Mari kahani [part 2]

मैं भी चाहती थी कि मेरा अपना परिवार हो ,मेरे अपने बच्चे हों। मेरा मुझे अपना कहने को तो कोई हो जो मेरे लिए ही हो ,मुझसे प्यार करता हो ,मैंने अब तक लोगों को खुश किया ,उनके लिए नाची लेकिन मैं अब चाहती थी कि कोई मेरी भी परवाह करे ,मेरी ख़ुशी के लिए करे। मैं लोगों के सपनों की रानी थी लेकिन मैं चाहती थी कि कोई मेरे दिल का राजकुमार हो जिसे मैं टूटकर प्यार कर सकूं ,उसके लिए' करवा चौथ 'का उपवास करूं,सुख -दुःख में साथ रहें  ,मन में एक अलग ही उल्लास था , मेरे चाहने वालों की कोई कमी नहीं थी किन्तु उस भीड़ में उसे कैसे ढूँढ सकती हूँ ?मैंने घरवालों से अपने मन की बात कही। अब मैं कोई कार्यक्रम नहीं करना चाहती ,मैं विवाह करना चाहती हूँ। मेरी बात सुनकर पिता हँसे और बोले -तुम जैसी के कभी घर बसते हैं ?ये बात मेरे कलेज़े को चीर गयी। मैंने लगभग चीख़ते हुए कहा -मुझे ऐसी बनाया किसने ?तुम लोगों के स्वार्थ ने ,मैं तो साधारण ,सीधा जीवन जीना चाहती थी किन्तु तुम लोगों ने तो मेरे पैदा होते ही मेरा जीवन ही गिरवी रख दिया। पिता ने कहा -उस जीवन में ये शानो -शौकत न मिलती ,ये जो तुम्हारे महंगे -महंगे खर्चे हैं कभी पूरे न होते ,इतने महंगे सामानों के लिए तरस जाती और ये जो तुम्हारे चाहने वाले इर्द -गिर्द घूमते हैं कोई नज़र नहीं आता ,अब ये सब चीज़े तुम्हें मिल चुकीं हैं तो अब कोई कदर नहीं। उनकी बात भी अपनी जगह सही थी किन्तु फिर भी उन लोगों की नज़रों में मेरी वो इज्ज़त नहीं थी जो मैं देखना चाहती थी , उनके लिए तो  मैं दिल बहलाने की चीज थी। 

                   अब मेरे पास नहीं था तो प्यार ,एक दिन मुझे एक कार्यक्रम के दौरान बाहर जाना पड़ा। मैं हवाई -जहाज़ में बैठी थी तभी मेरी दृष्टि एक आकर्षक ,सभ्य दिखने वाले व्यक्ति पर पड़ी ,वो बहुत ही शालीनता से बातें कर रहा था किसी बड़े परिवार का था मैं उसे बहुत देर तक कनखियों से देखती रही किन्तु उसने एक बार भी मुझे नहीं देखा ,मैं उससे बात करने के लिए उत्सुक हो उठी किन्तु बातों की शुरुआत कैसे की जाये ?ये समझ नहीं आ रहा था। मैं भी कहाँ मैंने वाली थी ?मैंने भी मौका ढूँढ ही लिया। मैंने अपना नाम बताया उसने भी अपना नाम बताया , फिर चुप्पी हो गयी ,मैंने अपनी बात जारी रखने के उद्देश्य से पूछा - आप क्या करते हैं ?उसने किसी बड़ी कम्पनी का नाम बताया। मैं किसी भी ऐसे  उद्योग के विषय में नहीं जानती थी किन्तु इतना जरूर समझ गयी थी कि वो कोई बड़ा व्यापारी है। उसने पूछा भी नहीं, फिर भी मैंने अपना परिचय दिया ,उसे मैंने वहाँ जाने का उद्देश्य भी बताया, उसने मुस्कुराकर मेरी तरफ देखा और सामने देखने लगा। जब हम उतर रहे थे ,तब मैंने उसे अपने कार्यक्रम में आने के लिए आमन्त्रित किया। आज मैं उसे अपनी कला का वो रूप दिखाना चाहती थी जो उसके दिल में उतर जाये। मैंने उस कम्पनी के नाम का पता लगाकर, उसके नाम से एक गुलदस्ता और' पास'  भिजवा दिया। शाम को तैयार होकर मैं बेसब्री से उसका इंतजार कर रही थी। कार्यक्रम का समय  हो गया था मुझे बुलाया जा रहा था किन्तु मैं उसके आने का इन्तजार कर रही थी। मज़बूरी में मुझे जाना पड़ा, मैं नृत्य करते -करते भी उसे ढूंढ रही थी। अचानक मेरी दृष्टि उस पर पड़ी मेरे पैरों में जैसे बिजली आ गयी।  मैं खूब टूटकर नाची ,मैं खुश थी फिर मैंने उसे कॉफी के लिए आमंत्रित किया। कॉफी पीते  समय मैं सोच रही थी -क्या ये मेरे विषय में कुछ जानना नहीं चाहता ?तभी उसने पूछा -नृत्य कब से कर रही हो ?जैसे मैं उसके प्रश्न के लिए तैयार थी ,फ़टाक से जबाब दिया -बचपन से ही। वो फिर से चुप हो गया। मैंने सोचा -शायद इसे कम बोलने की ही आदत हो। मैंने पूछा -आप ऐसे शांत रहते हैं मेरे सामने ही,,,,,,,,,,,मेरी बात पूरी होने से पहले ही बोला -नहीं ,ऐसी कोई बात नहीं ,मुझे इतना समय ही नहीं कि काम के अलावा कुछ और सोच सकूँ। मैंने बात आगे बढ़ाते हुए कहा -मेरा नृत्य कैसा लगा ?बहुत ही अच्छा था।  उसने जबाब दिया किन्तु मुझे पसंद नहीं आया क्योंकि  जबरदस्ती की प्रशंसा थी ,उसने अपने मन से या अपनेआप नहीं की।ये  मेरी और रुपेश की पहली मुलाकात थी। हालाँकि रुपेश मेरे  देश का था लेकिन बहुत समय पहले ही उसके माता -पिता विदेशी हो गए थे। मैंने उसे अपने देश बुलाया ,उसने आने का  वादा किया।मेरे दिल  में तो वो पहले ही घर बना चुका था ,मैं अब उसके दिल में अपनी जगह देखना चाहती थी। चार -पांच मुलाकातों के बाद मैंने उसके साथ शादी करने की बात कही किन्तु वो चुप रहा ,मैंने उसे सोचने का समय दिया। 

                  लगभग एक वर्ष बाद उसने अपना जबाब हाँ में दिया ,मेरे तो जैसे पंख लग गए। अंधे को क्या चाहिए ?दो आँखें। मैंने उसके साथ नई ज़िंदगी की शुरुआत की, मेरे पांव तो ज़मीन पर ही नहीं थे। मैं रुपेश को पाकर अपने को बहुत ही भाग्यशाली मान रही थी किन्तु एक बात भी खटक रही थी ,रुपेश अभी भी मुझसे इतना घुल -मिल नहीं पा रहा था, जैसे एक पति -पत्नी में नजदीकियाँ होती हैं। मैंने उससे कई बार पूछा -कोई परेशानी तो नहीं ,व्यापार में या कोई और बात है ?आप कभी मुझे अपने दफ्तर भी नहीं ले गए तब उसने हँसकर कहा -तुम वहाँ जाकर क्या करोगी ?तुम्हारी समझ में कुछ नहीं आयेगा।तुम तो बस खरीददारी करो और मस्त रहो , मैं चुप हो गयी ,तभी मेरे पिता के देहांत की सूचना मिली ,मैंने रुपेश को बताया और अपने देश आ गयी। उसने कहा था -मैं भी तुम्हारे साथ चलता किन्तु काम की अधिकता के कारण नहीं जा पाऊँगा ,तुम अपना ख्याल रखना। रुपेश की बात मान मैं अपने घर आ गयी ,जैसे भी थे ,मेरे पिता थे ,माँ भी अब अकेली रह गयी थी उसको मैं अपने साथ लाना चाहती थी किन्तु माँ ने मना कर दिया। माँ का सारा इंतज़ाम करके मैं अपने घर आयी फिर सोचा -'आज रुपेश को उसके दफ्तर में ही जाकर चौंका दूंगी। मैं गाड़ी में बैठकर उसके दफ़्तर की तरफ जा रही थी मन ही मन मुस्कुरा रही थी वो अचानक मुझे देखकर कैसे चौंक जायेगा ?यही सोच -सोचकर मैं अपने आप ही गुदगुदी सी महसूस कर रही थी। दफ्तर पहुंचकर जैसे ही मैं अंदर जाने के लिए दरवाज़े की तरफ बढ़ी, तभी मुझे दरबान ने रोक दिया। मैंने उससे पूछा - क्या तुम मुझे जानते नहीं ?मैं यहाँ की मालकिन हूँ ,तुम मुझे ऐसे अंदर जाने से नहीं रोक सकते। मेरी बात सुनकर वो हंसा -मैडम !ये आप क्या कह रही हैं ,साहब तो अपनी पत्नी के साथ ही गए हैं। सुनकर मेरा दिमाग घूम गया। मैंने कहा -ये क्या बकवास कर रहे हो ?मैं रुपेश की पत्नी हूँ ,बुलाओ उसे यहां ! मैडम मैं भी तो यही बात कह रहा हूँ ,साहब अपनी पत्नी और बच्चों के साथ ,एक सप्ताह की छुट्टी पर गए हैं। मैं उसकी बात सुनकर वहीं पड़ी बेंच पर बैठ गयी ,अपने आपको संभालते हुए मैंने कहा -तुम्हें जरूर कोई गलतफ़हमी हो गयी है। मैंने उसे अपने फोन में पड़ी उसकी तस्वीर दिखाई और कहा -ये रुपेश हैं ,मेरे पति। उसने फोटो पहचान कर कहा -हाँ मैडम !यही तो साहब हैं किन्तु उनकी पत्नी तो 'एलिना 'हैं उनके दो बच्चे भी हैं। अब मुझे यकीन हो चला अवश्य ही कोई झोल है। मैंने उसे फोन किया भी किन्तु उसने उठाया ही नहीं और जब उठाया तो उसका जबाब था -मैं काम के सिलसिले से बाहर हूँ ,मेरे पास इंतजार के सिवा  कोई चारा नहीं था। चार दिन बाद वो घर आया ,मैं उस अकेलेपन को झेल चुकी थी जो चार दिन मैंने महसूस किया मैं ही जानती थी। मैं चुप थी ,उसने पूछा -अब मम्मी कैसी हैं ?वो क्या वहां अकेली रहेंगी ?मैं सोच रही थी,- 'माँ को अकेलापन नहीं लगेगा क्योंकि उन्हें पता है ,उनकी बेटी उनके पास नहीं किन्तु साथ है। किन्तु मेरे अकेलेपन का क्या ?जो साथ रहकर भी मेरे साथ नहीं।'' उसकी आवाज से  मैं चौंकी किन्तु तभी मैंने मन ही मन सच बात पूछने का फैसला कर चुकी थी। मैंने पूछा -रुपेश क्या तुम मुझसे प्यार करते हो ?उसने अचकचाकर पूछा -ये कैसा प्रश्न है ?''ऑफ़कोर्स ''इसीलिए तो हमने शादी की। शादी करना और प्यार करना ये दोनों अलग -अलग चीजें हैं। कई  बार जिसे हम प्यार करते हैं ,उससे शादी नहीं हो पाती। ये जरूरी नहीं कि जिससे शादी हो उससे हम प्यार भी करें। ये केेसी पहेली बुझा रही हो ?ये ''एलिना ''कौन है ?मेरा सीधे -सीधे प्रश्न पूछने पर उसके चेहरे के भाव बदल गए। देखो रुपेश !मैंने ज़िंदगी में बहुत दर्द और परेशानियां देखीं हैं ,अब मुझमें अन्य किसी भी प्रकार के झूठ और धोखे को सहने की ताकत नहीं। मुझे सीधे -सीधे और सच -सच बता दो कि' एलिना' की क्या कहानी है ?तुम्हारा विवाह उसके साथ कब हुआ ?यदि तुम शादीशुदा थे तो मुझसे विवाह क्यों किया ?मुझे धोखा क्यों दिया ?
             रुपेश ने बताया -जब तुम मुझे मिलीं उससे पहले ही एलिना और दो बच्चे मेरी ज़िंदगी में आ चुके थे किन्तु तुम्हारा मेरे प्रति आकर्षण को देख , मैं भी अपने आपको  नहीं रोक पाया इसीलिए मैंने तुम्हें अलग नया मकान लेकर दिया जिससे तुम्हें सच्चाई का पता न चले। शादी का निर्णय मैंने एक साल बाद इसीलिए लिया ताकि मैं तुमसे अपने को दूर कर सकूँ किन्तु ऐसा नहीं कर पाया तो शादी कर ली किन्तु अपने बच्चों से तो नाइंसाफी नहीं कर सकता था ''एलिना ''को भी मैं प्यार करता हूँ किन्तु तुम्हें भी नहीं छोड़ पाया। मैं कोई ज़मीन -जायदाद हूँ कि ये जायदाद भी मेरी और वो भी मेरी ,मेरी भावनाओं का कुछ ख़्याल नहीं आया कि जब मुझे पता चलेगा तो कितना दुःख होगा ?मैंने लगभग रोते हए कहा -मैंने जिंदगी में कितनी परेशानियाँ झेलीं ?लोगों के ताने भी सुने ,मैं सबसे डटकर लड़ती रही ,बस एक इच्छा थी कि बहुत प्यार करने वाला पति हो, मेरा घर -संसार हो, मेरे अपने हों जिन्हें मैं अपना कह सकूँ। तुमने तो मेरा वो सपना भी तोड़ दिया ,तुमसे विवाह न होता तो क्या ?एक उम्मीद तो बनी रहती तुमने वो भी तोड़ दी ,तभी मैं तुम्हारे व्यवहार में वो अपनापन महसूस नहीं कर पा रही थी।झूठी शादी का स्वाँग करके  तुमने तो मुझे अपनी रखैल बनाकर रख दिया। मैं रोती रही और उससे प्रश्न पूछती रही ,जब आँसू कम हुए तो मैंने देखा वो तो कब का जा चुका है ?उसके पास तो मेरे प्रश्नों के उत्तर भी नहीं थे।तब मेरे मन में एक तूफान आया - मैं इस तरह हार नहीं मान सकती, मैं उसकी बीवी को सब बता दूँगी। मैं अपना अधिकार लेकर रहूंगी ,उसने मेरा जीवन बर्बाद किया है मैं भी उसे चैन से न रहने दूंगी। 

                यही सोचकर मैंने उसके उस परिवार के बारे में पता लगाया और एक दिन उसके बच्चों से उनके ''स्कूल ''में मिली ,बड़े ही प्यारे और मासूम  बच्चे थे ,कितनी भोली बातें कर रहे थे ?काश !मैंने इन्हें जन्म दिया होता ,मैं इनकी माँ होती दूसरे ही पल विचार आया। हैं तो ये रुपेश के ही बच्चे, मैं इनकी माँ न बन सकी तो क्या ?ग़लती उसकी है ,इन बच्चों की नहीं ,उसकी पत्नी से भी बातें कीं ,मुझे लगा -मैं ही इन लोगों के बीच आ गयी।ये लोग तो अपने परिवार में खुश थे। अब मैंने निर्णय लिया, अब यहाँ नहीं रहूंगी।  जब मैं वहाँ से अपने देश ,अपनी माँ के पास आ रही थी, तब रुपेश ने कहा -ये घर आज भी तुम्हारा है ,जब जी चाहे तुम इस घर में आ सकती हो। मैंने कोई जबाब नहीं दिया और गाडी में बैठ गयी। माँ को मैंने बताया कि कुछ दिनों के लिए ही मैं यहां आयी हूँ ,अब जीवन में बचा ही क्या था ?मैं और माँ और उसकी भक्ति जिसने मुझे न जाने जीवन के कितने रंगों से परिचित कराया ? अब तो माँ भी न रही ,वहां बैठे दोनों युवाओं को अपनी कहानी सुनाकर बोली -ऐसा क्या था? मेरी जिंदगी में ,जिस पर ''मेरी कहानी ''बनती फिर भी तुम लोगों ने सुनी। कहाँ से आए हो ?क्यों सुनना चाहते थे ''मेरी कहानी '' हम वो ही दो प्यारे ,मासूम बच्चे हैं ,हमारे पिता का नाम ''रुपेश '' है। सुनकर उसका सिर चकराने लगा उन्होंने उसे संभाला ,बोले -डेेड ,ने हमें सब बताया ,हम आप ही के बेटे हैं और दोनों उसे सहारा देते हुए घर की तरफ चल दिए। 




















 
laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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