अभी तक आपने पढ़ा ,कि मनु अपने पापा के साथ किसी कार्यक्रम में जाती है ,वहां परिस्थिति ऐसी बनती हैं कि वहाँ उसका रिश्ता श्याम से तय हो जाता है। अब आगे -
पुष्करनाथ जी ने उस दिन के बाद कभी घर में इस बात का जिक्र नहीं किया ,मनु को तो कुछ पता ही नहीं किन्तु उधर श्याम के बाबा कभी -कभी मज़ाक में उससे कह देते -तेरे साथ वो जो लड़की खेल रही थी ,उससे ब्याह करेगा ?या कहते मनु जो तेरे साथ खेल रही थी ,उसे तेरी दुल्हन बनाकर लायेंगे। तब श्याम कहता- हाँ ,मैं मनु से ब्याह करूँगा। तब उसकी दादी कहती -जब पढ़ेगा ,तभी वो तुझसे ब्याह करेगी। दादी की बात सुनकर वो पढ़ने बैठ जाता। कभी -कभी दादी से पूछता -वो कहाँ रहती है ?मुझे उससे मिलना है। तब दादी कहती -वो पढ़ने के लिए बहुत दूर गयी है ,तभी तो तुझसे ब्याह होगा। अनपढ़ लड़की से मैं अपने पोते का विवाह नहीं करूंगी। ये बातें दो -तीन वर्ष रहीं ,समय के साथ -साथ श्याम भी भूलने लगा। बात जैसे आई -गई हो गयी। सब अपने -अपने कार्यों में व्यस्त हो गए। मनु कॉलिज में डॉक्टरी की पढ़ाई करने लगी ,श्याम भी कॉलिज में आ गया। उसे कहानियाँ ,कविताएँ लिखने का शौक था और उसने साहित्य को ही अपना विषय चुना। एक दिन उसके चाचा मिले ,बोले -श्याम ! क्या अब कॉलिज जाने लगा ?किसी लड़की -वड़की के चक्कर में मत पड़ जाना ,तेरा विवाह तो हमने बचपन में ही पुष्करनाथ जी की बेटी मनु से तय कर दिया था। श्याम पहले तो चौंक गया फिर शर्मा गया किन्तु उसे ऐसी कोई बात स्मरण नहीं हो रही थी। किससे पूछे ?उसके जीवन का इतना बड़ा फैसला हो गया और उसे भनक भी नहीं लगी। श्याम की अब तीव्र इच्छा हो चली थी कि क्या बात हुई थी और कैसे विवाह तय हुआ ?और वो लड़की अब कहाँ है ,क्या कर रही है ,कैसी दिखती है ?अनेक प्रश्न उसके मष्तिष्क में घूमने लगे। दादी से पूछे , वो तो कभी -कभी मुझे भी नहीं पहचानती ,उनकी याददाश्त कमजोर हो गई है। पिता से तो कम ही बोलता है। दादाजी से अब हिम्मत नहीं होती ,इसी परेशानी में घूम रहा था ,उसने अपनी मम्मी को देखा और बोला -मम्मी, चाचा जी कुछ कह रहे थे ,बात अधूरी छोड़कर वो अपनी मम्मी की तरफ देखने लगा। वो बोलीं -क्या कह रहे थे ?यही कि बचपन में ही मेरा रिश्ता हो गया।
लता बोली -हाँ ,पता नहीं तेरे दादाजी को भी क्या सूझी ? कोई पुष्करनाथ जी हैं ,मैं तो उन्हें नहीं जानती ,पता नहीं उस लड़की में क्या देखा ?कि शगुन का रुपया ले लिया। बच्चे का क्या पता चलता है ?कि बड़ा होकर वो कैसा निकलेगा ?पता नहीं ,हमारे जैसे ख़ानदानी लोग हैं या नहीं। लता की बातों से लग रहा था कि कम उम्र में विवाह तय होने के कारण, वो मन ही मन नाराज भी हैं। अब तो श्याम की भी इच्छा हुई कि पता लगाए वो लड़की कौन और कैसी दिखती है ?अब उसने दादाजी से भी बात करने का मन बना लिया। वो अपने दादाजी के पास जाकर बोला -दादाजी, ये पुष्करनाथ जी कौन हैं ?क्या करते हैं ?दादाजी ने श्याम को गहरी नजरों से मुस्कुराकर देखा ,बोले- क्या हुआ ,क्यों पूछ रहे हो ?वो आज चाचा जी कुछ ज़िक्र सा कर रहे थे। सारी बातें तो आप ही जानते हैं , इधर -उधर पूछने से तो अच्छा है ,आपसे पूछ लिया जाये। क्या हुआ था ?दादाजी ने हैरान होते हुए कहा -क्या तुझे कुछ याद नहीं। श्याम ने न में गर्दन हिला दी। तब उसके दादाजी ने उसे सारी बातें विस्तार से बताईं। उस कहानी को श्याम सम्मोहित सा सुनता रहा। दादाजी के बताने पर उसने कल्पना में ही मनु की एक खुबसुन्दर तस्वीर बना ली। जो उसके ख्यालों में उड़ती हुई परी की तरह उसके पास आती है और उसके इर्द -गिर्द खुशबू का घेरा सा बना देती है। उसके ख्यालों में वो नयी -नयी कविताएँ लिखता। कुछ दिन तक तो ऐसे ही कार्य चलता रहा किन्तु उन कल्पनाओं को ,सपनों की दुनिया से निकलकर वास्तविकता के धरातल पर उतरने की इच्छा हो चली।
उधर मनु अपनी डॉक्टरी की पढ़ाई में व्यस्त थी ,उसके मम्मी -पापा ने उससे किसी भी विषय में कुछ नहीं बताया ताकि उसकी शिक्षा में व्यवधान न पड़े। मोहित उसी के साथ पढ़ता है और उसकी पढ़ाई में मदद भी कर देता है ,धीरे -धीरे वो एक -दूसरे को समझने लगे और एक -दूसरे के नज़दीक आने लगे उन्हें पता ही नहीं चला कि कब एक -दूसरे के प्यार में पड़कर ,भविष्य के सपने सजाने लगे ?मनु की मम्मी को उसके व्यवहार में परिवर्तन लगा। एक दिन उन्होंने पुष्कर नाथजी से कहा - ये मनु की डॉक्टरी की पढ़ाई का आखिरी वर्ष है ,अब हमें उसे उसके बचपन के रिश्ते के विषय में बता देना चाहिए और उस लड़के श्याम की जानकारी भी निकालिये कि अब वो क्या कर रहा है ?या बाप -दादा के पैसों पर ही ऐश कर रहा है। एक दिन मनु की मम्मी बोलीं -मनु ये मोहित कैसा लड़का है ?मनु मुस्कुराकर बोली -मम्मी वो बहुत ही अच्छा है ,मेरी पढ़ाई में मदद भी कर देता है। वो बोलीं -इससे ज्यादा तो कुछ नहीं ,होना भी नही चाहिए क्योंकि हमने अब तक तुमसे एक बात छुपाई है। कौन सी? बात मनु तपाक से पूछती है। वो ये ,कि तुम्हारा रिश्ता बचपन में ही ,गाँव के किसी अमीर परिवार में तय कर दिया था। क्या ......... मनु के मुँह से अचानक निकला और ये बात मुझे आप ,अब बता रही हैं। मेरी ज़िंदगी का फ़ैसला बरसों पहले उस व्यक्ति के साथ हो गया जिसे मैं जानती ही नहीं ,पता नहीं कौन है ,कहाँ है ,क्या करता है ?कहकर वो एकदम शांत हो गयी। फिर बोली -ये कोई गुड्डे -गुड़िया का खेल था। माना कि उस समय बात हो भी गयी, तो कौन याद रखता है ? पता नहीं ,वो गांव में वो क्या कर रहा होगा ? गांव में है या कहीं और।मैं डॉक्टर और वो पढ़ा भी है या नहीं या खेती ही कर रहा है ?वो अपने ही प्रश्नों से परेशान हो उठी। क्या मम्मी !इतने दिनों से क्यों नहीं बताया ? वो इसीलिए ताकि तेरी पढ़ाई में किसी तरह का व्यवधान न हो उसकी मम्मी ने जबाब दिया। और अब तो जैसे मेरा पूरा अस्तित्व ही हिला दिया आपने। इतने दिनों से पढ़ाई करो ,मेहनत करो और जब जीवन का सुख लेने का समय आया तो आपने ........ जिसे मैं जानती ही नहीं ,उससे कैसे मैं विवाह कर सकती हूँ ?सिर्फ़ अपनी ज़बान रखने के लिए ,कैसे आप लोग मान सकते हैं ? मनु की मम्मी ने उसे आश्वस्त करते हुए कहा -वो कोई छोटा -मोटा परिवार नहीं ,उनके यहां रिश्ता होना शान की बात मानी जाती है। पता नहीं उस समय कैसे उन्होंने तेरा हाथ अपने पोते के लिए मांग लिया ,तेरे पापा तो नहीं चाहते थे कि अभी बात पक्की हो किन्तु तेरे त्रिभुवन चाचा को लग रहा था, कि आया रिश्ता हाथ से जाने नहीं देना है। मम्मी कितनी पुरानी बात है ये ?तब मैं सिर्फ़ पांच वर्ष की थी और अब डॉक्टर बनने जा रही हूँ ?समय बदल गया और अब मैं मोहित !उसकी बात पूर्ण होने से पहले ही वे बोलीं -मुझे कुछ खटक रहा था इसीलिए तो अब बताया। मनु बोली -मम्मी वो भी डॉक्टर बनने जा रहा है और मैं भी ,हम एक -दूसरे को समझते भी हैं।
पुष्कर नाथ जी घर में प्रवेश करते हैं तभी रत्नाजी आती हैं और पूछती हैं -कुछ पता चला क्या ?वो बोले -हाँ ,वो तो साहित्यकार बन गया है उसकी कविताएँ और लेख पत्रिकाओं में छपते हैं और अपनी ही कम्पनी में काम भी करता है ,पैसे वाले तो वो पहले से ही हैं। रत्नाजी बोलीं -मैंने मनु से बात की किन्तु अभी वो इस बात को स्वीकार नहीं कर पा रही है ,मैंने आपसे पहले ही कहा था कि इसे बता देते हैं किन्तु आपने ही मना किया। वो तो अपने साथ पढ़ रहे ,मोहित को पसंद करने लगी है। मोहित भी अच्छा लड़का है किन्तु करें भी क्या ?पहले तो वहीं बात करनी होगी ,इससे मिलवा भी देते हैं। पुष्करनाथ जी ने अपनी इच्छा जताई। रत्नाजी के मन में एक दुर्भावना जाग्रत हुई बोलीं -हम उनसे मिलते ही नहीं और इसका विवाह इसकी पसंद से करा देते हैं ,बाद में जो होगा ,देखा जायेगा। नहीं ,ये सही नहीं है ,हमारी ज़बान हो चुकी है पुष्करनाथ जी ने फैसला सुनाया। मैं तो अपनी बेटी की ख़ुशी देख रही थी, रत्नाजी ने अपनी बात स्पष्ट की।ये क्या कह रही हो ?ज़बान की क़ीमत होती है ,ऐसा सोच भी नहीं सकते पुष्करनाथ जी बोले। रत्नाजी ने कहा -आपकी ज़बान के लिए क्या बेटी की पूरी ज़िंदगी दांव पर लगा दें। मैं पूरी ज़िंदगी दांव पर लगाने के लिए नहीं कह रहा ,मैं उसका पिता हूँ कोई दुश्मन नहीं। माना कि लड़का डॉक्टर नहीं किन्तु कमाता अच्छा है ,अच्छे परिवार का है ,और क्या चाहिए ? पहले उसे मनु से मिलने तो दो ,जीवन उन्हें बिताना है,हमें नहीं ,पुष्करनाथजी ने रत्नाजी को समझाते हुये कहा।
घर में आज साफ -सफ़ाई के साथ दो नौकर भी आ गए और बहुत सारा सामान भी आया है ,मनु बोली - क्या बात है ?हम तो अमीरों की तरह तैयारी कर रहे हैं। कोई आने वाला है क्या ?रत्नाजी बोलीं -हाँ ,श्याम के परिवारवाले आ रहे हैं ,अब हम नहीं चाहते कि ज्यादा देर हो ,जितना जल्दी हो सके तुम एक -दूसरे को देख समझ लो। मम्मी आपको पता है न ,मुझे मोहित पसंद है, मनु बोली।रत्नाजी बोलीं - मोहित से तो तुम अब मिली हो किन्तु श्याम से तो तुम्हारा रिश्ता बरसों से जुड़ा है। मनु को मम्मी की बेतुकी बातों पर क्रोध आया ,अपने क्रोध को दबाते हुए बोली -ये क्या बात हुई ?मेरे लिए तो श्याम भी अनजान ही है ,उससे ज्यादा तो मैं मोहित को जानती हूँ।रत्नाजी ने उससे बहस करना बेहतर न समझ ,अपने काम में जुट गयीं और चलते -चलते मनु से भी कह गयीं -तुम जाकर अच्छे से तैयार हो जाओ वो लोग दोपहर के खाने के समय तक आ जायेंगे। दोपहर के समय एक लम्बी सी गाड़ी दरवाज़े पर आ खड़ी हुई ,उसमें से एक गोरा -चिट्टा राजकुमार सा लड़का उतरा। मनु खिड़की में से देख रही थी उसके साथ अधेड़ उम्र एक व्यक्ति और थे। मनु ने अंदाजा लगाया ,शायद इसके पिता हों। मनु यदि मोहित से पहले श्याम से मिलती तो शायद वो ही उसकी पहली पसंद होता किन्तु अब तो उसने मोहित के साथ सपने संजोये हैं। खाने के समय सबने साथ में खाना खाया। मनु का श्याम से परिचय भी खाने की मेज पर हुआ। श्याम ने नजरभर मनु को देखा। वो उसकी कल्पनाओं की कविता ही लग रही थी ,वो मन ही मन दादाजी को धन्यवाद दे रहा था और खुश हो रहा था कि दादाजी ने मेरे लिए पहले ही हीरा चुन लिया था।
लड़के -लड़की को एक साथ बैठने का मौका मिला ,मनु ने अंग्रेजी में बातचीत आरम्भ की उसने सोचा था कि अंग्रेजी में ये साहित्यकार और वो भी गाँव का, क्या बोल पायेगा। तभी अपने प्रश्न का ज़बाब अंग्रेजी में सुन वो चौंक गयी। फिर श्याम ने अपनी मातृभाषा में बातचीत आरम्भ की बल्कि मनु थोड़ा अटक गयी, कुछ शब्द तो उसने पहली बार ही सुने थे। श्याम मुस्कुराकर बोला -शायद आपको अपनी मातृभाषा ही नहीं आती। वो तो उसे लज्ज़ित करना चाहती थी वो स्वयं ही लज्ज़ित होते हुए बोली -वो हमारी सारी शिक्षा ही अंग्रेजी में ही हुयी है। श्याम बोला -तुम्हें कब मालूम हुआ? कि हमारा रिश्ता हो गया है। अभी कुछ दिनों पहले, मनु तपाक से बोली और तुम्हें ?साथ ही श्याम से प्रश्न पूछ डाला। मुझे तो कॉलिज जाने के समय ही चाचाजी ने बताया, कि कहीं मैं किसी लड़की के चक्कर में न पड़ जाऊँ ,हँसते हुए बोला -उन्होंने मुझसे मेरा ये सुख भी छीन लिया। मनु भी हँस दी और बोली -मुझे बताने में देर कर दी।उसकी बात का मर्म समझते हुए ,श्याम बोला -क्या मतलब ?मनु को अपनी गलती का एहसास हुआ ,बोली- कुछ नहीं ,मैं यूँ ही मज़ाक कर रही थी।श्याम बोला -किन्तु हमारी जिंदगी कोई मज़ाक नहीं ,हम दोनों इतने वर्षों से अनजान रिश्ते में बंधे हैं सिर्फ़ एक वायदे के लिए। हाँ वो ही तो, मैं भी यही कह रही थी मनु को लगा, जैसे वो उसी की मन की बात कह रहा हो। तब श्याम थोड़ा गंभीर होते हुए बोला -अब ये हमारे जीवन का सवाल है ,हम अपने रिश्ते की शुरुआत किसी के दबाब में या झूठ पर नहीं करेंगे। मनु को भी उसकी बात सही लगी और बोली -मैं भी यही चाहती हूँ ,ये सम्पूर्ण जीवन का सवाल है। मनु को श्याम में भावी पति नहीं दोस्त नज़र आया।
क्या मनु ने श्याम को पति के रूप में स्वीकार किया ?या दोस्त बनाया। क्या मनु का मोहित से विवाह हुआ ,इन तीनों की ज़िंदगी में क्या -क्या होता है ?उसके लिए पढ़िये ''बेवफ़ा सनम ''का भाग तीन