पियूष ,मंजरी को अपने घर छोड़ तो आया किन्तु अब उसका दिल भी नहीं लग रहा था ,उधर मंजरी के रहते पियूष के रिश्ते आ रहे थे। जवान लड़का है ,इस तरह कब तक अकेला रहेगा ?किन्तु मंजरी की सुंदरता के आगे कोई लड़की टिक नहीं पाती। पियूष को जब मंजरी की याद ज्यादा सताने लगी तो उसने मंजरी के लिए एक फोन भेज दिया। अब तो दोनों घंटों फ़ोन पर बातें करते रहते ,उनकी दोस्ती दिन -प्रतिदिन बढ़ती जा रही थी। वे तो दोस्ती ही कहते किन्तु यदि कोई दूसरा देख ले तो समझ जाये कि ये दोस्ती से कुछ ज्यादा है। एक दिन बुआजी घर आयीं ,उन्होंने मंजरी के विषय में पूछा -रामप्रसाद जी ने सब बता दिया। बुआजी एक सप्ताह घर पर रहीं चलते समय बोलीं -मंजरी तो अच्छी लड़की है ,सुंदर भी है ,देखो किस तरह उसने सारा घर संभाल लिया ?और सबसे बड़ी बात अपने पियूष को भी बहुत प्यार करती है। बुआजी की ये बात सुनकर रामप्रसाद जी और उनकी पत्नी दोनों अचम्भित होकर ,बुआजी का' मुँह ताकने 'लगे जैसे उन्हें बुआजी की बात पर विश्वास ही नहीं हुआ। वो बोलीं -ये इतने दिनों से तुम्हारे पास रह रही है और तुम्हें इस बात की भनक भी नहीं लगी। तुमने सोचा भी नहीं कि पियूष ने इसे फ़ोन क्यों भेजा ?रामप्रसाद जी बोले -वो तो इसकी दवाई पूछने के लिए और देर -सवेर इसके घर वालों का कोई पता मिल जाये ,इसीलिए,,,,,बात पूरी होने से पहले ही बुआजी बोलीं -अरे ,मेरे भोले भाई ! वो तो तुमसे भी पता कर सकता था ,वो भी अब मंजरी को चाहने लगा है ,ये बात शायद वो भी नहीं समझ पा रहा ,तभी घंटों इससे क्या बातें करता होगा ?जो तुम इतने दिनों में न समझ पाए , मैं एक सप्ताह में समझ गयी। लड़की अच्छी है ,कर दो दोनों का विवाह। किन्तु बहनजी !पता नहीं कहाँ की है ,कौन है ?इसके घरवालों का पता चल गया तो वे लोग इस रिश्ते को माने या न माने। इसकी याददाश्त वापस आ गयी तब क्या होगा ?बुआजी लापरवाही से बोलीं -कुछ नहीं होगा ,जब होगा तब देखा जायेगा ,तुम्हारे यहाँ रहते अब इसे छः माह हो गए ,कब तक इसे अपने साथ रखोगे ?न जाने कब याददाश्त वापस आये ?
रामप्रसाद जी सोच रहे थे ,दीदी कह तो ठीक ही रहीं हैं फिर भी पियूष से बात करना भी आवश्यक है और उन्होंने अपनी बहन की सांत्वना देते हुए कहा -हम आपकी बात पर गौर करेंगे ,सब ठीक रहा तो पियूष के विवाह का निमंत्रण शीघ्र ही आपको मिलेगा। बुआजी के जाने के बाद रामप्रसाद जी ने पियूष को फोन किया ,बोले -बेटा ,मंजरी के डॉक्टर से पूछा, कि अब उसको कोई परेशानी तो नहीं ,हम कब तक, उसको अपने घर में रखेंगे ?इससे तो इसका विवाह करा देते हैं। पियूष की आवाज़ में घबराहट थी ,बोला -क्या हुआ ,मंजरी ने कुछ कहा या किया। नहीं बेटा घबराने वाली बात नहीं ,जवान लड़की को कब तक अपने घर रखेंगे ?इससे तो इसका विवाह करा दें ,अब यही हमने सोचा है ,न ही इसका परिवार मिल रहा है और न ही इसकी याददाश्त वापस आ रही है। तुम सारी बातें तय करके आ जाओ !हमने इसके लिए एक लड़का भी देख लिया है। क्या ?वो मान गयी ,मुझे भी नहीं बताया आप लोगों ने पियूष के स्वर से परेशानी साफ झलक रही थी। अगले दिन वो घर पर ही था। मंजरी को देखने एक लडका आया जो पियूष को बिल्कुल पसंद नहीं आया। मंजरी को पता चला, तो वो इस अप्रत्याशित बात के लिए तैयार नहीं थी ,बोली -मुझे कहीं नहीं जाना ,मैं तो यहीं रहूँगी ,अपने दोस्त के पास। नहीं बेटे ,सभी लड़कियों को एक न एक दिन जाना ही होता है ,वो तुम्हारा ख़्याल रखेगा पियूष की मम्मी बोलीं। पियूष बोला -मम्मी ये लड़का मुझे कतई पसंद नहीं। तो फिर और कहाँ से ढूंढ़ कर लायें लड़का ?वे चिंता के स्वर में बोलीं। अभी क्या जल्दी है पियूष बोला। कोई और लड़का तुम्हारी नजर में हो तो हमें बता दो।
तभी मंजरी बोली -मैं तो पियूष से ही विवाह कर लूँगी ,उसकी बात सुनकर पियूष अपने मम्मी -पापा के सामने झेंप गया। रामप्रसाद जी बोले -बेटे तुम्हारे साथ इसका विवाह नहीं हो सकता। क्यों ?मंजरी बोली। पियूष पढ़ा -लिखा है ,नौकरी करता है ,तुम जैसी लड़की से विवाह न करना चाहे ,रामप्रसाद जी पियूष की तरफ देखते हुए बोले।नहीं, ऐसी तो कोई बात नहीं पियूष झट से बोला। तो क्या तुम मंजरी से विवाह के लिए तैयार हो पिता ने मुस्कुराते हुए पूछा। जैसी आप लोगो की मर्ज़ी ,कहकर वो बाहर निकल गया। दोनों का विवाह तय हो गया अगले महिने विवाह की तारीख़ तय कर दी गयी। माता -पिता के सामने उसने अपने को संयत रखा लेकिन अंदर ही अंदर खुश हो रहा था। अब तो उसके दिन -रात इसी इंतजार में गुजरने लगे कब विवाह हो ?जब डॉक्टर को पता चला तो बोला -यदि इसकी याददाश्त वापस आ गयी तो कुछ भी हो सकता है। पियूष तो वर्तमान में जी रहा था ,उसे कल की चिंता नहीं ,इतनी सुन्दर लड़की से कौन विवाह न करना चाहेगा ? एक माह बाद दोनों का विवाह हो गया।पियूष को उसका प्यार मिल गया।
,अब तो मौहल्लेवालों को भी कोई जबाब भी नहीं देना पड़ेगा ,उसने शानदार सी दावत सबको दी जिसमें मंजरी का डॉक्टर और पुलिसवाले भी थे जो उस केस से जुड़े थे। पियूष की ज़िंदगी की गाड़ी अच्छी तरह से दौड़ रही थी। इसी बीच न जाने कैसे एक व्यक्ति आया और बोला -मैं इसका रिश्तेदार हूँ ,न ही मंजरी ने उसे पहचाना ,न ही वो किसी बात का ठीक से जबाब दे पाया। उसको पियूष ने पुलिस को पकड़वाना चाहा किन्तु वह भाग निकला। अब तो पियूष मंजरी का ओर ज्यादा ध्यान रखने लगा। जैसे किसी कीमती वस्तु के खो जाने का डर होता है ऐसा ही डर पियूष को था। हालाँकि इसके बाद ऐसी कोई घटना नहीं हुई।
,अब तो मौहल्लेवालों को भी कोई जबाब भी नहीं देना पड़ेगा ,उसने शानदार सी दावत सबको दी जिसमें मंजरी का डॉक्टर और पुलिसवाले भी थे जो उस केस से जुड़े थे। पियूष की ज़िंदगी की गाड़ी अच्छी तरह से दौड़ रही थी। इसी बीच न जाने कैसे एक व्यक्ति आया और बोला -मैं इसका रिश्तेदार हूँ ,न ही मंजरी ने उसे पहचाना ,न ही वो किसी बात का ठीक से जबाब दे पाया। उसको पियूष ने पुलिस को पकड़वाना चाहा किन्तु वह भाग निकला। अब तो पियूष मंजरी का ओर ज्यादा ध्यान रखने लगा। जैसे किसी कीमती वस्तु के खो जाने का डर होता है ऐसा ही डर पियूष को था। हालाँकि इसके बाद ऐसी कोई घटना नहीं हुई।
विवाह के इतने वर्षों बाद और दो बच्चों की माँ बनने के बाद भी मंजरी आज भी उतनी ही खूबसूरत लगती थी जैसे पहले लगती थी। पियूष तो जैसे अपने बच्चों और पत्नि पर जान छिड़कता था। उधर उसके माता -पिता भी अपने बहु -बेटे के परिवार को देखकर खुश होते। एक दिन उसका बेटा गेंद से खेल रहा था ,वो बहुत ही शरारती था किन्तु ज़िद कर रहा था कि उसे बल्ला भी चाहिए ,पियूष ने जानबूझकर उसे बल्ला नहीं दिलवाया था कभी चोट लगा ले। मंजरी ने उसे बहुत समझाया और उसे यक़ीन दिलवाया कि आज जब तुम्हारे पापा घर आएंगे तो बल्ला लेने चलेंगे। प्रणव रोते -रोते सो गया ,उसके सोने के पश्चात मंजरी घर के कामों में लग गयी। वो फ़्रिज में दूध रखने जा रही थी ,भगौना उसके हाथ में था तभी उसका पैर गेंद के ऊपर पड़ा और वो फ़िसलती चली गयी ,दूध बचाने के चक्कर में न ही दूध बचा सकी न ही अपने आपको और उसका सिर रसोईघर की सामान रखने वाली 'स्लैब 'पर जाकर लगा। चोट इतनी तेज़ थी कि वो बेहोश हो गयी।जब उसने आँखें खोलीं तो कुछ अनजान चेहरे उसे घेरे खड़े थे ,वो उठ बैठी और बोली -आप लोग कौन हैं ?और मैं यहां कैसे ?तभी उसके बच्चे दौड़ते हुए आये बोले -पापा! मम्मी उठ गयीं, कहकर उससे लिपट गए ,मंजरी ने उन्हें अपने से दूर किया और बोली -ये बच्चे किसके हैं ?सब एक -दूसरे का मुँह देखने लगे ,तभी किसी ने पूछा -आपका क्या नाम है ?वो बोली -मैं पल्ल्वी ,मैं अपने माता -पिता के साथ देहरादून में रह रही थी ,वहाँ पुल टूट जाने के बाद मैं नदी में गिर गयी ,मैंने बचने के लिए बहुत हाथ -पाँव मारे किन्तु मेरा सिर किसी चीज से टकराया और मैं बेहोश हो गयी। उसके बाद आप लोगों ने बचाया होगा ,वैसे अब मैं कहाँ हूँ ?अब मैं ठीक हूँ अपने घर जाना चाहूंगी।मंजरी की बात सुनकर पियूष समझ गया कि उसकी याददाश्त वापस आ गयी है और उसका असली नाम पल्ल्वी है।
पियूष को देखकर वहां से और लोग चले गए ,पियूष बोला -क्या तुम्हें कुछ भी याद नहीं ?वो बोली -याद है ,मेरा घर देहरादून में है किन्तु मैं यहाँ कैसे आयी और आप लोग कौन हैं ?मुझे अपने घर जाना है ,बच्चे मम्मी कहकर उससे लिपटे तो उसने किसी अजनबी की तरह अपने से अलग कर दिया। वो कमरे से बाहर निकल डॉक्टर से बात करने गयी। पियूष अपने बच्चों को लेकर वहीं बैठा रहा वो समझ नहीं पा रहा था कि क्या करे ?वो सोच रहा था यदि वो चली गयी तो उसका और उसके बच्चों का क्या होगा ?तभी डॉक्टर के साथ पल्ल्वी ने प्रवेश किया। डॉक्टर ने बताया -ये मैडम ,जिन्होंने इनकी जान बचाई ,उसका धन्यवाद करना चाहती हैं ,मैंने कहा -चलो मैं मिलवा देता हूँ। पियूष को देखकर बोली -मैंने तो इन्हें अभी थोड़ी देर पहले अपने बच्चों के साथ देखा। शायद उनकी मम्मी नहीं है ,मुझे देखकर ही मम्मी ,मम्मी कहने लगे। एक बार फिर से आपका धन्यवाद ,अभी मेरे पास पैसे नहीं हैं मैं घर पहुँचकर आपके पैसे लोेटा दूँगी।
कहकर वो बाहर निकल गयी। पियूष बोला -क्या डॉक्टर साहब !अब जो मंजरी ने दस वर्ष मेरे साथ बिताये हैं वो क्या अब इसे याद नहीं आयेंगे ? डॉक्टर ने कहा -कुछ कह नहीं सकते ,ये तो अब अपने को दस वर्ष पहले वाली पल्ल्वी मान रही है। याद दिलाने पर शायद याद आ जाये और न भी आये। एक उम्मीद अभी बाक़ी है कहकर पियूष बाहर की तरफ भागा। पल्ल्वी के पास पहुँचकर बोला -मंजरी !तुम मेरे साथ चलो ,उसने मुड़कर देखा और बोली -मैं मंजरी नहीं पल्ल्वी हूँ। शायद आपकी बीवी का नाम होगा और मैं आपके साथ क्यों और कहाँ जाऊँ ?थोड़ी देर के लिए ही सही आप मेरे घर चलिए। पल्ल्वी ने साफ इंकार कर दिया और बोली- आप मुझे देहरादून की बस कहाँ से मिलेगी ?वो थोड़ी सी मदद कर दीजिये। पता नहीं , कितने दिनों तक मैं बेहोश रही ? पियूष बोला -पूरे दस वषों तक। पियूष की बात सुनकर वो चौंकी और बोली -ये क्या कह रहे हैं ,आप। हां आप मेरे साथ चलिए तो सही मैं आपको सब बताता हूँ। घर पहुंचकर उसने पल्ल्वी को अपनी शादी की तस्वीरें और अपने छोटे से घर -संसार के बारे में बताया। पल्ल्वी को उसकी बातों पर विश्वास नहीं हो रहा था किन्तु वो चुप थी। सुबह जब सब उठे तो पल्ल्वी वहां नहीं थी। पियूष सिर पकड़कर बैठ गया ,वो समझ चुका था कि पल्ल्वी अब नहीं आयेगी। किसी ने सलाह दी अपनी पत्नी के' गुमशुदा 'होने की 'रिपोर्ट 'लिखा दो। वो सोच रहा था कि वो पहले 'गुमशुदा 'थी कि अब ,क्या लिखवाऊं ?
कहकर वो बाहर निकल गयी। पियूष बोला -क्या डॉक्टर साहब !अब जो मंजरी ने दस वर्ष मेरे साथ बिताये हैं वो क्या अब इसे याद नहीं आयेंगे ? डॉक्टर ने कहा -कुछ कह नहीं सकते ,ये तो अब अपने को दस वर्ष पहले वाली पल्ल्वी मान रही है। याद दिलाने पर शायद याद आ जाये और न भी आये। एक उम्मीद अभी बाक़ी है कहकर पियूष बाहर की तरफ भागा। पल्ल्वी के पास पहुँचकर बोला -मंजरी !तुम मेरे साथ चलो ,उसने मुड़कर देखा और बोली -मैं मंजरी नहीं पल्ल्वी हूँ। शायद आपकी बीवी का नाम होगा और मैं आपके साथ क्यों और कहाँ जाऊँ ?थोड़ी देर के लिए ही सही आप मेरे घर चलिए। पल्ल्वी ने साफ इंकार कर दिया और बोली- आप मुझे देहरादून की बस कहाँ से मिलेगी ?वो थोड़ी सी मदद कर दीजिये। पता नहीं , कितने दिनों तक मैं बेहोश रही ? पियूष बोला -पूरे दस वषों तक। पियूष की बात सुनकर वो चौंकी और बोली -ये क्या कह रहे हैं ,आप। हां आप मेरे साथ चलिए तो सही मैं आपको सब बताता हूँ। घर पहुंचकर उसने पल्ल्वी को अपनी शादी की तस्वीरें और अपने छोटे से घर -संसार के बारे में बताया। पल्ल्वी को उसकी बातों पर विश्वास नहीं हो रहा था किन्तु वो चुप थी। सुबह जब सब उठे तो पल्ल्वी वहां नहीं थी। पियूष सिर पकड़कर बैठ गया ,वो समझ चुका था कि पल्ल्वी अब नहीं आयेगी। किसी ने सलाह दी अपनी पत्नी के' गुमशुदा 'होने की 'रिपोर्ट 'लिखा दो। वो सोच रहा था कि वो पहले 'गुमशुदा 'थी कि अब ,क्या लिखवाऊं ?