apna adhikar

माँ !मैं अब अपनी ससुराल नहीं जाऊँगी ,उनका तो पहले से ही किसी लड़की के साथ संबंध है। शालिनी थोड़ी देर के लिए सिर पकड़कर ,धम्म से सोफे पर बैठ गयी। सोच रही थी -एक -एक पैसा जोड़कर ,बेटी के ख़ुशहाल जीवन के लिए ,इतने दिनों से लड़का ढूँढ रहे थे। खूब जाँच -पड़ताल भी की ,फिर भी कुछ पता नहीं चला। अच्छी शादी की ,कहीं कुछ कमी न रहे ,बेटी को दिया भी बहुत। रूपा ने माँ को झिंझोड़ा ,पूछा -क्या ये सब पहले पता नहीं किया ,बस देखा, लड़का अच्छा कमाता है ,घर परिवार ठीक है ,बस विवाह कर दिया। शालिनी बोली -उसके माता -पिता को बताना चाहिए था ,उन्होंने भी हमें धोखा दिया। नहीं मम्मी ,मोहित के मम्मी -पापा को तो कुछ भी नहीं मालूम, रूपा बोली। शालिनी ने आश्चर्य से रूपा की तरफ देखा ,हाँ मम्मी ,वे लोग तो कुछ भी नहीं जानते रूपा ने बताया। शालिनी ने रूपा से पूछा -तुम्हें कैसे पता चला ?

मोहित ने ही बताया। शालिनी अपने को समझाती सी बोलीं -वो तुझसे ऐसे ही मज़ाक कर रहा होगा ,उसने विवाह के बाद ही क्यों बताया ?पहले भी तो बता सकता था। नहीं ,मम्मी ये मज़ाक नहीं ,ये सच है ,मैंने भी कहा था ,तो बोला -मम्मी -पापा ने ये सब इतनी जल्दी कर दिया किसी को बताने, कहने -सुनने का मौका ही नहीं मिला। मैंने तो यहाँ तक कहा -जब तुम मुझे देखने ,अंगूठी पहनाने आये थे ,इशारा भी कर देते तो हम ही मना कर देते ,इस तरह तो मेरी ज़िंदगी बर्बाद तो न होती ,रूपा एक ही साँस में बोल गयी। 
              शालिनी सोच रही थी -कितना चालाक है ,माता -पिता तक को ख़बर भी  नहीं कि लड़का क्या 'गुल' खिला रहा है। पता भी कैसे चले ?माता -पिता तो बच्चे को पढ़ने के लिए या नौकरी के लिए बाहर भेज देते हैं।अकेले दूर रहकर बच्चा किससे मिलता है ,कैसे संबंध बनाता है ?उन्हें क्या पता चलता है ?माता -पिता को तो अपना बच्चा सीधा और सच्चा ही लगता है। शालिनी ने दुबारा पूछा -उसने पहले क्यों नहीं कहा ?हम ही मना कर देते।  रूपा बोली -वो कह रहा था कि मम्मी -पापा परेशान होते। तो क्या हम परेशान नहीं होंगे ?हमारी बेटी की ज़िंदगी बर्बाद नहीं होगी। रिश्तों को खेल समझ रखा है ,ये कोई खेल है कि जब जी चाहे रिश्ते जोड़े ,जब जी चाहे तोड़ दिए शालिनी गुस्से से बोली। घर में ख़ुशी का वातावरण छाया था कि चलो ,बेटी का सही समय पर विवाह हो गया।  बेटी ख़ुशी -ख़ुशी अपने घर चली गयी। किन्तु बेटी के घर वापस आते ही घर शांति में तब्दील हो गया। सबके मन में दुःख के बादल छाये थे ,रह -रहकर मन में प्रश्न उठ रहे थे कि क्या करें ,कैसे इस परिस्थिति से उबरें ?ब्याहीभरी बेटी घर आकर बैठ गयी। उसे भेजें या यहीं रखें ,क्या यहाँ रखने के लिए ही विवाह किया था ?क्या करें ?इतना बड़ा धोखा खाये बैठे थे। बेटी ने तो जाने से इंकार कर दिया। बेटी को आये हुए एक सप्ताह हो गया। शालिनी के मन में तो आग धधक रही थी कि जीवनभर के रिश्तों का मज़ाक बना रखा है। बेटी को इतने लाड -प्यार से पाला ,विवाह किया ,क्या ये दिन देखने के लिए कि बेटी घर आकर बैठ जाये और वो आराम  से दूसरा विवाह करे। नहीं ,उसे ऐसे ही नहीं जाने दिया जा सकता ,गलती उसने की है तो भुगतेगा भी वही। इस तरह मेरी बेटी हार नहीं मान सकती।

                एक दिन शालिनी रूपा से बोली -क्या ,मैंने तुम्हें ,इसीलिए पढ़ाया -लिखाया ,क़ाबिल बनाया कि तुम अन्याय के आगे घुटने टेककर बैठ जाओ ,जिसमें तुम्हारी कोई गलती ही नहीं। जो बातें उसने शादी के बाद बताई ,पहले भी तो बता सकता था ,अब उसके माता -पिता नहीं पूछेंगे, कि बहु घर वापस क्यों नहीं आ रही ? अब बताने का कोई अर्थ ही नहीं रह गया है। अब तुम उसकी सही मायने में क़ानूनन पत्नी हो। तुम्हें उससे अपना अधिकार लेना होगा। क्या तुम सुंदर नहीं ,पढ़ी -लिखी नहीं। जाओ !वापस और अपनी लड़ाई स्वयं लड़ो और जीतो। माना कि विवाह से पहले किसी के भी किसी से संबंध हो सकते हैं लेकिन अब उसे भूलना होगा, अब वो विवाहित है। उस लड़की को भी समझना होगा कि यदि उसे उससे विवाह करना होता तो अपने माता -पिता को बता, उस रिश्ते को अंजाम देता। उसे भी बहकाये रखा और तुमसे भी विवाह कर लिया। उस लड़की को अब समझ जाना चाहिए विवाहित पुरुष से संबंध ठीक नहीं। इतिहास अपने को दोहरा रहा है ,किन्तु तुम मेरी बेटी हो ,तुम्हें हिम्मत से काम लेना होगा। अपना अधिकार प्यार से ,अधिकार से जैसे भी  बन  पड़े ,प्राप्त करना होगा ,कहकर वो बैठ गयी। रूपा बोली -मम्मी आपने अभी ये क्यों कहा कि इतिहास अपने को दोहरा रहा है। शालिनी बोली -जब मेरा विवाह हुआ ,तेरे पापा भी किसी लड़की के चक्कर में थे ,मैं ये बात बताना नहीं चाह रही थी लेकिन अब बताना पड़ रहा है। जब मुझे पता चला ,मैंने अपना धैर्य नहीं खोया ,न ही घर में किसी को बताया ,उस लड़के ने तुमसे तो सामने से बता भी दिया ,इन्होने तो मुझे कुछ नहीं बताया। एक दिन मैंने इनके सामान में एक पत्र देखा ,तब मैंने पूछा कौन है ,कब से इस रिश्ते में हो ?पहले तो चुप रहे लेकिन जब मैंने कहा -ये हमारी जिंदगी का प्रश्न है ,आपको सब सच बताना होगा। तब इन्होंने बताया। मैं पहले अपने स्तर पर ही इस परेशानी  से निपटना चाह रही थी। 
              रूपा ने पूछा -फिर आपने क्या किया ?शालिनी बोली -मैंने घर में किसी को नहीं बताया। घर में नई बहु की जब सारी रस्में हो गयीं ,तब एक दिन मैंने उसे अपने घर बुलाया।[ बाहर तो मैं जा नहीं सकती थी जैसे आजकल चल देते हैं ] तेरे पापा  अपनी दोस्त बताकर ले आये ,मेरा नया - नया विवाह हुआ था ,तो मैं  सज -संवरकर बैठी ही थी ,वो आई ,मैंने उसके लिए चाय -नाश्ते का इंतजाम किया। पहली बात तो वो मुझे देखकर फ़क्क पड़ गयी ,उसे इस बात का डर था कि कहीं मैं उसकी बेइज़्जती न कर दूँ। मैंने अपना व्यवहार उसी तरह रखा जैसे कोई दोस्त ,उसकी नई पत्नी से मिलने आयी हो। मैं ये भी देख रही थी कि तुम्हारे पापा बैठे कभी उसको देखते ,कभी मुझे। मैंने अंदाजा लगाया कि वो हम दोनों की मन ही मन तुलना कर रहे हैं।

सुंदरता में या व्यवहार में ,यह मैं नहीं जानती। मैंने उसकी पढ़ाई से संबंधित बातें की ,उस समय न जाने कैसे ,मुझमें इतना आत्मविश्वास आ गया। मैंने उससे खूब हँस -बोलकर बातें की ,आज मैं सोचती हूँ तो मुझे लगता है कि मैं ये साबित कर देना चाहती थी कि मैं घरवालों की पसंद किसी भी तरह से तुम्हारी पसंद से कम नहीं। अचानक मैं पूछ बैठी -और मीनल !कब विवाह कर रही हो ?वो मेरी बात सुनकर एकाएक चौंक गयी उसे मुझसे ऐसे प्रश्न की उम्मीद नहीं थी। [उस समय तुम्हारी दादीजी भी हमारे साथ ही बैठीं थीं ]वो संभलकर बोली -अभी पापा लड़का ढूँढ रहे हैं। मैंने हँसते हुए कहा -यहाँ तो कोई सीट ख़ाली नहीं ,तुम चाहो तो अपने देवर से तुम्हारा विवाह करा दूँ। तभी तुम्हारी दादीजी बोलीं -वो मेरा बेटा है ,मुझसे भी तो पूछना पड़ेगा। ना  जी ,तेरे जैसी लड़की से तो न होगा ,वो थोड़ा चिढ गयी ,बोली -क्यों ,आंटीजी मुझमें क्या कमी है ?एकाएक वो परेशान हो उठी ,उनका ऐसा कहना, मेरे लिए अच्छा हुआ। उसे शायद अपनी बेइज्जती सी लगी हो ,थोड़ी देर बैठकर वो अपने घर चली गयी।                    
          मैं नौकरी करती थी ,किसी भी मायने में उस लड़की से कम नहीं थी। मैंने सोच लिया था ,मैं क्यों हताश ,निराश होऊं ,मैंने कोई गलती नहीं की। सबसे बड़ी बात, कि घर में किसी को पता नहीं ,इस कारण वो मेरे साथ कोई भी अनुचित व्यवहार नहीं कर सकते थे। घर में किसी को कुछ नहीं पता था कि हम दोनों के बीच क्या चल रहा है ?सबके सामने तो हम खुशहाल पति -पत्नी ही थे। कई बार मैं रोई भी ,परेशान भी हुई ,सोचा भी कि जिस व्यक्ति के मन में मेरे प्रति प्यार ही नहीं है ,उसके साथ मैं क्यों रह रही हूँ ?फिर मम्मी -पापा का सोचा, कि कितनी परेशानियों से मेरा विवाह हुआ ,अब वो छोटी के लिए लड़का ढूंढ़ रहे थे ,उसके विवाह की तैयारी कर रहे थे। और मैं जाकर बैठ जाऊँ या फिर तलाक़ ले लूँ ,वे तो टूट जायेंगे। बात वहीं की वहीं रह जाएगी। इधर सास -ससुर या और रिश्तेदार भी पूछेंगे कि बहु क्यों चली गयी ?लड़के को कोई नहीं कहता ,लड़की में ही खोट ढूंढते हैं। माता -पिता के पास भी जाकर रहना ही है तो फिर मैं यहीं रहकर अपनी लड़ाई क्यों न लड़ूँ ?मेरे आने के बाद तुम्हारे पापा की तरक्की हुई। सबने इस बात का श्रेय मुझे ही दिया कि नई बहु के आने से लड़के की उन्नति हुयी। तुम्हारे पापा को हर जगह मैं ही नज़र आती। वे सुबह नौ बजे जाकर शाम को छः बजे आते। मैं उनसे पहले  आ जाती। उनका सारा काम समय पर हो जाता। मैंने उनका कोई काम नहीं छोड़ा ये सोचकर कि मुझसे तो प्यार ही नहीं ,मैं काम क्यों करूँ ?बल्कि ये सोचकर किया कि जहां भी रहूंगी काम तो करना ही होगा फिर यहाँ क्यों नहीं ?यहाँ तो मैं अपने हक़ की लड़ाई लड़ रही हूँ और जीतना भी मुझे ही है। तुम्हारे पापा मेरी बातों से व्यवहार से थोड़े प्रभावित थे ही ,अब मीनल से मिलना कम ही हो पाता ,मिलते भी तो झगड़ा हो जाता। वो कहती अपनी पत्नी को तलाक़ देकर मुझसे विवाह करो लेकिन परिस्थितियाँ  नहीं थीं कि उन्हें कोई बहाना मिलता कि वो तलाक़ के लिए आगे बढ़ें। 
            उन्हीं दिनों एक लड़का मेरे पीछे आने लगा ,वो किसी न किसी बहाने मेरे पास आने का प्रयत्न करता ,ऐसा नहीं कि मैंने तुम्हारे पापा को चिढ़ाने के लिए ऐसा किया लेकिन ये मेरे पक्ष में रहा। तुम्हारे पापा उससे चिढ़ने लगे। उस समय परिस्थितियाँ ऐसी हो गयीं थीं ,मैं सारा घर संभालती थी और उस घर में मेरी एक खास जगह बन चुकी थी। तुम्हारे पापा भी मेरे काम में मेरी मदद करा देते।वो अक़्सर परेशान हो जाते ,मीनल के विवाह के दबाब बनाने के कारण , एक दिन मैं उसके माता -पिता से मिली और अप्रत्यक्ष रूप से समझाया कि लड़की कहीं भटके या किसी का घर तोड़े ,उससे पहले ही उसका विवाह करा दें। रूपा बोली -उसके माता -पिता ने कुछ नहीं कहा ,कि तुम कौन होती हो ?हमारी बेटी के बारे में हमें सलाह देने वाली। शालिनी बोली -कहा उन्होंने ,पहले तो मैंने बताया कि मैं उसकी सहेली हूँ ,जब वो नहीं माने तो मैने अपना असली परिचय उन्हें दिया ,तो सुनकर वो शर्मिंदा हो गए। इधर मैंने तुम्हारे पापा से भी बात की कि इस रिश्तें में बदनामी और परेशानी के सिवा कुछ हाथ नहीं आने वाला। मैं अपने घर में अपनी जिम्मेदारियों से कभी  हटी, न ही मुँह बनाया। तुम्हारे पापा कोई छोटे बच्चे तो थे नहीं ,वे भी इस दोहरी जिंदगी से तंग आ चुके थे ,ऐसे में सहारा देने के लिए मैं थी न ,वो भी मेरी तरफ खींचने लगे और मैंने भी उस डोर को ढ़ील दे दी। उधर लड़की का विवाह हुआ इधर तुम हमारी जिंदगी में तुम आ  गयीं।ये जो तुम्हें अब हँसी -ख़ुशी वाला

परिवार नजर आता है और तुम्हें जो अपने पापा ''आदर्श पापा'' नज़र आते हैं ,वो मेरे धैर्य ,हिम्मत और मेहनत के साथ -साथ एक अच्छी और सच्ची सोच का नतीज़ा है। ये थी, मेरे अधिकार की लड़ाई ,इसी तरह तुम्हें भी पीछे नहीं हटना है ,हालाँकि कुछ परिस्थितियाँ अलग अथवा विपरीत होंगी, उन्हें तुम्हें अपनी सोच और बुद्धिमानी से जीतना है और जीतने के लिए मैदान में डटे रहना पड़ता है ,उससे भागकर जीत हासिल नहीं की  जा सकती।    





















 
laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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