इस माघ ',मधुमास' में !
तुम मेरे कान्हा !'मैं 'राधा बन जाऊंगी।
तुम ,मनाओ मुझे ,वरन 'मैं' तुमसे रूठ जाऊँगी।
तुम भँवरे ! से गुनगुनाते आते ,
जिसका शृंगार कर ,तुम अपने को सराहोगे ,
मैं 'मधुमास 'की किरण बन जाउंगी।
अबकी इस' मधुमास' में ,
तुम मेरे' कान्हा !मैं राधा बन जाउंगी।
तुम देर तक निहारो मुझे ,
मैं ,लज्जा से पानी -पानी हो जाउंगी।
तुम ,जरा घर तो बुला लो मुझे ,
मैं तेरे प्रेम में ,इठलाती ,दौड़ी चली आऊँगी।
अरे कान्हा ! मनाओ मुझे ,मैं तुमसे मान जाऊँगी।
तुम' पीत वस्त्र ' धारण करो ,
मैं 'पीत वर्ण 'बन जाऊँगी।
''ऋतुराज '' की सुगन्धि फैली है ,चहुँ ओर ,
मैं ',सुमन' सुरभि बन ,समा जाऊँगी।
तुम मेरे कान्हा,मैं राधा बन जाऊँगी।
आ जा ओ कान्हा ! इस 'मधुमास ''में ,
वरना ,तेरी प्रीत में , मैं 'जोगन' बन जाऊँगी।
तुम पुकारो मुझे ,ओ कान्हा !
मैं तेरे' प्रेम' में ,दौड़ी चली आऊँगी।
हर वर्ष आता है ,'मधुमास 'लिए नई 'आस ',
हर वर्ष ,नया रूप ,नई राधा ,कुछ अलग 'कान्हा '
तेरा -मेरा प्रेम ,जीवन का उल्लास ,आज कुछ है खास।
'फाल्गुन 'मास होगा चहुँ ओर ,
तू मेरा 'श्याम ',मैं तेरे रंग ,रंग जाऊँगी।
तुम मेरे 'कान्हा ',मैं राधा बन जाऊँगी।
आओ खेलो ,सखियों संग ,मैं मीरा बन जाऊँगी।
तेरा -मेरा प्रेम निराला ,
बहती है ,क्यों अश्रु धारा ?कहीं मैं तरंगिणी बन जाऊँगी।