Naari hun

मैं ,माँ ,बहन और बेटी ,सब बाद में ,
मैं  पहले एक' नारी' हूँ। 

जो प्रतिदिन लड़ती है ,अपने जज़्बातों से ,
दबाती है ,अरमान अपने ,
न जाने कितनी इच्छायें ?
समझा लेती हूँ ,अपने आपको। 
तैयार रहती हूँ ,हर स्थिति से जूझने के लिए ,
किसी सैनिक की तरह। 
ढ़ल जाती हूँ ,किसी  मौसम की तरह। 
ढ़ाल बन जाती ,अपने परिवार की ,
वो नारी ,जो प्रतिदिन उठती है ,
इक नए दिन की तरह। 
मैं वो नारी जो थकती हूँ ,
फिर उठ खड़ी होती हूँ। 
सहारा लेती नहीं ,देना जानती  हूँ। 
थाम लेती हूँ ,अपनों का हाथ ,
जीवनभर निभाने के लिए।
देती हूँ चुनौती ,अपने आपको ,
जीतना है ,हर हालात से। 
रोती हूँ ,मुस्कुराती हूँ ,
छुपा लेती हूँ, वो अश्रु जो ,
इंतजार में रहते हैं ,मेरे टूटने के ,
झुक जाती हूँ ,अपनों के लिए ,
तलाशती हूँ ,अपनों का साथ। 
बिखरी हूँ ,कई बार ,
सिमटी हूँ, अपनों के लिए। 
फिर भी मैं  हूँ ,एक उमंग ,
नवज्योति ,नवप्रेरणा ,
बिखेरती हूँ प्रकाश ,
चहकती हूँ ,चंचल हूँ ,
नवजीवन हूँ, मैं 'नारी हूँ '
मैं शाश्वत ,मैं कल्पना ,
नए प्रकाश की उज्ज्वल किरण हूँ।
मैं 'अनबूझ पहेली'' हूँ  



laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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