चेतना अपनी दुकान पर, अपनी माँ के साथ काम में हाथ बंटाती ,उनकी दुकान क्या ,'ढाबा 'सड़क पर ही था। आते -जाते लोग वहाँ रुक कर ,अपनी थकन और भूख मिटाते ,कई ट्रक भी उधर से गुजरते। अकेली माँ क्या -क्या संभालती ?बाप को तो पीकर होश ही नहीं रहता ,जवान लड़की है ,आते -जाते लोगों की निगाहें पड़ती हैं ,कई बार तो माँ का अपने पति से झगड़ा भी हुआ। बेटा अभी छोटा है ,बलविंदर को देखकर तो जो ग्राहक आते वो भी चले जाते ,कभी उनसे लड़ बैठता ,गाली गलौच करता।माँ ने सोचा -इससे तो ये यहीं पड़ा रहे ,तो ही बेहतर है ,हम दोनों माँ -बेटी सब संभाल लेंगी।अंदर ही अंदर माँ समझती थी कि लड़की के यहॉँ होने पर लोग यहाँ ज्यादा आकर ठहरते हैं, कुछ ने तो जैसे नियम ही बना लिया जब भी उधर से गुज़रते ,उसके ढाबे पर ज़रूर आते। इसी कारण चेतना की माँ सख़्ती से पेश आती कि किसी की भी ज़्यादा हिम्मत न पड़े किन्तु अंदर ही अंदर डरती थी ,कहीं किसी ने कुछ कह भी दिया तो वो औरत जात क्या कर लेगी ?अपने अंदर के डर को दबा उसने एक सख़्त और मेहनती औरत का जामा पहना था। एक ट्रक अक़्सर उधर से गुज़रता तो उसमें से बाँका नौजवान उतरता ,गबरू जवान ,जंचता भी बहुत था। इस बात को गुरिंदर समझती थी कि वो सिर्फ़ चेतना के लिए ही आता है ,यदि वो दिखाई नहीं देती तो उसकी निगाहें चेतना को ढूंढती। चेतना दिख जाती तो अपनी मूछें मरोड़ते हुए ,उसे हसरत भरी नजरों से देख मुस्कुराता। उसे देख गुरिंदर फ़टाफ़ट छोटू को भेज ,खाने के लिए पुछवाती ,जिससे उसकी नजरें चेतना को घूरना बंद करें।
माँ थी ,वो बेटी के भाव भी देखना चाहती थी कि जवान बेटी है ,कहीं उसके मन में तो कुछ नहीं किन्तु वो तो अपने काम में लगी रहती। उसके काम को उसकी को मेहनत देखकर लगता था जैसे वो अपने घर की ग़रीबी दूर करके रहेगी। कभी -कभार उसकी नज़रें , उस ट्रकवाले से टकरा भी जाती तो वो मुँह बनाकर अंदर आ जाती। गुरिंदर की तेज़ निगाहें ढाबे के चारों और घूम -घूमकर माहौल का मुआयना करती रहतीं। आज भी वो ट्रकवाला आया लेकिन आज उसके चेहरे पर अलग ही भाव थे ,उसने इधर -उधर निग़ाह डाली फिर उसने खाना खाया तभी उसे चेतना दिखी वो उस ओर बढ़ चला। वो चेतना के नज़दीक आया और बोला -तुझे पायल पसंद हैं ,देख मैं तेरे लिए ही लाया हूँ। गुरिंदर ये सब देख रही थी वो अपनी जगह से ही चिल्लाई -ऐ........ कौन है रे तू ?तेरी हिम्मत कैसे हुई मेरी बेटी की तरफ आँख उठाने की ?माँ का चिल्लाना सुन चेतना ,अंदर भाग गयी किन्तु वो वहीं खड़ा रहा ,तब तक गुर्राती हुयी गुरिंदर उसके नज़दीक पहुंच चुकी थी। मेहनत की रोटी खाते हैं ,ग़रीब ज़रूर हैं लेकिन हम भी इज्ज़त रखते हैं। वो गुरिंदर को शांत करते हुए बोला -ताई !मेरी नियत में कोई खोट नहीं ,मैं तो अच्छे परिवार से हूँ। तू मेरी बेटी को तोहफ़ा दे रहा है ,और मैं तुझे ग़लत न समझूँ ,क्या लगती है ,वो तेरी ?जो तू उसे लाकर तोहफ़े देगा। उसने फिर से उसे समझाने का प्रयत्न करते हुए ,कहा - मेरी नियत में कोई खोट नहीं ,मैं तो बस देखना चाहता था जैसे मैं उसे पसंद करता हूँ ,वैसे ही वो भी मुझे पसंद करती है या नहीं। गुरिंदर लगभग चिल्लाते हुए बोली -उसकी पसंद -नापसंद से तुझे क्या लेना ?ताई !मैं कोई ऐरा -गैरा इंसान नहीं ,मैं अच्छे खानदानी घर से हूँ ,मेरा ख़ानदानी व्यापार है। तेरी बेटी मुझे पसंद है ,इसी वास्ते मैं उसके लिए पायजेब लाया था। मैं उससे बाक़ायदा शादी करूंगा।
तेरे जैसे लड़के से मैं अपनी बेटी का विवाह करूं, गुरिंदर थोड़ा शांत होते हुए बोली। क्यों ,मुझमें क्या कमी है ?अच्छा -खासा हूँ ,कमाता हूँ ,दूर शहर में अपना मकान -दुकान सब हैं ,मैं तेरी बेटी को एक अच्छी ज़िंदगी दे सकता हूँ ,क्या इस ढ़ाबे पर काम करवाते हुए ही ,उसे बूढ़ी करना चाहती हो ? उस ट्रकवाले ने जबाब दिया। तू तो ट्रकों पर कई -कई , दिनों के लिए चला जाता है ,पता नहीं मेरी बेटी कैसे और कहाँ अकेली रहेगी ?ना ताई ना ,ये तो मेरा शौक है ,काम तो इसीलिए कर रहा था कि घूमने का घूमना हो जाये, खर्चा -पानी निकल जाये ,पैसा भी जोड़ा है मैंने। अब न जाऊंगा ,अब तो अगली बार आया तो घर ही जाऊंगा, उसने जबाब दिया। ऐसे न जाने कितनी मीठी बातें करने वाले आये और गए ,हम तो तेरा नाम भी नहीं जानते ,कहाँ का है तू ?मेरा नाम' सतपाल 'है ,उसका नाम सुनकर वो बोली -जा चल ,तू अपने काम पर जा !हमारा भी धंधे का टाइम है ,ये विवाह नहीं हो सकता। कहकर वो अपने गल्ले पर जा बैठी।'सतपाल ' उसके पीछे -पीछे चला आया ,बोला -ग़रीबी का कोई धर्म या मज़हब नहीं होता ,क्या तुम चाहोगी ?कोई राह चलता ब्याह कर ले और तुम्हारी बेटी को वो सुख न दे ,जो मैं दे सकता हूँ। मैं उससे शादी करना चाहता हूँ ,उसको ख़ुश रखूंगा। उसने एक आख़िरी कोशिश की -मैं अच्छे घर का हूँ ,तुम्हारी बेटी से प्यार करने लगा हूँ और उससे ब्याह करना चाहता हूँ ,यदि तुम्हें मुझ पर यक़ीन हो तो मैं अगली बार आऊंगा , जबाब दे देना और तेरी बेटी को मैं पसंद हूँ तो वो ये पायजेब पहन लेगी कहते हुए वो अंदर की तरफ झाँका। चेतना दरवाज़े की ओट से सब देख रही थी। जब जुबैर चला गया तो वो बाहर निकलकर आयी ,बोली -बेबे ,तूने उसे मना क्यों नहीं किया ?क्या करती ?जबरदस्ती रखकर चला गया ,दुबारा आएगा तो ले जायेगा तू अपना काम देख गुरिंदर बोली।
ढ़ाबे को बंद कर दोनों माँ -बेटी घर पहुँची ,घर अस्त -व्यस्त था। गुरिंदर बड़बड़ाती हुयी ,काम संभालने लगी -ढ़ाबे पर काम करो फिर यहाँ आकर संभालो ,इससे [अपने पति को ]तो कुछ नहीं होता ,बस दारू चाहिए ,इसके लिए भी पैसे कहाँ से आये ?स्यानी धी हो गयी ,न ब्याह की चिंता ,न काम की। उसका पति लड़खड़ाता सा आया , क्या तू आते ही बड़ -बड़ करने लगी ?तभी उसकी निग़ाह स्टूल पर रखीं पायजेब पर गयीं ,उसने उन्हें फुर्ती से उठाया ,बोला -ये कहाँ से लाई ?ये तो सोने की लग रहीं हैं ,उसके हाथ में से पायजेब लेते हुए , गुरिंदर बोली -तुम्हें कुछ होश हो तो बताऊँ भी ,ढ़ाबे पर तरह -तरह के लोग आते हैं ,जहाँ गुड़ होगा ,वहाँ मक्खियाँ तो भिनभिनायेगी ही, तुम्हें तो फुरसत नहीं कि आकर काम देख लो।बाप ढीठ की तरह दाँत दिखाते हुए बोला -ये जाती है तो दो पैसे की आमदनी हो भी जाती है तुझे देखकर तो और गाहक चला जाये। उसकी बात सुन वो बुरी तरह चिढ़ गयी ,बोली -शर्म नहीं आती ,ये फ़ालतू की सोचते हुए ,कितनी छोटी सोच है तुम्हारी ,तुम्हारा बस चले तो तुम उसे बेच खाओ ,बलविंदर उसकी बात पर ध्यान न देते हुए बोला -पहले तू ये बता ,ये पायजेब कहाँ से लाई ?था इक मरजानिया ,ब्याह वास्ते लाया ये पायजेब ,कहता तो है कि मैं अच्छे घर का हूँ ,सतपाल नाम है उसका , शौक वास्ते ट्रक में काम करता है ,वैसे खानदानी व्यापारी बता रहा था।बलविंदर बोला - चेतना चली जाएगी ,तो हमारा क्या होगा ?उसके ब्याह से हमें क्या फायदा ?हमारा तो नुकसान ही होगा। गुरिंदर ने अपने पति को घूरा फिर सोचने लगी -कह तो, ये सच ही रहा है ,अपने स्वार्थ के लिए, क्या बेटी न ब्याही जाएगी ?यहाँ बिरादरी में तो दहेज़ भी चाहिए ,ये तो मुँह से मांग रहा है ,पैसेवाला तो होगा तभी सोने की पायजेब लाया। दूसरे ही पल मन पलटा -इस तरह कब तक जिंदगी बसर करते रहेंगे ?कुछ भी तरक़्की न कर पायेंगे। मेरी ज़िंदगी तो यूँ ही हाय -तौबा में कट गयी ,बच्चों की ज़िंदगी तो बदले। कब तक इसी तरह कमियों से जूझते रहेंगे ?कोई साथ नहीं देता ,सबका अपना खाना -कमाना है ,बात बनाने वाले तो मिल जायेंगे ,मदद कोई नहीं करता ,करे भी तो कब तक ?
जब से सतपाल उससे बात करके गया ,गुरिंदर का मन सपने सजाने लगा। इस ग़रीबी से निज़ाद पाने के लिए ,कम से कम बेटी के दिन तो सुधरें ,हमारी भी देखी जाएगी ,बेटा बड़ा होकर सब संभाल लेगा ,बेटी की तरफ देखते हुए इसकी चिंता तो न रहेगी। पति के बारे में सोचते हुए -पता नहीं ,इसके मन में क्या है ?चेतना !यहाँ आ ,गुरिंदर ने बुलाया वो पास आयी तो उससे बोली -क्या तुझे वो ट्रकवाला पसंद है ?बहुत दूर है उसका शहर ,क्या तू रह लेगी ?वो झूठा है कि सच्चा ये पता नहीं , उसकी लायी पायजेब पहनेगी। चेतना खड़ी चुपचाप सोचती रही ,गुरिंदर बोली -क्या तुझे कोई और पसंद है तो बता दियो ?नहीं बेबे , मैं कैसे चली जाऊँगी ,यहाँ तेरा क्या होगा ?भाई तो अभी छोटा है। तू मेरी फिक्र न कर ,तू अपनी सोच ,अच्छी जगह हुई तो तेरा जीवन सुधर जायेगा ,वरना यहीं अच्छी -बुरी नजरों के बीच रहकर अपनी जिंदगी काटना। ये ही ब्याह के लिए आया
औरों कि तो नज़र में खोट ही दीखता है ,वो चुप खड़ी अपनी माँ की बात सुनती रही। अगली बार जब 'सतपाल 'आया तो चेतना ही उससे मिली ,बोली -कुछ दिन इंतजार कर लें ,मेरी माँ अकेली है ,तुम अच्छे हो सकते हो लेकिन ग़रीबी का फ़ायदा उठाने वाले भी बहुत आते हैं ,दूसरों की भावनाओं से खेल जाते हैं ,वैसे मैंने बाहरवीं की है ,मैं तो अपने पैरों पर खड़ी होना चाहती हूँ जिससे घर की परेशानियाँ दूर कर सकूं। सतपाल बोला -जैसा तुम चाहती हो , वैसा ही होगा। मेरी तरफ से कोई पाबंदी नहीं , ब्याह के बाद ,वहाँ रहकर भी तुम अपने घरवालों की मदद कर सकती हो। मुझे समय चाहिए ,तब तक मैं तुम्हारी धरोहर के रूप में रहूँगी।
औरों कि तो नज़र में खोट ही दीखता है ,वो चुप खड़ी अपनी माँ की बात सुनती रही। अगली बार जब 'सतपाल 'आया तो चेतना ही उससे मिली ,बोली -कुछ दिन इंतजार कर लें ,मेरी माँ अकेली है ,तुम अच्छे हो सकते हो लेकिन ग़रीबी का फ़ायदा उठाने वाले भी बहुत आते हैं ,दूसरों की भावनाओं से खेल जाते हैं ,वैसे मैंने बाहरवीं की है ,मैं तो अपने पैरों पर खड़ी होना चाहती हूँ जिससे घर की परेशानियाँ दूर कर सकूं। सतपाल बोला -जैसा तुम चाहती हो , वैसा ही होगा। मेरी तरफ से कोई पाबंदी नहीं , ब्याह के बाद ,वहाँ रहकर भी तुम अपने घरवालों की मदद कर सकती हो। मुझे समय चाहिए ,तब तक मैं तुम्हारी धरोहर के रूप में रहूँगी।