अपने अधिकारों के लिए ,
अपनों में रहकर ,अपनों से ही ,
जो अपने ,अपनों का दर्द ,
न समझ सके,तोड़ सके न ,
अपनों के बंधन ,तो क्या किया ?
न जाने कितने ?अपने अधिकारों ,
की ख़ातिर ,जान गंवा बैठे ,
जो घर की इज्ज़त थीं ,बैठी रहीं सड़कों पर
उन्हें इंसाफ़ न दिला सके ,तो क्या किया ?
सियासत के फेर में ,अपने ही अपने न रहे ,
वो क्या ग़ैर थे ? जो सबकी शान थे ,
अपनों का ही मान न रख सके ,तो क्या किया ?
क्या ? अपनों से प्यारे' उसूल' थे ,
अपनों के जख्मों पर मरहम न रख सके ,
उनके दिल की राहत न बन सके ,तो क्या किया ?
क्या अपनों का ?अपनों पर अधिकार नहीं ,
पूरी उम्र गुजार दी ,इस अपनेपन के लिए ,
उसका मान न रख सके ,तो क्या किया ?