मैं ,माँ ,बहन और बेटी ,सब बाद में ,
जो प्रतिदिन लड़ती है ,अपने जज़्बातों से ,
दबाती है ,अरमान अपने ,
न जाने कितनी इच्छायें ?
समझा लेती हूँ ,अपने आपको।
तैयार रहती हूँ ,हर स्थिति से जूझने के लिए ,
किसी सैनिक की तरह।
ढ़ल जाती हूँ ,किसी मौसम की तरह।
ढ़ाल बन जाती ,अपने परिवार की ,
वो नारी ,जो प्रतिदिन उठती है ,
इक नए दिन की तरह।
मैं वो नारी जो थकती हूँ ,
फिर उठ खड़ी होती हूँ।
सहारा लेती नहीं ,देना जानती हूँ।
थाम लेती हूँ ,अपनों का हाथ ,
जीवनभर निभाने के लिए।
देती हूँ चुनौती ,अपने आपको ,
जीतना है ,हर हालात से।
रोती हूँ ,मुस्कुराती हूँ ,
छुपा लेती हूँ, वो अश्रु जो ,
इंतजार में रहते हैं ,मेरे टूटने के ,
झुक जाती हूँ ,अपनों के लिए ,
तलाशती हूँ ,अपनों का साथ।
बिखरी हूँ ,कई बार ,
सिमटी हूँ, अपनों के लिए।
फिर भी मैं हूँ ,एक उमंग ,
नवज्योति ,नवप्रेरणा ,
बिखेरती हूँ प्रकाश ,
चहकती हूँ ,चंचल हूँ ,
नवजीवन हूँ, मैं 'नारी हूँ '
मैं शाश्वत ,मैं कल्पना ,
नए प्रकाश की उज्ज्वल किरण हूँ।
मैं 'अनबूझ पहेली'' हूँ