बेटी सकुचाई सी ,लिए अंगड़ाई सी आयी ,
और बोली -माँ का आँचल ,क्या होता है ?
मैंने कुछ सोचा ,फिर समझाया -
समय बदला ,लोग बदले ,बदल गया ,माँ का आँचल।
मैंने लहरा के दुपट्टा दिखलाया।
मेरी भोली !ये है माँ का आँचल।
इस रूप में आ गया, माँ का आँचल।
पहले साड़ी में था ,आज ये रूप है।
पहले अपनेपन और प्यार से जुड़ा था।
आज भी इसमें वही प्यार है ,जो बरसों पहले था।
बच्चा, माँ के आँचल में आ छिपता था ,
धूप में ,वो आँचल उसका छाता था।
उस आँचल से, माँ उसका मुँह पौंछती थी।
माँ के पीछे रोता आता ,तो आँसू पौंछती थी।
सोते में उसके लिए अपना ,आँचल बिछा देती ,
खेलते समय ,उसके छुपने की जगह बना देती।
पिता की डांट से बचाने के लिए ,आँचल में छुपा लेती।
आँचल वही ,आज इसका रूप बदल गया।
पहले साड़ी में था ,अब इस रूप में आ गया।
समय के साथ -साथ ये भी बदल गया।
स्कूटी पर लेकर जाती हूँ ,तुम्हें ,
इस आँचल से तुम्हारा सिर ढ़क लेती हूँ।
मेहनत करके जब दफ़्तर से निकलती हूँ ,
तो अपना पसीना पौंछ लेती हूँ।
सम्मान में,तुम्हारे दादाजी के ,
इसी से अपना सिर ढ़क लेती हूँ।
समय के साथ ,आँचल बदल गया।
लोग बदले ,सोच बदली,जरूरतें बदली ,
ये भी बदल गया।