Bevafa sanam [part 4]

आज  अचानक मनु अपनी दो सहेलियों संग और साथ में मोहित को लेकर कहीं  बाहर घूमने निकल जाती है। रास्ते में एक नदी पड़ती है ,वो वहां पर तैरने लगती हैं किन्तु ये सब मोहित को अच्छा नहीं लगता ,न ही उसे ये मालूम है कि मनु किस उद्देश्य से बाहर घूमने निकली है ?अब आगे -
                     तीनों सहेलियाँ तैरकर जब बाहर आती हैं तब मोहित बोला -चलो अब घर चलते हैं ,मनु हँसकर बोली -अभी कहाँ ?अब तो भूख भी लग आई ,चलो आगे कहीं देखते हैं ,कोई रेस्त्रां या ढाबा हो। मोहित ,क्या तुम यहाँ खाना खाओगी ?हाँ ,यहां कोई  ''फ़ाइव स्टार ''होटल नहीं मिलेगा  भूख तो मिटानी ही है और गाड़ी से आगे बढ़ जाती है। वो गाड़ी किसी शहर की तरफ नहीं, किसी गाँव की तरफ़ जा रही थी। रास्ते में एक जगह गाड़ी रोककर, वो चारों खाना खाते हैं ,अनजान जगह ,अनजान लोग ,वहाँ आते -जाते लोग उन्हें देख रहे थे। फिर मनु ने एक जगह गाड़ी रोककर, एक व्यक्ति से किसी गांव का रास्ता पूछा। अब तो उसकी दोनों सहेलियों ने भी उससे पूछा -हम वहां क्यों जा रहे हैं ,ऐसा क्या है वहां ?तुमने तो कहा था कि घूम -फिरकर मस्ती करके आ जायेंगे। हमने तो घर में भी यही बताया। मोहित भी बड़बड़ाने लगा -पता नहीं इसके दिमाग़ में क्या चल रहा है ?सारा दिन बर्बाद हो जायेगा। मनु बोली -तुम लोग क्यों व्यर्थ में परेशान हो रहे हो ?हम समय पर घर वापस पहुँच जायेंगे। क्या ??????ऐसी हिंदी तुमने कहाँ से सीखी ?चारु बोली। तुम अंग्रेजी बोलने वाली और इस तरह हिंदी ''क्यों व्यर्थ में परेशान हो रहे हो ?''कहकर दोनों हंसने लगीं। 

                  लगभग आधा घंटे पश्चात ,उसकी गाड़ी एक टूटी सी सड़क पर आ गयी। उसी के एक तरफ पत्थर पर ग्राम रामपुर लिखा था। कीर्ति बोली -मनु हम यहां क्यों आये हैं ?चलो आज तुम्हें एक शानदार हवेली दिखाती हूँ और वो आगे बढ़ चली। इस गाँव में हवेली ! मोहित ने ऐसे कहा ,जैसे उसे यकीन ही नहीं हुआ हो। सड़क के बाद दोराहे पर आकर मनु रुक गयी और फ़ोन करने लगी। कुछ देर यूँ ही इंतजार किया तभी एक गाड़ी उन्हें अपनी ओर आती दिखी। उस गाड़ी में श्याम था ,उसने अपना सिर गाड़ी से बाहर निकाला और बोला -''आख़िर तुम्हें हमारी मोहब्बत खींच ही लायी।'' नहीं ,तुम्हारी कहानी ,मनु ने उसे प्रतिउत्तर दिया। उसने देखा- मनु और उसकी दोस्त जींस में हैं ,इन लोगों को गाँव के अंदर ले जाना ठीक नहीं ,ये सोचकर वो उन्हें अपने'' फॉर्म हाउस '' ले गया। वो बहुत ही बड़ा था। सबने वहीं अपना डेरा डाला। कुछ समय पश्चात उनके लिए जूस ,ठंडाई का प्रबंध किया गया।जलपान के पश्चात ,मनु श्याम से बोली -तुम क्यों यहां रुके हो ?यहां की तो, सड़कें भी टूटी -फूटी हैं और कहाँ है, तुम्हारी हवेली ?श्याम बोला -मैं एकाएक गाँव के अंदर तुम लोगों को तुम्हारे कपड़ों के कारण  नहीं ले गया। क्यों, इन कपड़ों में क्या खराबी है ? ख़राबी कुछ नहीं ,बस गाँव में लड़कियाँ  इस तरह के कपड़े नहीं पहनती  हैं ,तो थोड़ा अज़ीब लगेगा। चारु हँसकर बोली -घाघरा -चोली पहनकर आते। नहीं घाघरा तो नहीं ,सलवार -सूट चल जाता ,श्याम बोला। कीर्ति ने मुँह बनाया -यक !श्याम ने देख कर नजरअंदाज कर दिया और बोला -तुम लोग थोड़ा आराम करो फिर तुम्हें गाँव दिखाकर लाते  हैं। कहकर वो तो चला गया किन्तु वे तीनों बोले -ये कौन है ,और हमें यहाँ क्यों लाई हो ?और ये किस कहानी और मोहब्बत की बातें हो रहीं थीं ?तब मनु ने उन्हें सारी बातें बतायीं ,जिसे सुनकर मोहित थोड़ा उदास हो गया ,वो समझ गया कि मनु उस ओर खिंच रही है ,शायद ये बात वो स्वयं भी नहीं जानती ,अब उसके बदले बर्ताव का कारण उसे पता चला।  
                   कुछ समय पश्चात श्याम आया बोला -चलो ,पहले हवेली दिखाते हैं और वे सारे गाड़ी में बैठकर हवेली देखने चल दिए। वहां उसने अपनी माँ और परिवार के अन्य सदस्यों से मिलवाया। उन्हें बताया गया कि ये लोग डॉक्टरी की पढ़ाई कर रहे हैं ,उसी के किसी काम से यहाँ आयें हैं। सभी महिलायें उन्हें देख मुस्कुरा रहीं थीं। इतनी बड़ी हवेली बड़े -बड़े कमरे ,नौकर काम करते घूम रहे थे। तभी कीर्ति को मस्ती सूझी ,मनु की तरफ इशारा कर बोली -ये तो यहाँ ,इससे पहले कि वो वाक्य पूर्ण करती बीच में ही श्याम बोला -हवेली देखना चाहती थी। जलपान के पश्चात वो उन्हें अपने कार्यालय ले गया।रास्ते में कीर्ति श्याम से  बोली -तुमने मुझे बताने क्यों नहीं दिया कि ये लड़की कौन है ?नहीं ,हर चीज का एक समय होता है ,वो लोग इस तरह इनका आना समझ नहीं पायेंगे , न ही उन्हें अच्छा लगेगा ,इसलिए मैंने अपने पापा से भी नहीं मिलवाया क्योंकि वो पहचान जाते। जब वो अपने कार्यालय पहुंचा , वहां उसका शानदार सा दफ़्तर था। चौकीदार ने गेट खोला -और वो अंदर गए। मनु बोली -लगता है ,जैसे ये ऑफ़िस ज्यादा पुराना  नहीं है ,हाँ अभी तीन -चार वर्ष ही हुए हैं। मैं बारहवीं करके बाहर पढ़ने जाना चाहता था किन्तु पापा ने मना कर दिया। मुझमें कुछ करने का जूनून सवार  था और गाँव से निकलकर बाहरी दुनिया देखना चाहता था। शहरों का आकर्षण मुझे अपनी ओर खींच रहा था। मैंने ज़िद करके ,अपनी माँ के द्वारा अपनी बात मनवा ली। मैं बाहर छात्रावास में पढ़ने लगा। मैं नेतागिरी करने लगा, कविताएँ और लेख भी लिखता। लगता सारी दुनिया जैसे मेरी मुट्ठी में आ गयी। स्नातक के पश्चात मैंने छात्रावास छोड़कर एक फ्लैट ले लिया। मेरे लिए वो बहुत था किन्तु मैंने तो कभी काम नहीं किये ,इसके लिए मैंने एक नौकर रख लिया। वो मेरे काम करता चला जाता। एक दिन वो नहीं आया ,दूसरे दिन भी नहीं आया। मैं परेशान हो उठा। मैंने एक दिन बातों ही बातों में उसका पता पूछ लिया था और मैं उसे खोजता उस तरफ़ गया।वहाँ गंदी और संकरी गलियाँ देख मैं हैरान था। और वे गंदे टूटे घर देख ,मैं सिहर उठा। मैंने किसी से उसका नाम बताकर उसके घर का पता पूछा। मुझे वहाँ तेज बदबू आ रही थी। मैंने नाक पर रुमाल रख लिया। मैंने उस दिन शहर का वो दूसरा रूप भी देखा था। किसी ने बताया -पैसे के लिए, उसने अपनी बेटी को बेच दिया। एक ही कमरे में छह -सात लोग रहते हैं। उसका भी भाड़ा नहीं दे पाते। काम नहीं मिलता तो फाके करने पड़ते हैं। मैं वहां से आ गया किन्तु शहर के प्रति मेरा जो भी आकर्षण था ,समाप्त हो गया। मैंने सोचा -यदि तुम्हारे पास क़ाबिलियत और पैसा नहीं है तो ,शहर में भी जीवन काटना मुश्किल है। कोई किसी को नहीं पूछता ,जिनके पास पैसा है ,वो इंसान को इंसान नहीं समझते। आदमी अपनी मंजिल तक पहुंचने के लिए, रात -दिन मशीन की तरह कार्य कर  रहा है फिर भी संतुष्ट नहीं।बिन पैसे तो, क्या गांव क्या शहर ,कोई फ़र्क नहीं पड़ता। उसे जीवन जीना नहीं ,जीवन काटना कहते हैं। तब शहर के प्रति मेरा मोह भंग हो गया। कम से कम यहां लोगो में इंसानियत तो बची है।तब मैंने सोचा -पढ़ -लिखकर ,मेरा काम रोजगार ढूँढना नहीं वरन रोज़गार देना होगा। ये मेरे लिए अच्छा ही हुआ कि मेरे पूर्वजों ने काफ़ी जमींने  और धन छोड़ा है  और मैंने यहॉँ अपनी अच्छी फ़सलों के लिए और मजदूर बुलवा लिए और अपनी फ़र्म खोली, जहां ताज़ी सब्जियों के साथ उनसे संबंधित उत्पादन भी बनाये जाते हैं ,जैसे सॉस ,मुरब्बे ,जैम इत्यादि। 
                   मनु बोली -वो बाहर के मजदूर ,उन्हीं झुग्गीयों में से लाये गए होंगे। वहीं से वो मजदूर मैंने बुलवाये ,वहीं तो मुझे इस तरह जीने की सीख़ मिली ,मैंने भी प्रयत्न किया कि जहां तक हो सके उन लोंगो की परेशानियों को कम कर सकूँ। वैसे, ये बात तुमने कैसे जानी ?श्याम ने मनु की तरफ़ मुस्कुराते हुए देखकर कहा। तुम्हारी कहानी से अंदाज़ा लगाया मनु बोली। मोहित जो अब तक चुपचाप बैठा था बोला -तुम्हारे पास पैसा था, जिसके पास नहीं है ,वो तो बाहर जाकर रोज़गार ही ढूँढेगा, और जब मेहनत करेगा तो उन्नति की भी सोचेगा और वो उन्नति किसी गांव में रहकर तो नहीं हो सकती। मेरे माता -पिता ने इतना पैसा मेरी शिक्षा पर लगाया और मैं किसी गांव में कुछ लोगो के लिए  तो अपना क्लीनिक नहीं खोल सकता। आधे तो फ़ीस देने में ही असमर्थ होंगे। इस तरह तो मेरी शिक्षा का दुरूपयोग ही होगा क्योंकि जब मैं स्वयं में समर्थ नहीं होंगा तो दूसरों की मदद कैसे कर सकता हूँ ?श्याम बोला -तुम्हारी बात सही है किन्तु इसके लिए ,जज़्बा होना चाहिए ,तभी कुछ कर सकते हैं। अपने स्वार्थ से ऊपर उठकर सोचना होता है। मान लीजिये ,आप औरों के लिए कुछ करना चाहते हैं तो शहर में अपना अस्पताल खोलिये। पूरे सप्ताह में एक दिन ग़रीब लोगों के लिए खोलिये अथवा किसी भी एक दिन को किसी भी गांव में जाकर लोगों का फ्री इलाज़ कीजिये अथवा कम फ़ीस लीजिये इलाज़ के साथ दुआएँ भी मिलेंगी। बात वो ही है , करने की इच्छा होगी तो साधन भी निकल आयेंगे, मोहित चुप हो गया।श्याम ने उन लोगों को अपनी खेती और मजदूरों के घर भी दिखाये और फिर वापस आ  गए।मनु और उसके दोस्त अपनी -अपनी पढ़ाई में जुट गए। मनु को  बीच -बीच में श्याम की याद आती किन्तु उसने अपनी परीक्षा पर ही ध्यान देना बेहतर समझा। 

                     आज परिक्षा परिणाम था , वो अपने परिणाम के लिए बेहद परेशान थी उसका दिल रह -रहकर धड़क रहा था। तभी फोन की घंटी ने उसका ध्यान बटांया। उधर से मोहक सी आवाज़ ने पुकारा -क्यों परेशान हो ?सफल तो तुम्हें होना ही है ,हमने तपस्या जो की है। तुमने कौन सी तपस्या की ?मैंने मेहनत की मनु बोली । क्यों ,हमने इतने महीनों तुम्हें फ़ोन नहीं किया ,तुम्हें अपने मोहजाल से दूर रखा ,तुम्हारी मधुर वाणी से वंचित रहे ,क्या ये तपस्या नहीं थी ?परेशान न हों ,हमारा आशीर्वाद तुम्हारे साथ है। जी भगवन !धन्यवाद कहकर उसने फ़ोन रखा ही था ,तभी मोहित का फ़ोन आ गया ,बोला -हम दोनों अच्छे नंबरों से पास हो गए। ख़ुशी के कारण वो चीख़ उठी और मम्मी -पापा को अपना परिक्षा -परिणाम बताने दौड़ी। उसके  पश्चात श्याम को फ़ोन किया ,बोली -तुम्हारी तपस्या सफ़ल हुई  ,भगवन।दोनों काफ़ी देर तक बातें करते रहे। अगले दिन मोहित से मिलने उसके घर गयी ,उसके मम्मी -पापा ने उसे मिठाई खिलाई उसके बाद वो मोहित के कमरे में चली गयी ,वो ख़ुशी से झूम रहा था और उसने मनु को देखते ही अपने गले लगा लिया। मनु को ये देखकर अच्छा लगा कि मोहित खुश है ,ख़ुशी -ख़ुशी में ही बोला -क्या तुम अब भी श्याम को पसंद करती हो ?उसके प्रश्न से मनु अचकचाकर बोली -अब भी से क्या मतलब है तुम्हारा ?उसका तो मुझे इसी वर्ष पता चला किन्तु तुमसे तो मैं उससे पहले से ही प्यार करती हूँ। उससे आश्वस्त होकर मोहित बोला -अब हम कुछ दिन नौकरी करेंगे उसके पश्चात ,बड़ा सा हॉस्पिटल खोल लेंगे ,जो हम दोनों का होगा। मनु खुश थी ,उन दोनों के सपने अब पूर्ण होंगे। तभी मनु बोली -इतना पैसा कमाने में  तो हमें वर्षो लग जायेंगे, इतनी आसानी से हॉस्पिटल नहीं खुलते। अरे !सब हो जायेगा। तुम्हारे पापा की ज़मीन और उनका पैसा कब काम आयेगा ?जो उनका है ,वो तुम्हारा और हमारा  है। मैंने तो पहले ही सब सोच लिया था। वो अपनी झोंक में बोलता चला गया किन्तु उसकी बातों से मनु को धक्का लगा कि क्या इसीलिए इसने मुझसे प्यार का नाटक किया ?जो अपनापन प्यार मैं इसमें ढूँढती थी ,वो मुझे श्याम में दिख रहा था। 
                  बेहद उदास सी ,उसने श्याम को फ़ोन किया और बोली -श्याम क्या तुम मुझे कोई अच्छी सी कविता सुना सकते हो ,मेरा आज कुछ भी बात करने का मन नहीं है। हाँ -हाँ क्यों नहीं ?सुनो -
            मेरे दिल का चैन ,सुक़ू हो तुम ,मेरी काव्य  की गहराई हो तुम। 
            इस जीवन की श्वास हो तुम , मेरे  सपनों की ताबीर हो तुम। 
            मेरी ज़िंदगी की हकीक़त हो तुम ,मैं नाव तो पतवार हो तुम।
            मैं माझी तो किनारा हो तुम ,मैं उगता सूरज तो उजाला हो तुम।
बस -बस कवि महाशय सारी  कविता क्या मुझ पर ही बना दी ,पर सुनकर मन को अच्छा लगा।पता नहीं क्यों आज मेरे मन को कुछ अच्छा नहीं लग रहा ?अच्छा फिर फोन करती हूँ। कुछ दिन पश्चात उसके मम्मी -पापा कुछ बातें कर  रहे थे ,मनु को देखकर चुप हो गए। क्या बात है ?मम्मी -पापा। कुछ नहीं उनका जबाब आया। कुछ तो है ,आप लोग इतने शांत क्यों हैं ?रत्नाजी  ने अटकते हुए कहा -तुमने बताया नहीं ,तुम और मोहित कब विवाह कर रहे हो ?मनु ने उनकी तरफ देखा ,बोली -आप ठीक तो हैं ,क्या आप लोग मेरी मोहित से शादी के लिए मान गए ?हाँ ,अब तो मानना ही होगा ,क्योंकि जिसके लिए हम रुके थे ,उसकी तो कहीं ओर जगह बात चल रही है, रत्नाजी ने बताया।आप किसकी बात कर रहीं हैं ?मनु ने पूछा। श्याम की और किसकी ?वे बोलीं। क्या ??????मनु चौंकते हुए बोली। वो लोग अपनी ज़बान से कैसे मुक़र सकते हैं ?उन्होंने पापा को ज़बान दी है। रत्नाजी को लगा,'' तीर निशाने पर लगा है'' बोलीं -कब तक वो इसी इंतजार में रहेंगे ?तुम तो कोई उत्तर दे ही नहीं रहीं ,उसके दादाजी की तबियत ठीक नहीं ,वो जाने से पहले अपने पोते की बहु का मुँह देखना चाहते हैं। अब मैं सोचती हूँ ,मोहित और तुम भी विवाह कर लो ,बताओ ,कब कर रहे हो ?अभी कुछ सोचा नहीं , कहकर वो बाहर निकल गयी।सारा दिन बेचैनी रही ,किसी काम में मन नहीं लग रहा था। सोचा एक बार श्याम को फ़ोन करके पूछूँ फिर सोचा -वो भी मेरा कब तक इंतजार करता ?जिसमें कि मेरी तरफ से कोई भरोसा नहीं। जिससे प्यार किया वो तो स्वार्थी निकला ,जिससे बचपन से ही रिश्ता बंधा था ,वो भी' बेवफ़ा' हो गया। एकाएक उसके हाथ में फ़ोन आया और उसकी अंगुलियाँ फ़ोन लगाने में व्यस्त हो गयीं। उधर से आवाज़ आयी -हैलो !मनु ने ''आव देखा ,न ताव '' बोली -तुम तो अपने प्यार के बड़े क़सीदे पढ़ते थे ,सारा प्यार उड़नछू हो गया। मैं अपने लिए ही नहीं सोच सकती ,मुझे अपने मम्मी -पापा के लिए भी तो सोचना है ,मेरे बाद उनका क्या होगा ?उधर से आवाज़ आई -ये क्या कह रही हो तुम ?मैं कुछ समझा नहीं। तुम्हें विवाह करने की इतनी जल्दी क्या है ?बचपन के रिश्ते को इतनी जल्दी भुला दिया ,मनु बिना कुछ  समझे ,बोलती रही। तुम शादी के बाद भी अपने मम्मी -पापा का ख़्याल रख सकती हो। अब क्या फ़ायदा ?बेवफ़ा कहीं के , कहकर उसने फ़ोन रख दिया।   

  
                 चलो बेटा ,तैयार हो जाओ !आज किसी की शादी के कार्यक्रम में जाना है। नहीं ,मैं कहीं नहीं जाऊँगी। रत्नाजी बोलीं -मेरी सहेली के बेटे का विवाह है ,दो -तीन दिन तो लग ही जायेंगे। अपने  अच्छे  से कपड़े रखना। मनु ने कुछ नहीं पूछा ,और अपनी दो -तीन जोड़ी कपड़े रख लिए। वो सब लोग गाड़ी में बैठे किन्तु मनु को कोई रूचि नहीं थी कि हम कहाँ जा रहे  हैं ?गाड़ी की पिछली सीट पर बैठकर उसने अपनी आँखें बंद कर लीं। उसकी बंद आँखों में श्याम की यादें घूम रहीं थीं ,वो सोच रही थी ,एक बार तो और कहकर देखता। शायद मैंने ही देर कर दी ,उस मोहित के चक्कर में ,अपनी बेवकूफ़ी पर उसे गुस्सा आ रहा था ,पर अब क्या किया जा सकता है ?निराशा में उसकी आँखों के कोरों से अश्रु बह निकले। पता नहीं कितनी देर तक चले। रात हो चुकी थी ,गाड़ी रुकी ,मनु ने आँखें खोलीं ,गाड़ी से उतरी। वो जगह उसे जानी -पहचानी सी लगी ,अपने को विश्वास दिलाने के लिए  बोली -पापा हम कहाँ हैं ?बेटे ,हम श्याम के फॉर्म हाउस ''में हैं। वो गुस्से से बोली -क्या हम श्याम के विवाह में आये हैं ?आप लोगों ने न ही मुझे बताया ,न ही मुझसे पूछा , मैं नहीं आती। रत्नाजी मुस्कुराकर बोलीं -तुम नहीं आतीं तो विवाह कैसे होता ?क्या मतलब ?उसने पूछा। यही कि दुल्हन के बिना भी कहीं  विवाह होता है ?क्या श्याम की मुझसे ,ख़ुशी के कारण वो अपना वाक्य पूर्ण नहीं कर पाई, तो ये सब आप लोगों का नाटक था। रत्नाजी बोलीं -तुम स्वयं कोई निर्णय नहीं ले पा  रहीं थीं इसलिए हमने ये सब किया ताकि तुम कोई सही फ़ैसला ले सको। ख़ुशी में मनु उनके गले लग गयी। अगले दिन विवाह की रस्में आरम्भ हो गयीं। फेरे लेते समय श्याम बोला -हम'' बेवफ़ा सनम '' नहीं। सुनकर मनु मुस्कुरा दी।  
                


























laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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