मन ही मन' प्रभा' को' प्रताप 'अच्छा लगने लगा था किन्तु उसके विषय में कोई जानकारी नहीं थी ,दूसरी तरफ प्रताप तो जैसे उसे पहले ही दिल दे चुका था किन्तु उसकी परिस्थितियाँ अलग थीं वो ग्रामीण क्षेत्र से आया था ,उस पर दूसरे बच्चे का पिता बनने जा रहा था। वो अपनी इन परिस्थितियों से भागने का प्रयत्न कर रहा था। या यूँ कहें ,सच्चाई से' नज़रें चुरा 'रहा था। प्रभा से मिलने के बाद वो इस इंतजार में था ,कब उसे चाय के लिए बुलाया जाये ?अभी दो दिन ही बीते होंगे ,रामदीन ने आकर बताया -बड़े साहब ,बुला रहे हैं। प्रताप तो जैसे इसी इंतजार में था और वो अच्छे से नहा -धोकर ,तैयार होकर ,उनसे मिलने चल दिया। एक सुसज्जित कमरे में उसे बिठाया गया ,उस कमरे की सज्जा देखकर उसकी आँखें फैल गयीं। किसी राजा -महाराजा का कमरा लग रहा था। गाँव में ,उसका घर भी किसी हवेली से कम नहीं ,किन्तु ऐसी साज -सज्जा उन्हें नहीं आती। गांव के सीधे, मेहनती लोग हैं ,बड़े घरों जैसा रहन -सहन नहीं आता। वो वहाँ बैठा ,अभी ये सब सोच ही रहा था। उसके मकान -मालिक एक हल्की सी शाल ओढ़कर आ गये और दिवान पर सिर टिकाकर बैठ गए। उनकी हालत देखकर ,प्रताप ने पूछा -क्या ,आपकी तबियत ठीक नहीं ?वो बोले -हल्की सी हरारत है ,प्रताप को तो उम्मीद थी कि उसे प्रभा मिलेगी ,किन्तु वो तो कहीं दिख ही नहीं रही। उसने फिर से प्रश्न किया -और घर में सब ठीक हैं ?हाँ ,वे बोले। इस तरह बैठकर तो वो बेचैन होने लगा ,बोला -आपने मुझे किसलिए बुलाया ?वे बोले -आज मैं काम पर भी नहीं गया ,सोचा ,तुमसे ही जान -पहचान बढ़ा ली जाये। तब तक रामदीन चाय लेकर आ गया और साथ में अपने साहब की दवाई भी। प्रताप ने उन्हें सीधा बैठाने में मदद करते हुए ,उनके हाथ में दवाई और चाय पकड़ा दी। चाय पीते हुए ,वो बोले -कहाँ से हो तुम ? प्रताप ने अपने गांव का नाम बताया ,उसे नहीं लग रहा था कि वो कभी गाँव भी गए हों। उनका दूसरा प्रश्न आया -घर में कौन -कौन हैं ?प्रताप पहले तो चुप रहा, फिर बोला -मेरे माता -पिता और दो भाई बहन। बहन का विवाह हो चुका है ,भाई ,अभी पढ़ रहा है। पिता खेती करते हैं। माँ घर के कामों में व्यस्त रहती हैं , वैसे जमीन -ज़ायदाद बहुत है।
प्रताप ने जानबूझकर अपने विवाह की बात छुपाई ,कारण वो स्वयं ही नहीं समझ पा रहा था ,शायद इसीलिए कि वो लोग क्या सोचेंगे ?इतना पढ़ने के बाद भी इतनी जल्दी विवाह कर लिया अथवा उसके मन के चोर ने उसे सच्चाई बताने से रोक दिया। उन्होंने बताया -मेरी बेटी भी पढ़ाती है ,उसके लिए योग्य वर की तलाश में हैं ,जो हमारे साथ ही रहे, क्योंकि इसे हमारी बहुत फ़िक्र रहती है। हमारी भी इकलौती बेटी है ,जो कुछ भी हमारे पास है ,सब उसी का तो है। बस हमें तो ऐसा दामाद चाहिए जो हमारी बेटी को जीवन भर खुश रखे। वैसे तुम्हारे क्या ख़्यालात हैं ?विवाह के बारे में , तुम्हारे माता -पिता भी तो तुम्हारे लिए लड़की देख रहे होंगे। जी ,मैं कुछ समझा नहीं ,प्रताप हिचकिचाते हुए बोला। इसमें न समझने वाली क्या बात है ?भई ,तुम्हारे माता -पिता तुम्हारे लिए कैसी लड़की चाहेंगे ?उन्होंने फिर से पूछा। ओह !जैसे वो इस बात को अभी समझा बोला -सुंदर और पढ़ी -लिखी लड़की ही देखेंगे। चाय पीने के बाद ,वो उठे ,बोले -इसे अपना ही घर समझना ,कोई परेशानी हो तो बताना ,कभी -कभी मिलने आ जाया करो। प्रभा भी अकेली है ,उसका साथ हो जायेगा। वो अपने कमरे की तरफ लौट रहा था किन्तु उसका दिल बल्लियों उछल रहा था। उसका मन ख़ुश था ,जैसे वो अभी अपने विवाह के लिए साक्षात्कार देकर आया हो। मन ही मन उनकी बातों से तो उसे ऐसा ही लग रहा था। फिर से बेचैनी बढ़ी -पर उन्होंने सीधे बात ,आगे क्यों नहीं बढ़ाई ?शायद इतनी जल्दी मुझपर विश्वास न कर पा रहे हों ,मुझे और परखना चाहते हो कि मैं उनकी बेटी के क़ाबिल हूँ या नहीं।मन ही मन निश्चय भी कर लिया कि मैं उनके हर इम्तिहान में पास होकर रहूँगा।अब तो उनके घर में उसका आना -जाना हो गया। प्रभा और वो दोनों घंटों बातें करते रहते , कभी -कभार गाँव चला जाता ,दो -तीन दिन रहकर वापस आ जाता। अब वो दो बेटों का पिता हो गया था। घर में समय से पैसे भिजवा देता। तीज -त्यौहार पर घर आ जाता ,पत्नी से मिलता किन्तु उसका मन तो प्रभा के पास रहता।
छोटा बेटा एक वर्ष का हो गया ,माता -पिता कहने लगे -अब अपनी पत्नी और बच्चों को अपने साथ ले जाओ। तब उसने बहाना बनाया -आप लोगों की सेवा कौन करेगा ?इस उम्र में कैसे अकेला छोड़ दें ?फिर शहर में कोई ठीक सा मकान भी नहीं मिलता ,मैं ही न जाने कैसे, एक कमरे में गुजारा कर रहा हूँ ? शहर में जाने पर खर्चे भी बढ़ जायेंगे ,बहुत समस्याएं हैं ,कहकर उसने उन्हें चुप करा दिया। धीरे -धीरे प्रताप का अपने गांव आना कम होता गया। कोई पूछता भी तो कह देता ,काम बहुत है। गाँव की पाठशाला में ही बच्चों का नाम लिखवा दिया। माता -पिता ने सोचा था ,शहर में बच्चे पढ़ेंगे ,किसी लायक हो जायेंगे किन्तु प्रताप तो उन्हें ले जाने का नाम ही नहीं लेता। पहले साल -छः महीनें में आ भी जाता था ,अबकि बार तो दो वर्ष हो गए। उसका कोई पता नहीं , कहाँ है ?क्या कर रहा है ?अब तो गांव में भी चर्चा होने लगी ,क्या उसे अपने बच्चों की भी चिंता नहीं ?इस बुढ़ापे में माँ -बाप खिसट रहे हैं। कुछ अनुभवी लोगों की दूरदर्शी नजरें कुछ और ही समझ रही थीं। एक -दो ने तो तरुण से कह भी दिया -तेरा भाई किसी लड़की के चक्कर में पड़ गया है, सुनकर उसे क्रोध तो आया ,किन्तु उसका मन भी अंदर ही अंदर यही कह रहा था। पैसे भिजवा देता ,बाक़ी कोई ख़ैर -खबर नहीं। एक दिन तरुण किसी काम से शहर गया। रास्ते में एक गाड़ी पर उसकी नज़र पड़ी ,उसमें उसे उसके भइया प्रताप दिखे। पहले तो उसे लगा कोई और है ,फिर से देखा ,वो भाई ही थे, किन्तु उनके साथ कोई सुंदर सी महिला गोद में बच्चा लिए बैठी थी। कौन हो सकती है ?अभी वो ये सोच ही रहा था कि वो गाड़ी बराबर से निकल गयी। तभी उसे याद आया ,गाँव के लोग कहीं ,सच ही तो नहीं कह रहे ?
उन्होंने अपना पता भी तो नहीं दिया ,जो पहला पता था वो कहीं खो गया ,इतना कहाँ मालूम था ?कि उसकी आवश्यकता पड़ेगी। माँ -पिताजी को क्या कहूँगा ?भाभी पर क्या बीतेगी ?अपने मन को समझाया ,शायद ये मेरा वहम हो। घर आकर पिता को बताया ,सुनकर वो चुप हो गए ,उन्हें बहु की चिंता थी ,उस पर क्या बीतेगी ?दोनों ने आपस में सलाह की ,किसी को कुछ नहीं बताना है। तीन वर्ष बाद ,अबकि दीपावली पर ,प्रताप बहुत सारे उपहार लेकर आया। घर में जैसे रौनक आ गयी ,बच्चे भी अपने पिता को देखकर उससे लिपट गए। छोटे वाले ने तो अपने पिता को पहली बार देखा था ,वो उससे छूटकर चाचा की गोद में आ गया। तरुण ने ताना मारा -जब इतने दिनों में आओगे ,तो बच्चे कैसे पहचानेंगे ?एकांत मिलते ही तरुण और उसके पिता ने प्रताप से सीधे -सीधे बात की- शहर में गाड़ी में किस महिला के साथ थे ?प्रताप ने पहले तो सोचा कि कुछ भी झूठ बोल दूँ किन्तु पिता के कसम खिलवाने पर उसने सच बता ही दिया। मैंने दूसरी शादी कर ली ,उसके एक बेटी है और अब वो गर्भवती है। पिता की आँखों में खून उतर आया ,बोले -इनका क्या होगा ?ये जो गांव में तेरे बीवी -बच्चे हैं ,हम गाँववालों को क्या जबाब देंगे ?वो आपकी मर्ज़ी जो देना है दे ,देना। क्या मैं ,गाँववालों के लिए अपना काम अपना जीवन जीना छोड़ दूँ ?पिता ने दांत पीसते हुए ,पूछा -ये जो तेरी बहु है ,दो बच्चे हैं ,उन्हें क्या जबाब देगा ?किसी को कुछ पता नहीं चलेगा ,इसी तरह जिंदगी कट जायेगी उसने लापरवाही से कहा। ख़र्चा भेजता रहूँगा कहकर उसने अपना पल्ला झाड़ लिया।
किसी को पता नहीं चल पाया कि अंदर के कोठे में बहु थी उसने सब सुन लिया ,उसके शरीर में तो जैसे जान ही नहीं रही ,वो बहुत देर तक ऐसे ही पड़ी रही। अपने भविष्य को देख ,बच्चों का भविष्य सोचकर उसने किसी से कुछ नहीं कहा। वो तो सपने सँजो रही थी कि कब वो इतना पैसा कमाने लगे ?कि उसके साथ शहर जाने के सपने सजा रही थी। उसे क्या पता था ? इस शहर ने तो उसकी दुनिया पहले ही उजाड़ दी। सास -ससुर का ख़्याल कर वो चुप रही। प्रताप उसके पास आया ,वो अज़नबी निगाहों से उसे देख रही थी ,उसके मन में अनेक प्रश्न घुमड़ रहे थे किन्तु पूछा कुछ नहीं। उस दग़ाबाज का चेहरा भी उसे असहनीय लग रहा था और वो जाकर अपने बच्चों के पास सो गयी। दो दिन और रहने के बाद वो शहर लौट आया, किन्तु वो अपने पीछे अपने धोखेबाजी का दर्द उनके दिलों में छोड़ आया था। घर में सबको पता चल गया था किन्तु किसी ने भी किसी को कुछ नही बताया। सब अपने -अपने दर्द को लिए जी रहे रहे थे। प्रताप जब शहर पहुंचा तो प्रभा ताना मारते हुए बोली -स्वयं ही अपने गाँव घूम आते हैं ,हमें कभी नहीं ले जाते ,कभी हमें भी तो अपने भाई और माँ -पिताजी से मिलवाओ, उन्हें भी तो पता चले कि उनकी बहु है ,एक पोती है और एक आनेवाला है ,अपने पेट की तरफ इशारा करते हुए बोली। प्रताप बोला -उनसे मिलवा देंगे ,पहले तुम स्वस्थ तो हो जाओ। इस बात को दो वर्ष हो गए ,प्रताप के पिता बहु का दुःख देख अंदर ही अंदर दर्द में घुलते रहे, कि बहु सारा जीवन अकेले कैसे काटेगी ?और एक दिन इसी ग़म में चल बसे। छोटे के लिए लड़की वाले आते और बड़े भाई की बातें सुनकर लोेट जाते।
प्रभा का बेटा अब दो वर्ष का हो गया था ,एक दिन उसकी बेटी कहने लगी -मम्मा !पापा का गॉँव केेसा है ?दादा -दादी से हमें भी मिलना है। जैसे प्रताप उसे बताता था कि बड़ी सी हवेली है चौधरी रामफल का नाम बोलने से ही गाँववाले घर तक छोड़ जाते हैं। ऐसे ही उसने बच्चों को बताया था जिससे बच्चों की जिज्ञासा बढ़ गयी और गाँव जाने की ज़िद करने लगे। प्रभा पढ़ी-लिखी ,आत्मनिर्भर महिला थी और एक दिन बच्चों को लेकर गाड़ी से गॉँव की ओर चल दी। प्रताप व्यापार के सिलसिले में बाहर गया था , जब से प्रभा के पिता का देहांत हुआ है , तबसे उसने नौकरी छोड़कर उनका व्यापार संभाला। प्रभा को कौन रोकता और वो दोनों बच्चों को लेकर चली गयी। मन ही मन खुश हो रही थी कि जब इनके दादा -दादी इनसे मिलेंगे , कितने प्रसन्न होंगे ?वो रास्ता पूछती हुयी ,गांव में प्रवेश कर गयी। गांव में बहुत दिनों बाद कोई गाड़ी आयी थी, गाँव के बच्चे किसी शहरी को गांव में आते देखकर गाड़ी के पीछे चल दिए। एक बच्चे से प्रभा ने पूछा -चौधरी रामफल का घर कहाँ है ?धीरे -धीरे ये बात सारे गांव में फैल गयी कि चौधरी के यहाँ शहर से मेहमान आये हैं ,ये बात सुनकर तरुण उस ओर गया जिधर गाँव के लोगों ने गाड़ी के आने का संदेश दिया था। वहां पहुंचकर वो उस महिला को भी पहचान गया जो भाई के साथ गाड़ी में थी। उसने घर में किसी को पता न चले इसीलिए प्रभा को किसी अन्य जगह रुकवा दिया। किन्तु बात फैलते -फैलते घर तक पहुंच ही गयी ,लोग अटकलें भी लगाने लगे , कि प्रताप की दूसरी पत्नी गांव में आयी है।प्रभा वैसे तो सुंदर थी ही उसके बच्चे भी शहर में पल -बढ़ रहे थे।' तोतई रंग' की साड़ी में किसी अप्सरा से कम नहीं लग रही थी। प्रताप की पहली पत्नी ने जब सुना तो इतने वर्षों का बंद लावा फूट पड़ा। वो चूल्हे पर खाना बना रही थी, उसी चूल्हे की जलती लकड़ी लेकर प्रभा को मारने चल दी।जिसने मेरी ज़िंदगी उजाड़ दी ,वो आज यहाँ क्या लेने आई है ?पूरा गाँव प्रताप की पहली पत्नी और दूसरी पत्नी को देखने के लिए उमड़ पड़ा। आज चम्पा ने किसी की कोई परवाह नहीं की ,घूंघट भी नहीं था। आज लग रहा था जैसे उसके सिर देवी आ गयी हो। ये बात भी वहाँ पहुंच गयी ,जहाँ प्रभा अपने बच्चों के साथ बैठी थी। अब उसे पता चला, कि उसका विवाह एक धोखा है ,प्रताप तो पहले से ही विवाहित था ,दो बच्चे भी हैं ,इतना बड़ा धोखा ,उसे सदमा लगा। गाँववालों ने मिलकर उसे किसी तरह पहली पत्नी से बचाकर उसकी गाड़ी तक पहुंचाया और उसे रवाना किया।
घर आकर वो लेट गयी ,बच्चे भी घबराये हुए थे ,प्रभा ने रामदीन से उन्हें संभालने के लिए कहा। बच्चों की नानी तृप्ति बाहर से आयी थी ,उसने पूछा - क्या हुआ ?बच्चे कुछ समझा नहीं सके ,प्रभा कमरा बंद करके लेटी थी। माँ ने दरवाज़ा खटखटाया ,किन्तु प्रभा में तो इतना दम ही नहीं था कि वो उठ भी सके। वो परेशान थी ,क्या करे ,किससे कहे ?उससे इतनी बड़ी गलती कैसे हो गयी ?कि इतने सालों में पहचान न सकी। वो तो समझती थी ,गाँव का सीधा -सच्चा इंसान है। कितना बड़ा खेल खेल गया ?धोखे का जीवन कैसे जियेगी ?उसने तो अपनी पत्नी और बच्चों को भी धोखा दिया ,जिन्हें लगता था शहर में उनका पिता उनके लिए कमाने गया है। मैं भी तो उस धोखे का शिकार हुई हूँ। न जाने कब तक रोती रही ?हिम्मत करके उठी ,आज उसके शरीर में जान नहीं थी। कमरे से बाहर निकली ,माँ ने उसका चेहरा देखा तो सिर घूम गया ,संभलकर बेटी से बोलीं -तुझे क्या हुआ ?चेहरा तो देख अपना ,जैसे खून ही न हो। मैं डॉक्टर को बुलाती हूँ। माँ से हाथ के इशारे से मनाकर वो पास पड़ी कुर्सी पर बैठ गयी। माँ के पूछने पर भी उसने नहीं बताया। शाम तक प्रभा की तबियत बिगड़ती चली गयी ,डॉक्टर को बुलाया गया ,उसने बताया -इनको कुछ सदमा लगा है ,दवाई देकर चला गया। अगले दिन शाम तक प्रताप घर आया ,प्रभा की हालत देखकर घबरा गया। तब बच्चों ने अपनी टूटी -फूटी भाषा में पिता को बतला दिया कि वो गांव गए थे। ये बात सुनकर वो सारा माज़रा समझ गया कि प्रभा को मेरे पहले विवाह के विषय में पता चल गया है। वो प्रभा के पास जाकर सफ़ाई देने लगा किन्तु प्रभा ने कुछ नहीं कहा। प्रभा दिन ब दिन कमजोर होती गयी ,डॉक्टर की दवाई भी काम नहीं कर रही थी।
सब परेशान थे ,क्या हुआ इसे ?ठीक क्यों नहीं हो रही ?प्रताप सब समझता था किन्तु किससे कहे -ये उसके ही कर्मों का फ़ल है। उसने प्रभा के पास जाकर कई बार मिन्नतें की माफ़ी मांगी किन्तु प्रभा मुँह फेर लेती। एक दिन प्रभा बोली -तुमने मेरे साथ ही नहीं अपनी पत्नी के साथ भी सही नहीं किया ,यदि मुझे पता होता तुम विवाहित हो तो मैं कदापि विवाह न करती। वो बोला -इसी डर से तो नहीं बता पाया वरना मैं तुम्हें खो देता। प्रभा से ज़्यादा बोला नहीं जा रहा था ,उसने हाथ के इशारे से उसे चुप रहने को कहा। बोली -मैं किसी का घर उजाड़ती ''ऐसी तो न थी मैं ''उसे उसका अधिकार देना ,बच्चों का ख़्याल रखना। कहकर वो शांत हो गयी। प्रताप ने बहुत हिलाया -डुलाया किन्तु वो इस दर्द से आज़ाद हो चुकी थी।
आज एक वर्ष हो गया प्रभा को गए ,प्रताप गाड़ी लेकर गांव गया और चम्पा और दोनों बच्चों को भी ले आया। चम्पा तो बोली भी नहीं ,न ही पूछा -कैसे हमारी याद आ गयी ?घर पहुँचकर प्रभा की तस्वीर और वहां का माहौल देखकर समझ गयी ,छोटे बच्चों को बिलखते देख उसका दिल पसीज़ गया और उसने दोनों बच्चों को गले लगा लिया। इतने वर्ष हो गए ,बच्चे भी बड़े होकर कालिज में पढ़ने लगे। चारों बच्चों को प्रभा ने ही पाला। प्रताप को उसके झूठ की इतनी बड़ी सज़ा मिली जिसके लिए झूठ बोला ,वो ही न रही। चम्पा से भी नजरें न मिला सका ,उसने अपने को व्यापार व्यस्त कर लिया।
आज एक वर्ष हो गया प्रभा को गए ,प्रताप गाड़ी लेकर गांव गया और चम्पा और दोनों बच्चों को भी ले आया। चम्पा तो बोली भी नहीं ,न ही पूछा -कैसे हमारी याद आ गयी ?घर पहुँचकर प्रभा की तस्वीर और वहां का माहौल देखकर समझ गयी ,छोटे बच्चों को बिलखते देख उसका दिल पसीज़ गया और उसने दोनों बच्चों को गले लगा लिया। इतने वर्ष हो गए ,बच्चे भी बड़े होकर कालिज में पढ़ने लगे। चारों बच्चों को प्रभा ने ही पाला। प्रताप को उसके झूठ की इतनी बड़ी सज़ा मिली जिसके लिए झूठ बोला ,वो ही न रही। चम्पा से भी नजरें न मिला सका ,उसने अपने को व्यापार व्यस्त कर लिया।