हमारा देश अनेक तरह के कलाकारों से भरा पड़ा है ,हमारे देश में एक से एक कलाकार भरे पड़े हैं। रस्सी पर चढ़ना -कूदना ,नृत्य करना ,चित्रकारी करना ,अभिनय करना ,ये सब कला के ही रूप हैं ,किन्तु ये कला तो जगज़ाहिर है ,मैं तो आपको उस कला से रूबरू करना चाहती हूँ जो मानव के अंदर और उसके व्यवहार में छिपी होती है ,उसका उसे कभी -कभी स्वयं भी पता नहीं होता। इस कला द्वारा वो पैसे तो नहीं कमा सकता किन्तु इस कला द्वारा दूसरों को मूर्ख बनाकर ,अपना स्वार्थ अवश्य सिद्ध कर सकता है।इस कला में हर कोई इतना पारंगत नहीं हो पाता ,उन्हें हम कच्चे कलाकार कह सकते हैं ,वो प्रयत्न तो करते हैं
,दूसरों को मूर्ख बनाने का, किन्तु पकड़े जाते हैं ,दूसरा व्यक्ति समझ जाता है कि उसे मूर्ख बनाने का प्रयत्न किया जा रहा है। दूसरे शब्दों में कहें तो ''उल्लू बनाने ''का प्रयत्न किया जा रहा है। अपनी बातों से अथवा अपने व्यवहार से वो जतला ही देता है कि वो ''कच्चा खिलाडी ''है अथवा कलाकार है। इस प्रतिभा की अभी उसमें कमी है , यह प्रतिभा भी अनुभवों के आधार पर धीरे -धीरे निखरती जाती है। ऐसे कलाकार आपको अपने आस -पास रह रहे अथवा घूम रहे लोगों में से तीसरा या चौथा कलाकार मिल ही जायेगा ,किन्तु उन्हें परखने के लिए पारखी नज़र का होना आवश्यक है वरना जो मंझे हुए कलाकार हैं वो तो सालों -साल अपनी कला का उपयोग कर ,अपना स्वार्थ सिद्ध करते रहते हैं और कोई जान भी नहीं पाता और जो जान जाता है ,उसके विरुद्ध कोई प्रमाण न होने के कारण ,उसे झुठला भी नहीं सकता ,कोई प्रयत्न करे भी तो वो कलाकार किस बात का ?वो कोई न कोई तिगड़मबाजी करके अपने को सही साबित कर देता है।
,दूसरों को मूर्ख बनाने का, किन्तु पकड़े जाते हैं ,दूसरा व्यक्ति समझ जाता है कि उसे मूर्ख बनाने का प्रयत्न किया जा रहा है। दूसरे शब्दों में कहें तो ''उल्लू बनाने ''का प्रयत्न किया जा रहा है। अपनी बातों से अथवा अपने व्यवहार से वो जतला ही देता है कि वो ''कच्चा खिलाडी ''है अथवा कलाकार है। इस प्रतिभा की अभी उसमें कमी है , यह प्रतिभा भी अनुभवों के आधार पर धीरे -धीरे निखरती जाती है। ऐसे कलाकार आपको अपने आस -पास रह रहे अथवा घूम रहे लोगों में से तीसरा या चौथा कलाकार मिल ही जायेगा ,किन्तु उन्हें परखने के लिए पारखी नज़र का होना आवश्यक है वरना जो मंझे हुए कलाकार हैं वो तो सालों -साल अपनी कला का उपयोग कर ,अपना स्वार्थ सिद्ध करते रहते हैं और कोई जान भी नहीं पाता और जो जान जाता है ,उसके विरुद्ध कोई प्रमाण न होने के कारण ,उसे झुठला भी नहीं सकता ,कोई प्रयत्न करे भी तो वो कलाकार किस बात का ?वो कोई न कोई तिगड़मबाजी करके अपने को सही साबित कर देता है।
इसके विपरीत जो व्यक्ति ऐसे कलाकार नहीं हैं ,जिन्हें प्रकृति ने ऐसा गुण नहीं दिया ,वे ज़िंदगी भर अपने को निर्दोष और उस कलाकार की कलाकारी को गलत सिद्ध करने में जुटे रहते हैं। वैसे कहा जाये तो ऐसे कलाकार किसी ऐरे -गेरे को मुँह नहीं लगाते ,ये लोग बस उन्हीं के पास जाते हैं ,जहाँ अपना स्वार्थ सिद्ध होता हो या फिर भविष्य में इसकी उम्मीद होती है। क्या आप सोचते हैं ? कि ऐसे कलाकारों में भावनायें नहीं होतीं ,अरे !होती हैं और इन भावनाओं का उपयोग करना भी उन्हें अच्छे से आता है। मैं अभी आपको एक क़िस्सा बताती हूँ ,मैं महिला हूँ ,तो महिलाओं के किस्से ज्यादा मालूम हैं। ऐसा नहीं कि पुरुषों में ऐसे कलाकार नहीं होते ,भला ये कैसे संभव हो सकता है ?राजनीति में आपको एक से एक कलाकार ऐसे ही मिलेंगे ,कहकर कुछ जायेंगे और करेंगे कुछ और। जैसे मैं महिला का किस्सा सुनाते -सुनाते राजनीति में आ गयी। वैसे तो ये मेरा विषय नहीं लेकिन बात जब' बज़ट' की ,'व्यय' की और' कर' की आती है ,तब देखना ही पड़ जाता है कि सत्ता किसकी है ,शासन कौन कर रहा है ,कानून कौन बना रहा है ?क्योंकि ये पहलू भी धीरे -धीरे हमारी ज़िंदगी से जुड़ते चले जाते हैं क्योंकि वोट तो हम लोग ही देते हैं। देश का जागरूक नागरिक होने के नाते हमारा भी फ़र्ज बन जाता है कि राजनीति में भी कौन सा ऐसा कलाकार घुसा है जो जनता को मूर्ख बनाने का प्रयत्न कर रहा है ,हमारी मेहनत का पैसा किन -किन कलाकारों को गया ?
अभी देखिये ना ,किसी व्यक्ति ने अपनी कलाकारी दिखाते हुए ,श्मशान की छत बनवायी ,उसके तले बीस -पच्चीस लोग आकर मर गए ,ये कलाकारी किसी को पसंद नहीं आयी। कलाकारी तो ऐसी हो जिसमें जान -माल का नुकसान न हो ,भावनाओं तक ही काफी है ,कभी -कभी भावनायें भी भारी पड़ जाती हैं। कुछ लोग ऐसे होते हैं जो किसी भी हद तक जाने से बाज नहीं आते। कलाकारी तो वो है ,तुम्हारा काम भी बने और तुम पकड़े भी न जा सको ,किसी का जान -माल की हानि भी न हो। कलाकार तो पहले भी थे ,जिनकी बनाई इमारतें आज भी हमारे देश की शान बनी हुई हैं किन्तु आज का कलाकार तो आज में ही जीना चाहता है। उसे ये भूख नहीं कि लोग वर्षो याद करें , उसे भूख है पैसे की ,इसीलिए वो आज में जीना चाहता है। अरे !वो किस्सा तो रह ही गया ,उसे बताती हूँ --तीन भाइयों की एक बहना थी ,वो तो ब्याहकर अपनी ससुराल चली गयी। भाइयों में ज़मीन -ज़ायदाद को लेकर झगड़ा हुआ। घर बंट गया ,व्यवसाय भी बंट गया। एक भाई के यहाँ विवाह था ,अकेली बहन किसके यहाँ जाये ?एक के घर जाये तो दूसरे का मुँह बन जाये ,दूसरे के घर जाये तो तीसरे का मुँह बन जाये। घर में शादी का माहौल और भाई -भाई आपस में एक साथ नहीं ,यहाँ उनका अहम कलाकारी दिखा रहा था। जिसकी बेटी का ब्याह था ,बहन उसी के घर गयी ,भाई से गले मिल रोई ,बोली -'क्या ज़माना आ गया ,भाई भी भाई का नहीं रहा ,ऐसे में दोनों को तुम्हारे साथ होना चाहिए था और तुम अकेले ही सब संभाल रहे हो ,' देखने -सुनने में बात सही थी। भाई खुश हुआ ,मेरी बहन को मेरे साथ हमदर्दी है। फिर बोली --जाऊँ देख आऊं ,छोटो को समझाकर देखूं ,कम से कम अपने भाई के साथ खड़े तो हो जाते। मंझले के पास गयी और रोने लगी -क्या तुम्हें विवाह में नहीं बुलाया ,बड़ी वाली ने ही मना किया होगा वरना आज तुम अपने भाई के साथ खड़े होते ,देख भाई मैं तो बंट नहीं सकती, ससुराल में भी ताना मारेंगे ,वरना तू तो मेरा लाडला है। ये बातें सुनकर मंझले की बहु बोली --सब समझती हूँ दीदी ,आप तो इनकी लाड़ली बहन हो, जाओ तो मिलकर जाना। अब वो छोटे के पास गयी -फिर वही गले लगना और रोना ,ये बुरा नहीं है अपने परिवार अपने भाइयों को देख रोना आ ही जाता है लेकिन उनका रोना मुझे बनावटी लगा ,भाई के घर से निकलते ही वो एकदम शांत ,चेहरे पर दुःख तो दिखे ,ख़ैर छोडो ! छोटे भाई से बोली -बड़े की बहु ने घर का नाश कर दिया ,दोनों बड़ी बहुओं के कारण आज घर के टुकड़े -टुकड़े हो गए ,जब से तू आयी ,तूने घर संभाला ,तू भी कितना संभालती ?जब दोनों ने ही घर का नाश करने के लिए सोच लिया था। घर की उन्नति भी न हो पाई ,माँ -बाप भी न रहे ,तूने ही बस ख़ानदान की इज्ज़त बचा रखी है ,छोटी तो इतना ख़ुश हो गयी ,उसने तुरंत ही निकालकर एक साड़ी दी ,चलते समय दोनों बड़ी बहुओं ने भी साड़ी दी। बेचारी बहन अपनी कलाकारी दिखाकर ,उन्हें सच्चाई भी बता गयी और अपना मान भी बनाये रखा ,उसे भी तो ससुराल में जाकर ,अपने मायके के लिए कलाकारी दिखाकर अपना सम्मान बनाये रखना है। इस कलाकारी से किसी का अहित तो नहीं हुआ लेकिन कुछ कलाकारियों से घर जुड़ भी सकते हैं और कभी -कभी टूट भी जाते हैं लेकिन उद्देश्य उसकी सोच पर निर्भर करता है।
उसे घर तोडना है या जोड़ना ,रिश्ते बनाने हैं या बिगाड़ने। कला के और भी पहलू हैं ,जैसे -झूठ बोलने की कला ,धोखा देना भी इससे मिलता -जुलता है। झूठ बोलने वाला व्यक्ति इतनी सरलता से झूठ बोल जाता है थोड़ी देर को तो आप भी[ सच जानते हुए भी ] असमंजस में पड़ जाते हैं कि क्या सही है ?सहन करना भी एक कला है ,ऐसे कलाकार कुछ लोगों की नजरों में मूर्ख होते हैं ,कुछ की नज़र में महान सबका अपना -अपना मापदंड़ है। मैंने इतना बड़ा लेख बैठे -बिठाये लिख दिया ये भी तो कला ही है।