samajh nhi aatin

मैंने तो देखते ही मना किया ,
मेरी तो पढ़ाई थी ,
घरवालों ने ही ज़बरदस्ती किया। 

मुझे तो कभी भाये ही नहीं ,
दादी ने तो देखते ही इंकार किया।
मुझे तुम्हारी ये आदत नहीं भाती ,
कभी -कभी वो रूठ जाती ,
गुस्से से मुँह फुला लेतीं। 
तुम मेरे क़ाबिल ही कहाँ  थे ?
तुम्हारे फूफा ने धोखा किया ,
झूठ बोलकर रिश्ता किया। 
तुम तो उम्र में बड़े थे ,मुझे अक़्ल कम थी। 
वरना ज़िंदगी आज कुछ और होती। 
आज भी घर -घर में' तानाकशी' चलती है। 
सरकारी नौकरी से विवाह किया , 
बात -बात पर ताने सुनाती ,
जीवन के नए -नए रंग बतातीं। 
ज़िंदगी की नाव में बैठी रहेंगी संग ,
हमारी हर बात से परहेज़ किया ,
फिर भी हर सुख -दुःख में साथ दिया। 
संग चलती हैं ,कभी आगे बढ़ जाती हैं। 
फिर पीछे मुड़ ,हाथ थाम लेती हैं। 
कभी स्वाभिमान जाग्रत होता है ,
फिर न पूछती हैं ,फिर हौले से आ लिपटती हैं। 
 बीवियां भी समझ नहीं आती हैं। 
कभी एलान -ए -जंग करती हैं ,
शांत होते ही स्वयं रोने लगती हैं।  
अपने भृमजाल में खुद ही फँसती हैं। 
वे क्या चाहती हैं ?समझ नहीं पाती हैं। 
फिर भी जीवनभर साथ निभाती हैं।
    ये बीवियाँ भी न समझ नहीं आती हैं। 
न जाने कितने ताने सुनाती हैं। 
कुछ पल दूर भी नहीं रह पाती हैं। 
न जाने किस -किस तरह सताती हैं ?
ये बीवियाँ भी न ,समझ नहीं आती हैं। 
 
 
laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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