कभी हम न होंगे ,
न दिखेंगे , अपनों में।
पर,' हम होंगे'।
इन कविता ,इन कहानियों में ,
ये कविता ,ये कहानियाँ ,
याद दिलाती रहेंगी।
कभी हम भी बसते थे ,
अपनों के दिलों में ,
उनकी चाहतों में।
हमारी साँसें भी घुलती थी ,
इन बहारों में ,फिज़ाओं में।
हमारे होने का एहसास था ,
हमारे अपनों में।
हम भी हैं ,उनके ख्यालों में ,
हमारा इक इतिहास होगा।
हमारा भी ज़िक्र होगा।
प्यार के अफ़सानों में।
हमारी धड़कनें गूंजेंगी ,
शब्दों की लड़ियों में ,
अपनों की यादों में
ग़ैरों की उलझनों में ,
पर' हम होंगे'।
स्वरों में ,स्वरलहरियों में ,
गीतों की लय में ,
मुस्काती तस्वीरों में ,
इन हसीन वादियों में ,
'हम होंगे'।