Lal ladi

ये कहानी मैंने  अपनी दादी जी से तब  सुनी ,जब मैं बहुत ही छोटी थी ,शायद कुछ लोगों ने सुनी भी हो तो याद भी न रही हो। ऐसी कहानियाँ हमारे पूर्वजों की धरोहर हैं ,जो आजकल की पीढ़ी को सुनने को नहीं मिलती। न ही दादा -दादी अब साथ रहते हैं ,न ही बच्चों को ऐसी कहानियाँ सुनाने का किसी को मौका मिलता है। ऐसी कहानियाँ सुनकर अथवा पढ़कर अपनी कल्पनाशक्ति द्वारा हम एक अलग ही लोक में पहुंच जाते हैं ,ये कहानी कुछ इस प्रकार है --

                 रामपाल और धर्मपाल दो घनिष्ट मित्र थे ,दोनों बड़े ही प्रेम से रहते थे।रामपाल  खेती -बाड़ी करके अपना जीवन -यापन करता  था । समय आने पर एक -दूसरे की मदद भी कर दिया करते थे। धर्मपाल व्यापारी था ,एक बार धर्मपाल के व्यापार में बहुत नुकसान [घाटा ]हुआ ,धर्मपाल ने रामपाल से मदद माँगी। रामपाल ने अपने मित्र की मदद की।   धर्मपाल उस पैसे को अपने मित्र का उधार समझ, व्यापार करने बाहर चला गया। इधर दो -तीन वर्ष बाद रामपाल के गाँव में बारिश नहीं हुई। खेती का बहुत ही नुकसान हुआ ,खाने के लिए भी अन्न नहीं बचा। उधर धर्मपाल का व्यापार रामपाल के दिए पैसों से'' दिन दूनी ''उन्नति करने लगा। जब धर्मपाल पर बहुत पैसा इकट्ठा हो गया तो उसे अपने मित्र की याद आयी ,उसने सोचा -अब अपने मित्र को उसके उधार दिए पैसे लौटाने का समय आ गया है और वो अपने मित्र के पास उससे मिलने चल दिया। उसके घर पहुंचा तो पता चला, कि वो तो खेतों पर काम करने गया है। रामपाल का बेटा दौड़ा -दौड़ा अपने पिता को उनके मित्र के आने की सूचना देने पहुँचा ,उसके बेटे ने बताया, कि खूब अच्छे वस्त्रों में किसी साहूकार की तरह आपके मित्र आपसे मिलने आये हैं। रामपाल बहुत खुश हुआ, किन्तु दूसरे ही पल दुःखी भी हो गया क्योंकि इतने सालों बाद उसका मित्र उससे मिलने आया है और उसकी आवभगत करने के लिए उसके पास एक धेला भी नहीं ,उसे खिलाने के लिए घर में अन्न का दाना भी नहीं। उसने अपने बेटे से कहा -मेरे मित्र को पता नहीं चलना चाहिए कि हम ग़रीब हो गए हैं ,तुम अपनी माँ से कहना कि वो रसोईघर में बर्तन खड़खड़ाती रहे ,जिससे मेरे मित्र को लगे कि उसके लिए खाने का इंतजाम हो रहा है। थोड़ी देर में' मैं 'अपना काम निपटाकर आता हूँ। उसकी पत्नी ने ऐसा   ही किया।
           उधर खेतों में रामपाल परेशान कि क्या लेकर जाऊँ ?अपने मित्र की किस प्रकार खातिरदारी करूंगा ?तभी उसके मन में एक विचार आया ,उसने कुम्हार के यहाँ से  एक घड़ा खरीदा और सोचता हुआ

जा रहा था कि क्या करूं ?तभी उसके सामने फ़न फैलाकर एक नाग खड़ा हो गया ,उसे कुछ सुझा नहीं उसने घड़े का मुँह खोल दिया ,वो नाग उस घड़े के अंदर चला गया ,उसने सोचा -जाकर पत्नी को दे दूँगा ,वो जैसे ही इसे खोलेगी, ये उसे डस लेगा। घर में कोहराम मच जायेगा सब उसकी हालत के चक्कर में पड़  जायेंगे ,ऐसे समय में तो मित्र ही खाने से इंकार कर देगा ,मेरी इज्ज़त बच जायेगी और उसको हमारी ग़रीबी के बारे में कुछ पता नहीं चलेगा। यही सोचकर वो घर पहुंचा और उसने वो मटका अपनी पत्नी को दे दिया और अपने मित्र से बातें करने लगा और इंतजार करने लगा- कि कब रसोईघर से चीख़ -पुकार की आवाज़ सुनाई दे ? किन्तु तभी उसकी पत्नी ने उसे अंदर बुलाया कि इस घड़े में तो ये रखा है, मैं इसका क्या करूं ?उसने पत्नी के हाथ में बहुत ही क़ीमती लाल देखा ,उसे लेकर वो ख़ुशी -ख़ुशी किसी व्यापारी के पास पहुंचा। व्यापारी ने उसे देखकर कहा ये तो बहुत ही कीमती है, इसकी क़ीमत तो कोई जौहरी ही दे सकता है ,मेरे पास इतनी धनराशि नहीं। जौहरी उस लाल को देखकर बोला -मेरे पास भी इतना धन नहीं जो मैं इसका मूल्य चुका सकूं, इसकी कीमत तो राजा ही दे सकता है। रामपाल उस लाल को लेकर राजा के दरबार में पहुँचा। राजा के दरबार में उसकी क़ीमत आंकी गयी तो उन्होंने बताया कि ये 'लाल माणिक' तो बेहद क़ीमती है। रामपाल ने कहा -आपको जो भी क़ीमत लगे ,मुझे उतना धन दे दीजिये ,मेरा मित्र मेरा इंतजार कर रहा है। वो धन लेकर और खाने -पीने का सामान लेकर घर पहुँचा और अपने मित्र की अच्छे से ख़ातिरदारी की। तब उसके मित्र ने बताया -तुमने जो धन मेरी सहायता के लिए दिया था वो धन मैं तुम्हें वापस लौटाने आया हूँ। रामपाल ने धन लेने से इंकार कर दिया ,बोला -इसकी कोई आवश्यकता नहीं ,मैंने वो धन तुम्हारी मदद  के लिए दिया था ,वापस लेने के लिए नहीं किन्तु उसका मित्र भी कहाँ मानने वाला था ,उसने वो धन ये कहकर लौटाया कि जब मुझे आवश्यकता थी तो तुमने मेरी मदद की अब मेरा कर्त्तव्य बनता है कि तुम्हारा धन तुम्हारे पास हो। अब रामपाल के पास बहुत पैसा था उसने बहुत बड़ा घर बनवाया और खूब ठाठ से रहने लगा। 
           उधर राजा के यहाँ तो बहुत माणिक और रत्न थे ,राजा ने वो लाल लाकर अपनी पत्नी को दे दिया। रानी किसी काम में व्यस्त थी उसने वो लाल अपने महल के एक छीके में रख दिया।अगले दिन  जब रानी को उस लाल की याद आयी तो उसने दासी को वो लाल लाने का आदेश दिया। दासी ने आकर बताया कि वहाँ तो कोई लाल नहीं है ,वहाँ तो एक छोटा बच्चा है। रानी को क्रोध आया ,उसे लगा कि हमारे कोई औलाद नहीं है इसीलिए दासी हमारा उपहास कर रही है। दासी ने माफ़ी माँगी और कहा -आप स्वयं ही देख लीजिये कि वहां तो एक बच्चा खेल रहा है। रानी दासी  के संग गयी ,वहाँ देखा तो उस छीके में एक छोटा सा बच्चा किलकारी मार -मारकर खेल रहा है। रानी को वो बच्चा बहुत ही प्यारा लगा उसने उसे भगवान का दिया उपहार समझ ,अपने महल में ही उसका लालन -पालन करने लगे। बच्चा बहुत ही बुद्धिमान और बहादुर था। जब वो बड़ा हुआ तो एक दिन शिकार खेलते हुए वो अपने राज्य से दूर निकल गया। वहां उसने देखा कि शाम होते ही उस राज्य के लोग घरों के अंदर बंद हो जाते हैं। राजकुमार ने उन लोगों से इसका कारण पूछा -तब उन्होंने बताया कि शाम को यहां एक ''आदमख़ोर ''शेर आता है और किसी न किसी को अपना शिकार बना लेता है इसीलिए यहाँ के राजा ने घोषणा की है जो भी उस

'आदमख़ोर 'शेर को मारेगा मैं उसी के साथ अपनी राजकुमारी का विवाह कर दूंगा। राजकुमार ने राजकुमारी को उसके बग़ीचे में देखा था वो तभी उस पर मोहित हो गया था। उसने मन ही मन निश्चय किया कि मैं उस शेर को मारूंगा। जिसने भी उसकी बात सुनी, उसका उपहास किया ,उसे समझाने का प्रयत्न  भी किया किन्तु वो नहीं माना। शाम को जब सब लोग अपने -अपने घरों में बंद हो गए तो राजकुमार एक पेड़ के नीचे खड़ा होकर उस शेर का इंतजार करने लगा।इंतजार करते -करते अब राजकुमार को नींद आने लगी , लगभग आधी रात को शेर की दहाड़ उसे सुनाई दी ,राजकुमार सतर्क हो गया ,उसकी  बहुत देर तक शेर से लड़ाई होती रही ,अंत में शेर को उसने मार डाला। अब राजकुमार बहुत थक चुका था उसे नींद भी आ रही थी ,तब उसने शेर का एक कान और पूंछ काटकर अपने पास रख लिए और पेड़ पर चढ़कर सो गया, उसे लेटते ही नींद आ गयी। 
               प्रातः काल सबने शेर को मरा पाया तो सब लोग बहुत खुश हुए ,पूरे राज्य में ख़ुशी की लहर दौड़ गयी। मरे हुए शेर को राजा के पास ले जाया गया। राजा ने पूछा -इस शेर को किसने मारा ?कुछ लालची लोगों ने सोचा कि राजा को क्या पता चलेगा, कि शेर को किसने मारा ?कुछ लोग कहने लगे -मैंने मारा ,मैंने मारा। अब तो ये अजीब स्थिति हो गयी कि शेर को किसने मारा ?शेर एक था और दावेदार कई। तभी वहां के मंत्री की नज़र शेर की पूंछ और एक कान न होने पर गयी, उसने कहा -कि जिसने भी इस शेर को  मारा है ,उसी के पास शेर का एक  कान और पूँछ होगी ,अब सब झूठे लोग ग़ायब हो गए ,अब राजा के सैनिकों ने उस व्यक्ति  की खोज़ शुरू की ,तभी एक की नज़र पेड़ पर सोते हुए राजकुमार पर पड़ी।उन्होंने राजकुमार को नीचे उतारा और उसे राजा के पास ले गए। राजा ने उसका परिचय पूछा और प्रश्न किया, कि क्या आपने उस शेर को मारा है ? राजकुमार ने कहा -हाँ और कहकर शेर का एक कान और पूंछ राजा के सामने रख दी अब तो राज्य में ख़ुशी की लहर दौड़ गयी क्योंकि वो राजकुमार उनके मित्र राजा का ही था। राजा ने राजकुमार के साथ अपनी राजकुमारी का विवाह कर दिया। उधर राज्य में राजकुमार को न पाकर पूरे राज्य में राजकुमार की ढूंढ़ मच रही थी। तभी राजकुमार अपनी पत्नी के साथ अपने राज्य में आया। जब उसके पिता को अपने राजकुमार के पत्नी सहित आने का पता चला तो दोनों का गाजे -बाजे के साथ स्वागत किया गया ,दोनो पति -पत्नी प्रसन्नतापूर्वक अपने महल में रहने लगे।

   
            एक दिन राजकुमारी[लड़ी ] को राजकुमार के बचपन की बात का पता चला कि राजकुमार रानी को छीके में खेलते हुए मिला था। तब से लड़ी ने राजकुमार से पूछना आरम्भ कर दिया कि तुम्हारी पहचान क्या है ?राजकुमार ने कहा  -कुछ नहीं ,किन्तु राजकुमारी नहीं मानी -और बार -बार पूछती रही कि तुम्हारी पहचान क्या है ?राजकुमार ने समझाया -तुम इस चक्कर में न पड़ो वरना पछताओगी। इसी तरह  बात करते -करते दोनों नदी किनारे चलते रहे। लड़ी ने अपनी ज़िद फिर से शुरू की -तुम्हारी क्या पहचान है ?राजकुमार धीरे -धीरे पानी की ओर बढ़ने लगा और बोला -लड़ी तुम जिद न करो वरना पछताओगी किन्तु वो नहीं मानी जब पानी राजकुमार के सीने तक आ गया उसने आख़िरी बार पूछा -क्या तुम अब भी मेरी पहचान जानना चाहती हो ?राजकुमारी बोली -हाँ ,उसके इतना कहते ही राजकुमार अपने असली रूप में आ गया। उसको इस रूप में देखकर राजकुमारी डर गयी और रोती हुयी महल पहुँची ,सारी बातें रानी को बतायीं। क्या तुम राजकुमार से  प्यार करती हो? उसे वापस पाना चाहती हो ,रानी ने  उससे  पूछा। हाँ लड़ी   ने जबाब दिया।तब  रानी उसे एक साधू के पास गयी और राजकुमार को वापस पाने का उपाय पूछा। साधू बाबा ने अपनी दिव्य दृष्टि से देखकर बताया कि राजकुमार तो नागों के राजा का बेटा हैं अब वो वापस नहीं आयेगा। ये सुनकर राजकुमारी रोने लगी ,उसने बाबा से उपाय पूछा -किस तरह राजकुमार को वापस लाया  सकता है ,उसके इस तरह रोने पर वो बाबा उसकी मदद के लिए तैयार हो गए ,उन्होंने बताया -आने वाले पंद्रह दिनों बाद ''नाग - पंचमी ''है उसमें यदि तुमने नागराज को प्रसन्न कर दिया तो वे खुश होकर वरदान मांगने को कहें तो उनसे तब ''लाल 'को मांग लेना। 

              राजकुमारी रोजाना उसी नदी किनारे जाती जहां उसने 'लाल' को खोया था। पन्द्रहवें दिन आधी रात को नागलोक से सभी नाग वहाँ आये ,तब राजकुमारी ने बहुत सुंदर ''नाग नृत्य ''किया ,उससे प्रसन्न होकर' नागराज 'ने वरदान मांगने को कहा। तब राजकुमारी ने वरदान में  'लाल 'को मांग लिया। उसकी इच्छा जानकर'' नागराज'' ने इंकार कर दिया तब राजकुमारी रोने लगी अपने प्यार का वास्ता दिया। तब नागराज ने प्रसन्न होकर उसे ''लाल ''सौंप दिया। ''लाल और लड़ी ''दोनों ख़ुशी -ख़ुशी अपने महल पहुंचे तब सारे महल में फिर से खुशियां मनाई गयीं। वहीं एक जादूगरनी भी रहती थी ,उसकी निगाहें ''लाल ''पर पड़ी तो वो समझ गयी कि  ये कोई साधारण मानव नहीं ,उसने  एक दिन राजकुमार को पान खाने के लिए दिया पान खाते ही वो बकरा बन गया ,उसे जादूगरनी ने अपनी दुकान पर बांध लिया। उधर राजकुमारी परेशान हो रही थी कि राजकुमार कहीं दिख नहीं रहे , उसे  कुछ अंदेशा हुआ उसने सारे राज्य में मुनादी करा दी कि कोई भी अपने घर में चूल्हा न जलाये सभी महल में आकर भोजन करें। सभी बड़े प्रसन्न हुए और महल में भोजन करने गए किन्तु जादूगरनी कुछ देर से पहुंची उसके साथ उसका बकरा भी था। वो बकरा राजकुमारी का दुपट्टा अपने मुँह से खींचने लगा। पहले तो राजकुमारी ने ध्यान नहीं दिया फिर उसकी नजर उसके गले में पड़े ''ताबीज़ ''पर गयी। राजकुमारी को कुछ नहीं सुझा और उसने शीघ्रता से उस ताबीज़ को काट दिया। ताबीज़ कटते ही वो फिर से राजकुमार बन गया। राजा ने जादूगरनी को कैदखाने में डलवा दिया और वे फिर से अपने राज्य में ख़ुशी -ख़ुशी रहने लगे। 




















laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

Post a Comment (0)
Previous Post Next Post