Biraju bhiya

 आज घर में बड़े दादा घूम -घूमकर साफ -सफ़ाई करा रहे हैं ,घर में किसी त्यौहार जैसा वातावरण है। हर कोई काम में लगा है। बड़े दादा ,मेरे पापा के बड़े भाई हैं ,रिश्ते में तो ताऊजी लगते हैं किन्तु पापा उन्हें '' दादा ''कहते तो हम बच्चे भी उन्हें ' बड़े दादा 'कहने लगे। माँ भी रसोई में नए -नए व्यंजन बनाने में जुटी हैं।

भाभी भी घर का प्रत्येक सामान उसकी सही जगह पर लगा रही हैं। मैंने माँ से पूछा -क्या बात है ?आज बड़ी साफ -सफ़ाई चल रही है। उल्टे माँ ने मुझे डपटते हुए कहा -कहाँ रहती है ,तू ?सारा दिन फोन और सहेलियों से बातचीत ,पता ही नहीं रहता कि घर में क्या हो रहा है ,क्या नहीं ?माँ की डांट बुरी तो लगी किन्तु मैंने उस पर ध्यान न देते हुए पूछा -अब तो बता दो ,अब पूछ रही हूँ। माँ ने मुस्कुराते हुए जबाब दिया -तेरा बड़ा भाई' बिरजू' आ रहा है ,कल दोपहर तक यहाँ पहुंच जायेगा। क्या !बिरजू भाई आ रहे हैं ,मैंने आश्चर्य और ख़ुशी से पूछा। और क्या, मैं अंग्रेजी में कह रही हूँ ,मैंने भी तो यही कहा ,माँ मुस्कुराते हुए बोली। जा तू भी अपने भाई के लिए ऊपरवाला कमरा ठीक कर दे ,तू भी तो उसकी बहन है ,अपने भाई के लिए इतना तो कर ही सकती है ,कहकर माँ लड्डू बनाने लगी। ठीक है ,कहकर पायल भी ऊपर का कमरा व्यव्यस्थित करने चल दी। तभी उसके फोन की घंटी बजी ,फोन पर उसकी सहेली रोमा थी ,उसने फोन उठाया और बातें  करती हुई ,सीढ़ियों पर चढ़ने लगी। उधर से  रोमा की आवाज़ आयी -हैलो पायल ,शाम को रूही के घर चलेगी ,वहां से घूमने चलेंगे। पायल को माँ की बातें याद आयीं ,बोली -नहीं यार ,मैं आज और कल कहीं जाने वाली नहीं ,उसके बाद सोचकर बताउंगी कि जाना है या  नहीं। उसकी बातें सुनकर रोमा कुछ चिंतित स्वर में बोली -क्यों क्या हुआ। किसी ने कुछ कहा क्या ?अरे नहीं !कुछ भी बात नहीं है ,कल मेरे बड़े भाई आ रहे हैं ,उनके स्वागत की तैयारी हो रही है ,माँ ने मुझे भी काम दिया है ,नहीं तो डाँटेंगी। बस इसलिए मैं नहीं जा रही। रोमा ने पूछा -ये तेरे कौन से भाई हैं ?मैंने तो कभी उन्हें नहीं देखा ,न ही उनके बारे में कुछ सुना। 
                    वो मेरे से  बड़े ' बिरजु भाई 'है तुम उन्हें पहले कैसे देखतीं ?तुम तो तीन वर्षों से मेरी सहेली बनी हो और बिरजु भाई तो छः बरस के बाद यहाँ आ रहे हैं। जब वो गए थे ,मैं चौदह बरस की  थी और अब छः वर्ष के बाद आ रहे हैं। अरे ये क्या नाम है ?उनका। बिरजू , रोमा ने हँसते हुए पूछा। पायल ने उसे समझाते हुए बताया ,अरे !उनका नाम 'बृजेश अग्रवाल 'है किन्तु प्यार से सभी घरवालेऔर रिश्तेदार उन्हें 'बिरजू' ही कहते हैं। जब उनकी नौकरी लगी थी तब बीच -बीच  में आ जाते थे ,उनके विवाह के बाद उनका तबादला भी दूर शहर में हो गया ,तब से अब आ रहे हैं। उन्हीं के आने के कारण  घर में साफ -सफ़ाई चल रही  है। पायल सामानों पर चढ़ी धूल को झाड़ते हुए बोली -बस अब फोन रख ,मुझे काम करने दे ,वरना माँ की डांट पड़ जाएगी। अगले दिन प्रातः काल ही सब अपने -अपने काम में जुट गए। चाचाजी भी आ गए और पापा के साथ भाई को लेने चले गए। सब लोग बेसब्री से उनका इंतजार कर रहे थे ,इतने दिनों बाद सबको उनसे मिलने की इच्छा बढ़ गयी थी ,मन में अज़ीब सी ख़लबली मची थी। उनके नहाने -खाने का सब इंतज़ाम करके ही बैठे थे , तभी बाहर से गाड़ी के रुकने की आवाज़ सुन ,हम बाहर की ओर दौड़े तभी दो छोटे बच्चे दौड़ते हुए अंदर की तरफ आये किन्तु  अज़नबी चेहरे देखकर वहीं दरवाज़े के पास खड़े हो गए। तभी भाई -भाभी भी उतरे और भाभी -भइया के साथ बच्चे भी अंदर आ गए। 

                  नहाने- खाने के बाद भइया बोले -पायल, तू कितनी बड़ी हो गयी ?जा तेरे लिए कुछ लाया हूँ ,मेरा बैग ले आ। मैं गयी और उनका बैग उठा लाई। भाई ने बेेग खोलकर सबके उपहार निकाले और दे दिए। सब खुश थे ,घर में ख़ुशी का वातावरण छाया था ,भइया ने बच्चों को अपने रिश्तों से परिचित कराया।मैं बच्चों को लेकर अपने कमरे में आ गयी ,हम काफी देर तक खेलते रहे ,बच्चे जब थककर सो गए तब मैं भाभी के पास आ गयी। अगले दिन भाई किसी रिश्तेदारी में चले गए ,इतने दिनों बाद सबसे मिलना चाहते थे। लगभग एक सप्ताह तक घूमते रहे उसके बाद उनके जाने का समय आ गया। तब माँ और पापाजी ने कहा -तू  हमारे पास रहा ही कब ?तू तो बस रिश्तेदारों में घूमता रहा ,थोड़े दिन तो हमारे पास रह। भाई उनकी बात रखने के लिए थोड़े दिन के लिए रह गए। अब भाई घर में थे ,अब दोनों भाभी घर में ही काम में लगी रहतीं। छोटी भाभी को भी घूमने को मिल रहा था ,उनके मज़े आ रहे थे। अब काम करना पड़ रहा था। धीरे -धीरे उनके व्यवहार  में परिवर्तन आने लगा। कभी -कभी झुंझलाने लगतीं ,उनके व्यवहार से लगता कि अब वो नहीं  चाहतीं कि भाई यहाँ रहें ,जबकि ये उनका  अपना भी घर  है। किन्तु अब वो चाहती थीं कि भाई चले जाएँ। मुझे भी ये सोचकर गुस्सा आ रहा था कि जब भाई घूमाने ले जाते और खर्चा करते तब बुरा नहीं लगता। उनके लाये उपहार भी झट से रख लिए और अब काम करते जोर पड़  रहा है। एक दिन तो हद ही हो गयी ,जब मैंने भाभी को अपने पति यानि मेरे छोटे भाई से कहते सुना -कब जायेंगे ,ये लोग मैं सारा दिन काम में ही लगी रहती हूँ। भइया बोले -क्यों ?बड़ी भाभी भी तो तुम्हारे साथ काम कराती है। कराती तो हैं किन्तु ज़िम्मेदारी से नहीं, मदद के तोे र पर ,भाभी तुनककर बोली। 
              भइया -भाभी की बात सुन मुझे बुरा लगा किन्तु उससे भी ज्यादा दुःख तब हुआ ,जब मैंने देखा कि दूसरी तरफ़ से बड़े भइया चुपचाप जा रहे थे। शायद उन्होंने कुछ सुन लिया ,सोचकर ही मैं काँप उठी। मन ही मन में प्रार्थना करने लगी -उन्होंने कुछ सुना न हो लेकिन किसी ने , किसी से भी कुछ नहीं कहा। दो दिन बाद ,अचानक बड़े भइया माँ और पापा से बोले -मैंने अपनी टिकट करा ली हैं ,मैं जा रहा हूँ। बहुत जरूरी काम आन पड़ा। ये बात सुनकर मुझे धक्का लगा कि भाई को तो अभी रुकना था। एकाएक कैसे चल दिए ?मैंने पूछना चाहा -क्यों ऐसा क्या काम आ गया ?जो अचानक जा रहे हो। उन्होने मुझे समझाने का प्रयत्न  किया ,किन्तु मेरा मन किसी भी तर्क को मानने के लिए तैयार नहीं था। उनके जाने की तैयारियाँ हो रहीं थी ,माँ ने उनके ले जाने के लिए लड्डू और भी सामान बनाये। माँ के व्यवहार से लग रहा था कि वो भी भाई को भेजना चाह रही हैं ,उन्होंने एक बार भी उन्हें रोकने का प्रयत्न नहीं किया। जब भइया जा रहे थे तब मैंने रोते  हुए ,उनसे एकांत में पूछ ही लिया ,कहीं आपने छोटी भाभी की बात तो नहीं सुन ली ,मैंने आपको उधर से निकलते हुए देखा है। इससे पहले की भाई कुछ कहते ,मैंने अपने सिर पर उनका हाथ रख लिया। मुझे पूरी उम्मीद थी कि अब भाई झूठ नहीं बोल पाएंगे। भाई बोले -पगली !तू नहीं मानेगी ,क्या फ़र्क पड़ता है ?मैंने उनकी बातें सुनी हों या नहीं। मुझे तो आज नहीं तो कल जाना ही है। फिर ये तो मानव प्रवृति है ,कब तक झूठी मुस्कान लिए रहेगा ?एक न एक दिन तो पता चल ही जाना है। उसकी भी कोई ग़लती नहीं ,हर कोई आराम का जीवन जीना पसंद करता है ,ये भी कोई कम बात नहीं कि उसने इतने दिनों तक तो खाना बनाया ही है। उस पर कोई जोर जबरदस्ती नहीं। भाई की बातें सुनकर मुझे इतना तो पता चल ही गया कि भाई ने उनकी बातें सुनी हैं। 
                 मैंने कहा -इतनी जल्दी उन्हें आपसे परेशानी हो गयी ,आपके लाये उपहार तो लपककर ले लिए ,घूमने के लिए भी दौड़कर तैयार हो जाती थी और जब खाना बनाने,या थोड़ा काम क्या बढ़ गया? उन्हें परेशानी होने लगी। दो -चार दिन और बना लेतीं तो क्या बिगड़ जाता ?भाई मेरे आँसू पोंछते हुए बोले -नहीं ऐसे नहीं रोते ,वो भी तो इंसान ही है ,उसका भी मन है ,मुझे इस बात की ख़ुशी है कि मेरे कारण कुछ दिनों तो उसके जीवन में हँसी और बदलाव आया। सारा दिन क्या करती रहती होगी ?ये ही काम तो करती होगी। फिर भाई हँसते हुए बोले -हमें तो उसका शुक्रगुज़ार होना चाहिए ,इतने दिनों तो सेवा की वर्ना आजकल  की स्त्रियाँ तो अपने पति को भी खाना नहीं देतीं ,बेचारे को स्वयं ही बनाकर खाना पड़ता है। रही बात उपहारों की ,तो ये मेरी अपनी ख़ुशी थी कि मैं अपनों के लिए कुछ करूं। मैंने उनपर कोई एहसान नहीं किया ,इसमें मेरा ही स्वार्थ था कि मैं अपनों के चेहरों पर उन उपहारों को देकर ख़ुशी देखना चाहता था। मुझे कोई बात नहीं सूझी ,तब मैंने कहा -आपके पास मेरे हर सवाल का ज़बाब है ,आप महान होंगे ,मैं नहीं। भाई बोले -तभी तो तेरा बड़ा भाई हूँ ,तू चिंता मत कर अबकि बार शीघ्र ही आऊँगा ,तेरे विवाह पर ,उपहार भी लाऊंगा। तभी माँ की आवाज़ आई-- बेटा !सब गाड़ी में बैठ गए। अभी आया कहकर भाई ने मुझे गले लगाया और चले गये। मुझे भाई के जाने का दुःख हो रहा था ,उनके आने पर दस -पंद्रह दिन कैसे निकल गए ? पता ही नहीं चला। 

                भाई के जाने के बाद सब शांत से थके से बैठ गए ,जैसे अब  कोई काम ही नहीं  रह गया है ,एकाएक मैंने माँ से कहा -आपने भी भाई को नहीं रोका ,और तैयारियाँ कर रहीं थी ,उनके जाने की। थोड़े दिन और रुक जाते तो किसी का क्या जाता ?मन को तसल्ली हो जाती। माँ बोली -जाना तो उसे था ही ,दो दिन बाद भी जाता तो उससे क्या फ़र्क पड़  जाता ?समय से चला गया ,अच्छा ही हुआ। मुझे माँ पर क्रोध आया और सोचा भाभी -भइया की बात उन्हें बता दूँ ,ताकि उन्हें पता चल सके कि किस कारण से भाई गए हैं? तुम नहीं जानती माँ ,,,,,मेरी बात पूरी होने से पहले ही माँ ने मुझे रोक दिया ,बोलीं -मैं सब जानती हूँ ,मैं वहीँ पीछे के गोदाम में थी ,इसीलिए बात ज्यादा बिगड़े उससे पहले ही उसे संभाल लेना बेहतर है। मैंने आश्चर्य से माँ की तरफ देखा और माँ ने हाँ में गर्दन हिला दी। मैं सोच रही थी माँ का दिल कितना बड़ा होता है ?उसने सुनकर सब चुपचाप सहा  और किया ,वो तो अपने बेटे से मिलकर रो भी न सकी। 
















laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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