चेतना ने प्रदीप से रिश्ता तोड़कर ,सोचा वो अब किसी पर भी विश्वास नहीं करेगी ,न ही अब किसी को अपनी ज़िंदगी में आने देगी। परिस्थितियों से जूझते हुये ,धोखे खाये मन को लेकर, अब वो और मजबूत हो गयी। उसने अपने बच्चों के लिए अपने को बिखरने नहीं दिया। उसे लगा, जैसे उसका अपना कोई नहीं। उधर माँ अपने बेटे के लिए भी लड़की देखने लगी। चेतना बोली -क्या करना है ?विवाह करके उसके चार खर्चे ही बढ़ेंगे किन्तु माँ ने चेतना की एक नहीं सुनी ,और लड़की देखी भी, पसंद भी की। चेतना ने कह दिया कि विवाह तभी होगा, जब ये अलग घर ले लेगा ,उसका खर्चा उठाने लायक हो जायेगा ,जितने पैसे ये कमाता है ,उनसे घर के ख़र्चे नहीं चलने वाले ,चेतना की बात सुनकर माँ को गुस्सा तो बहुत आया लेकिन उसके घर में रह रहे हैं, कुछ कर भी नहीं सकते। गुरिंदर ने अपनी जिम्मेदारी पर, एक मकान किस्तों पर ले लिया ,आखिर उसे अपने बेटे का घर जो बसाना था।वहीं उसका विवाह भी करा दिया ,गुरिंदर भी काम करने लगी ,बहु भी अच्छी थी, वो भी परिस्थितियों को समझते हुए घर में भी काम करती और बाहर से घर में ही काम ले आती ,ख़ाली समय में वो काम करती। तीनों के कमाने से उनकी गृहस्थी जम गयी। चेतना कभी -कभी उनके घर चली जाती लेकिन माँ अब उससे सही व्यवहार नहीं करती ,वहॉँ उसे वो अपनापन नहीं मिल पाता, जिसके लिए वो जाती। माँ का रुखा व्यवहार देखकर, वो माँ से लड़ बैठती ,तुम्हें तो बस अपने लड़के की ही पड़ी रहती है ,मेरी कोई चिंता नहीं। गुरिंदर समझती थी कि इसने जिंदगी में इतने धोखे खाये हैं ,उनकी भड़ास निकालने यहाँ आ जाती है।
चेतना स्वयं भी भाई की मदद कर देती किन्तु माँ को उसके लिए कुछ करते देखकर चिढ जाती ,उसे खुद ही नहीं पता चल पा रहा था कि वो क्रोधित क्यों है ?अपने आप से ,माँ और भाई से या इस समाज से। उसे बच्चों की पढ़ाई के लिए अधिक पैसों की आवश्यकता पड़ रही थी किन्तु इतने पैसे लाये कहाँ से। सतपाल ने कहा भी था ,जब भी पैसों की आवश्यकता हो तो बेझिझक माँग लेना, लेकिन उसने मन ही मन सोचा -' कि जिसने जीते जी मुझे मरा समझ लिया, मेरी जगह किसी और को दे दी, उससे कोई मदद नहीं लेगी। पैसे तो उसे कम मिलते थे ,उसने थोड़े पैसे उधार मांगे तो उन लोगों ने इंकार कर दिया। एक दिन जब सब लोग चले गए ,उसे बुलाया गया ,उसे उम्मीद थी कि शायद उसके मालिक ने उसकी परेशानी को समझा इसीलिए बुलाया है ,वो कमरे में दाख़िल हुयी और उसे काम समझा दिया गया ,वो अपने -आप से बहुत लड़ी, फिर उसने सोचा-पैसा भी कम ,मेहनत भी ज्यादा फिर भी इज्ज़त नहीं ,मान -सम्मान नहीं और आज भी पैसे के लिए इज्जत दांव पर लगी है ,उसके सामने नोटों की गड्डी पड़ी थी। वो सोच रही थी -जिन पर विश्वास किया जिन्हें समाज में आदर सम्मान दिलवाना चाहिए था वो धोखा दे गए फिर ये लोग तो मेरे कुछ नहीं लगते ,ये तो सामने से इज्जत के बदले सौदा कर रहे है, कोई धोखा तो नहीं कर रहे। एक हाथ दे ,एक हाथ ले। उसके सामने बच्चों का सुंदर भविष्य नज़र आने लगा। इस ग़रीबी में तो नहीं रहेंगे सोचकर चेतना ने वो गड्डी उठा ली। उसे मर्दों से जैसे घृणा हो गयी ,मर्दों ने उसका इस्तेमाल किया ,अपने क्षणिक सुख के लिए और अब वो उनका इस्तेमाल आगे बढ़ने के लिए कर रही थी।
बच्चे अब बड़े होने लगे ,बेटी भी बड़ी हुई ,बच्चे समझते थे कि हमारी माँ हमारे लिए मेहनत करती है ,बच्चों के मन में माँ के प्रति सम्मान था कि माँ ये हमारे उज्ज्वल भविष्य के लिए ही रात -दिन मेहनत कर रही हैं ,बेटी का अट्ठाहरवां वर्ष था उसे किसी सभ्य परिवार के लड़के से प्यार हो गया। चेतना को जब पता चला तो उसने मना भी किया कुछ नहीं रखा ,इन चीजों में ,पढ़ो -लिखो सफलता की सीढियाँ चढ़ो। वो उसे अपने अनुभवों के आधार पर उसे समझा रही थी लेकिन बेटी को तो परिवार और घर -गृहस्थी बसाने का शौक चढ़ा था। चेतना ने उस लड़के के साथ ख़ुशी- ख़ुशी अपनी बेटी पवित्रा का विवाह कर दिया। उसे इस बात की ख़ुशी थी कि विवाह के बाद जो मान -सम्मान उसे न मिल सका बेटी को मिल रहा था। आज वो एक सभ्य परिवार की बहु थी। उसने अपनी बेटी को दान -दहेज़ भी खूब दिया ,परिवार भी भरा -पूरा था।
बेटी की तरफ से वो संतुष्ट हो गयी। चेतना अब अपने लड़के के भविष्य के बारे में सोच रही थी और उसे पढ़ने के लिए बाहर भेज दिया था। उसे इस बात की ख़ुशी थी कि वो भी सभ्य ,संस्कारी परिवारों के साथ उठ बैठ सकती है। शहरों में तो आदमी अच्छा खाता -पीता दिखे ,सम्मान से बात करते ही हैं फिर बच्चों को क्या मालूम, पैसा कहाँ से और कैसे आ रहा है ?कहते हमारे दोस्त की मम्मी किसी अच्छी कम्पनी में हैं ,लड़के के दोस्त आकर उसके पैर छूते ,उसे ये सम्मान मिलता वो बहुत खुश होती ,तब उसे पैसे की ताकत का एहसास हुआ ,किन्तु ज़िंदगी इतनी भी आसान नहीं जितना हम समझ लेते हैं ,कब ,क्या हो जाये ?कुछ कहा नहीं जा सकता।
बेटी की तरफ से वो संतुष्ट हो गयी। चेतना अब अपने लड़के के भविष्य के बारे में सोच रही थी और उसे पढ़ने के लिए बाहर भेज दिया था। उसे इस बात की ख़ुशी थी कि वो भी सभ्य ,संस्कारी परिवारों के साथ उठ बैठ सकती है। शहरों में तो आदमी अच्छा खाता -पीता दिखे ,सम्मान से बात करते ही हैं फिर बच्चों को क्या मालूम, पैसा कहाँ से और कैसे आ रहा है ?कहते हमारे दोस्त की मम्मी किसी अच्छी कम्पनी में हैं ,लड़के के दोस्त आकर उसके पैर छूते ,उसे ये सम्मान मिलता वो बहुत खुश होती ,तब उसे पैसे की ताकत का एहसास हुआ ,किन्तु ज़िंदगी इतनी भी आसान नहीं जितना हम समझ लेते हैं ,कब ,क्या हो जाये ?कुछ कहा नहीं जा सकता।
पवित्रा के विवाह को अब तक पांच -छः वर्ष हो गए ,अभी तक उसकी गोद नहीं भरी थी। बहुत से डॉक्टर ,वैध ,हकीमों से इलाज़ कराया किन्तु कोई फ़ायदा नहीं हुआ। अब उसके घर में झगड़े भी होने लगे ,दामाद कभी -कभी चेतना की बेटी पर हाथ उठा देता। चेतना को बेटी के प्रति ये व्यवहार पसंद नहीं आया। उसने उनके संबंधों को ठीक करने का बहुत ही प्रयत्न किया लेकिन उनके संबंधों में कोई सुधार आया उसने अपनी बेटी से घर चलने के लिए कहा किन्तु बेटी ने आने से इंकार कर दिया। चेतना उसे ढाढ़स बँधाकर आ गयी ,वो अपनी बेटी का दर्द समझती थी इसीलिये अपनी बेटी से कहकर आ गयी,- कि जब भी आना हो तो तेरी माँ के घर के दरवाज़े हमेशा तेरे लिए खुले हुए हैं।'' चेतना का बेटा अब कमाने लगा ,उसकी अच्छी कम्पनी में नौकरी लग गयी ,वो इज्ज़त से दो पैसे कमाने लगा ,देर सवेर ,बहन और माँ की मदद भी कर देता। चेतना बेटे की तरफ से संतुष्ट हो गयी किन्तु पवित्रा की हालत बद्त्तर होती जा रही थी। चेतना उसकी हालत देखकर बोली -मैंने पहले ही समझाया था कि ये जीवन इतना आसान नहीं ,मैं तो इस दुनिया से पहले ही चोट खाये थी किन्तु तुम नहीं मानी ,इसके चक्कर में तुमने अपनी पढ़ाई भी पूरी नहीं की और विवाह की ज़िद कर बैठी ,मैंने भी सोचा -जो मेरी क़िस्मत में नहीं था ,शायद तुम्हारी क़िस्मत में हो।अब मैं तुम्हें ऐसे ही नहीं छोड़ सकती ,अब त्यौहार आने वाला है ,तब तुम घर आना और ठंडे दिमाग़ से सोचना कि अब तुम्हें क्या करना है ?दीपावली पर बेटी- दामाद घर आये। चेतना ने कुछ दिन के लिए बेटी को वहीं रख लिया। एक सप्ताह बाद पवित्रा को लेने जब उसकी ससुराल वाले आये तो उसने जाने से इंकार कर दिया।
आज पवित्रा को तलाक़ मिल गया ,अब वो उन रिश्तों से आजाद थी जिन्हें वो मोह वश जबरदस्ती ढोह रही थी। इस बीच उसने पढ़ाई भी की ,और चेतना ने भी उसे एक स्वतंत्र जीवन जीने का दर्शन दिया ,-ये जीवन जीने के लिए है ,घुट -घुटकर अपनी इच्छाओं को मारने के लिए नहीं। अपने को पूर्णतः स्वतंत्र छोड़ दो ,खुलकर साँस लो ,तुम्हें अपने आप से प्यार होगा ,तुम अपने- आप को पहचान सकोगी। माँ के समझाने का ये असर हुआ ,पढ़ाई के साथ -साथ उसका रहने -सहने का तौर -तरीक़ा ही बदल गया। उसे लगता कि जैसे जिंदगी तो अब शुरू हुई है। पवित्रा सुंदर तो पहले से ही थी ,अब उसमें और निखार आ गया ,अब वो नए -नए फ़ैशन के कपड़े पहनती ,अपने आप को पूरी तरह बदल लिया ,जो भी देखे ,क्षणभर को उसकी नज़र ठहर जाये ,उसका आकर्षण इतना अधिक था कि एक लड़के ने तो उसके साथ विवाह का प्रस्ताव रखा ,उसे पता था कि ये महज़ एक आकर्षण है ,प्यार नहीं। नौकरी की किन्तु वहां भी उसके चुंबकीय रूप ही उसके व्यक्तित्व से जीत जाता। कई बार वो चर्चा का विषय भी रही ,सोचती- ये समाज भी लोगों को अपनी इच्छा से जीने नहीं देता। कई जगह नौकरी भी की लेकिन छोड़नी पड़ी ,जिस तरह का उसका रहन -सहन था वो उसके स्तर से मेल नहीं खाता ,अब खर्चे भी इतने बढ़ चुके थे ,छोटी -मोटी आमदनी से काम नहीं चल पाता। इन दिनों में वो अपनी सुंदरता का भरपूर उपयोग करना सीख गयी। अब उसने माँ की तरह लोगों को बहलाया तो नहीं किन्तु व्यवसाय किया उनकी कमज़ोरी का लाभ उठाया। उसने एक मालिश की दुकान खोली ,उसकी भाषा में ''मसाज पॉर्लर ''खोला। लोग उसके कृत्रिम आकर्षण में आते और लुटकर जाते। ऐसा नहीं कि वो कोई जबरदस्ती कर रही थी ,स्वेच्छा से आते थे।
सोचती ,दुनिया भी कितनी अज़ीब है ?जब सम्मान में खड़े रहो ,संस्कारों में बंधे ,घर- परिवार लिए जीवन खपा दो ,तब उसकी कोई कीमत नहीं। अब मैं अपनी इच्छा से खाती -पीती रहती हूँ ,मुझ पर किसी का कोई बंधन नहीं ,वो लोग मुझे छूने के लिए ,पाने के लिए तरसते हैं। बड़ी -बड़ी गाड़ियों में घूमना ,होटलों में उत्सव मनाना ,अब ये ही उसका काम रह गया था। कभी -कभी अकेली होती तो रोती ,ये आकर्षण कितने दिनों का है ?सब छल है ,कितने लोग आते हैं ,मिलते हैं लेकिन मुझसे प्यार करने कोई नहीं ,सब 'छलिया' हैं , ये जीवन भी एक छल ही तो है ,सबसे बड़ा छल तो उस भगवान ने किया है ,मुझे माँ कहने वाली एक औलाद ही दे देता तो आज मेरा भी एक घर -परिवार होता। अब मैं किसके लिए जियूँगी ,कौन मेरा सहारा बनेगा ? माँ के कहने पर ,अपने बाहरी आवरण को तो उसने बदल दिया लेकिन मन की
कोमलता को उसकी ममता को नहीं बदल पायी। जैसा जीवन भर उन्होंने [चेतना ] किया ,वैसा ही मुझे आगे बढ़ाया ,उनकी भी क्या गलती है ?अपनी बेटी का दुःख नहीं देख पा रहीं थीं ,जो पाया, वो ही तो बांटतीं। अगले दिन पवित्रा उठी ,उसकी गाड़ी तेज गति से सड़क पर दौड़ती जा रही थी ,एक जगह जाकर रुकी और फिर वापस आ गयी ,उसके चेहरे पर जैसे संतुष्टि के भाव थे। उसने कुसुम से कहा -आज हमारे घर कोई मेहमान आने वाला है तुम उसके स्वागत की तैयारी करो। कुसुम ने पूछा भी -मैडम जी ! कौन आने वाला है ?लेकिन पवित्रा उसका जबाब देने से पहले ही निकल गयी। पवित्रा ने आकर दरवाजे की घंटी बजाई , कुसुम ने दरवाजा खोला ,बाहर देखा तो पवित्रा की गोद में एक छोटा सा बच्चा देखा ,उसने सोचा शायद इसके माता -पिता गाड़ी में हों ,वो बोली -मैडम ,किसका बच्चा है ?पवित्रा ख़ुशी से बोली -पहले बच्चे की नज़र उतारो और इसी का स्वागत करो। कुसुम ने ऐसा ही किया ,लेकिन वो समझ नहीं पा रही थी ,उसके मन में अभी भी प्रश्न घूम रहे थे ,उसने फिर पूछना चाहा ,इससे पहले ही पवित्रा बोल उठी -ये मेरा बेटा है ,इसे मैंने गोद लिया है ,बहुत छल लिया ,इस जीवन ने,अब ये जीवन इसके लिए होगा ,आज उसके मन में एक अद्भुत शांति थी।
कोमलता को उसकी ममता को नहीं बदल पायी। जैसा जीवन भर उन्होंने [चेतना ] किया ,वैसा ही मुझे आगे बढ़ाया ,उनकी भी क्या गलती है ?अपनी बेटी का दुःख नहीं देख पा रहीं थीं ,जो पाया, वो ही तो बांटतीं। अगले दिन पवित्रा उठी ,उसकी गाड़ी तेज गति से सड़क पर दौड़ती जा रही थी ,एक जगह जाकर रुकी और फिर वापस आ गयी ,उसके चेहरे पर जैसे संतुष्टि के भाव थे। उसने कुसुम से कहा -आज हमारे घर कोई मेहमान आने वाला है तुम उसके स्वागत की तैयारी करो। कुसुम ने पूछा भी -मैडम जी ! कौन आने वाला है ?लेकिन पवित्रा उसका जबाब देने से पहले ही निकल गयी। पवित्रा ने आकर दरवाजे की घंटी बजाई , कुसुम ने दरवाजा खोला ,बाहर देखा तो पवित्रा की गोद में एक छोटा सा बच्चा देखा ,उसने सोचा शायद इसके माता -पिता गाड़ी में हों ,वो बोली -मैडम ,किसका बच्चा है ?पवित्रा ख़ुशी से बोली -पहले बच्चे की नज़र उतारो और इसी का स्वागत करो। कुसुम ने ऐसा ही किया ,लेकिन वो समझ नहीं पा रही थी ,उसके मन में अभी भी प्रश्न घूम रहे थे ,उसने फिर पूछना चाहा ,इससे पहले ही पवित्रा बोल उठी -ये मेरा बेटा है ,इसे मैंने गोद लिया है ,बहुत छल लिया ,इस जीवन ने,अब ये जीवन इसके लिए होगा ,आज उसके मन में एक अद्भुत शांति थी।