Vichar

विचारकर  देखिये ,जितने भी विचार हमारे मन में उभरते हैं ,वो हमारे दिमाग की ही उपज होते हैं। गाहे -बगाहे हमारे मष्तिष्क में ,कुछ न कुछ विचार चलते ही रहते हैं। हमारा मष्तिष्क कभी भी हमारे विचारों से खाली नहीं रहता। वो इस बात पर निर्भर करता है कि हमारे दिल में  किस तरह के भाव उमड़ रहे हैं ?एक तरह से कह सकते हैं ,हमारे मन में जो भी भाव होंगे ,वो हमारे मष्तिष्क को पता चल जाता है। दिल में चल रहे उद्वेलन का मष्तिष्क को संदेश मिलता है ,उसी आधार पर हमारे विचार पल्ल्वित और परिवर्तित होते रहते हैं। ये बात ,वहाँ के वातावरण पर भी   निर्भर करती है। वातावरण अथवा जैसा भी वहाँ का माहौल होगा ,उसका हमारे ह्रदय पर असर होगा और यही संदेश हमारे मष्तिष्क को पहुंचता है और फिर विचारों का सिलसिला आरम्भ हो जाता है। उदाहरण के लिए ,देखिये -यदि हम किसी धार्मिक स्थान पर हैं

,आसपास सत्संग हो रहा है , आसपास ऐसे ही लोग वहां घूम रहे हैं ,तब हमारा ह्रदय ,मन ,शांत होंगे और इसी से संबंधित 'धार्मिक विचार 'उसी से संबंधित प्रश्न ,उनके विषय में जानने की जिज्ञासा उत्प्नन होगी। कई बार ऐसा हो जाता है कि हमारा मन किसी भी बात को लेकर खिन्न हुआ रहता है ,हमारे विचार नकारात्मक होते जा रहे हैं ,हम मन से अत्यन्त दुःखी हैं ,ऐसी स्थिति में यदि हम अकेले रहते हैं ,समझाने वाला भी कोई नहीं ,नकारात्मक विचारों का सिलसिला बढ़ता ही जाता है ,तब हम कोई गलत क़दम भी उठा सकते हैं ,ऐसी स्थिति में यदि हमारा माहौल बदल जाता है ,हम किसी धार्मिक स्थल पर चले जाते हैं ,अथवा किसी सामूहिक मनोरंजन स्थल पर किसी भी कारण से हमारा वातावरण बदलता है तो हमारे विचार भी धीरे -धीरे परिवर्तित होने लगते  हैं। इसी से हम कह सकते हैं कि' विचारों पर वातावरण  भी अपना प्रभाव डालता है। '
             हमारे दिल पर  भी वातावरण अपना प्रभाव डालता है ,यदि हम किसी संगीत कार्यक्रम 'में अथवा किसी शादी ब्याह में जाते  हैं ,तब हमारा मन प्रसन्न होता है ,तब हमारे विचार उससे संबंधित बनने लगते हैं ,जैसे -लड़का अथवा लड़की कैसे हैं ?कहाँ से हैं ,क्या करते हैं ?उनके घरवाले किस तरह के लोग हैं इत्यादि विचार हमें घेर लेते हैं ,और ये विचारों का सिलसिला तब तक चलता रहता है ,जब तक हमारी जिज्ञासा शांत नहीं हो जाती। उसके शांत होने के बाद नया सिलसिला अथवा नये विचार उत्प्नन होने लगते हैं ,अब विवाह में क्या पहनना है ?किस गाने पर नृत्य प्रस्तुत करना है ?किस तरह की शरारतें करके हम अपने मनोरंजन में वृद्धि कर सकते हैं ?इसी तरह के विचारकर मन ही मन हम मुस्कुराने लगते हैं इस तरह से सोचना भी विचारों को आमंत्रण देना ही है। जब हम सोचते हैं ,तभी विचार उत्प्नन होते हैं। यदि हम किसी भी विषय पर सोचेंगे ही नहीं  तब  हमारे विचार उत्प्नन नहीं होंगे। इसी से दोनों [सोच -विचार ]को एक दूसरे का पूरक कह सकते हैं। हमारे मन की जिज्ञासा भी विचारों को उत्प्नन करने में सहायक होती है। जिज्ञासावश हम किसी व्यक्ति ,किसी वस्तु ,अथवा किसी स्थान के विषय में जानना चाहेंगे तब हमारे विचार भी अपने प्रश्न लिए उसी के इर्द -गिर्द घूमते रहेंगे जब तक हमारा काम अथवा जिज्ञासा पूर्ण नहीं हो जाते। कई बार ऐसे विषय सामने आ जाते हैं ,कि हम न  चाहते हुए भी उन विचारों में उलझकर रह जाते हैं और विचार अपना स्थान नहीं छोड़ते। 
                  कई बार तो ऐसा हो जाता है कि हम काम कुछ और कर रहे होते हैं किन्तु हमारे विचार कहीं और चल रहे होते हैं। विचारों का सिलसिला इतना तीव्र होता है ,हम सर झटककर उनसे पीछा छुड़ाना चाहते हैं किन्तु पल भर बाद पुनः अपने स्थान पर स्थापित हो जाते हैं। हम शांत रहना चाहते हैं ,तब भी काम करते ,टहलते ,नहाते अथवा कुछ भी क्रिया करते विचार हमारा पीछा नहीं छोड़ते। हमारे मन में कोई न कोई विचार आ ही जाता है ,किसी व्यक्ति से संबंधित ,कुछ भी न मिले तो किसी दूर रिश्ते से संबंधित अथवा कोई भूली बात ही याद आ जाये तो उससे संबंधित विचार पनपने लगते हैं। कई बार हम विचार करते हैं किन्तु क्रियान्वित नहीं होते ,बस विचार करके ही रह जाते हैं ,इसी प्रकार कई बार हमारे विचारों का सिलसिला इतना तीव्र  होता है कि हम अपने को क्रियान्वित होने से नहीं रोक पाते और उन विचारों को अंजाम तक पहुंचाने में जुट जाते हैं। हमारे वो विचार सकारात्मक भी हो सकते हैं नकारात्मक भी। विचार तो हमें स्वप्न में भी नहीं छोड़ते ,न जाने ये विचार हमें कहाँ -कहाँ पहुँचा देते हैं ?हम स्वप्न अवस्था में भी अनेक परिस्थितियों से जूझते रहते हैं ,स्वप्न में भी मैं विचार पर ही विचार कर  रही थी ,तब मुझे एहसास होता है कि हमारा मष्तिष्क कभी शांत होकर नहीं बैठता ,कुछ न कुछ विचार हमारे मष्तिष्क में घूमते ही रहते हैं। यदि हम कोई कार्य भी नहीं करते हैं तो भी ये मष्तिष्क कार्य करता है कोई भूला कार्य याद दिला देता है अथवा भविष्य की कोई योजना तैयार करवाता है। भूतकाल अथवा वर्तमान का कोई कार्य पूर्ण न होने का शोक मना रहा होता है और उसके पूर्ण न होने के कारण ढूँढ रहा होता है। 
                    एक लेखक अथवा कवि के लिए विचारों का आना आवश्यक है ,यदि विचार ही न होंगे तो वो क्या लिखेगा ?कैसे अपनी भावनायें व्यक्त करेगा। विचार कई प्रकार के हो सकते हैं -जो व्यक्ति राजनीति से संबंधित हैं उनके विचार राजनैतिक उससे संबंधित ही  ज्यादा होंगे। यदि कोई समाजशास्त्री है तो समाज से संबंधित विचार ही उसके इर्द -गिर्द घूमेंगे। इसी तरह अपने -अपने विषयों से संबंधित विचार आते रहेंगे जो भी जिस विषय से जुड़ा होगा। इस तरह हम कह सकते हैं कि विचारों का क्षेत्र काफी विस्तृत है उनकी कोई सीमा नहीं। कभी -कभी कोई अपने विचार अपने  [उम्र से कम होने पर भी ]बड़े -बूढ़ों को बता देता ,उस समय वो ही विचार सलाह के रूप में परिवर्तित हो जाते। यदि वो विचार उन्हें पसंद आ जाते हैं तो खुश हो जाते और प्रशंसा करते ,यदि बात अथवा विचार पसंद नहीं आता तो कहते -'क्यों दिमाग से बोझ मर रहे हो '?अथवा' ज्यादा दिमाग न लगाओ 'इस तरह के वाक्य सुनने को मिल जाते अथवा मिल जाते हैं। तब ये बात तो तय हो जाती है कि हमारे मष्तिष्क से ही विचार उत्प्नन होते हैं। हम सोचेंगे तभी विचार उत्प्नन होते हैं इस तरह दोनों को एक -दूसरे का पूरक हैं। यदि हमारी सोच अच्छी होगी तो विचार भी अच्छे ही होंगे यदि सोच नकारात्मक होगी तो विचार भी बुरे ही होंगे। यदि हम किसी सदमे अथवा वातावरण द्वारा भावशून्य भी हो जाते हैं तब भी विचारों का सिलसिला जारी रहता है और सोचने का प्रयास करता है कि कहीं कुछ छूट तो नहीं गया हम अपने विचारों और परिस्थितियों को मन ही मन याद करने का प्रयत्न करते हैं जिससे वो बातें ,वो विचार फिर से जाग्रत हो उठते हैं। 

                 प्रातःकाल से उठकर न जाने कितने विचारों का बोझ लिए फिरता है ये मष्तिष्क। विचारों की अधिकता हो जाये या बाढ़ सी आ जाये तो थकने लगता है। न आये तो लगता है पता नहीं ,आज कैसा दिन जा रहा है ?कुछ समझ ही नहीं आ रहा ?जैसे जुमले सुनने को मिलते हैं।कई  बार हमारा मन अपनों के प्रति आशंकित हो उठता है और हमारे मन में स्वतः ही बुरे -बुरे ख़्याल अथवा विचार आने लगते हैं ,तब इस बात का एहसास होता है कि विचार दिल से जुड़े होते हैं ,इनका संबंध हमारी भावनाओं से भी होता है।  जब सही समय पर ,सब कुछ मन मुताबिक हो जाता है ,तो लगता है ,जैसे दिमाग़ से एक बोझ सा उतर गया और हम शांत हो जाते हैं किन्तु विचार फिर से हमें उत्प्नन होने लगते हैं। 























laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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