बहुत दिनों बाद आज मन हुआ कि कहीं बाहर घूमने निकलें ,प्रतिदिन के इस चक्रव्यूह से दूर कहीं निकल जाना चाहता था। जब पढ़ते थे, तो पढ़ाई की चिंता ,अच्छे अंक प्राप्त करके अपनी ज़िंदगी को संवारने प्रलोभन।जब से होश संभाला , माता -पिता को यही कहते सुना -पढ़ -लिख जाओगे, किसी क़ाबिल हो जाओगे ,अपने पैरों पर खड़े जाओगे तो ज़िंदगी संवर जाएगी वरना हमारी तरह ''नून तेल लकड़ी में ''फंसे रहोगे,न ही खाने -पीने का मजा ,बस रोजाना हमारी तरह ''एड़ियां घिसनी 'नहीं पड़ेंगी।सिर पर जैसे तलवार लटकी रहती '' छुट्टियों में भी अगले वर्ष का 'पाठ्यक्रम '' आ जाता ,छुट्टियों में भी आराम नहीं ,घर में बैठकर गणित ,अंग्रेजी ,साइंस पढ़ते। शाम को दोस्तों के साथ निकलना होता भी तो चेतावनी पहले मिल जाती -एक घंटे में घर आ जाना। तब सोचते क्या मुसीबत है ?फिर सोचते एक बार पढ़ -लिखकर जम जाएँ फिर न किसी की इतनी टोका -टाकी होगी। इसी इंतजार में पढ़ाई की ,पढ़ाई के बाद नौकरी की तलाश ,इसी तरह ज़िंदगी के बाईस -तेईस वर्ष बीत गए। नौकरी के बाद भी भागम -भाग ,कुछ ज्यादा फ़र्क नहीं पड़ा। नौ से छः तक काम फिर थकान। कहाँ हैं वो ज़िंदगी के मजे ,आराम की ज़िंदगी। अब तो लगता बस पूरा जीवन ''एड़ियां ही घिसनी ''हैं , बस थोड़ा तरीक़ा बदल गया है। ज़िंदगी कितनी बोझिल नज़र आ रही है ?
आज तो कुछ करने का दिल ही नहीं कर रहा, विकास को फ़ोन किया तो पता चला वो तो अपने बीवी -बच्चों के साथ घूमने गया है। किसी से इतना ज्यादा परिचय भी नहीं था कि मैं उसे साथ लेकर घूमने जाऊँ। पहले तो मैं बिस्तर में ही पड़ा रहा फिर अपने -आप ही घूमने निकल पड़ा।
आज तो कुछ करने का दिल ही नहीं कर रहा, विकास को फ़ोन किया तो पता चला वो तो अपने बीवी -बच्चों के साथ घूमने गया है। किसी से इतना ज्यादा परिचय भी नहीं था कि मैं उसे साथ लेकर घूमने जाऊँ। पहले तो मैं बिस्तर में ही पड़ा रहा फिर अपने -आप ही घूमने निकल पड़ा।
पता नहीं मैं कहाँ जा रहा था ?बस मोटरसाईकिल अपनी रफ़्तार से बढ़ती जा रही थी तभी एक शांत और सुंदर जगह दिखी, पास में ही नदी बह रही थी मैंने अपनी दुपहिया गाड़ी उस ओर मोड़ दी। वहां मैं उस शीतल जल में नहाया और जो खाना साथ लाया था खाया ,इस जगह आकर मन थोड़ा शांत हुआ किन्तु उस अनजान जगह में ज्यादा देर रुकना भी मुझे ठीक नहीं लगा ,खाना खाकर अब आराम करने का मन कर रहा था ,अब मैं वापस लौटने की तैयारी कर रहा था,तभी मेरी नज़र दूर किनारे पर किसी रंगीन वस्त्रों पर पड़ी। मेरी जिज्ञासा बढ़ी कि वहाँ क्या है ?और जानने के लिए मैं उस ओर मुड़ गया ,पास जाकर देखा कोई लड़की मूर्छित अवस्था में थी। पहले तो मैं घबरा गया किन्तु पास से उसे छूकर देखा जिन्दा है या मर गयी। अभी उसमें जान थी ,मैंने सोचा -पुलिस को फ़ोन कर दूँ ,तभी सोचा - पुलिस के आने में देर हो गयी तो शायद ये लड़की न बचे, पहले इसके इलाज का प्रबंध करता हूँ तब सूचना दे दूँगा। यही सोचकर उसने उसे पानी से बाहर निकाला एक गाड़ी रोकी उसमें उस लड़की को डाला और स्वयं गाड़ी के साथ अपनी दुपहिया पर चलता रहा। अस्पताल में उससे पूछा गया कि कौन है ये ?पहले तो उसने सोचा -कह दूँ ,मेरी दोस्त है किन्तु पता नहीं इसके साथ क्या हुआ होगा ? कहीं मैं न फँस जाऊँ ,यही सोचकर उसने बताया -मैं इसे नहीं जानता ,इंसानियत के नाते ऐसी हालत में देखा तो यहाँ ले आया। डॉक्टर ने कहा -फिर तो ये पुलिस केस है ,हमें उन्हें इसके बारे में सूचित करना होगा। डॉक्टर साहब !वो काम मैं कर चुका हूँ ,पुलिस आती ही होगी तब तक आप इस लड़की को देखिये। डॉक्टर उसके इलाज़ में व्यस्त हो गए ,उन्होंने बताया वैसे तो कोई गलत बात नहीं हुई किन्तु इसकी ये हालत कैसे हुई ?इसके होश में आने पर ही पता चलेगा। तब तक पुलिस भी आ चुकी थी पियूष ने अपना बयान दिया और अपना काम बता वो घर आ गया।
वो इस भाग -दौड़ में बहुत थक गया था ,आकर अपने बिस्तर पर लेट गया। सुबह वाली उलझन उसे अब नहीं थी अब तो वो लड़की के विषय में ही सोच रहा था ,उसे पता ही नहीं चला, कब उसे नींद आ गयी?जब वो उठा रात के नौ बज चुके थे ,अब वो खाना खाने बाहर नहीं जाना चाहता था। ऐसे समय के लिए उसकी मम्मी ने उसे मैगी ,ओट्स जैसे हल्के व्यंजन सिखाये थे ,उसने दूध में 'ओट्स 'बनाकर खा लिए और फिर से लेट गया ,कल उसे अपने दफ़्तर भी जाना है और उस लड़की को भी देखने जाना है ,पता नहीं कौन है ,किस परेशानी से गुजरी है ?बड़ी ही मासूम लग रही थी। पियूष तैयार होकर दफ्तर गया शाम को लौटते समय उस लड़की से मिलने चल दिया। अस्पताल जाने पर 'डॉक्टर 'से मिला उसने बताया -अब उसे होश आ गया है किन्तु लगता है वो अपनी 'याददाश्त 'खो चुकी है ,उसे कुछ भी याद नहीं। पियूष बोला -ये तो बड़ी परेशानी हो जाएगी ,उसके परिवार का कैसे पता चलेगा ?अब ये जाएगी भी कहाँ ?डॉक्टर ने बताया -पुलिसवाले तो उसे अनाथाश्रम में भेजने को कह रहे थे जब तक इसके परिवार का पता नहीं चल जाता तब तक इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा ?डॉक्टर से बात करने के बाद वो उस लड़की से मिलने गया ,उसे देखकर उस लड़की ने पूछा -आप कौन हैं ?पियूष को कुछ सूझा नहीं ,बोला -मैं तुम्हारा दोस्त पियूष हूँ ,क्या तुमने मुझे पहचाना नहीं ?उसने नहीं में गर्दन हिलाई और बोली -मुझे तो कुछ भी याद नहीं आ रहा फिर तो तुम्हें पता होगा कि मेरा क्या नाम है ?पियूष चुप हो गया फिर एकाएक बोला -मंजरी ,मुझे तुम्हारा नाम तो मालूम है किन्तु तुम्हारा घर और माता -पिता का नहीं मालूम वो कहाँ हैं ,और कौन हैं ?क्योकि तुमने मुझे उनके विषय में कभी कुछ नहीं बताया। अब तुम आराम करो !मैं कल फिर से तुम्हें मिलने आऊँगा ,उसकी बात मान वो चुप लेट गयी।
अगले दिन वही 'डॉक्टर 'उसे मिला ,बोला -उस लड़की ने तो हमें परेशान कर दिया ,वो तो अनाथाश्रम जाना ही नहीं चाहती और बार -बार कह रही है कि मेरे दोस्त को बुलाओ। पियूष उससे मिलने गया ,वो सहमी सी बैठी थी ,उसे देखते ही बोली -पियूष मेरे दोस्त !ये लोग मुझे कहीं भेज रहे हैं ,मैं इनके साथ कहीं नहीं जाऊँगी। तुम मेरे दोस्त हो न ,मैं तुम्हारे साथ ही जाऊँगी। पुलिसवालों और डॉक्टर की सलाह से मंजरी को उसके साथ भेज दिया गया। बैठे -बिठाए ,पियूष पर मंजरी की जिम्मेदारी आ गयी ,उसके पास तो वो एक छोटा सा कमरा है ,उसके दिमाग में बातें घूम रहीं थीं कि उसे क्या -क्या बदलाव करने हैं ?अभी तो उसके माँ -बाबा को भी अभी कुछ नहीं पता यदि उन्हें पता चला कि उसके साथ एक ऐसी लड़की रह रही है जिसकी याददाश्त जा चुकी है तो पता नहीं वो क्या कहेंगे ?रास्ते में उसने मंजरी से पूछा -क्या तुम्हें कुछ भी याद नहीं, किसी का भी नाम या कोई पहचान ? मंजरी ने न में गर्दन हिलाई ,मैं अपना ही खाना नहीं बना पाता ,अब इसकी ज़िम्मेदारी कैसे उठाऊंगा ?ये ही तो बात है किसी की मदद करो ,वो आफ़त उसी के गले पड़ जाती है। तभी उसके विचारों ने पलटा खाया ,ये तो अच्छा हुआ, मुझे मिल गयी ,कहीं गलत हाथों में पड़ जाती तो पता नहीं कौन ,कैसे फ़ायदा उठाता ?इसकी याददाश्त खो जाने का। पता नहीं ,इसकी याददाश्त कब तक लौटेगी ?घर पहुंचकर उसने घर को व्यवस्थित किया और नीचे एक और बिस्तर लगा दिया। उसके बाद दोनों ने जो खाना साथ लाये थे वो खाया। पियूष ने बर्तन समेटे और मंजरी को दवाई दी।
सुबह जल्दी उठकर उसने 'समाचार पत्र 'लगवाया ताकि' गुमशुदा 'के कॉलम को प्रतिदिन देखे और मंजरी के परिवार का पता चल सके। दफ़्तर से लौटते समय वो'' पुलिस स्टेशन ''में भी इंस्पेक्टर साहब से भी मिलता आया। मंजरी के लिए कपड़े और खाना भी लिया ,उसे देखकर मंजरी बहुत खुश हुई फिर बोली -पता है दोस्त ,वो पड़ोस में मुझसे पूछ रहीं थीं कि तुम कौन हो ?कहाँ से आयी हो ?मैंने कह दिया-मैं मंजरी और कहाँ से आयी ? पता नहीं। पियूष को अब लगा, कि पड़ोसियों को भी जबाब देना पड़ जायेगा। उसने मंजरी को समझाया कि बाहर ज्यादा न निकले और कोई बुलाये तो मत जाना ,कोई झूठमूठ भी कह सकता है कि तुम्हारे मम्मी -पापा मिल गए तो मत जाना ,जब तक मैं न आ जाऊँ ,दरवाज़ा भी मत खोलना। अब उसे एहसास हो रहा था कि उसने कितनी बड़ी जिम्मेदारी अपने सिर पर ले ली है ?एक पल को मन में आया कि इसे अपने घर मम्मी -पापा के पास छोड़ आऊं फिर सोचा -क्या मालूम ,इस जिम्मेदारी को लेने को तैयार न हों ,नाराज़ हो जाएँ।
मंजरी को उसके साथ रहते -रहते एक माह हो गया इस बीच उसने घर को भी संभाल लिया वो सारे काम निपटा लेती बल्कि अब तो पियूष को उसका सहारा हो गया। उसका साथ अब उसे अच्छा लगने लगा किन्तु मंजरी पड़ोसियों की 'आँख की किरकिरी ''बन गयी। बिना शादी के ये किस लड़की के साथ रह रहा है ?एक दिन वो उसे लेकर अपने घर पहुंच गया। माता -पिता अचम्भित थे ,उसने उन्हें सारा किस्सा सुनाया। मम्मी बोली -पता नहीं कौन है ?किस जाति की है ,कहाँ की है ?इसे कुछ भी याद नहीं पियूष बोला। मैंने इसकी सूचना थाने में दे दी है। इसके पास कोई भी ऐसी वस्तु नहीं मिली जिससे कुछ पता चल सके ,आपके काम में भी मदद हो जाएगी। यही सोचकर उन्होंने उसे अपने पास रख लिया। पियूष उसे छोड़कर आ तो गया किन्तु उसे अब अपना कमरा सूना लग रहा था उसे जैसे मंजरी की आदत सी पड़ गयी थी। उसे छोड़ने का कारण यह भी था वो उसकी ओर आकर्षित होता जा रहा था उसकी सुंदरता ,उसकी बड़ी -बड़ी भोली मासूम आँखें उसको अपनी और खीचतीं नज़र आतीं जब वो नहाकर निकलती उसके गीले बाल उसके गुलाबी होंठ ,ऐसा लगता जैसे वो तराशी हुयी कोई मूरत हो वो बाहर निकल जाता ,देर तक नहीं आता। वो सब उसे उस अकेलेपन में ख़ल रहा था। उधर मंजरी भी पियूष को याद कर रही थी किन्तु पियूष उसे समझाकर गया था -मम्मी -पापा का कहना मानना। वो घर के कामों में हाथ बंटाने लगी। शीघ्र ही उसने सारी जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली।
अब मंजरी जो अपनी याददाश्त भूल चुकी है और पियूष के घर में रह रही है ,उसका आगे क्या होगा। क्या गुमशुदा मंजरी को उसका परिवार मिला उसकी याददाश्त वापस आयी जानने के लिए पढ़िए -गुमशुदा के अगले अंक में।