इक परमात्मा तेरा ,इक मेरा।
मेरा परमात्मा कहता ,-
झूठ न बोल ,छल -कपट न कर।
दूजे को तू ,मूर्ख बना।
मेरा परमात्मा बोला -
तू शांत हो जा ,शांत रहना सीख।
तेरा परमात्मा कहता -
तू हलचल मचा ,गैरों की जिंदगी में।
मेरा परमात्मा कहता -
सहन कर ,तू झील बन जा।
झील की तरह गहरा ,शांत हो जा।
तेरा परमात्मा कहता -
तू बुरा तो है ,और बुरा बन जा।
जितनी गंदगी फैला सके, फैलाता जा
असंतोष पैदा कर दे ,गैरों की जिंदगी में।
मेरा परमात्मा कहता -
झूठ का ,ग़लत का विरोध कर ,
किन्तु उसमें लिप्त न होना।
वो तेरा अपना नहीं ,सबका होगा।
हे मानव ! तू बता ,किसका परमात्मा श्रेष्ठ है।
क्या दो भगवान हैं ,दो परमात्मा।
मैंने सुना था -सबका मालिक एक है।
फिर ये बंट कैसे गए ?
मेरे अंदर भी वही ,तेरे अंदर भी ,
फिर उसकी सोच , दो कैसे हुईं ?
मनन के बाद मैंने पाया ,
तेरा परमात्मा तो सोया है ,
तूने जगाया ही कब था ?
वो तेरी सोच थी ,जो तुझे बहला रही थी।
स्वार्थी बनी,तेरे मन में बैठी इठला रही थी।
