जिसके लिए जीवन जिया ,सपने संजोये अँखियन में।
' ' उसके लिए'' सपने संजोती ,ये अँखियाँ।
जो सपनों सी ,रूह में बसी ,
वो 'नाजुक' सी मेरी परछाईं।
दिखती है अलग ,मेरा ही रूप है।
आज भी न जाने ,बनाती है कितनी बतियाँ ?
उसके दूर जाने से ,सोच भर आती अँखियाँ।
हिलौरे लेतीं मन ही मन ,दिल में घुमड़ती बदलियाँ।
'उसके लिए 'खुली आँखों ,सपने देखती अँखियाँ
उसके जीवन की मधुरता में डूबी ,
खुली अँखियों से सजाती उसकी गलियाँ।
अपना ग़म भूल ,मन ही मन ,
ख़ुशी से भर आती अखियां।
मुँदीं पलकों में ,सपने संजोये बैठी' मैं '
फिर भी न जाने ,कोरों से एक बूँद झिलमिलाती सी ,
ढुलककर कपोलों पर ,स्वतंत्र बह निकली।
सपनों की ख़ुशी में ,उससे बिछुड़ने का ग़म भी था।
जो धुआं -धुआं होते हृदय से उभर आया है ,
वो दर्द ,अपने ज़िगर के टुकड़े के दूर होने का ग़म ,
कुछ भी न लगा ,उसके स्वर्णिम जीवन के लिए ,
भुला दिया ,सब कुछ'' उसके लिए ''