THakne lage hein !

तन अब थकने लगे हैं ,
बदलती चाल  बता रही है। 

अब इतनी शीघ्रता से काम नहीं होता ,
फिर भी करना है। 
जिस तन की' मदमाती 'चाल ,
लोगों को विवश कर जाती थी ,
उस ओर देखे बिना न रह पाती थी। 
अब वो थकने लगा है। 
जिस चेहरे की चमक देख ,कभी 
आईने में इठलाती थी। 
आज वो बेरंग हो ,मुँह चिढ़ाता है। 
चेहरे पर दिखती हैं ,चिंता की लकीरें ,
वे अब गहराने लगीं हैं। 
समय आया भी नहीं और चला गया ,
रह गया ,सिर्फ़ थका बदन। 
वो बदन जो समझता था ,'तू ही है '
आज वो चेहरे पर ऐनक चढ़ाये ,
उन परछाइयों को ढूंढता है। 
मन कोशिश करता है ,पुनः आये 'पुनर्जीवन '
फिर थका तन जतला देता है ,
अब न और बेबस करो। 
तन अब थकने लगे हैं ,
बाल भी पकने लगे हैं। 
कभी ये भी  नागिन से लहराते थे ,
अब अनसुलझे से जूड़े बन जाते हैं। 
तू क्यों इतना दौड़ रहा ?भाग रहा है। 
क्या अपनी उम्र छुपा रहा है ?
किससे पीछा छुड़ा रहा है ?
अब तो मान भी ले ,
योगा से अपने को चला रहा है। 
मान भी जा ,
दिन अब घटने लगे हैं। 
तन अब थकने लगे हैं। 


laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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