साड़ी ये ऐसा परिधान है ,जिसे देश में ही नहीं विदेशों में भी पहनना पसंद करते हैं ,हमारे देश में भी महिलायें किसी भी धर्म की हों अथवा किसी भी स्थान या राज्य से हों ,साड़ी पहनना पसंद करती ही हैं। साड़ी अलग -अलग जगहों में अलग -अलग तरीक़े से पहनतीं हैं, जिसे पहनकर नारी- सौंदर्य और अधिक निखर आता है। माँ के द्वारा दी गयी साड़ी, उसका प्यार होता है ,ससुराल से चढ़ाई गयी साड़ी में बड़ों का आशीर्वाद होता है ,हर तीज -त्यौहार पर ,पूजा -पाठ में या अन्य कोई भी कार्यक्रम हो ,साड़ी ही पहनी जाती है। इसी कारण से-- नीता भी परेशान है ,बेटे का विवाह है किन्तु अभी तक कोई तैयारी नहीं हुई ,कितना काम पड़ा है ?अभी तो बहुत सी खरीददारी बाकि है ,सभी घरवालों के कपड़े लेने हैं, होने वाली बहु के लिए भी गहने और वस्त्र भी लेने हैं ,लेने -देने के लिए भी खरीददारी करनी है ,कितना काम है ?आजकल चलन में क्या चल रहा है ?हालाँकि वो देखती रहती है ,फिर भी दो की पसंद दो की हो जाती है। यही सोचकर, उसने अपनी बेटी नंदिनी को दूरभाष द्वारा सूचित भी किया, कि इकलौते भाई का विवाह है ,कम से कम पंद्रह दिन पहले तो आ जाये, किन्तु बेटी ने बताया -अभी तो बच्चों की परिक्षा चल रही हैं ,वो तो एक सप्ताह पहले ही आ पायेगी। बेटी का जबाब सुनकर ,नीता निराश हुई किन्तु अपना काम तो करना ही है उसने अपने परिवार के लिए खरीददारी आरम्भ की ,रिश्तेदारों को देने के लिए भी ले आयी।
बेटी के आने पर ,उसको साथ ले जाकर बहु के लिए लहंगा ,साड़ी ,चुनरी ,गहने इत्यादि सामान खरीदा ,बेटी ने भी अपनी पसंद की *साड़ी खरीदी ,उसने नीता के लिए भी साड़ी ली। ''साड़ी भंडार 'में खड़े होकर ,उनमें से साड़ी चुनना भी कठिन कार्य है ,किसे छोड़ें ,किसे लें ?आख़िरकार किसी तरह ये कार्य भी पूरा हुआ। विवाह के बाद लड़कियों की ''बुकचा खुलाई'' रस्म में नंदिनी ने एक बहुत ही खूबसूरत साड़ी पसंद की ,बोली -अपने भाई के विवाह में कोई कसर नहीं छोडूंगी ,आखिर इकलौता भाई है मेरा। कौन सा रोज -रोज विवाह हो रहे हैं। ये बात नई बहु सुन रही थी ,उसने भी सोचा -ठीक ही तो कह रहीं हैं ,किन्तु जब नंदिनी के हाथ में साड़ी देखी तो चुप देखती रही ,मन ही मन सोचा - ये साड़ी तो मुझे भी बहुत पसंद थी ,तभी तो खरीदकर लायी थी। फिर सोचा -कोई बात नहीं ,उनका भी नेग बनता है। मन में थोड़ा दुख हुआ किन्तु उसने मन को समझा लिया। नंदिनी विवाह के बाद की सभी रस्मों के बाद अपनी ससुराल चली गयी। रिश्तेदार भी चले गए ,रह गया तो घर में इतनी साड़ियों का गट्ठर , लेने -देने के चक्कर में ,साड़ियां दीं भी ,तो आयीं भी। उन्हें समेटते हुए सोचने लगी -लोक -लाज के लिए लेना -देना करना ही पड़ता है ,वैसे आजकल साड़ी कोई पहनता नहीं ,लड़कियाँ तो जींस पहनती हैं ,हम जैसी सूट ही पहनती हैं ,साड़ी रखी रहतीं हैं। लेने -देने में भी दो तो, सबको नए चलन की नए डिजाइन की साड़ी चाहिए ,कुछ साड़ियाँ बहु के घर से भी आयी हैं। नीता ने साड़ियों और पेण्ट -शर्ट के कपड़ों को समेटा और एक जगह व्यवस्थित करके रख दिया।
उधर जब नंदिनी अपनी ससुराल पहुंची ,उसने अपनी सभी साडियां अपनी सास को दिखाईं ,अपने मायके का बखान करके रख दीं। कुछ महीनों बाद नंदिनी की ननद अपने मायके आयी। उसे पता चला- कि नंदिनी के भाई का विवाह हुआ है ,बहुत कुछ लायी है ,उसने अपनी भाभी से पूछा -सुना है
,आपके भाई की शादी थी, मायके से क्या -क्या मिल गया ?नंदिनी ने खुश होकर अपनी नंद को सभी साड़ियां और सामान दिखाया ,उसकी ननद को सारा सामान बहुत ही पसंद आया उसकी प्रशंसा भी की ,उसकी बुकचा खुलाई 'रस्म की जो साड़ी थी ,उसे देखकर ननद बोली -भाभी ये साड़ी, सबसे सुंदर है। उस साड़ी को हाथ में लेकर मुस्कुराते हुए नंदिनी बोली -पसंद किसकी है ?तभी तो मैंने चुनी खुश होते हुए न नंदिनी बोली। उसकी ननद एक सप्ताह अपने मायके में रही ,जब वो जाने लगी तो नंदिनी की सास ने ,बेटी को देने के लिए उपहार और साड़ियां निकाली। बेटी एक सप्ताह मायके में रहकर खाली हाथ ससुराल थोड़े ही जाएगी ,यही सोचकर उन्होंने बेटी की विदाई की तैयारी की ,तब नंदिनी को भी लगा मुझे भी अपनी ननद को कुछ देना चाहिए,क्या दूँ ? सोचते सोचते उसे ध्यान आया -दीदी को मेरी वो साड़ी बहुत पसंद थी ,वो ही दे देती हूँ ,फिर सोचा -वो तो मुझे भी बहुत पसंद है किन्तु मैं इतनी साड़ियां पहनती ही कहाँ हूँ ?जब से लायी हूँ बक्से में ही रखी है दूसरी साड़ी भी तो मेरी पसंद की ही है उसे पहन लूँगी। दीदी की ससुराल में तो पूछेंगी -भावज ने क्या दिया ?जब मैं अपने घर से अच्छा सामान लाती हूँ तो उन्हें भी तो अच्छी चीज मिलनी चाहिए ,इनकी ससुराल में भी तो मेरा ही मान बढ़ेगा कि भाभी ने कितनी अच्छी साड़ी दी। यही सोचकर नंदिनी ने अपने मन को समझा लिया और वो साड़ी निकालकर अपनी ननद के सामने रख दी। लो दीदी !ये मेरी तरफ से ,प्रतिभा उस साड़ी को देखकर थोड़ा हिचकिचाई ,बोली -भाभी ये तो आपकी पसंद की साड़ी है। नंदिनी बोली -कोई बात नहीं दीदी ,मेरे पास और भी हैं मैं दूसरी पहन लूँगी ,आपको भी तो अच्छी साड़ी ले जानी चाहिए। प्रतिभा ने खुश होते हुए वो साड़ी रख ली।
,आपके भाई की शादी थी, मायके से क्या -क्या मिल गया ?नंदिनी ने खुश होकर अपनी नंद को सभी साड़ियां और सामान दिखाया ,उसकी ननद को सारा सामान बहुत ही पसंद आया उसकी प्रशंसा भी की ,उसकी बुकचा खुलाई 'रस्म की जो साड़ी थी ,उसे देखकर ननद बोली -भाभी ये साड़ी, सबसे सुंदर है। उस साड़ी को हाथ में लेकर मुस्कुराते हुए नंदिनी बोली -पसंद किसकी है ?तभी तो मैंने चुनी खुश होते हुए न नंदिनी बोली। उसकी ननद एक सप्ताह अपने मायके में रही ,जब वो जाने लगी तो नंदिनी की सास ने ,बेटी को देने के लिए उपहार और साड़ियां निकाली। बेटी एक सप्ताह मायके में रहकर खाली हाथ ससुराल थोड़े ही जाएगी ,यही सोचकर उन्होंने बेटी की विदाई की तैयारी की ,तब नंदिनी को भी लगा मुझे भी अपनी ननद को कुछ देना चाहिए,क्या दूँ ? सोचते सोचते उसे ध्यान आया -दीदी को मेरी वो साड़ी बहुत पसंद थी ,वो ही दे देती हूँ ,फिर सोचा -वो तो मुझे भी बहुत पसंद है किन्तु मैं इतनी साड़ियां पहनती ही कहाँ हूँ ?जब से लायी हूँ बक्से में ही रखी है दूसरी साड़ी भी तो मेरी पसंद की ही है उसे पहन लूँगी। दीदी की ससुराल में तो पूछेंगी -भावज ने क्या दिया ?जब मैं अपने घर से अच्छा सामान लाती हूँ तो उन्हें भी तो अच्छी चीज मिलनी चाहिए ,इनकी ससुराल में भी तो मेरा ही मान बढ़ेगा कि भाभी ने कितनी अच्छी साड़ी दी। यही सोचकर नंदिनी ने अपने मन को समझा लिया और वो साड़ी निकालकर अपनी ननद के सामने रख दी। लो दीदी !ये मेरी तरफ से ,प्रतिभा उस साड़ी को देखकर थोड़ा हिचकिचाई ,बोली -भाभी ये तो आपकी पसंद की साड़ी है। नंदिनी बोली -कोई बात नहीं दीदी ,मेरे पास और भी हैं मैं दूसरी पहन लूँगी ,आपको भी तो अच्छी साड़ी ले जानी चाहिए। प्रतिभा ने खुश होते हुए वो साड़ी रख ली।
प्रतिभा ने अपनी ससुराल में अपने उपहार और साड़ियां दिखाईं ,नंदिनी की दी हुई ,साड़ी की सबने प्रशंसा की -खानदानी लोग हैं ,बेटियों को अच्छा ही देते हैं और वो साड़ी प्रशंसा का पात्र बनकर ,डिब्बे में संभालकर रखी गयी। लगभग छः माह बाद ,प्रतिभा की सास को अपने भतीजे के विवाह में जाना पड़ा ,वो बोलीं -बहु ,अभी थोड़ा हाथ तंग है ,मैं तुम्हें ऐसी ही साड़ी लेकर दे दूंगी या उसके पैसे दे दूँगी ,अभी समय भी नहीं है और भतीजे की बहु को, देने के लिए वही साड़ी ठीक रहेगी। प्रतिभा को दुःख तो हुआ
,फिर सोचा -साड़ियों के नए -नए डिजाइन आते रहते हैं ,अभी मैं पहन भी नहीं रही ,जब कोई नए चलन की साड़ी आएगी तभी ले लूँगी ,यही सोचकर ,प्रतिभा ने वो साड़ी अपनी सास को दे दी। प्रतिभा की सास ने वो साड़ी अपने भतीजे की बहु को ''मुँह दिखाई ''की रस्म में दे दी। साड़ी सभी को बहुत पसंद आई ,भतीजे की बहु तो वो साड़ी ठीक से देख भी नहीं पाई ,तभी उसकी ननद रुपाली ने वो साड़ी अपने लिए चुन ली ,रुपाली भी अपने भाई के विवाह में आकर अपनी पसंद का सामान लेकर गयी। रुपाली की ससुराल में भी सभी उपहार और साड़ियाँ सभी को पसंद आये और वो साड़ी सैर करती हुई रुपाली की ससुराल पहुँच गयी ,रुपाली ने सोच रखा था कि जब अबकि बार ''करवा चौथ ''आयेगी उस समय तैयार करके पहनेगी।
,फिर सोचा -साड़ियों के नए -नए डिजाइन आते रहते हैं ,अभी मैं पहन भी नहीं रही ,जब कोई नए चलन की साड़ी आएगी तभी ले लूँगी ,यही सोचकर ,प्रतिभा ने वो साड़ी अपनी सास को दे दी। प्रतिभा की सास ने वो साड़ी अपने भतीजे की बहु को ''मुँह दिखाई ''की रस्म में दे दी। साड़ी सभी को बहुत पसंद आई ,भतीजे की बहु तो वो साड़ी ठीक से देख भी नहीं पाई ,तभी उसकी ननद रुपाली ने वो साड़ी अपने लिए चुन ली ,रुपाली भी अपने भाई के विवाह में आकर अपनी पसंद का सामान लेकर गयी। रुपाली की ससुराल में भी सभी उपहार और साड़ियाँ सभी को पसंद आये और वो साड़ी सैर करती हुई रुपाली की ससुराल पहुँच गयी ,रुपाली ने सोच रखा था कि जब अबकि बार ''करवा चौथ ''आयेगी उस समय तैयार करके पहनेगी।
कुछ माह पश्चात रुपाली की सास ने घर में साफ -सफ़ाई करनी शुरू की ,रुपाली बोली - मम्मी जी ये इतनी तैयारी किस लिए हो रही है ?तब उसकी सास ने बताया --मेरे मामा की पोती है ,जिसका अभी सालभर पहले विवाह हुआ ,वो और उसका पति हमारे शहर में ही घूमने आ रहे हैं। मामाजी ने ही बताया होगा -कि मैं यहाँ रहती हूँ , तो हमसे भी मिलने आएंगे। सुना है ,बहुत पैसे वाले लोग हैं ,उनका रहन -सहन बहुत ही उच्च स्तर का है इसीलिए घर की साफ -सफाई हो रही है। ''फर्स्ट इम्प्रेशन इज लास्ट इम्प्रेशन ''कहकर वो मुस्कुराकर अपने काम में जुट गयी। रुपाली ने भी उनके काम में मदद की ,उसके अंदर अपनी सास की पोती को देखने की उत्सुकता साफ झलक रही थी। कैसी होगी वो ?कैसे पैसे वाले लोग होंगे ?उनका रहन -सहन हमसे कैसे अलग होगा ?दोनों सास -बहु की मेहनत सफल हुयी ,घर एकदम चकाचक हो गया ,कुछ चीजें बदली गयीं ,कुछ उठाकर रख दी गयीं। तय समय पर उनके यहाँ एक बड़ी सी गाड़ी आकर रुकी ,उस गाड़ी में से गोरी -चिट्टी ,पतली -दुबली सी एक सुंदर लड़की उतरी उसके साथ ही उसका पति भी आया दोनों किसी अच्छे परिवार के लग रहे थे ,उन्हें देखकर लग रहा था जैसे हमारा घर अब भी उनके रहन -सहन और व्यवहार को देख ,अपने को बौना महसूस कर रहा था। रिश्तेदार हैं ,कोई कमी न रहे इसीलिए और सामान के लिए रामू को बाजार के लिए दौड़ा दिया।दोनों पति -पत्नी बहुत सारे उपहार भी लाये थे , हमें अपनी तरफ से झिझक सी लग थी, फिर भी हमने उनकी आवभगत में कोई कसर नहीं छोड़ी। पहले नाश्ता फिर खाना -पीना ,पूरा दिन उनकी आवभगत में लग गया। विदाई के समय रुपाली की सास ने सोचा था कि ''चलते समय दोनों को पांच-पांच सौ रूपये थमा दूंगी किन्तु फिर सोचा -ये क्या ?रोज -रोज आ रही है ,एक साड़ी भी दे देती हूँ। सास ने साड़ी निकाली और रुपाली को दिखाई ,रुपाली को वो साड़ी बिल्कुल भी पसंद नहीं आयी। दोनों सास -बहु अंदर ही अंदर खुसर -पुसर कर रहीं थीं ,तभी उस लड़की की आवाज आयी ,बोली -बुआजी अब हम चलते हैं। वो शीघ्रता से बोलीं -अभी आई बेटा , तभी रुपाली ने अपने घर का' मान'' रखने के लिए वो साड़ी का डिब्बा अपनी सास के हाथों में थमा दिया , सास ने बहु को प्रशंसा की नजर से देखा।
बाहर आकर उन्होंने वो डिब्बा और पांच सौ रूपये उस लड़की के हाथ में रख दिए ,वो बोली -इसकी क्या आवश्यकता थी ?बुआजी ! वो बोलीं -कोई बात नहीं ,तू पहली बार आयी है ,इतना तो अपनी बुआ पर तेरा हक़ बनता ही है, कहकर उन्होंने उसे गले लगा लिया और उसके पति के हाथ में भी पैसे थमा दिए। दोनों पति -पत्नि को ख़ुशी -ख़ुशी विदा किया ,घर जाकर जब उसने वो डिब्बा खोला ,तो ख़ुशी के कारण उसकी चीख़ निकल गयी ,उसके परिवार के लोग आये, कारण पूछते इससे पहले ही उसकी सास की नज़र उस डिब्बे पर गयी ,देखकर वो भी चौंक गयीं और बोलीं -अरे !ये तो वही साड़ी है ,जो हमने नंदिनी को ''बुकचा खुलाई ''रस्म में दी थी। हाँ मम्मीजी ,पता नहीं, कहाँ-कहाँ से घूम -फिरकर मेरी साड़ी मेरे पास आ गयी ?सास बोली -किसी ने सच ही कहा है -''आपका दिया ,आपके पास ही लौटकर आता है ,अच्छा हो या बुरा।''