shreshth

 इक परमात्मा तेरा ,इक मेरा। 
मेरा परमात्मा कहता ,-
झूठ न बोल ,छल -कपट न कर। 
तेरा परमात्मा कहता -

 दूजे को तू ,मूर्ख बना। 
मेरा परमात्मा बोला -
तू शांत हो जा ,शांत रहना सीख। 
तेरा परमात्मा कहता -
तू हलचल मचा ,गैरों की जिंदगी में। 
 मेरा परमात्मा कहता -
सहन कर ,तू झील बन जा।
झील की तरह गहरा ,शांत हो जा। 
तेरा परमात्मा कहता -
तू बुरा तो है ,और बुरा बन जा। 
जितनी गंदगी फैला सके, फैलाता जा 
असंतोष पैदा कर दे ,गैरों की जिंदगी में। 
मेरा परमात्मा कहता -
झूठ का ,ग़लत का विरोध कर ,
किन्तु उसमें लिप्त न होना। 
वो तेरा अपना नहीं ,सबका होगा।
हे मानव ! तू बता ,किसका परमात्मा श्रेष्ठ है। 
क्या दो भगवान हैं ,दो परमात्मा। 
मैंने सुना था -सबका मालिक एक है। 
फिर ये बंट कैसे गए ?
मेरे अंदर भी वही ,तेरे अंदर भी ,
फिर उसकी सोच , दो कैसे हुईं ?
मनन के बाद मैंने पाया ,
तेरा परमात्मा तो सोया है ,
तूने जगाया ही कब था  ?
वो तेरी सोच थी ,जो तुझे बहला रही थी।
स्वार्थी बनी,तेरे मन में बैठी इठला रही थी।    

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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