सतपाल ,चेतना की हाँ के इंतजार में ,कभी -कभी उससे मिलने आ जाता ,वो अपने घर -परिवार की उससे बातें करता। छः माह हो गए ,कुछ नहीं बदला ,तब माँ ने कहा -तू इससे विवाह करके चली जा ,लड़का ठीक लगता है ,आस -पड़ोस के लोग भी चर्चा करने लगे हैं ,कल अंतो ताई पूछ रही थी ,-कौन आता है तेरे यहाँ ?ऐसे स्यानी और कुँवारी लड़की को छूट देना ठीक नहीं।मैंने तो कह दिया इसके ब्याह वास्ते आया है इसके पापा ने इसके साथ ही ब्याह कर देना है। तब ताई बोली -तो फिर ब्याह कर दो ,ऐसे अच्छा नहीं लगता ,कभी मुँह पर कालिख़ पोत कर भाग जाये। मैंने भी कह दिया -इस महीने के खत्म होने से पहले ही ब्याह कर देंगे। क्या बेबे !किसी के कुछ भी कह देने से क्या होता है ? अभी और रुक जाते। गुरिंदर बोली -रूककर करना भी क्या है ?कुछ नया नहीं होने वाला ,तू ब्याह करके अपने घर जा, कम से कम एक सिरदर्दी तो दूर होगी। क्या मैं सिरदर्दी हूँ कहकर चेतना पैर पटकती हुई चली गयी। अबकी बार सतपाल आया तो गुरिंदर ने चेतना का विवाह कर दिया। वो अपने शहर से दूर किसी अनजान राज्य में पहुंच गयी
थी। उस शहर की रौनक देखते ही बनती थी जिस जगह को वो अपना शहर समझती थी अब उसे शहर और कस्बे का अंतर् नज़र आ रहा था। वो आँखें फाड़े ऊँची -ऊँची इमारतें देख रही थी। सतपाल उसे अपने घर ले गया ,उसे देखते ही सबकी निगाहें दोनों पर जा टिकीं। दादी ने प्रश्न किया -इसे कहाँ से उठा लाया ?सतपाल ने जब बताया कि उसने चेतना से ब्याह कर लिया है तो घर में कोहराम मच गया। किसी ने भी उसे नहीं स्वीकारा ,माँ ने तो तुरंत ही आदेश दिया -इसे जहाँ से उठाकर लाया है ,वहीं छोड़कर आ। सतपाल को भी अपने परिवार से ऐसे व्यवहार की उम्मीद नहीं थी ,उसे तो लगा था कि चेतना को देखकर सब खुश हो जायेंगे।
थी। उस शहर की रौनक देखते ही बनती थी जिस जगह को वो अपना शहर समझती थी अब उसे शहर और कस्बे का अंतर् नज़र आ रहा था। वो आँखें फाड़े ऊँची -ऊँची इमारतें देख रही थी। सतपाल उसे अपने घर ले गया ,उसे देखते ही सबकी निगाहें दोनों पर जा टिकीं। दादी ने प्रश्न किया -इसे कहाँ से उठा लाया ?सतपाल ने जब बताया कि उसने चेतना से ब्याह कर लिया है तो घर में कोहराम मच गया। किसी ने भी उसे नहीं स्वीकारा ,माँ ने तो तुरंत ही आदेश दिया -इसे जहाँ से उठाकर लाया है ,वहीं छोड़कर आ। सतपाल को भी अपने परिवार से ऐसे व्यवहार की उम्मीद नहीं थी ,उसे तो लगा था कि चेतना को देखकर सब खुश हो जायेंगे।
चेतना भी जिस विश्वास के साथ उसके साथ चली आयी ,उसका वो विश्वास तो टूट गया ,उसके सामने अब प्रश्न था कि क्या करे ,कहाँ जाये ?सतपाल ने उसे विश्वास दिलाया कि अभी परिवार को धक्का सा लगा है ,कुछ दिनों बाद सब ठीक हो जायेगा। तब तक के लिए उसने उसे एक मकान किराये पर लेकर दे दिया। इस विश्वास के साथ कि कुछ समय बाद सब उसे स्वीकार कर लेंगे। सतपाल ने घरवालों को विश्वास दिलाया कि वो उसे वापस छोड़ आया किन्तु वो अपनी पत्नी चेतना के पास आता -जाता रहता। चेतना ने कई बार कहा -मुझे अपने घर कब ले जाओगे ?इस तरह एक साल बीत गया ,सतपाल ने एक छोटा सा घर चेतना के नाम से ले लिया ,अब वो अपनी ससुराल जाने के लिए भी जिद नहीं करती। इन्हीं दिनों में उसके एक बेटी और बेटे ने भी जन्म ले लिया ,उसका परिवार पूरा हो गया था। बच्चे अभी छोटे थे संभाल भी नहीं पा रही थी ,उधर उसके पिता चल बसे ,माँ और भाई अकेले थे ,काम भी ठीक से नहीं चल रहा था ,तब उसने अपने भाई और माँ को अपने पास ही बुला लिया। भाई के लिए काम ढूंढा और खर्चों की पूर्ति के लिए स्वयं भी काम करने लगी। बच्चों को माँ संभालती ,सतपाल का आना अब धीरे -धीरे कम होने लगा ,जब वो पूछती, तो काम का बहाना बना देता। समय पर उसके खर्चे के पैसे दे जाता या किसी के हाथ भिजवा देता। आज भी एक आदमी पैसे लेकर आया था ,चेतना ने उससे पूछा - ऐसा कौन सा काम है ?जो तुम्हारे मालिक को फुरसत नहीं मिलती ,पहले तो उसने आना -कानी की ,चेतना समझ गयी थी कि वो जरूर कुछ जानता है। उसने उससे बार -बार पूछा तो उसने बताया -मालिक का तो उनके घरवालों ने दूसरा विवाह करवा दिया।
जिस बात का चेतना को डर था ,वो अंदर ही अंदर उस डर से जूझ थी ,आज वो डर उसके सामने आ खड़ा हुआ। चेतना ने उसे हाथ के इशारे से जाने के लिए कह दिया। वो सोच रही थी कि सतपाल के प्यार के भरोसे से ही तो वो इस अज़नबी शहर में आयी थी, उसे वो शहर फिर से अज़नबी नज़र आने लगा ,उसकी ज़िंदगी उसे बिखरी हुई नज़र आने लगी। वो पास ही पड़े सोफ़े पर बैठ गयी ,उसकी आँखों से अश्रुधारा बह निकली। वो अपने बिखरे हुए अस्तित्व को समेटने का प्रयत्न कर रही थी ,तभी बेटा दौड़ता हुआ आया ,बोला -मम्मी !पापा आये हैं ,वो उसी तरह बैठी रही ,वो समझ गयी थी कि उस व्यक्ति ने जाकर बताया होगा ,इसीलिये सफाई पेश करने के लिए आये होंगे। चेतना ने अपने बेटे से कहा -जाओ बाहर जाकर खेलो !सतपाल उसके समीप आकर बैठ गया ,दोनों के बीच एक बड़ा सा शून्य स्थापित हो गया ,ऐसा लग रहा था जैसे कहने सुनने को कुछ रह ही नहीं गया। उसे आज सतपाल अज़नबी नज़र आ रहा था। चुप्पी तोड़ते हुए ,सतपाल बोला -घरवाले , माने ही नहीं ,मैं समझता था कि उन्हें मना लूँगा। मन में तो आ रहा था कि वो जोर -जोर से चीखें और उसका कॉलर पकड़कर पूछे -यदि वे मुझे स्वीकार नहीं कर रहे थे तो न करते लेकिन तुम्हें दूसरा विवाह करने की क्या आवश्यकता थी ?मेरी तो छोडो ,अब इन बच्चों का क्या होगा ?सतपाल कहे जा रहा था -मैं तुम्हें ख़र्चा भेजता रहूंगा ,बच्चों को भी किसी तरह की कोई परेशानी नहीं होगी। मकान भी तुम्हारे ही नाम है और कोई परेशानी हो तो बता देना। उसकी आँखों के सामने उसका घर उजड़ रहा था और वो पूछ रहा है कि और' कोई परेशानी हो तो बता देना 'वो उसके चेहरे को देखे जा रही थी कि इसी मुँह से, इसने साथ निभाने का वायदा किया था और अब पूछ रहा है कि कोई परेशानी हो तो बता देना उस वाक्य को मन ही मन दोहराती हुई बोली -मुझे क्या परेशानी हो सकती है ?
तुमने घर दे दिया घर का खर्चा भी भिजवाते रहोगे। और क्या परेशानी हो सकती है ?मेरा पति मेरा नहीं रहा ,मेरे बच्चों का बाप कहीं और घर बसाकर रहेगा ,मुझे कोई परेशानी नहीं। मेरा पति मुझसे मिलने के लिए छुपता -छुपाता आएगा ,किसी और महिला को भी धोखा देगा ,उसके विश्वास के साथ खेलेगा ,जैसे मेरे विश्वास को धोखा दिया। मेरी दुनिया उजड़ गयी और मुझसे पूछते हो कि कोई परेशानी तो नहीं। मेरा पति किसी गैर की बाँहों में था ,अपनी रातें रंगीन कर रहा था और मैं यहाँ उसकी परेशानी समझते हुए उस पर किसी बात का दबाब नहीं बना रही थी कि वो अपने कारोबार में दिन -रात हमारे लिए मेहनत कर रहा है। वो तो हमारा ही नहीं रहा ,वो बोले जा रही थी ,रोये जा रही थी। चेतना की माँ छत पर थी ,दामाद के आने की ख़बर सुनकर नीचे आ गयी। गुरिंदर को देखकर सतपाल वहाँ से चल दिया ,उसे जाते देख गुरिंदर बोली -कहाँ जा रहे हो ?बच्चे तो बड़े खुश हो रहे हैं। अभी चलता हूँ ,फिर आऊँगा कहकर वो निकल गया। गुरिंदर चेतना के पास आयी ,उसे रोते देखकर ,गुरिंदर ने पूछा -क्या हुआ ?तू क्यों रो रही है ?चेतना रोते हुए बोली -घर मेरे नाम कर दिया ,जो रातें मेरे संग बितायीं ,उनकी कीमत अदा कर गया।
तुमने घर दे दिया घर का खर्चा भी भिजवाते रहोगे। और क्या परेशानी हो सकती है ?मेरा पति मेरा नहीं रहा ,मेरे बच्चों का बाप कहीं और घर बसाकर रहेगा ,मुझे कोई परेशानी नहीं। मेरा पति मुझसे मिलने के लिए छुपता -छुपाता आएगा ,किसी और महिला को भी धोखा देगा ,उसके विश्वास के साथ खेलेगा ,जैसे मेरे विश्वास को धोखा दिया। मेरी दुनिया उजड़ गयी और मुझसे पूछते हो कि कोई परेशानी तो नहीं। मेरा पति किसी गैर की बाँहों में था ,अपनी रातें रंगीन कर रहा था और मैं यहाँ उसकी परेशानी समझते हुए उस पर किसी बात का दबाब नहीं बना रही थी कि वो अपने कारोबार में दिन -रात हमारे लिए मेहनत कर रहा है। वो तो हमारा ही नहीं रहा ,वो बोले जा रही थी ,रोये जा रही थी। चेतना की माँ छत पर थी ,दामाद के आने की ख़बर सुनकर नीचे आ गयी। गुरिंदर को देखकर सतपाल वहाँ से चल दिया ,उसे जाते देख गुरिंदर बोली -कहाँ जा रहे हो ?बच्चे तो बड़े खुश हो रहे हैं। अभी चलता हूँ ,फिर आऊँगा कहकर वो निकल गया। गुरिंदर चेतना के पास आयी ,उसे रोते देखकर ,गुरिंदर ने पूछा -क्या हुआ ?तू क्यों रो रही है ?चेतना रोते हुए बोली -घर मेरे नाम कर दिया ,जो रातें मेरे संग बितायीं ,उनकी कीमत अदा कर गया।
माँ अनजाने डर से बोली -ये तू क्या कह रही है ?हाँ ,माँ उसने दूसरा विवाह कर लिया। बच्चों का खर्चा भिजवा दिया करेगा। कभी -कभी आ जाया करेगा ,ये देखने हम जिन्दा हैं ,उसके घरवाले नहीं मान रहे थे तो विवाह कर लिया। गुरिंदर गुस्से से बोली -तो न करता विवाह ,कह देता- मैं बिन विवाह के ही रह लूँगा ,ये मर्द जात होती ही ऐसी है ,कहाँ तू दो बच्चों माँ ,वहाँ घरवालों ने कोई नई लड़की दिखाई होगी तो लार टपकने लगी होगी। कहाँ जायेंगे ये बच्चे ?तू अकेले कैसे ज़िंदगी बसर करेगी ?इस वास्ते तुझे ब्याहकर लाया था ,तभी मुझे देखकर भाग गया। मेरे सामने रहता तो पूछती ,घरवाले नहीं माने तूने तो उसे पत्नी माना था। मैं मान ही नहीं सकती ,जरूर उसकी नियत में ही खोट आ गया। उधर सतपाल के घर में उसकी पत्नी धीरे -धीरे सब चीजों पर अधिकार जताने लगी। आमदनी का हिसाब भी लेने लगी ,उसे कुछ संदेह हुआ और उसने पता भी लगाया कि ये हर महिने पैसे कहाँ भेजता है ?पता चलते ही उसने घर में महाभारत कर दी। उसकी महाभारत का ये असर हुआ ,-वो कभी -कभार बच्चों से मिलने आ जाता था ,चेतना ने भी यह सोचकर सब्र कर लिया था कि मेरी नहीं तो अपने बच्चों की चिंता तो है उसे। लेकिन सतपाल की दूसरी बीवी ने तो उसका आना -जाना बिल्कुल बंद करा दिया और चेतना के पास गुंडे भेजकर धमकी भी दी कि अब से यदि उससे मिली तो उससे बुरा कोई न होगा। वो दिन भर मेहनत करती ,माँ बच्चों को संभालती ,भाई को भी किसी काम में लगाया। अब उसे सतपाल से कोई उम्मीद नहीं रही ,धीरे -धीरे वो उसको भुलाने का प्रयत्न करने लगी। माँ ने सुझाव दिया -जब वो तुझे भूलकर आगे बढ़ सकता है तो तू भी आगे बढ़। अभी उम्र ही क्या है ?पच्चीसवें वर्ष में ही तो लगी है ,तू भी कोई ठीक सा लड़का देखकर ब्याह कर ले। माँ की बात मान उसने अपने साथ काम कर रहे, एक व्यक्ति से विवाह कर लिया। कुछ दिनों तक तो सब ठीक रहा ,जब लग रहा था कि ज़िंदगी अब सम्भल रही है, कुछ बिखरी चीजें समेटी जाने लगीं तभी उसे एक झटका और लगा, उसके पति प्रदीप ने नोेकरी छोड़ दी। ज़िंदगी इतनी आसान भी नहीं जितना वो समझ बैठी थी ,कुछ लोगो की ज़िंदगी में समय -समय पर परीक्षाएँ चलती रहती हैं। चेतना को अभी और इम्तहानों से गुजरना था। उसने अपने पति को सांत्वना दी ,वो उसकी हिम्मत बनना चाहती थी ,बोली -कोई बात नहीं, मैं अभी कमा रही हूँ ,तुम इतने कोई नया काम देख लेना। प्रदीप सारा दिन घर में पड़ा रहता ,घर के कामों में भी उसकी मदद नहीं करता। उसने एक दिन कह ही दिया -जब तक तुम्हें कोई अच्छी नौकरी नहीं मिल जाती ,कम से कम घर के कामों में तो मदद कर ही सकते हो। नौकरी भी घर बैठे नहीं मिलती ,उसके लिए बाहर जाओ, दो -चार जगह लोगों से कहो ,अब तुम्हें घर में पड़े -पड़े चार साल हो गए। एक दिन चेतना को एक महिला मिली ,दोनों में बातचीत हुयी तो उसे पता चला, कि वो प्रदीप की पहली पत्नी है। किसी लड़की के चक्कर में उसे छोड़ आया था ,तब भी कोई काम नहीं करता था ,उस लड़की को दिखाने अथवा पटाने के लिए ही उसने कुछ दिनों नौकरी करने का नाटक किया। जब उसकी पत्नी को चेतना के बारे में पता चला तो उसने चेतना को सब बता दिया। चेतना इस धोखे से फिर से आहत हुई ,उसने प्रदीप की पत्नी को आश्वासन दिया कि तेरा पति तेरे ही पास आ जायेगा ,बस थोड़ा इंतजार करना। चेतना को लग रहा था जैसे दुनिया में धोखा ही धोखा है ,उसे फिर से छला गया था। उसके प्यार ,विश्वास का लोग कितना गलत अर्थ निकाल लेते है? उसे सारा संसार ही छलिया नज़र आ रहा था ,क्या इस संसार में कोई ऐसा व्यक्ति है ?जो उसके अंदर के मर्म को समझ सके ,वो कब तक इस संसार के लोगों द्वारा छली जाती रहेगी ?
उसने घर आकर प्रदीप से कुछ नहीं कहा ,बस पूछा -क्या तुम्हें नौकरी नहीं मिली ?उसने' ना ' में जबाब दिया। उसे रह -रहकर उसका धोखा नज़र आ रहा था और वो तुलना कर रही थी कि मुझमें और सतपाल की दूसरी पत्नी में क्या अंतर रह गया ?मेरे घर टूटने का कारण वो थी ,अनजाने ही मैंने भी किसी का घर तोड़ दिया। कब तक इस तरह हम मर्दों द्वारा छली जाती रहेंगी ?यही सोचकर उसने प्रदीप से कहा कि इतने वर्षों से तुम्हें नौकरी नहीं मिली तो अब क्या मिलेगी ?मैं अकेली कब तक सबके लिए मेहनत करती रहूँगी ?कब तक बैठाकर खिलाती रहूँगी ? कुछ गुस्सा तो उसे उसके झूठ पर था ,उसके मन में न जाने कितनी बातें चलती रहतीं ?एक दिन उसने कहा -या तो सात -आठ दिन में नौकरी ढूंढ़ लो वरना अपना ठिकाना ढूँढ लो। जब मुझे ही कमाना है ,खाना है, तो तुम्हारी क्या आवश्यकता ?पति का काम होता है कमाने का और मैं तुम्हारा और अपना दोनों काम कर रही हूँ ,प्रदीप ने सोचा-अभी ये गुस्से में है ,बाद में शांत हो जाएगी लेकिन कुछ दिन इंतजार करने के बाद चेतना ने प्रदीप को बाहर का रास्ता दिखा दिया।