में पैर ड़ालकर बैठ गयीं। मनु बोली -किसे तैरना आता है ?चलो थोड़ी तैराकी का मज़ा भी ले लेते हैं। मोहित को क्रोध आया -क्या यहॉँ तैरने के लिए आये हैं ?स्विमिंग तो ,स्विमिंग पूल 'में भी हो जाती। किन्तु वो मजा नहीं आता, जो मज़ा घर से दूर मस्ती करने में आ रहा है और तुम भी आ जाओ या इसी तरह 'जलकुकड़े 'बने रहोगे। मौसम का मज़ा लो मनु बोली। पता नहीं इस पर कौन सी धुन सवार है ,मोहित मन ही मन बुदबुदाया।
मनु को न जाने अचानक क्या सूझा ?और वो गाड़ी लेकर अपनी दो सहेलियों संग बाहर घूमने निकल जाती है। मोहित को तो उसने बताया भी नहीं कि वो कहाँ जा रही है ?मोहित उसके इस व्यवहार से परेशान है ,पता नहीं वो क्या चाहती है ,क्या कर रही है ? दूसरी तरफ, श्याम से उसकी कहानी सुनने के लिए बेताब है ,क्या मनु की श्याम से दोस्ती प्यार में बदली ?क्या मोहित का विवाह मनु से हुआ ?ये सब जानने के लिए पढ़िए -'बेवफ़ा सनम ''भाग चार।