जियो तुम ,अपने सपने किसने रोका है ?
उड़ान भरो !
जीवनभर अपने अरमानों की ,हर पंछी को,
क़ुदरत ने इसीलिए भेजा है।
अपने जीवन पर अधिकार तुम्हारा है।
क्या ?अपने लिए ही जीना कर्त्तव्य तुम्हारा है।
लोग जीते हैं ,गैरों के लिए भी ,
अपनों के लिए भी कुछ हक़ तुम्हारा है।
माँ तुम्हारी ,पिता तुम्हारे ,मेरा तो सारा घर -बार तुम्हारा है।
उड़ान भरो जीवन की ,तुम्हें किसने रोका है ?
जी लो !जीभर ज़िंदगी तुम्हें किसने टोका है ?
इस घर की तुम लक्ष्मी ,अन्नपूर्णा ,सरस्वती ,
कौन पकाता है रसोई ?मेरी माँ का अँगना सूना है।
मेरी माँ ने भी तो सपना देखा है ,
बसता मेरा घर संसार ,खिलता अपना अंगना देखा है।
जियो तुम ,अपने सपने तुम्हें किसने रोका है ?
मैं अपनों को ही ,अपना न सका ,संग तुम्हारे रहा उम्रभर ,
निभा सका न अपना फ़र्ज ,तुमने हर बार ही टोका है।
जी लो !जीभर ज़िंदगी तुम्हें किसने रोका है ?
संग तुम्हारे रहूं'' मैं ''और परिवार एक धोखा है।
इस चक्की में पिसता '' मैं ''जीवन ही धोखा है।