Bagal main chhora

बाहरवीं की कक्षा थी ,मुक्ता अपनी कक्षा में बैठी थी तभी पीछे से एक कागज़ का गोला आकर उसे लगा ,उसे पता था कि पीछे बैठे लड़कों में से ही किसी की शरारत होगी।मुक्ता अपनी ही धुन में रहती थी ,न ही किसी को भाव देती थी न ही किसी से ठीक तरीक़े से बात करती थी। पीछे वाले को मज़ा चखाने के लिए उसने ''आव देखा न ताव '' और वो गोला उठाकर सीधे अध्यापिका को दे दिया। मोहित एकदम सकपका गया उसे मुक्ता से ऐसी उम्मीद नहीं थी। अध्यापिका ने वो कागज़  का गोला खोलकर पढ़ा और हँसकर बोलीं -ये बात तुम सामने से भी कह सकते थे। ये बात तुम सामने से भी कह सकते थे ,उन्हीं लाइनों को दोहराते हुए वो जिज्ञासावश बोली -क्या मतलब ?अब तो मोहित को जैसे सहारा मिल गया ,बोला -मैडम !न हीं ये सुनती है ,न ही जगह देती है ,ये देखिये ,हम एक ही बेंच पर चार लोग बैठे हैं और ये दो। [अपने दोस्त अभिषेक की तरफ इशारा करते हुए ]और मैडम ,ये देखिये ,ये अभिषेक दो की जगह  अकेले ने ही घेर रखी  है ,मोटा ही इतना हो गया है सारा दिन खाता रहता है। इस बात पर सारी कक्षा में हंसी की लहर दौड़ गयी। अध्यापिका ने सबको शांत किया और बोलीं -एक बेंच पर तीन लोग आराम से बैठ सकते हैं ,मोहित तुम  आगे वाली बेंच पर आ जाओ। मगर मैडम ,मुक्ता?मोहित बोला। वो कुछ नहीं कहेगी और मुक्ता की तरफ देखते हुए बोलीं -तुम यहाँ दो ही बैठी हो ,मोहित को भी बैठने की इज़ाजत दे दो ,वो भी इस विद्यालय की फ़ीस भरता है। 

                मगर मैडम !मुक्ता ने खड़े होकर पीछे देखा कोई भी जगह खाली नहीं थी ,अपनी बात पूरी करने से पहले ही चुप हो गयी क्योंकि उसे अन्य कोई जगह ख़ाली भी नहीं दिखी जो वो कह देती कि किसी अन्य जगह बैठ जाये। मुस्कुराता हुआ मोहित उसके पास आ बैठा। मुक्ता ने उसे घूरा क्योंकि वो अपनी ज़िद पूरी कर चु का था। उसकी मुस्कुराहट से उसे वो दिन याद आ गया जब दोनों की उस जगह के लिए नोंक -झोंक हुई थी किन्तु मुक्ता ने उसे बैठने नहीं दिया तब मोहित ने उसे चुनौती दी कि वो इसी जगह बैठेगा और मैडम ही उसे बैठायेंगी। आज उसे मौका मिल ही गया। अध्यापिका के जाने के बाद मुक्ता  ने वो कागज़ उठाया ,पढ़ा और फाड़ दिया। अब रोजाना ही मोहित उसी जगह बैठने लगा। मुक्ता उसे तंग करने की नई -नई तरक़ीब सोचती ,एक दिन उसने मोहित के पैर पर बड़ी जोर से जूता मारा। मुक्ता ने सोचा था कि अभी अध्यापिका पढ़ा रही हैं ,ये कुछ कर भी नहीं पायेगा किन्तु उसकी सोच के विपरीत मोहित जोर से चिल्लाया -हाय ,मैं मर गया। सबका ध्यान उसकी और गया वो बोला -मैडम ,देखो इसने कितनी बुरी तरह मेरा पैर कुचल दिया ,मुक्ता बुरी तरह झेंप गयी और बोली -नहीं मैडम ,वो तो अचानक ही रखा गया उसकी बात काटते हुए मोहित बोला -नहीं मैडम ,जब से आपने मुझे इस जगह बिठाया है तब से ये मुझे किसी न किसी बहाने इसी तरह परेशान करती है। मैडम ने मुक्ता को डांटा ,मुक्ता को भी अंदाजा नहीं था कि वो इस तरह नाटक करेगा। बस वो डांट खाकर बड़बड़ाकर रह गयी -आया बड़ा ,मैडम का लाड़ला।
            धीरे -धीरे दोनों की इसी तरह की नोंक -झोंक के बाद कुछ दिनों बाद दोनों में दोस्ती हो गयी और दोस्ती कब प्यार में बदल गयी ,उन्हें पता ही नहीं चला ,इसका एहसास उन्हें तब हुआ जब दोनों को अपना विद्यालय छोड़कर कॉलिज में जाना पड़ा दोनों के कॉलिज अलग -अलग हो गए। मोहित को तो' अभियंता 'बनना था और मुक्ता को  अध्यापिका बनना था ,दोनों अपने -अपने कॉलिज में जाते जब छुट्टी मिलती तो वो भी मिल लेते किन्तु मुक्ता अक्सर अपनी माँ की शिकायत करती रहती- कि '' माँ मेरे लिए लड़का ढूंढ़ रहीं हैं। ''मेरे पीछे पड़ी रहतीं हैं। मोहित बोला -अभी तो तुम पढ़ ही रही हो ,इतनी  जल्दी तुम्हारा विवाह कैसे कर सकती हैं ?अभी तुम अपना स्नातक पूरा करो ,तब तक तो वे रुक ही सकतीं हैं। इतनी बात मुक्ता को समझ आयी और उसने  अपनी मम्मी से कहा -मुझे अभी विवाह नहीं करना अभी मेरी पढ़ाई पूरी होने दीजिये। मोहित अक्सर जब भी मुक्ता से बातें करता तो उसकी मम्मी के विषय में अवश्य पूछता -माँ क्या कर रहीं हैं ? वो  कहती -कभी रसोईघर में हैं ,कभी कोई अन्य कार्य में व्यस्त रहतीं। तब वो पूछता -क्या तुम मम्मी के कार्य में हाथ नहीं बटातीं उनके काम में भी मदद कर दिया करो फिर प्यार भरे लहज़े में कहता -भई ,हम तो अपनी पत्नी के हाथ का ही भोजन करेंगे , कम से कम तुम खाना बनाना ही सीख़ लो। ये बात मुक्ता के मन में बैठ गयी जो पढ़ाई के बहाने कभी किताबों में कभी सहेलियों के संग फोन पर लगी रहती, आज वो रसोईघर में घुसी।माँ को आश्चर्य हुआ कि आज इसे क्या हुआ ?वो बोली -अब से मैं भी खाना बनाना सीखूंगी और वो रसोईघर के कार्यों में दिलचस्पी लेने लगी। इधर मुक्ता की मम्मी भी खुश थीं -'चलो लड़की स्वयं ही 'गृहकार्यों 'में दिलचस्पी लेने लगी। स्नातक करने के बाद वो फिर से मोहित पर विवाह के लिए दबाब बनाने लगी। मोहित बोला -मैं अभी कैसे विवाह के लिए तैयार हो सकता हूँ ?अभी तो नौकरी भी नहीं लगी फिर मैं कैसे तुम्हारी जिम्मेदारी उठा सकता हूँ ?अभी तो तुम पढ़ ही रही हो पढ़ाई जारी रखो ,वे लड़का अभी ढूँढ ही रही हैं, मिला तो नहीं ,तुम अभी धैर्य रखो। तब तक  मैं कुछ करता हूँ। 

                     मुक्ता  का मन किया कि वो चीखे किन्तु अपने मन  को समझाते हुए बोली - तब तक मम्मी मेरा विवाह करा देंगी और मैं तुम्हें टाटा करती हुयी चली जाउंगी। उसकी बात सुन मोहित हँसा और बोला -ऐसी नौबत नहीं आएगी ,तुम्हारी डोली मेरे ही घर आएगी। बस -बस रहने दो, ये कविता बनाने के लिए। इन्हीं बातों के कारण मुझे अपनी मम्मी भी अच्छी नहीं लगतीं मुक्ता बोली। ये क्या कह रही हो तुम ?वो तो कितना ध्यान रखतीं हैं तुम्हारा ?तुम्हारी फ़िक्र करतीं हैं ,तुम्हारे लिए कितना सोचतीं हैं ?मोहित ने मुक्ता को समझाया। क्या ख़ाक सोचतीं हैं ,मेरी ख़ुशी से उन्हें कोई मतलब नहीं ?मुक्ता गुस्से से मुँह झटककर बोली। मोहित बोला -कभी तुमने उन्हें बताने का प्रयत्न किया कि तुम्हारी ख़ुशी किसमें है ?नहीं मुक्ता ने मुँह बनाते हुए जबाब दिया। तो फिर मेरी जान उन्हें कैसे पता होगा ? कि उनकी बिटिया तो  हम यानि ''साहबज़ादे मोहित पर फ़िदा हैं। ''उसने इस अंदाज में कहा ,मुक्ता को हंसी आ  गयी।फिर वो थोड़ा गंभीर होकर बोला - वो तो साधारण माँ की तरह अपनी बच्ची के लिए चिंतित हैं ,क्या उन्हें मालूम है कि तुम यहाँ मुझसे मिलने आती हो ,वैसे क्या बहाना लेकर आयी  हो ?यही कि पढ़ने जा रही हूँ मुक्ता बोली। कितना विश्वास है उन्हें तुम पर ?और तुम उन्हें धोखा देकर मेरे साथ यहां बैठी हो और फिर भी तुम माँ से गुस्सा हो। तो क्या तुमसे मिलने न आऊं ?या मम्मी को बताया, तो क्या वो भेजेंगी कि हाँ बेटा जाओ !अपने उस दोस्त से मिलने मुक्ता ने आवाज बदलकर अभिनय किया।मोहित उसके अभिनय पर हँसते हुए बोला -मैंने सिर्फ़ तुम्हें समझाने के लिए बताया ,कभी उनके  नजरिये से भी सोचकर देखो कि वो तुमसे कितना प्यार करती हैं और तुम्हारे लिए सोचती हैं,तुम्हारे अच्छे भविष्य को लेकर चिंतित हैं ,आजकल मैं देख रहा हूँ तुम समय के साथ कितनी स्वार्थी होती जा रही हो सिर्फ़ अपने बारे में ही सोचती हो।  तुमने तो बड़ी आसानी से कह दिया कि मम्मी मुझे अच्छी नहीं लगतीं ,तुमने कभी अपने बारे में सोचा है कि तुम क्या कर रही हो उनके साथ ?
               मोहित की बातें सुनकर मुक्ता सोच रही थी कि ये कब से इतना ज्ञानवान हो गया ? मुझसे मिलने आया है या मम्मी पर भाषण देने फिर बोली -वो मेरी मम्मी हैं मुझे उनकी इतनी चिंता नहीं जितनी तुम्हें हो रही है। हां, मैं ये ही बात तो तुमसे कहना चाह रहा हूँ ,वो तुम्हारी मम्मी हैं जो उनका प्यार- दर्द तुम्हें महसूस होना चाहिए वो मैं कर रहा  हूँ।मेरी मम्मी से, तुम्हें क्यों इतनी हमदर्दी हो रही है ?मुक्ता ने पूछा। मोहित बोला -कल मैंने उन्हें अस्पताल में देखा था उनके घुटनों में दर्द था ,मैं भी उत्सुकतावश  देखने चला गया कि उन्हें क्या परेशानी है ?तब मुझे पता चला ,उनके घुटनों में दर्द है और डॉक्टर ने उन्हें ज्यादा काम करने के लिए मना किया है फिर भी वो काम में लगी रहतीं हैं। तुम्हें उनके बारे में नहीं सोचना चाहिए मोहित ने उसके चेहरे पर नज़र गड़ाते हुए कहा। मुक्ता लापरवाही से बोली -जब वो मेरा विवाह करा देंगी ,तब भी तो काम करेंगी पर तुम्हें मेरी मम्मी की चिंता क्यों है ?मोहित बोला -मैं तुमसे प्यार करता हूँ और वो तुम्हारी मम्मी हैं तो  तुमसे जुड़े रिश्तों से मेरा भी संबंध होगा और तुम्हारी माँ मेरी भी माँ हुईं और जब तुम्हें अपनी मम्मी का ही ख़्याल नहीं तो फिर मेरी मम्मी का ध्यान कैसे रखोगी ?उन्होंने तुम्हें किसी बात के लिए रोका या समझाया तो वे भी तुम्हें बुरी लगेंगी। जब तुम किसी से प्यार करते हो तो उससे जुड़े लोगों से तुम्हारे संबंध स्वयं ही बन जाते है उन रिश्तों से स्वतः ही लगाव हो जाता है ,सिर्फ' मैं और तुम' नहीं रह जाते।    
                   मोहित बोले जा रहा था -हम एक दूजे से प्यार करते हैं किन्तु हम उन्हें भी नजरअंदाज नहीं सकते जो हमें इतने वर्षों से प्यार करते आ रहे हैं जो हमारे अपने हैं उनके प्रति भी तो हमारी कुछ जिम्मेदारियां हैं ,वो लोग इतने वर्षों से हमारे लिए कर रहे हैं ,हमारे लिए सोच रहे हैं ,क्या उनकी चिंता का मान करने का हमारा कोई फ़र्ज नहीं ,क्या हमने ऐसी शिक्षा ग्रहण की है उस शिक्षा से यही सीखा कि पढो -लिखो ,नौकरी करो और जो अपने हैं उन्हें दरकिनार करके अपनी ज़िंदगी में खुश रहो। क्या उन्होंने हमारी खुशियों के लिए समझौते नहीं किये होंगे ,हमारी उन्नति और सफलता के लिए नहीं सोचा होगा। 
               मुक्ता बोली -क्या तुम अब मुझे नहीं चाहते ,क्या तुम्हारा मन बदल गया है ?जो इस तरह की बातें कर रहे हो ,पहले तो कभी इस तरह की बातें नहीं की। मोहित बोला -समय के साथ विचारों में सोच में परिपक़्वता आती है हमारी सोच -समझ बढ़ती है ,ज़िम्मेदारियाँ भी समझ आती हैं ,सही -गलत की समझ भी आती है ,अब ये बचपना और ज़िद छोडो ,समझदार बनो ,स्वार्थी नहीं। इतने भाषण के बाद वो ठगी सी चुप बैठी रही उसे देखती रही ,वो सोच रही थी कि आज वो इतना सब क्यों और कैसे कह कर गया ?अब  मुझसे विवाह करेगा या नहीं या उसे कोई और लड़की मिल गयी उसके व्यवहार से मुक्ता के मन में अनेक प्रश्न कौंधने लगे। वो घर आ गयी अपना बैग रखा फिर अपनी मम्मी के पास गयी ,उसने देखा ,वो कपड़े सुखा रहीं थीं उसने अपनी मम्मी की मदद की खाना खाया और सो गयी। उसके मन में कहीं सूनापन सा आ गया था ये क्या था वो समझ नहीं पा  रही थी ,वो बौराई सी इधर -उधर घूम रही थी उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था। मोहित का कोई फोन भी नहीं आया उसे निहार लेती उसकी स्वयं भी हिम्मत नहीं हुई कि फोन करे। अगले दिन उसने फोन किया भी तो उसने उठाया नहीं। दस दिन तक उसने कोई सम्पर्क नहीं किया ,अब तो मुक्ता बेचैन हो उठी और उसने रोते -रोते अपनी मम्मी को सारी बातें बताईं। माँ ने उसे चुप कराया और पूछा -कौन है ?वो लड़का। मम्मी कुछ देर सोचती रहीं फिर बोलीं -देखते हैं ,क्या होता है ?कहकर मम्मी तो चली गयीं किन्तु उसके मन में प्रश्न उठने लगे -उन्होंने तो कुछ भी नहीं कहा। 

               एक दिन मम्मी -पापा अपने किसी दोस्त के यहां खाने पर गए ,मम्मी-पापा जब आये तो बहुत ही प्रसन्न थे ,मम्मी बोलीं -तुम्हारे पापा के दोस्त का लड़का था ,वो हमें पसंद आ गया और तुम्हारे पापा ने उससे तुम्हारी रिश्ते की बात की और वो लोग भी तैयार हो गए ,वहीं बात पक्की कर आये। मुक्ता रुआंसी होकर अपने कमरे की तरफ चली गयी ,वो सोच रही थी -जब मैंने मम्मी को सब बता दिया तब भी उन्होंने मेरी ख़ुशी का कोई ख्याल नहीं किया ,उसने मोहित को फोन लगाया किन्तु लगा ही नहीं तभी मम्मी आयीं और बोलीं -हम क्या तुम्हारा बुरा चाहेंगे ?लड़का देखने में अच्छा है ,तुम भी उसकी तस्वीर देख लो ,कहकर मम्मी एक लिफाफा रखकर चली गयीं। उसने लिफ़ाफा उठाया और फ़ेंक दिया। उसे लग रहा था कि कोई उसे समझता ही नहीं उस मोहित ने भी शायद मुझे धोखा दिया ,अगर उसने ऐसा किया होगा तो उसे छोडूंगी नहीं। फिर उसकी निग़ाह उस लिफ़ाफे पर गयी तो उसने यह सोचकर उठा लिया कि कुछ बहाना करके मना कर  दूंगी ,देखूं तो किसकी शामत आई है ?उसने जैसे ही लिफाफा खोला तो एकदम अपनी मम्मी के पास भागी और बोली -मम्मी ये ही तो मोहित है ,अच्छा, मम्मी अनजान बनते हुए बोलीं।लड़का हमारी बगल में  ही था और मैं शहरभर में ढूंढ़ रही थी।  तब मम्मी ने बताया -ये शरारत मोहित की ही थी ,उसने जब मेरी हालत देखी तो अपना परिचय दिया और सारी बातें बताई किन्तु हमें तुम्हें बताने के  कर दिया शायद वो अपने रिश्तों को और मजबूत बनाना चाहता था या वो देखना चाहता था कि तुम्हारे प्यार की गहराई ख़ैर उसकी जो भी सोच रही हो ,तुम पहले बतातीं तो मैं क्यों इधर - देखती ?बगल में छोरा ,गांव में ढिंढोरा कहकर मम्मी हंस पड़ीं। आज मुक्ता को अपनी मम्मी अच्छी लग रहीं थीं आज उसने उन्हें नजरभर देखा सच ही कह रहा था मोहित, कितना सोचतीं हैं ?हमारे बारे में ,जब हम अपने स्वार्थ से बाहर निकलकर दूसरे की भावनाओं को समझते हैं तभी हमें सही -गलत का मालूम होता है ,कभी मैंने अपनी माँ को इस तरह नहीं देखा और जब समझ आया तो अब मैं इन्हें छोड़कर चली जाऊँगी। ''ये बातें सोचकर उसकी आँखें भर आयीं।  


 

















  
laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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