Badal gya aanchl !

बेटी सकुचाई सी ,लिए अंगड़ाई सी आयी ,
और बोली -माँ का आँचल ,क्या होता है ?
मैंने कुछ सोचा ,फिर समझाया -
समय बदला ,लोग बदले ,बदल गया ,माँ का आँचल। 
बेटी -कुछ समझी नहीं ,

मैंने लहरा के दुपट्टा दिखलाया। 
मेरी भोली !ये है माँ का आँचल। 
इस रूप में आ गया, माँ का आँचल। 
पहले साड़ी में था ,आज ये रूप है। 
पहले अपनेपन और प्यार से जुड़ा था।
आज भी इसमें वही प्यार है ,जो बरसों पहले था। 
बच्चा, माँ के आँचल  में आ छिपता था ,
 धूप में ,वो आँचल उसका छाता था। 
उस आँचल से, माँ उसका मुँह पौंछती थी। 
माँ के पीछे रोता आता ,तो आँसू पौंछती थी।
सोते में उसके लिए अपना  ,आँचल बिछा देती ,
खेलते समय ,उसके छुपने की जगह बना देती।
पिता की डांट से बचाने के लिए ,आँचल में छुपा लेती। 
आँचल वही ,आज इसका रूप बदल गया। 
पहले साड़ी में था ,अब इस रूप में आ गया। 
समय के साथ -साथ ये भी बदल गया। 
स्कूटी पर लेकर जाती हूँ ,तुम्हें ,
इस आँचल से तुम्हारा सिर ढ़क लेती हूँ। 
मेहनत करके जब दफ़्तर से निकलती हूँ ,
तो अपना पसीना पौंछ लेती हूँ। 
सम्मान में,तुम्हारे दादाजी के ,
इसी से अपना सिर ढ़क लेती हूँ। 
समय के साथ ,आँचल बदल गया। 
लोग बदले ,सोच बदली,जरूरतें बदली ,
ये भी बदल गया।      
laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

Post a Comment (0)
Previous Post Next Post