तन अब थकने लगे हैं ,
अब इतनी शीघ्रता से काम नहीं होता ,
फिर भी करना है।
जिस तन की' मदमाती 'चाल ,
लोगों को विवश कर जाती थी ,
उस ओर देखे बिना न रह पाती थी।
अब वो थकने लगा है।
जिस चेहरे की चमक देख ,कभी
आईने में इठलाती थी।
आज वो बेरंग हो ,मुँह चिढ़ाता है।
चेहरे पर दिखती हैं ,चिंता की लकीरें ,
वे अब गहराने लगीं हैं।
समय आया भी नहीं और चला गया ,
रह गया ,सिर्फ़ थका बदन।
वो बदन जो समझता था ,'तू ही है '
आज वो चेहरे पर ऐनक चढ़ाये ,
उन परछाइयों को ढूंढता है।
मन कोशिश करता है ,पुनः आये 'पुनर्जीवन '
फिर थका तन जतला देता है ,
अब न और बेबस करो।
तन अब थकने लगे हैं ,
बाल भी पकने लगे हैं।
कभी ये भी नागिन से लहराते थे ,
अब अनसुलझे से जूड़े बन जाते हैं।
तू क्यों इतना दौड़ रहा ?भाग रहा है।
क्या अपनी उम्र छुपा रहा है ?
किससे पीछा छुड़ा रहा है ?
अब तो मान भी ले ,
योगा से अपने को चला रहा है।
मान भी जा ,
दिन अब घटने लगे हैं।
तन अब थकने लगे हैं।