Badlte rang

आज घर में खीर -पूरी ,मालपुए दो सब्ज़ियाँ और बूँदी का रायता बना है क्योंकि आज बहुओं का व्रत है ,आज के दिन सुहागन महिलायें अपने पति की लम्बी उम्र ,और अच्छे स्वास्थ के लिए पूजा करती हैं और अपने घर की बड़ी -बुढ़ियो को' बायना 'निकालतीं हैं। उर्मिला की दोनों बहुओं ने भी उपवास रखा है। जब खाना तैयार हो गया तो थाली सजाकर उर्मिला के लिए भी ले  आयीं। उसने इंकार कर दिया -नहीं ,मैं नहीं खा पाऊँगी ,अब ये सब मेरे लिए नहीं ,ऐसा भोजन किये तो उसे महीनों हो गए। शुरू -शुरू में इच्छा होती थी फिर परम्पराओं को निभाने के लिए उसने ,ये सब त्याग दिया। आज थाली में इतने व्यंजन देखकर ,उसकी इच्छा तो हो रही थी किन्तु रीति -रिवाज़ों के डर से अपने मन की इच्छा दबा ली। उर्मिला की बहु समझदार है ,बोली -मम्मीजी ,ऐसे कब तक चलेगा ?इसमें आपकी क्या गलती है ?ये तो भाग्य का खेल है।

आपको स्वस्थ रहने के लिए खाना -पीना भी आवश्यक है और कब तक दलिया ,खिचड़ी खाती रहेंगी? प्रतिदिन तो ऐसा भोजन नहीं बनता ,कभी -कभी तो चल जाता है। अन्य दिनों में तो सात्विक भोजन करती ही हैं  ,आज त्यौहार है ,खा लीजिये। तभी दरवाज़े की  घंटी बजी  और वो थाली रखकर दरवाजा खोलने चली गयी। उर्मिला की आँखों से टप -टप आँसू बहने लगे और सोचने लगी -अपनों के प्यार और अपनेपन ने ही तो ज़िंदा रखा है। जब से ये [अपने पति के लिए ] गए हैं ,तब से ज़िंदगी बेरंग हो  गयी है ,कुछ भी करने ,कहने की इच्छा नहीं होती। नाम उर्मिला है किन्तु मेरा जीवन भी उसी की तरह हो गया। पति के बिना कैसे जीवन कटता है ?उसके दर्द को मैं ही समझ सकती हूँ किन्तु उसका पति तो अपने भाई राम की सेवा के लिए वनवास गया था उसे एक उम्मीद तो थी कि चौदह वर्षों बाद उसके पति उसके साथ होंगे किन्तु मुझे तो ये उम्मीद भी नहीं।' सोनम' के पापा इतना बड़ा धोखा दे ,बीच राह में छोड़ गए। वे भी क्या करते ?बेबस थे बेचारे ,बिमारी ने छोड़ा ही नहीं उन्हें ,साथ लेकर गयी। 
                   लोग हमें देख ,हंसों का जोड़ा कहते थे ,अब वो ही लोग समझाते हैं ,कि अधेड़ उम्र में ,पति का ऐसा क्या मोह ?अब तो भगवान से लौ लगाओ ,अपने बेटों के पास ठाठ से रहो। इस उम्र में ही तो सहारे की ज्यादा आवश्यकता होती है ,कुछ परेशानी होती तो उनसे कह लेती थी ,अब किसी ने कुछ कह दिया तो मन ही मन घुटती रहूँगी ,तब वो समझा देते तो मन हल्का हो जाता था। बहु -बेटा हैं ,अच्छे हैं किन्तु अपने परिवार में व्यस्त रहते हैं ,मैं अपने कमरे में अकेली ,इस इंतजार में रहती हूँ कि कोई आये और पूछ ले- कुछ चाहिए तो नहीं ?मुझे तो जैसे किसी बात का अधिकार ही नहीं रहा क्योंकि  घर की बड़ी -बुढ़ियों ने समझा दिया -न कहीं आना ,न कहीं जाना ,सात्विक भोजन करना ,साधारण वस्त्र पहनना ,न ही किसी से कोई अपेक्षा रखना ,बाक़ी का जीवन ऐसे व्यतीत करना ,जैसे हम होते हुए भी नहीं है। ध्यान ,भजन सुनना ,जीते जी मृत्यु को धारण कर लो। मैं इन सब बातों को नहीं मानती थी किन्तु अपनी परम्पराओं और बड़ों का मान रखते हुए, ये सभी कार्य कर रही थी। आज बहु के कहने पर मैं अपनी परम्पराओं से आगे बढ़ने का प्रयत्न करते हुए ,थाली उठा लेती हूँ। तभी कमरे में छोटी यानि मेरी देवरानी ने कमरे के अंदर प्रवेश किया। 
                 ये !क्या कर रही हो? बहनजी !क्या तुम्हें तनिक भी सोधी [सुध ]नहीं ?ये सुहागन औरतों का त्यौहार है और तुम इनका पुजा हुआ खा रही हो। कब तक अपने को पुजवाती रहोगी ?इस उम्र में भी जिव्हा लपलपा रही है। चटपटा खाने का मोह नहीं छूटा और उसने आव देखा न ताव और हाथ में से थाली छीन ली। ये हरक़त सबने देखी ,अपनी हरकतों पर शर्मिंदा होने की बजाय ,वो सबको समझाते हुए डाँटने लगी ,तुम आजकल की बहुएं हो ,तुम अपने को ज़्यादा समझदार और पढ़ी -लिखी ,मानती हो ,यदि ज्यादा ही अपनी सास पर लाड़ आ रहा था तो बाद में थोड़ा सा भोजन दे सकती थीं लेकिन पुजा हुआ नहीं। ये तो इस उम्र में अपनी अक़्ल खो चुकी हैं ,इन्हें तो सही -गलत का ज्ञान ही नहीं।ऐसा लग रहा था ,जैसे किसी,' चोर को चोरी करते' रंगे हाथों पकड़' लिया हो , मैं अपने को अपमानित महसूस कर अपने  आपको कोस रही थी ,मैंने क्यों बहु की बात मानी ?पर सब्र रखा किन्तु अखिंयों पर मेरा बस न चल पाया और अश्रुपूरित हो गयीं किन्तु मैंने अपने आँचल से  पोंछ ,उन्हें बाहर ही नहीं आने दिया। सोनम कोअपनी चाची पर बहुत क्रोध आया और बोली -चाचीजी ,ये आप क्या कह रहीं हैं ?मम्मी ने तो मना किया था किन्तु भाभी ने ही .... उसकी बात पूरी होने से पहले ही वो ,शोर मचाती हुई ,रीति -रिवाज़ और परम्पराओं की दुहाई देने लगीं -मुझे क्या ?मत मानो अपने रीति -रिवाज़ ,मत निभाओ अपनी परम्पराएँ ,मैं तो अपने घर चली जाऊँगी मुझे किसी से कहने का कोई अधिकार नहीं और जोर -जोर से रोने लगीं। सब उन्हें समझाने और मनाने बैठ गये ,मैं अपने को कोसती भूखी -प्यासी बैठी रही। 
                     कई  वर्ष बीत गए , सोनम का विवाह भी हो गया और उसके प्यारे -प्यारे बच्चे भी हो गए ,मेरे पोती - पोते भी पाठशाला जाने लगे ज़िंदगी अपने ढर्रे से चल रही थी ,इस  वर्ष त्यौहार पर सोनम भी आयी हुई थी ,यहाँ का काम कर त्यौहार मना चाची के घर चली गयी। हमारे यहॉँ कहावत है -'आदमी सुख में न जाये किन्तु दुःख में तो खड़ा हो जाये। 'सोनम भी चाची से मिलने गयी उसके चाचा नहीं रहे ,कहेंगी- कि लड़की मिलने भी नहीं आयी।वो घर पहुंची तो चाची खाना खा रही थी ,सोनम को देख ख़ुश होती हुयी बोलीं -बहुत दिनों बाद आयी ,आजा खाना खा ले। नहीं चाचीजी ,मैं घर से ही खाकर  आयी हूँ। वो वहीं बैठकर घर पर निगाहें दौड़ाने लगी ,थोड़ी देर बाद उसके  लिए  चाय आ गयी। बहुएं वहीं बैठकर खाना खाने लगीं। उसने देखा ,चाचीजी ने ,रंगीन साड़ी पहनी है ,खाना भी वही खाया। सोनम से रहा नहीं गया बोली -चाचीजी ,क्या हमारे घर की परम्पराएँ और रीति -रिवाज़ बदल गए ?वो समय  ध्यान है , मेरी मम्मी के सामने से परम्पराओं के नाम पर खाने से भरी थाली उठा ली थी ,भूल गयीं क्या ?मैं कोई बदला लेने नहीं आयी किन्तु आपने एक औरत होकर भी दूसरी औरत का दर्द नहीं समझा। बहुओं के सामने कितनी बेइज़्जती की थी, उनकी ?और आज क्या ?वो आज भी निभा रही हैं ,ये परम्पराएँ क्या कुछ ही लोगों के लिए होती हैं  ?रिश्ते में छोटी होने के बावज़ूद कितना सुनाया था उन्हें ?और उन्होंने सुना भी। 

                   तभी एक बहु बोली -दीदी अब ज़माना बदल गया है ,सोच बदली है ,ऐसे रीति -रिवाज़ किस काम के जिनमें अपनों की ख़ुशी न हो ?ये अकेली अपने कमरे में परेशान होतीं ,यहॉं हमारे साथ खुश हैं। हमने ये सोचकर इन्हें खाना दिया कि ये सुहागन नहीं  तो क्या ?हमारे सुहाग की माँ तो हैं। भाभी वही तो मैं कह रही हूँ - ये कैसी त्रासदी है ?हम औरतें ही इन रीति -रिवाजों और परम्पराओं को निभाती हैं ,उनका सख़्ती से पालन भी करती हैं किन्तु दूसरे के लिए ,अपने लिए वे परम्पराएँ बदल क्यों जाती हैं ?दूसरे के जीवन को अभिशाप बना देती हैं। क्या ये सही है ?उसके प्रश्नों का किसी के पास ज़बाब नहीं था। 
 
                                                   यदि आप लोगों के पास  हो तो ज़बाब दें। 


















  
laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

Post a Comment (0)
Previous Post Next Post