Bhoot

दोनों सागर किनारे देर तक बैठे हुए , देर तक, डूबते सूरज को देखते रहते ,फिर वहाँ से उठकर किसी बग़ीचे की हसीन वादियों में खो जाते। हाथ में हाथ डाले, देर तक यूँ ही सड़कों पर टहलते रहते ,कभी कुल्फ़ी की ठंडक का मज़ा लेते , रोकने -टोकने वाला कोई नहीं था। इस शहर में कोई भी उसका जानने वाला न  था ,उसके लिए तो ये शहर नया था। मालिनी तो पढ़ने के उद्देश्य से ही यहाँ आयी, उसने एक फ्लैट किराये पर लिया था। फ्लेेट बहुत महंगा था, नई जगह थी ,किसी भी तरह की कोई जानकारी नहीं थी।

जब  वो कॉलिज गयी तो उसे पता चला, यदि हमें किराया कम कराना है तो अपने  फ्लैट में से और लड़कियों को भी हिस्सेदारी दी जा सकती है ,इस तरह उस फ्लैट तीन -चार लड़कियाँ हो गयीं। एक -दूसरे का सहयोग भी रहेगा ,एक से दो भले ,यही सोचकर उसने अपने फ्लैट में उन्हें बुला लिया। ये शहर तो ऐसा है ,यहाँ तो कोई किसी को पूछे भी नहीं ,देखकर निकल जाते हैं। चिराग़ से उसकी मुलाक़ात पहली बार 'लिफ़्ट 'में हुई थी ,वो भी जल्दी में जा रही थी। देखकर, बड़ा ही सभ्य  और संस्कारी लग रहा था ,देखकर मुस्कुराया ,वो भी प्रतिउत्तर में मुस्कुरा दी, दोनों ' लिफ़्ट 'से बाहर आये। बस इसी तरह दोनों का एक -दूसरे से दो -तीन बार सामना हुआ। एक दिन वो  पैदल ही चली जा रही थी ,उसकी स्कूटी भी खराब हो गयी थी ,वो किसी रिक्शे की तलाश में तेजी से बढ़ी जा रही थी ,तभी पीछे से किसी ने कहा -में आई  हैल्प यू ', उसने पीछे मुड़कर देखा तो चिराग़ अपनी मोटरसाइकिल पर था। उसने मुस्कुराकर कहा -नो थैंक्स ,कहकर वो आगे बढ़ती रही। चिराग़ अब भी उसके पीछे था। आप किधर जा रहीं हैं ?''कॉलिज'' उसने छोटा सा जबाब दिया। आपका  कॉलिज किधर है ?मालिनी ने पूछा -क्यों ?नहीं ,मैं तो बस इसीलिए पूछ रहा था कि मैं आपकी मदद  सकूँ, चिराग़ ने बड़ी ही शालीनता से जबाब दिया -हम पड़ोसी हैं ,अनजान नहीं ,मैं आपको लेकर कहीं भागने वाला नहीं ,कहकर वो हँस दिया। मालिनी की भी हंसी छूट गयी। उसने मन ही मन सोचा ,इसे जानती तो हूँ ही ,अपने पर विश्वास होना चाहिए फिर अपने आप ही तो मदद के लिए आया है ,मैंने तो इससे कोई मदद माँगी नहीं ,कुछ उल्टी -सीधी हरक़त करेगा तो मैं भी इसे दिखा दूँगी कि किससे पाला पड़ा है ?यही सोचकर ,वो उसकी मोटरसाइकिल पर बैठ गयी। उसके बैठते ही मोटरसाइकिल हवा से बातें करने लगी। कुछ देर तक तो वो चुप रहा फिर बोला -मैं तो रोज़ाना ही इधर से गुजरता हूँ क्योंकि मेरा ऑफिस इधर ही पड़ता है। आप चाहें तो मैं प्रतिदिन आपको छोड़ सकता हूँ। मालिनी बोली -नहीं ,मेरी स्कूटी आज ख़राब हो गयी, कल ठीक हो जाएगी। कॉलिज के नज़दीक आने पर उसने कहा -यहीं उतार दीजिये। वो बोला -गेट के पास उतार  देता हूँ। नहीं ,यहीं उतार दीजिये, किसी ने देख लिया तो पता नहीं ,क्या सोचे कहकर मालिनी उतर गयी। 
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            इस बात के बाद से तो वो जैसे इंतजार में ही रहता कि कब सामने आये ?ये बात मालिनी ने अपने साथ रह रही लड़कियों को भी बताई तो सुनकर सभी हँस पड़ीं। रचना बोली -मुझे तो लगता है ,वो तुम पर मरने लगा है,हमें तो  कभी नहीं लिफ़्ट दी ,हमारे नज़दीक से तो कई बार गया। अभी चिराग़ की बातें ही चल रही थीं ,तभी किसी ने दरवाज़ा खटखटाया। सुचित्रा बोली -कहीं वो 'साहिबे आलम ' ही तो नहीं ,कहकर तीनों हँस दीं। दरवाज़ा खोलने पर चिराग ही खड़ा नज़र आया ,बोला -आज दूध फट गया ,क्या एक कप चाय के लिए दूध मिलेगा ?दूध क्या ,चाय ही बनी बनाई मिल जाएगी ,हम भी पीने वाले थे ,मुस्कुराती हुई रचना बोली -यहीं पियेंगे या पहुँचा दें। रचना के दरवाज़े से हटते ही वो अंदर आते हुए ,बोला -नहीं दूध ही मिल जाता ,तो मैं अपने आप ही चाय बना लेता। तभी मालिनी चाय लेकर उपस्थित हुयी ,बोली - लीजिये ,अब तो चाय बन ही गयी ,हम भी पियेंगे ,कहकर उसने उसके हाथ में एक प्याली थमा दी ,साथ में कुछ बिस्किट भी। चिराग ने चाय पीते हुए ,उन लड़कियों से  परिचय पूछा और धन्यवाद देकर चला गया। उसके जाते ही सारी  लड़कियाँ खिलखिलाकर हँस पड़ीं ,बोलीं -ये जरूर मालिनी के चक्कर में ही आया है ,दूध फट गया ,रचना इठलाकर बोली -तो क्या ,बाज़ार में भी दूध ख़त्म हो गया ?बाहर से तो मालिनी गुस्सा दिखा रही थी लेकिन मन  ही मन  खुश थी। उसे यही सोचकर मन ही मन गुदगुदी हो रही थी कि कोई उसे भी पसंद कर सकता है।अब किसी न किसी बहाने वो मिल ही जाते ,फिर भी मालिनी बचती रहती। छोटे शहर की लड़की थी ,इन बातों से डरती थी कि कहीं कोई देख न ले ,उसके संस्कार उसे रोकते थे।

 
            धीरे -धीरे उसे एहसास होने लगा ,इस शहर में ऐसी कोई बन्दिशें नहीं हैं फिर भी अपने मम्मी -पापा और अपने सपनों का मान था। सहेलियों की चुहलबाज़ी ने ,कुछ चिराग के एहसास ने, उसे अपनी और आकर्षित करने पर मज़बूर कर  दिया ,उनकी मुलाकातें भी बढ़ने लगीं। ज़िंदगी बहुत ही खूबसूरत नजर आ रही थी ,ऐसे लगता, जैसे सब कुछ बहुत ही आसान और सरल है, कुछ भी असम्भव नहीं। जैसे ज़िंदगी में सब होता जा रहा था ,वहाँ की आज़ादी ने भी उसे सपने देखने में कोई रोक नहीं लगाई। अब वे घंटों बगीचे में टहलते ,कभी बच्चों की तरह पकड़म -पकड़ाई खेलते ,खेल बच्चों के थे लेकिन बहुत ही मज़ा आता ,कुछ पल के लिए बच्चे बन जाते ,थक जाते तो बैठ जाते, चिराग उसकी गोद में सिर रखकर लेट जाता और वो गुनगुनाती रहती ,बैठे -बैठे घर की तरफ चल देते ,घर जाते समय हाथों में हाथ डाले ,खाते -पीते  चलते चले जाते। मालिनी की पढ़ाई पूरी होने वाली थी ,तब उसने चिराग़ से कहा ,कि मेरे घर जाये और मेरे मम्मी -पापा से मेरा हाथ माँग ले। उसने कई बार कहा ,वो तो जैसे बर्फ़ हो गया ,बार -बार कहने पर उसने बताया कि उसका रिश्ता उसके घरवालों ने कहीं दूसरी  जगह तय कर दिया। मालिनी का सपना तो बिखरकर चकनाचूर हो गया। ज़िंदगी उसे जितनी हसीन और खूबसूरत नज़र आ रही  थी , अब उतनी ही धुंधली और उदास नजर आ रही थी। कुछ दिन पहले उसे लग रहा था कि जिंदगी की रंगीनियों को वो लपककर छू लेगी लेकिन दूसरे ही पल ज़िंदगी अजनबी प्रतीत हो रही थी। 
             मालिनी निराश ,हताश अपने घर पहुँची ,उसने घर में किसी को  कुछ नहीं बताया ,रह -रहकर उसका मन बार -बार उससे पूछ रहा था -'उसने ,मेरे बारे में अपने मम्मी -पापा से क्यों नहीं कहा ?वो तो मुझसे प्यार करता है ,मुझसे ही विवाह करेगा।  फिर किसी और से विवाह के लिए कैसे तैयार हो सकता है ?या जो मेरी सहेलियां कहती थीं ,वो बात सही है -वो हँसकर कह देती थीं ,उसने तुझे  ही बेवकूफ समझा इसीलिए तुझ पर ही डोरे डाले ,तब मैं सोचती थी कि वो मुझसे जल रही हैं ,उन्हें मुझसे ईर्ष्या हो रही है कि इतना सजीला नौजवान ,मुझे पसंद करने लगा। मैं  तो कभी उसके  पीछे नहीं गयी ,क्या उसने मेरे प्यार का ये सिला दिया ?उसके घर में भी उसके लिए लड़का देख रहे थे ,उसने बुझे मन से सब स्वीकार किया ,किसी से कहे भी तो क्या ?जिससे  विवाह तय किया गया वो स्वभाव से चुलबुला ,खुशमिज़ाज और बेहद फुर्तीला नौजवान था ,संयोग की बात तो ये रही कि उसका नाम दीपक है। दीपक का उसके साथ दोस्ताना स्वभाव था ,वो उसे हर सम्भव खुश रखने का प्रयास करता लेकिन देर -सवेर चिराग़ उसकी यादों में ही जाता। माँ ने महसूस किया - बिटिया की सगाई भी हो गयी ,लड़का भी अच्छा है फिर भी बेटी खुश नज़र नहीं आ रही। माँ ने बड़े प्यार से पूछा -बेटा, अब तुम नई ज़िंदगी में प्रवेश करोगी और इस नई ज़िंदगी का ख़ुशी -ख़ुशी स्वागत करो ,अपने  जीवन की जो भी परेशानियाँ हैं  उन सबको यहीं छोड़ जाना ,मन में कोई गाँठ हो तो यहीं खोल देना ,वरना वो जिंदगी भर चुभती रहेगी। माँ ने इतने प्यार और अपनेपन से कहा ,तो मालिनी रो दी और उसने रोते -रोते अपनी परेशानी माँ को बता दी।  

              मालिनी की बातें सुनकर ,माँ थोड़ी देर चुप रही फिर बोलीं -वास्तव में ही उसने तुम्हें मूर्ख बनाया ,यदि उसे विवाह करना होता तो वो यहाँ आता ,हमसे बात करता ,यदि रिश्ता तय भी हो गया तो उन लोगों को समझा सकता था।  हमें वो पसंद आता तो हम भी सहयोग करते ,क्या मालूम ,उसका विवाह तय हुआ भी है कि नहीं या तुमसे ऐसे ही झूठ बोल दिया हो। तभी मालिनी बोली -ये बात तो मैंने सोची ही नहीं ,न ही मष्तिष्क में आई। तभी उसकी इच्छा हुई ,एक बार उससे मिलूं और उससे पूछूं, कि क्या सही है ?माँ से इजाज़त लेकर वो फिर से वहीं पहुंची ,उसका फ्लैट खाली था ,उसने आस -पास सबसे पूछा ,उसकी कुछ ख़बर नहीं थी। वो बेबस सी घर वापस लोेट आयी। माँ ने कहा -जीवन में गलतियाँ हो जाती हैं ,हम धोखा खा जाते हैं और उस धोखे से हमें टूटना नहीं सीख़ लेना है। इसका मतलब ये नहीं कि गलतियों को दोहराया जाये। तुम दोनों की बातों में दीपक की कोई गलती नहीं। दीपक ,चिराग दो नामों के अर्थ एक हो सकते हैं किन्तु दोनों का अपना -अपना व्यक्तित्व है ,तुम दोनों की तुलना एक -दूसरे से मत करो।  दीपक जीवन को जिंदादिली से जीना चाहता है ,उसका मन क्यों मैला करना ?जो गलतियाँ  तुमसे हुईं ,वो अब तुम्हारा भूतकाल बन गया है उस भूत  को अपनी नई ज़िंदगी में लाने का कोई अर्थ नहीं। मन में थोड़ा भी वहम आ जाये तो ज़िंदगी नर्क बन सकती है। चिराग़ तुम्हारा भूत था और दीपक वर्तमान। भूत कभी लौटकर नहीं आता ,वर्तमान हमेशा चलता रहता है ,भूत से जुड़ोगी तो डरोगी ही। भूत कभी वर्तमान नहीं बन सकता। उसे अब तुम पीछे छोड़ आयीं उससे अब कोई मतलब नहीं। माँ की बातों ने मालिनी पर असर किया ,अब वो खुले दिल से अपने आने वाले भविष्य के स्वागत के लिए तैयार थी ,अपने भूत से पीछा जो छुड़ा चुकी थी। 



















laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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