प्रभा ,तू कहाँ जा रही है ?पीछे से मम्मी ने आवाज़ लगाई। ओफ्फो !आपने टोक दिया न ,मैं किसी काम से गीता के घर जा रही थी। तो ,ग़लती किसकी है ?तू पहले ही बताकर जाती, तो मैं टोकती ही नहीं, माँ ने उसकी गलती का उसे अहसास कराया। प्रभा रूककर बोली -अच्छा ,अब बताओ !क्या करना है ?क्यों रोका मुझे ?तृप्ति ने कहा -देख ,वो जो पीछे वाले कमरे में किरायेदार आया है ,उसका दोपहर का खाना उसे दे आ ,आज उसकी छुट्टी है ,वो घर पर ही है। सुनकर प्रभा को क्रोध आया ,बोली -ये क्या मम्मी ,मैं क्या इन कामों के लिए हूँ ,रामदीन कहाँ है ?ये काम उसका है ,वो करेगा। कहकर वो चलने लगी। तृप्ति उसे रोकते हुए बोली -रामदीन किसी काम से बाहर गया है ?मैंने ही उसे भेजा है। मैं ही चली जाती किन्तु मेरी हालत तो देख ,कहकर माँ ने उसके हाथ में थाली थमा दी। प्रभा न चाहते हुए भी ,बड़बड़ाती हुयी ,थाली लेकर पीछे के कमरे की तरफ चल दी। उसने पहले दरवाज़ा खटखटाया ,जब कोई नहीं बोला ,तब उसने दरवाजे को धकेला और दरवाज़ा खुल गया। उसने पुकारा कोई है ? और उसने वो थाली, पास रखी मेज़ पर रख दी।
तभी बाहर से कोई नौजवान अंदर आया। उसे देखकर बोला -आप ?हाँ ,मैं ,आपके लिए खाना लाई हूँ। पता नहीं ,रामदीन कहाँ गया ?तब मुझे ही खाना लाना पड़ा। खा लीजिये ,ठंडा हो जायेगा और किसी चीज की आवश्यकता हो तो बोल दीजियेगा ,किन्तु अब मैं नहीं लाऊंगी , कहकर वो तेजी से कमरे से बाहर आ गयी।प्रताप उसे जाते हुए देखता रहा ,जब तक वो आँखों से ओझल नहीं हो गयी। उसके जाने के बाद जैसे उसे होश आया। मन ही मन सोचने लगा -क्या बला की खूबसूरती दी है ?भगवान ने। उसे देखकर तो वो कुछ कह ही नहीं पाया। वो उसकी आँखों से ओझल तो हो गयी किन्तु उसका सौंदर्य प्रताप की आँखों में बस गया। गुलाबी सूट ,बड़ी -बड़ी कजरारी आँखें ,काले ,लम्बे खुले बाल ,वो तो किसी कवि की कविता सी लग रही थी। उस पर उसकी बेपरवाही ,जैसे उसे अपने सौंदर्य का आभास ही न हो। सोचते हुए ,वो खाना खाता रहा और बर्तन उसी मेज़ पर रख दिए थोड़ी देर में रामदीन आया ,बोला - और कुछ लाऊँ ,साहब !नहीं मैंने खाना खा लिया ,एक बात पूछूं ,प्रताप ने झिझकते हुए कहा। हाँ ,पूछिए ,उसने जबाब दिया।वो जो लड़की मेरे लिए खाना लायी थी ,कौन थी वो ?वो लाई थीं आपके लिए खाना ?उसने ही मुझसे प्रश्न पूछ लिया। हाँ ,मैंने उत्तर दिया। वो प्रभा दीदी हैं ,वो बहुत अच्छी हैं ,बड़े कॉलिज में पढ़ाती हैं , साहब की इकलौती बेटी हैं। तभी उसे किसी ने आवाज़ दी ,रामदीन !और वो बर्तन उठाकर चला गया।
तभी बाहर से कोई नौजवान अंदर आया। उसे देखकर बोला -आप ?हाँ ,मैं ,आपके लिए खाना लाई हूँ। पता नहीं ,रामदीन कहाँ गया ?तब मुझे ही खाना लाना पड़ा। खा लीजिये ,ठंडा हो जायेगा और किसी चीज की आवश्यकता हो तो बोल दीजियेगा ,किन्तु अब मैं नहीं लाऊंगी , कहकर वो तेजी से कमरे से बाहर आ गयी।प्रताप उसे जाते हुए देखता रहा ,जब तक वो आँखों से ओझल नहीं हो गयी। उसके जाने के बाद जैसे उसे होश आया। मन ही मन सोचने लगा -क्या बला की खूबसूरती दी है ?भगवान ने। उसे देखकर तो वो कुछ कह ही नहीं पाया। वो उसकी आँखों से ओझल तो हो गयी किन्तु उसका सौंदर्य प्रताप की आँखों में बस गया। गुलाबी सूट ,बड़ी -बड़ी कजरारी आँखें ,काले ,लम्बे खुले बाल ,वो तो किसी कवि की कविता सी लग रही थी। उस पर उसकी बेपरवाही ,जैसे उसे अपने सौंदर्य का आभास ही न हो। सोचते हुए ,वो खाना खाता रहा और बर्तन उसी मेज़ पर रख दिए थोड़ी देर में रामदीन आया ,बोला - और कुछ लाऊँ ,साहब !नहीं मैंने खाना खा लिया ,एक बात पूछूं ,प्रताप ने झिझकते हुए कहा। हाँ ,पूछिए ,उसने जबाब दिया।वो जो लड़की मेरे लिए खाना लायी थी ,कौन थी वो ?वो लाई थीं आपके लिए खाना ?उसने ही मुझसे प्रश्न पूछ लिया। हाँ ,मैंने उत्तर दिया। वो प्रभा दीदी हैं ,वो बहुत अच्छी हैं ,बड़े कॉलिज में पढ़ाती हैं , साहब की इकलौती बेटी हैं। तभी उसे किसी ने आवाज़ दी ,रामदीन !और वो बर्तन उठाकर चला गया।
प्रभा के विषय में जानने की उसकी इच्छा बलवती हो उठी ,रह -रहकर प्रभा की तस्वीर उसकी आँखों के सामने आ जाती। कभी -कभी उसे लगता वो अभी आयेगी और उससे बातें करेगी किन्तु ऐसा नहीं हुआ। जब उसकी जिज्ञासा ज्यादा बढ़ गयी, तो वो बेबस सा घर से बाहर आ गया। कहीं उसकी एक झलक देख सके। उसने सोचा ,रामदीन आएगा तो उससे कुछ और जानकारी लेगा किन्तु रामदीन तो पहले ही आकर चला गया। उसने अपने कमरे में अब ताला भी नहीं लगाया था। अगले दिन वो अपने काम पर गया ,सारा दिन व्यस्त रहा ,कुछ देर के लिए वो प्रभा को भूल गया किन्तु शाम को जब घर लौटने का समय आया तब उसे फिर से प्रभा की याद सताने लगी। वह घर पहुंचा ही था ,तभी दरवाज़े पर रामदीन आया और एक पत्र उसके हाथ में थमाकर चला गया। प्रताप अपने कमरे में आया और पत्र खोलकर पढ़ने लगा -उसकी माँ ने गांव के किसी व्यक्ति से लिखवाया होगा या किसी बच्चे को पकड़ा होगा। प्यारे बेटे प्रताप !खुश रहो !तु मने जो पैसे भेजे मिल गए। तेरे बाबूजी को थोड़ी खाँसी है ,गाँव के वैद्य से उनकी दवाई लाई। गाँव के जो मंगलू काका थे अब नहीं रहे। तेरी बहु फिर से पेट से है ,बधाई हो !तू दोबारा बाप बनने वाला है। कल दाई को दिखाया था ,उसने कहा -सब ठीक है ,कोई घबराने की बात नहीं। छुट्टी मिलते ही आ जाना ,बहु को तेरी जरूरत होगी , शेष मिलने पर , तेरी माँ रामप्यारी।
आज उसे वो पत्र पढ़कर इतनी ख़ुशी नहीं हुई ,उसे लग रहा था जैसे वो सपनों की दुनिया से नीचे आ गिरा हो ,उसे माँ के पत्र से वास्तविकता का आभास हो गया कि वो यहां शहर में नौकरी करने आया है और वो एक शादीशुदा व्यक्ति है, जिसका दूसरा बच्चा होने वाला है। तभी एकाएक वो मन ही मन झुंझलाया और बड़बड़ाने लगा -मेरी अभी उम्र ही क्या है ?दो बच्चों का बाप बन गया ,पता नहीं माता -पिता को भी क्या जल्दी थी ?मेरे विवाह की। बीस बरस की उम्र में विवाह करा दिया ,एक पाँचवीं पास से जिसे ढंग का पत्र भी नहीं लिखना आता। पच्चीस की उम्र में दो बच्चों का बाप हो जाऊंगा। अपने मन को समझाते हुए सोचने लगा -उनकी भी क्या गलती ?गांव में तो यही रिवाज़ है ,ये क्या जाने शहर की बातें ?मेरी उम्र में तो विवाह करते हैं। माता -पिता सोचते हैं ,कि शहर जाकर लड़का किसी लड़की के चंगुल में न फंस जाये ,इसी से समय रहते इसका विवाह करके ही बाहर भेजेंगे। कितने असुरक्षित रहते हैं ? तभी रामदीन भोजन ले आया ,बोला -किसका पत्र था ?साहब ! गांव से माँ का पत्र था उसने अनमने से मन से जबाब दिया। भोजन मेज पर लगाता हुआ बोला -सब ठीक है ,घर में। हाँ ,उसने छोटा सा जबाब दिया। साहब ,आज ये पनीर की सब्ज़ी खाना ,प्रभा दीदी ने बनाई है। अच्छा ,वो खाना भी बनातीं हैं उसने अविश्वास से पूछा। नहीं ,वो प्रतिदिन भोजन नहीं बनातीं ,कभी उनका दिल खुश होगा या कोई विशेष चीज बनानी होती है तो रसोई में आ जाती हैं। रामदीन तो बताकर चला गया और मैं अपने गांव की दुनिया से निकलकर फिर से अपने सपनों में पहुँच गया।गांव की बातें तो जैसे याद ही नहीं करना चाहता था ,उस जीवन को याद कर उसके मुँह का स्वाद जैसे कसैला हो गया। वो आज में जीना चाहता था ,कुछ देर बाद रामदीन आया ,बर्तन ले जाऊँ साहब ! उसने पूछा। हाँ -हाँ कुछ सोचते हुए प्रताप ने जबाब दिया ,फिर बोला -एक बात बताओ रामदीन !तुम्हारी दीदी तो इतनी सुंदर हैं , फिर अभी तक उनका विवाह नहीं हुआ। सुनकर रामदीन हँसा ,बोला -ये गाँव थोड़े ही है साहब ,कम उम्र में ही विवाह हो जाता है। पहले दीदी पढ़ीं ,उसके बाद नौकरी करने लगीं ,तब जाकर उनके माता -पिता ने उनके लिए वर ढूँढना प्रारम्भ किया। अब दीदी कहती हैं, कि ऐसे लड़के से विवाह करेंगी जो उनके यहीं आकर रहे। क्यों ,ऐसा क्यों ?लड़की शादी के बाद अपनी ससुराल ही जाती है ,मायके में कौन रहता है ?प्रताप ने प्रश्न किया। क्या साहब ?बड़े लोगों की बातें हैं ,उस पर पढ़ी -लिखीं। कहती हैं ,कि मेरे जाने के बाद मेरे माता -पिता का क्या होगा ?कौन उनका ध्यान रखेगा ?इसीलिए उन्हें घर -जमाई 'चाहिए ,रामदीन ने अपनी बात पूरी की। उसकी बातों का समर्थन करते हुए प्रताप बोला -अपनी जगह उनकी बात भी ठीक है। रामदीन के जाने के बाद प्रताप देर तक सोचता रहा।
लगभग एक माह पश्चात अचानक प्रभा उसके सामने आ गयी ,वो सड़क पर जा रहा था दूसरी तरफ से प्रभा आती दिखी ,उसने अपनी नजरें सिकोड़कर ध्यान से देखा और मन ही मन बुदबुदाया ,-हां वही है ,उसे मैं कैसे भूल सकता हूँ ?जब वो नजदीक आयी ,वो बोला -हैलो ,जबाब में प्रभा ने मुड़कर देखा कि कौन ऐसा व्यक्ति है? जो मुझे जानता है।प्रभा ने पूछा -क्या मैं आपको जानती हूँ ?उसके प्रश्न पर प्रताप सकपका गया ,बोला -मैं प्रताप आपके घर में किरायेदार ,आपने मुझे पहचाना नहीं ,उस दिन खाना लेकर आयी थीं , प्रताप ने पूछा। ओह !उस दिन मैं जल्दी में थी ,ध्यान ही नहीं दिया ,बस एक झलक देखी थी ,सो ध्यान नहीं। प्रताप का आत्मविश्वास जागा ,बोला -मैं नहीं भूला ,एक झलक में ही पहचान गया। तो फिर आइये ,कभी घर पर बैठकर बातें करेंगे ,कहकर वो आगे बढ़ गयी। वो मन ही मन सोच रही थी ,इतना आकर्षक व्यक्तित्व वाला व्यक्ति हमारे यहाँ किराये पर रहता है ,पता नहीं कहाँ से आया है ?क्या काम करता है ?उसकी उत्कंठा बढ़ी। घर आकर मम्मी से पूछा -मम्मी ,हमारे घर में जो किरायेदार है ,वो कहाँ से है ,क्या करता है ?क्यों, तुम क्यों पूछ रही हो ?तृप्ति ने ही प्रश्न किया।आज रास्ते में मुलाकात हो गयी, मैं पहचान ही नहीं पाई। देखने में तो किसी भले घर का लगता है ,आज उसे चाय पर बुला लेते हैं। क्यों, चाय पर क्यों ?तृप्ति मुस्कुराकर बोली। नहीं , ऐसे ही ,उसे भी तो लगना चाहिए कि उसके मकान -मालिक खुले दिल के मिलनसार लोग हैं।
क्रमशः प्रताप को मकान -मालिक ने घर पर चाय के लिए बुलाया ,क्या वो चाय पीने गया ?उसे बुलाने का क्या उद्देश्य था ? क्या वो दूसरे बच्चे का पिता बन पाया या नहीं। आगे क्या स्थिति रही जानने के लिए पढ़िए -ऐसी न थी ,मैं ;का दूसरा भाग पढ़िये।